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म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों पर असमंजस

प्रभाकर मणि तिवारी
८ अप्रैल २०२१

म्यांमार में इस साल फरवरी में सेना के तख्तापलट के बाद वहां आम लोगों पर तेज होने वाले अत्याचार के बाद बड़े पैमाने पर लोग सीमा पार कर भारतीय इलाके में पहुंचे हैं. इनमें दर्जनों पुलिस वाले भी शामिल हैं.

Indien Mizoram
तस्वीर: IANS

पड़ोसी देश म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सीमा पार से भाग कर खासकर पूर्वोत्तर के मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर आने वाले शरणार्थियों की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है. लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस फैसला नहीं किया है. इस वजह से खासकर म्यांमार सीमा से लगे मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर की सरकार असमंजस में है.

मणिपुर की बीजेपी सरकार ने तो पहले इन शरणार्थियों के लिए राहत शिविर खोलने से इंकार कर दिया था. लेकिन इस फैसले की आलोचना के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया है. अब तक तीन हजार से ज्यादा लोग सीमा पार कर इलाके में पहुंच चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि फिलहाल इन शरणार्थियों को भोजन और दवाएं तो दी जा सकती हैं लेकिन भारत अवैध घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दे सकता.

मोटे अनुमान के मुताबिक, बीते करीब दो महीने में तीन हजार से ज्यादा ऐसे शरणार्थी मिजोरम, नागालैंड और मणिपुर में पहुंच चुके हैं. म्यांमार के चिन राज्य के साथ मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है. राज्य में शरण लेने वाले म्यांमार के ज्यादातर नागरिक चिन से हैं. उनको चिन या जो समुदाय का कहा जाता है. वे मिजोरम के मिजो समुदाय के साथ संस्कृति साझा करते हैं.

म्यांमार में तख्तापलट के बाद देश के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचने वाले म्यांमार शरणार्थियों को लेकर चल रही राजनीतिक खींचतान के बीच मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कहा है कि वे केंद्र सरकार से म्यांमार को लेकर अपनी विदेश नीति में बदलाव करने और शरणार्थियों को वापस नहीं भेजने की अपील करेंगे. इससे पहले बीते सप्ताह उन्होंने म्यांमार से अवैध घुसपैठ पर रोक लगाने और शरणार्थियों का तेजी से प्रत्यर्पण सुनिश्चित करने के केंद्र सरकार के आदेश को अस्वीकार्य बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मानवीय आधार पर उनको शरण देने का अनुरोध किया था.

साझा संस्कृति और विरासत की वजह से म्यांमार से सबसे ज्यादा शरणार्थी मिजोरम में ही आए हैं. मुख्यमंत्री जोरमथांगा कहते हैं, "मुझे लगता है कि म्यांमार के लोगों को लेकर भारत सरकार को और उदार रवैया रखना चाहिए. मैंने प्रधानमंत्री मोदी से भी यह कहा है. मैं इस पर चर्चा करने के लिए अपने एक प्रतिनिधिमंडल को शीघ्र दिल्ली भेज रहा हूं. हम सरकार से निवेदन करेंगे कि म्यांमार के शरणार्थियों को स्वीकार करने और वापस नहीं भेजने को लेकर विदेश नीति में बदलाव किए जाएं. यहां आने वाले शरणार्थियों की तादाद लगातार बढ़ रही है. हमें उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना होगा.”

वह कहते हैं कि म्यांमार से आने वाले लोग हमारे भाई-बहन हैं. उनमें से ज्यादातर के साथ हमारे पारिवारिक संबंध हैं. अगर वे लोग मिजोरम आते हैं तो मानवीय दृष्टिकोण के आधार पर उन्हें खाना और आश्रय देना होगा, "हम म्यांमार में एक लोकतांत्रिक सरकार चाहते हैं न कि सैन्य शासन."

जोरमथांगा ने इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में इन शरणार्थियों को राज्य में शरण देने का अनुरोध किया था. उन्होंने कहा था कि म्यांमार में बड़े पैमाने पर मानवीय तबाही हो रही है और सेना बेकसूर नागरिकों की हत्या कर रही है. इससे पहले 13 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से चार पूर्वोत्तर राज्यों को भेजे गए एक पत्र में म्यांमार से अवैध तौर पर आ रहे लोगों को कानून के अनुसार नियंत्रित करने की बात कही गई थी.

उधर, मणिपुर सरकार ने बीते 26 मार्च को म्यांमार की सीमा से सटे जिलों के उपायुक्तों को एक आदेश जारी कर म्यांमार से भागकर आ रहे शरणार्थियों को आश्रय और खाना देने से इनकार और उन्हें शांतिपूर्वक लौटाने की बात कही थी. लेकिन कड़ी आलोचना के बाद इस आदेश को वापस ले लिया गया.

दूसरी ओर, म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद हुई हिंसा के बाद पूर्वोत्तर भारत आने वाले शरणार्थियों को लेकर भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि भारत उन्हें राशन और दवाइयां देने को तैयार है लेकिन अवैध तरीके से घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है. उनका कहना था, "हम सबकी सहायता करना चाहते हैं. अगर  म्यांमार से आने वाले लोग राशन या मेडिकल सप्लाई चाहते हैं तो भारत सरकार उन इलाकों में कैंप लगा कर उनकी सहायता कर सकती है. लेकिन हम भारत में म्यांमार से अवैध घुसपैठ को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं.”

पूर्वोत्तर के कई संगठन भी म्यांमार से आने वाले लोगों को शरणार्थियों का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में मौजूद जातीय समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन 'द जो रियूनिफिकेशन ऑर्गनाइजेशन (जोरो)' ने गृह मंत्रालय से म्यांमार की सीमा से लगे चार पूर्वोत्तर राज्यों- मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को उस देश से आने वाले लोगों को रोकने का अपना आदेश वापस लेने की भी अपील की है. संगठन के अध्यक्ष आर सांकविया कहते हैं, "अतीत में बांग्लादेश और अन्य देशों के हजारों लोग अवैध रूप से भारत आए हैं. केंद्र सरकार ने उन्हें शरणार्थी के रूप में शरण दी है. लेकिन अब उसने चार सीमावर्ती राज्यों को म्यांमार से आने वाले लोगों की पहचान करने और वापस भेजने को कहा है."

म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों के मुद्दे पर केंद्र की चुप्पी पर अब पूर्वोत्तर में सवाल उठने लगे हैं. केंद्र सरकार ने अब तक म्यांमार के तख्तापलट पर कोई टिप्पणी नहीं की है. दरअसल इसकी एक वजह इस देश के साथ 1,643 किलेमीटर लंबी सीमा का लगा होना भी है. यह सीमा ज्यादातर जगहों पर खुली है. इसकी निगरानी का जिम्मा असम राइफल्स पर है. लेकिन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाली जातियों, उनकी संस्कृति और रहन-सहन में समानता की वजह से सदियों से दोनों ओर के लोग अबाध रूप से आवाजाही करते रहे हैं. अब हालांकि बीते साल कोरोना महामारी की वजह से औपचारिक सीमाएं बंद कर दी गई हैं. बावजूद इसके जंगल के रास्ते लोगों की आवाजाही जारी है. म्यांमार के लोग इसी रास्ते भारत पहुंच रहे हैं. सीमा के दोनों ओर नागा जनजातियों के अलावा चिन और मिजो समुदाय के लोग रहते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनोरंजन माइती कहते हैं, "म्यांमार कई लिहाज से भारत के लिए अहम है. देश की लुक ईस्ट नीति के अलावा पूर्वोत्तर में उग्रवाद के लिहाज से भी इसकी काफी अहमियत है. पहले इलाके के तमाम उग्रवादी संगठन म्यांमार में शरण लेते रहे हैं. लेकिन म्यांमार सरकार ने भरोसा दिया है कि वह उग्रवाद के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा." माइती के मुताबिक इन वजहों से ही भारत तख्तापलट और म्यांमार के शरणार्थियों पर कोई ठोस कदम उठाने या टिप्पणी करने से बचता रहा है. इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के असमंजस की वजह से आने वाले दिनों में म्यांमार के शरणार्थियों की समस्या और गंभीर होने का अंदेशा है.

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