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म्यांमार सेना ने किया फेक पिक्चर्स का इस्तेमाल

३१ अगस्त २०१८

म्यांमार की सेना ने एक किताब में कहा कि रोहिंग्या मुसलमान बंगाली हैं और बौद्धों को मारते रहे हैं. किताब में कुछ तस्वीरें भी लगाई गईं. लेकिन अब समाचार एजेंसी रॉयटर्स दावा कर रही है कि कुछ तस्वीरें फर्जी हैं.

Combination photo of an image from Bangladesh shown in a book as being from Myanmar
तस्वीर: Reuters/Top: Anwar Hossain/Flickr, Bottom: Myanmar Politics and the Tatmadaw: Part 1

यहां नजर आ रही इस काली-धुंधली तस्वीर में एक व्यक्ति अपने हाथों में लिए चप्पू या डंडे से तालाब में पड़ी लाशों को ठिकाने लगा रहा है. तस्वीर के कैप्शन में लिखा है, "बंगालियों ने स्थानीय जातियों को बेरहमी से मार डाला."

तस्वीर: Reuters/Top: Martha Rial/Pittsburgh Post-Gazette/The Pulitzer Prizes Bottom: Myanmar Politics and the Tatmadaw: Part 1

दूसरी तस्वीर में कई सैकड़ों लोग अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर किसी नए ठिकाने की ओर जाते दिख रहे हैं. तस्वीर के कैप्शन में लिखा है, "ये वे रोहिंग्या हैं जो बांग्लादेश से म्यांमार आ रहे हैं."

तस्वीर: Reuters/Top: Getty Images, Bottom: Myanmar Politics and the Tatmadaw: Part 1

तीसरी तस्वीर है एक जर्जर नाव की, जिसमें कई सौ लोग सवार दिख रहे हैं. कैप्शन है, "बंगाली जलमाध्यम से म्यांमार में घुसते हुए."

तस्वीरों के साथ छपे टैक्स्ट में लिखा है कि रोहिंग्या बांगलादेश से आए अप्रावासी हैं. म्यांमार की सेना की ओर से रोहिंग्या संकट पर लिखी गई किताब में इन तस्वीरों का कुछ ऐसे ही कैप्शन के साथ प्रस्तुत किया गया है. लेकिन सवाल है कि इसमें कितनी सच्चाई है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में तस्वीरों को गलत बताया है. रॉयटर्स के मुताबिक जिस पहली तस्वीर को साल 1940 में म्यांमार की जातीय हिंसा का बताया जा रहा है वह असल में साल 1971 में बांग्लादेश में छिड़े आजादी आंदोलन की है. इस आंदोलन में कई हजार बांग्लादेशियों को पाकिस्तानी सेना ने मार डाला था.

एजेंसी के मुताबिक पहली दो फोटो बांग्लादेश और तंजानिया की है. वहीं तीसरी फोटो देश छोड़ते शरणार्थियों की है. किताब में कुल मिलाकर 80 तस्वीरें हैं जिनमें से अधिकतर में सेना प्रमुख विदेशी मेहमानों के साथ नजर आ रहे हैं. वहीं 8 ऐतिहासिक तस्वीरें बता कर पेश गया था जो जिसमें से तीन को रॉयटर्स ने अपनी जांच में फेक पाया है. वहीं पांच तस्वीरों की जानकारी अब तक नहीं मिल सकी है. इस पूरे मामले में अब तक म्यांमार सरकार की ओर से कोई बयान नहीं आया है.

तस्वीर: Jibon Ahmed

म्यांमार सेना के पब्लिक रिलेशंस एंड साइकोलॉजिल वॉरफेयर डिपार्टमेंट की ओर से यह किताब जुलाई में प्रकाशित की गई थी. किताब की प्रस्तावना में लिखा है, "बंगालियों के इतिहास को उजागर करने के उद्देश्य से तस्वीरों को इस विषयवस्तु के साथ पेश किया गया है." किताब के लेखक कर्नल क्वा क्वा ओ लिखते हैं कि जब-जब म्यांमार में कोई राजनीतिक परिवर्तन और सशस्त्र जातीय हिंसा हुई है, उस स्थिति को इन बंगालियों ने एक मौके की तरह इस्तेमाल किया है. किताब में तर्क दिया गया है कि मुस्लिमों ने म्यांमार के नए लोकतांत्रिक बदलाव की अनिश्चितितओं का भी "धार्मिक संघर्ष" भड़काने के लिए इस्तेमाल किया है.

117 पन्नों वाली इस किताब की अधिकतर सामग्री में बतौर सोर्स, सेना की इनफोरमेशन यूनिट "ट्रू न्यूज" को क्रेडिट दिया गया है. ये किताब देश की आर्थिक राजधानी यांगोन की दुकानों पर बिक रही थी. एक दुकानदार ने बताया कि उसने किताब की 50 प्रतियां ऑर्डर की थीं जो अब तक सारी बिक चुकी हैं. साथ ही इन्हें मंगवाने की कोई योजना नहीं है. हाल में फेसबुक ने म्यांमार सेना के प्रमुख समेत सेना से जुड़े अन्य लोगों को नफरत फैलाने का आरोपी मानते हुए ब्लॉक किया था.

साल 2017 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में हुई हिंसा को संयुक्त राष्ट्र ने "जातीय सफाया" करार दिया था. अगस्त 2017 की हिंसा के बाद से अब तक करीब 7 लाख रोहिंग्या लोग म्यांमार छोड़ बांग्लादेश भाग गए.

एए/ओएसजे (रॉयटर्स)

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