म्यांमार में इस साल फरवरी में सेना के तख्तापलट के बाद वहां आम लोगों पर तेज होने वाले अत्याचार के बाद बड़े पैमाने पर लोग सीमा पार कर भारतीय इलाके में पहुंचे हैं. इनमें दर्जनों पुलिस वाले भी शामिल हैं.
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पड़ोसी देश म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सीमा पार से भाग कर खासकर पूर्वोत्तर के मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर आने वाले शरणार्थियों की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है. लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस फैसला नहीं किया है. इस वजह से खासकर म्यांमार सीमा से लगे मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर की सरकार असमंजस में है.
मणिपुर की बीजेपी सरकार ने तो पहले इन शरणार्थियों के लिए राहत शिविर खोलने से इंकार कर दिया था. लेकिन इस फैसले की आलोचना के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया है. अब तक तीन हजार से ज्यादा लोग सीमा पार कर इलाके में पहुंच चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि फिलहाल इन शरणार्थियों को भोजन और दवाएं तो दी जा सकती हैं लेकिन भारत अवैध घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दे सकता.
मोटे अनुमान के मुताबिक, बीते करीब दो महीने में तीन हजार से ज्यादा ऐसे शरणार्थी मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर में पहुंच चुके हैं. म्यांमार के चिन राज्य के साथ मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है. राज्य में शरण लेने वाले म्यांमार के ज्यादातर नागरिक चिन से हैं. उनको चिन या जो समुदाय का कहा जाता है. वे मिजोरम के मिजो समुदाय के साथ संस्कृति साझा करते हैं.
म्यांमार में तख्तापलट के बाद देश के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचने वाले म्यांमार शरणार्थियों को लेकर चल रही राजनीतिक खींचतान के बीच मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कहा है कि वे केंद्र सरकार से म्यांमार को लेकर अपनी विदेश नीति में बदलाव करने और शरणार्थियों को वापस नहीं भेजने की अपील करेंगे. इससे पहले बीते सप्ताह उन्होंने म्यांमार से अवैध घुसपैठ पर रोक लगाने और शरणार्थियों का तेजी से प्रत्यर्पण सुनिश्चित करने के केंद्र सरकार के आदेश को अस्वीकार्य बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मानवीय आधार पर उनको शरण देने का अनुरोध किया था.
साझा संस्कृति और विरासत की वजह से म्यांमार से सबसे ज्यादा शरणार्थी मिजोरम में ही आए हैं. मुख्यमंत्री जोरमथांगा कहते हैं, "मुझे लगता है कि म्यांमार के लोगों को लेकर भारत सरकार को और उदार रवैया रखना चाहिए. मैंने प्रधानमंत्री मोदी से भी यह कहा है. मैं इस पर चर्चा करने के लिए अपने एक प्रतिनिधिमंडल को शीघ्र दिल्ली भेज रहा हूं. हम सरकार से निवेदन करेंगे कि म्यांमार के शरणार्थियों को स्वीकार करने और वापस नहीं भेजने को लेकर विदेश नीति में बदलाव किए जाएं. यहां आने वाले शरणार्थियों की तादाद लगातार बढ़ रही है. हमें उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना होगा.”
वह कहते हैं कि म्यांमार से आने वाले लोग हमारे भाई-बहन हैं. उनमें से ज्यादातर के साथ हमारे पारिवारिक संबंध हैं. अगर वे लोग मिजोरम आते हैं तो मानवीय दृष्टिकोण के आधार पर उन्हें खाना और आश्रय देना होगा, "हम म्यांमार में एक लोकतांत्रिक सरकार चाहते हैं न कि सैन्य शासन."
म्यांमार में दमन का कुचक्र
एक फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना द्वारा तख्ता पलट देने और सत्ता हथिया लेने के बाद वहां लगातार नागरिकों के अधिकारों का दमन हो रहा है. तीन मार्च को एक ही दिन में सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 प्रदर्शनकारी मारे गए.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
हिंसा का दौर
तख्तापलट के बाद से ही लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं और देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन आयोजित कर रहे हैं. सेना और पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती से पेश आ रहे हैं, जिसकी वजह से देश में हिंसा का दौर थम ही नहीं रहा है. तीन मार्च को सुरक्षाबलों की फायरिंग में 38 लोग मारे गए.
तस्वीर: AP Photo/picture alliance
बढ़ते जनाजे
इन 38 लोगों को मिला कर अभी तक कम से कम 50 प्रदर्शनकारियों की जान जा चुकी है. यह तस्वीर 19 साल की क्याल सिन के शव की अंतिम यात्रा की है. वो तीन मार्च को मैंडले में सेना के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं जब सुरक्षाबलों ने गोलियां चला दीं. उन्हें सिर में गोली लगी और उनकी मौत हो गई.
तस्वीर: REUTERS
बल का प्रयोग
प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने पहले आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया. सुरक्षाबल लगातार आंसू गैस, रबड़ की गोलियां, ध्वनि बम जैसे हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है. प्रदर्शन शांत ना होने पर गोली चला दी जा रही है.
तस्वीर: Aung Kyaw Htet/ZumaWire/Imago Images
बचने के तरीके
प्रदर्शनकारियों को अपनी सुरक्षा का इंतजाम भी करना पड़ रहा है. आंखों को ढकने के लिए बड़े बड़े चश्मे, हेलमेट और ढालों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
नाकामयाब कोशिशें
प्रदर्शनकारी भी खुद को बचाने के लिए धुंआ छोड़ रहे हैं लेकिन धुंआ और किसी तरह से बनाए हुए बैरिकेड भी उन्हें पुलिस की गोलियों से बचा नहीं पा रहे हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
मीडिया पर हमले
गिरफ्तारियों का सिलसिला भी लगातार चल रहा है और प्रदर्शनकारियों के अलावा पुलिस पत्रकारों को भी गिरफ्तार कर रही है. प्रदर्शनों पर खबर कर रहे एसोसिएटेड प्रेस के थेइन जौ और पांच और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
तस्वीर: Thein Zaw family/AP/picture alliance
सू ची की छाया
प्रदर्शनकारियों में से कई म्यांमार की नेता आंग सान सू ची के समर्थक हैं, जिन्हें सेना ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. प्रदर्शनों में सू ची की रिहाई और लोकतंत्र की बहाली की मांग उठ रही है.
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जोरमथांगा ने इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में इन शरणार्थियों को राज्य में शरण देने का अनुरोध किया था. उन्होंने कहा था कि म्यांमार में बड़े पैमाने पर मानवीय तबाही हो रही है और सेना बेकसूर नागरिकों की हत्या कर रही है. इससे पहले 13 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से चार पूर्वोत्तर राज्यों को भेजे गए एक पत्र में म्यांमार से अवैध तौर पर आ रहे लोगों को कानून के अनुसार नियंत्रित करने की बात कही गई थी.
उधर, मणिपुर सरकार ने बीते 26 मार्च को म्यांमार की सीमा से सटे जिलों के उपायुक्तों को एक आदेश जारी कर म्यांमार से भागकर आ रहे शरणार्थियों को आश्रय और खाना देने से इनकार और उन्हें शांतिपूर्वक लौटाने की बात कही थी. लेकिन कड़ी आलोचना के बाद इस आदेश को वापस ले लिया गया.
दूसरी ओर, म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद हुई हिंसा के बाद पूर्वोत्तर भारत आने वाले शरणार्थियों को लेकर भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि भारत उन्हें राशन और दवाइयां देने को तैयार है लेकिन अवैध तरीके से घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है. उनका कहना था, "हम सबकी सहायता करना चाहते हैं. अगर म्यांमार से आने वाले लोग राशन या मेडिकल सप्लाई चाहते हैं तो भारत सरकार उन इलाकों में कैंप लगा कर उनकी सहायता कर सकती है. लेकिन हम भारत में म्यांमार से अवैध घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं.”
पूर्वोत्तर के कई संगठन भी म्यांमार से आने वाले लोगों को शरणार्थियों का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में मौजूद जातीय समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन 'द जो रियूनिफिकेशन ऑर्गनाइजेशन (जोरो)' ने गृह मंत्रालय से म्यांमार की सीमा से लगे चार पूर्वोत्तर राज्यों- मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को उस देश से आने वाले लोगों को रोकने का अपना आदेश वापस लेने की भी अपील की है. संगठन के अध्यक्ष आर सांकविया कहते हैं, "अतीत में बांग्लादेश और अन्य देशों के हजारों लोग अवैध रूप से भारत आए हैं. केंद्र सरकार ने उन्हें शरणार्थी के रूप में शरण दी है. लेकिन अब उसने चार सीमावर्ती राज्यों को म्यांमार से आने वाले लोगों की पहचान करने और वापस भेजने को कहा है."
म्यांमार सेना के खिलाफ सड़कों पर उतरे लोग
म्यांमार में सेना के तख्तापलट के बाद धीरे-धीरे लोगों का गुस्सा फूट रहा है. साल 2007 के बाद देश सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन का गवाह बन रहा है. लोग आंग सान सू ची की रिहाई के लिए प्रदर्शन और आपातकाल के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.
म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
म्यांमार में 1 फरवरी को हुए सैन्य तख्तापलट के विरोध और देश की प्रमुख नेता आंग सान सू ची को जल्द से जल्द रिहा करने के समर्थन में हजारों लोगों ने 7 फरवरी को देशभर में जोरदार प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन के दौरान नारे लगाते हुए कहा, "हम सैन्य तानाशाही नहीं चाहते हैं. हम लोकतंत्र चाहते हैं."
तस्वीर: REUTERS
म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
तख्तापलट करने वाले सैन्य अधिकारियों ने इन विरोध प्रदर्शनों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2007 के बाद म्यांमार में यह अब तक का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है.
तस्वीर: Ye Aung Thu/AFP/Getty Images
म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
आंग सान सू ची की रिहाई के लिए आम लोगों के साथ-साथ उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया. उनके हाथों में सू ची की तस्वीर वाले बैनर थे और उस पर रिहाई की मांग थी.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार ने 6 फरवरी को माइक्रो ब्लॉगिंग मंच ट्विटर और इंस्टाग्राम पर रोक लगा दी. इससे पहले सेना ने फेसबुक पर चार दिनों के लिए रोक लगाई थी. तख्तापलट करने वाली सेना को आशंका है कि फेसबुक के जरिए राजनीतिक पार्टियां और नागरिक अधिकार संगठन बड़े प्रदर्शन आयोजित कर सकते हैं.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यंगून शहर में हजारों की भीड़ 7 फरवरी को विरोध प्रदर्शन में शामिल हुई और "सैन्य तानाशाही विफल" और "लोकतंत्र की जीत" के नारे लगाए.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
सैन्य तख्तापलट के विरोध में भारी संख्या में महिला शिक्षकों ने भी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और तीन उंगलियां सलामी मुद्रा में दिखाईं.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
सेना ने पिछले साल हुए चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर देश के बड़े नेताओं को हिरासत में लिया था और एक साल के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था पर रोक लगा दी थी. स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मचारियों ने अपने कपड़ों पर लाल रिबन लगाकर अपना विरोध जताया.
तस्वीर: REUTERS
म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ अमेरिका समेत तमाम देशों ने चिंता जाहिर की है और सेना से देश के नेताओं की जल्द रिहाई की मांग की है.
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म्यांमार में तख्तापलट का विरोध
यंगून विश्वविद्यालय के पास प्रमुख चौराहे पर 7 फरवरी को जमा हुए कम से कम 2,000 श्रमिक संगठनों के सदस्यों, छात्र कार्यकर्ताओं और आम लोगों ने "आपकी आयु लंबी हो मां सू" के नारे लगाए.
तस्वीर: Ye Aung Thu/AFP/Getty Images
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म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों के मुद्दे पर केंद्र की चुप्पी पर अब पूर्वोत्तर में सवाल उठने लगे हैं. केंद्र सरकार ने अब तक म्यांमार के तख्तापलट पर कोई टिप्पणी नहीं की है. दरअसल इसकी एक वजह इस देश के साथ 1,643 किलेमीटर लंबी सीमा का लगा होना भी है. यह सीमा ज्यादातर जगहों पर खुली है. इसकी निगरानी का जिम्मा असम राइफल्स पर है. लेकिन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाली जातियों, उनकी संस्कृति और रहन-सहन में समानता की वजह से सदियों से दोनों ओर के लोग अबाध रूप से आवाजाही करते रहे हैं. अब हालांकि बीते साल कोरोना महामारी की वजह से औपचारिक सीमाएं बंद कर दी गई हैं. बावजूद इसके जंगल के रास्ते लोगों की आवाजाही जारी है. म्यांमार के लोग इसी रास्ते भारत पहुंच रहे हैं. सीमा के दोनों ओर नागा जनजातियों के अलावा चिन और मिजो समुदाय के लोग रहते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनोरंजन माइती कहते हैं, "म्यांमार कई लिहाज से भारत के लिए अहम है. देश की लुक ईस्ट नीति के अलावा पूर्वोत्तर में उग्रवाद के लिहाज से भी इसकी काफी अहमियत है. पहले इलाके के तमाम उग्रवादी संगठन म्यांमार में शरण लेते रहे हैं. लेकिन म्यांमार सरकार ने भरोसा दिया है कि वह उग्रवाद के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा." माइती के मुताबिक इन वजहों से ही भारत तख्तापलट और म्यांमार के शरणार्थियों पर कोई ठोस कदम उठाने या टिप्पणी करने से बचता रहा है. इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के असमंजस की वजह से आने वाले दिनों में म्यांमार के शरणार्थियों की समस्या और गंभीर होने का अंदेशा है.
21वीं सदी के तख्तापलट
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
तस्वीर: AP
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
तस्वीर: Getty Images/P. Walter
हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
तस्वीर: Erika SatelicesAFP/Getty Images
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
तस्वीर: Camille Laffont/AFP/Getty Images
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.