गृहयुद्ध में फंसे यमन की लड़ाई में एक और मोर्चा खुलने की आशंका उठ गई है. अब तक गठबंधन में शामिल हो कर हूथी विद्रोहियों का सामना कर रहे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात समर्थित गुट अब आमने सामने आ रहे हैं.
विज्ञापन
हूथी विद्रोहियों से लड़ रहे सऊदी अरब के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना में संयुक्त अरब अमीरात के सैनिक बड़ी संख्या में हैं लेकिन अब उसने अपने सैनिकों की वापसी शुरू कर दी है. समस्या इतनी भर नहीं है, यूएई समर्थित गुट यमन की सरकार के सामने चुनौती पेश कर रहा है.
यमन में संघर्षरत सरकार के गृह मंत्री ने दक्षिणी अलगाववादी नेता पर "बगावत भड़काने" का आरोप लगाया है. ये अलगाववादी ताकतें यमन की सेना से अदन में राष्ट्रपति के महल के पास लड़ रही है. इसके साथ ही यह चिंता भी पैदा हो गई है कि क्या पहले से ही गृहयुद्ध झेल रहे यमन में एक नया मोर्चा खुलने जा रहा है.
गृह मंत्री अहमद अल माइसारी ने अलगाववादी नेता हानी बेन ब्राइक के समर्थकों से कहा है कि वे सरकार को उखाड़ने की उनकी मांग अनसुनी कर दें. माइसारी का कहना है कि ब्राइक का लक्ष्य केवल युद्ध का खतरा पैदा करना और हूथी विद्रोहियों के खिलाफ चल रही लड़ाई को कमजोर करना है.
बीते कई साल से यमन गृहयुद्ध में घिरा है. यहां सऊदी अरब के नेतृत्व में एक गठबंधन सेना ईरान समर्थित हूथी विद्रोहियों से 2015 से ही लड़ रही है. यमन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता वाली सरकार तो अब बस अदन के कुछ इलाकों में ही सिमट गई है. अब तक इस लड़ाई में 10 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और देश एक एक तरह से भुखमरी के मुहाने पर पहुंच गया है.
यमन देश के उत्तरी हिस्से और दक्षिणी हिस्से में रहने वालों के बीच बहुत पहले से तनाव रहा है. उत्तर के लोग हूथी विद्रोहियों के आगे बढ़ने पर दक्षिण की तरफ भाग गए. दक्षिण वालों के पास कभी अपना खुद का राज्य था और वो ज्यादा स्वायत्तता या फिर सीधे आजादी चाहते हैं.
अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में संयुक्त अरब अमीरात भी प्रमुख सदस्य है लेकिन वह मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ यमन की सरकार के संबंधों के चलते नाखुश है. मुस्लिम ब्रदरहुड को सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात एक आतंकवादी गुट के रूप में देखते हैं. ऐसे में संयुक्त अरब अमीरात अब उन अलगाववादी गुटों को समर्थन दे रहा है जो सरकारी सेना से लड़ रहे हैं.
बुधवार को संयुक्त अरब अमीरात समर्थित मिलीशिया के एक कमांडर के अंतिम संस्कार के दौरान इस विभाजन की छाया साफ देखने को मिली. कमांडर को दफनाए जाने के बाद उनके समर्थकों ने राष्ट्रपति के महल तक मार्च किया और वहां मौजूद सैनिकों से भिड़ गए. इस झड़प में राष्ट्रपति के एक गार्ड की मौत हो और दो आम लोगों समेत कम से कम चार लोग घायल हो गए.
गुरुवार को सरकार समर्थित सेना और यूएई समर्थित सिक्योरिटी बेल्ट फोर्स के बीच संघर्ष जारी रहा और अदन के खोरमाकसर इलाके में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई. एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि इसमें तीन लोग राष्ट्रपति के गार्ड थे. इसके अलावा दो लोग घायल हुए इनमें एक बच्चा भी है. इस अधिकारी का कहना है कि सेंट्रल बैंक की इमारत के बाहर तैनात राष्ट्रपति के गार्डों ने हथियारबंद लोगों पर फायरिंग की जिन्हें अलगाववादी बताया जा रहा है. इस अधिकारी ने अपना नाम बताने से मना कर दिया.
सऊदी अरब-ईरान के बीच पिसता यमन
अरब दुनिया में शुमार यमन की गिनती दुनिया के गरीब देशों में होती है. साल 2011 के बाद से देश में राजनीतिक खींचतान जारी है. हालात बिगड़े और साल 2015 से यहां गृहयुद्ध शुरू हो गया है. एक नजर इस युद्ध की वजहों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
कब हुई शुरुआत
देश के आंतरिक मसलों से शुरू हुआ यह युद्ध आज कई मुल्कों के बीच की लड़ाई बन गया है. साल 2011 में अरब वसंत की लहर जब यमन पहुंची तो साल 1978 से यमन की सत्ता पर काबिज अली अबदुल्लाह सालेह को हटाने की आवाज उठने लगी. उस वक्त हुए सत्ता परिवर्तन में राष्ट्रपति की कुर्सी अबेदरब्बो मंसूर हादी को मिल गई और तब से वही देश के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Hani Mohammed
नई सरकार की नाकामी
नए राष्ट्रपति हादी को सत्ता मिलने से पूर्व राष्ट्रपति सालेह का वफादार खेमा नाराज हो गया. हादी सरकार के सामने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, खाद्य संकट जैसी बुनियादी समस्याएं भी थीं. साथ ही अल कायदा जैसे आंतकी गुटों से निपटना भी उसके लिए एक चुनौती था. कुल मिलाकर स्थिरता की उम्मीद से जिस नई सरकार का गठन किया गया था वह असल काम करने में नाकाम रही.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo//H.Mohammed
कहां से लगी चिंगारी
नई सरकार की इस प्रशासनिक नाकामी का फायदा उठाते हुए हूथी विद्रोहियों ने देश के उत्तरी प्रांत सदा और उसके आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया. हूथी विद्रोही यमन के अल्पसंख्यक शिया जैदी मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं. साल 2000 के दौरान इन हूथी विद्रोहियों ने उस वक्त राष्ट्रपति रहे सालेह की फौज के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी लेकिन ये संघर्ष उत्तरी यमन के सूबे सदा तक ही सीमित रहे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
दुश्मन-दुश्मन हुए साथ
अब तक हूथी विद्रोही, सालेह को अपना दुश्मन मानते थे. लेकिन हादी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सालेह खेमे ने हूथी विद्रोहियों से हाथ मिला लिया. दुश्मनों की इस दोस्ती का असर हुआ और साल 2014 में हूथी विद्रोही और सालेह की फौज ने मिलकर यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण स्थापित कर लिया. इसके बाद यमन के दूसरे सबसे बड़े शहर अदन को लक्ष्य बनाया गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Al-Obeidi
शिया-सुन्नी युद्ध
शिया मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वाले हूथी विद्रोहियों के बढ़ते प्रभाव के चलते साल 2015 में सऊदी अरब, यमन के इस गृहयुद्ध में हादी सरकार को समर्थन देने लगा. सऊदी अरब, ईरान पर हूथियों का साथ देने का आरोप लगाता है. ईरान और सऊदी अरब के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. सऊदी अरब कहता है कि ईरान, अरब जगत पर अपना असर बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Mohammed
सऊदी अरब के साथ
सऊदी अरब का साथ सुन्नी बहुल कतर, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र, जोर्डन जैसे देश सीधे-सीधे दे रहे हैं. इसके अलावा सेनेगल, मोरक्को, सूडान भी इसके साथ हैं. अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों से सऊदी अरब को हथियार और अन्य सहायता भी मिलती है. वहीं दूसरी तरफ ईरान हूथी विद्रोहियों का साथ देने से इनकार करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पूर्व राष्ट्रपति की हत्या
हूथी विद्रोहियों का साथ देने वाले यमन के पूर्व राष्ट्रपति सालेह ने साल 2017 में हूथियों का तीन साल पुराना साथ छोड़ने की घोषणा की थी. साथ ही कहा था कि वह सऊदी अरब और विद्रोहियों के बीच वार्ता के पक्ष में हैं. सालेह के इस प्रस्ताव को सऊदी अरब ने भी सकारात्मक ढंग से लिया था. लेकिन हूथी विद्रोहियों ने सालेह पर धोखे का आरोप लगाते हुए उनकी हत्या कर दी थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
अलगाववादियों की भूमिका
इन सब के बीच यहां अलगाववादियों की भी भूमिका बहुत अहम है. साल 1990 में दक्षिणी और उत्तरी यमन को मिलाकर यमन राष्ट्र का गठन किया गया था. लेकिन अब भी दक्षिण यमन के क्षेत्र में अलगाववादी भावना शांत नहीं हुईं हैं. अलगाववादी पहले हूथी विद्रोहियों के खिलाफ सरकार का समर्थन करते थे. लेकिन अब ये गुट सरकार पर भ्रष्टाचार और भेदभाव का आरोप लगाते हैं जिसके बाद तनाव बढ़ा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
आतंकी संगठनों की सक्रियता
आतंकी गुट अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े चरमपंथी संगठन भी दोनों पक्षों पर हमला करते रहते हैं. साल 2015 से शुरू हुए इस गृहयुद्ध में अब तक आठ हजार से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 42 हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यमन में दो करोड़ से भी अधिक लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है. देश के इस आंतरिक संकट ने मानवीय त्रासदी का रूप ले लिया है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
आज के हालात
देश की मौजूदा सरकार फिलहाल अदन को अपना ठिकाना बनाए हुए है. लेकिन अदन की सरकारी इमारतों पर अलगाववादियों का कब्जा है. वहीं राजधानी सना में हूथी विद्रोहियों का कब्जा है. जमीनी स्तर पर यमन में हालात बहुत खराब है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों मुताबिक देश में महामारी शुरू होने के बाद से हैजे के चलते अब तक दो हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं.
तस्वीर: Reuters/M. al-Sayaghi
10 तस्वीरें1 | 10
कथित सदर्न ट्रांजिशनल काउंसिल के उप प्रमुख बेन ब्राइक ने सरकार को उखाड़ फेंकने की मांग की है. उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि यह देश की कीमत पर ब्रदरहुड के हितों का ध्यान रख रही है.
उधर गृह मंत्री अल माइसारी का कहना है कि उन्हें सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की तरफ से भरोसा मिला है कि वे अलगाववादियों की इस तरह की गतिविधियों के खिलाफ है. सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन के प्रवक्ता तुर्की अल मलिकी ने बुधवार को अदन में "हो रही गंभीर घटनाओं को सिरे से खारिज" किया इसके साथ ही उन्होंने सभी पक्षों से मांग की कि वो सरकार के साथ मिल कर "इस कठिन समय से बाहर आने" में मदद करें.
संयुक्त अरब अमीरात ने पिछले महीने ही हजारों की संख्या में अपने सैनिकों को यमन से बाहर निकालना शुरू कर दिया इससे हूथी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहे गठबंधन की ताकत कम होगी. इस वजह से इन सऊदी अरब और यूएई के बीच विवाद के बढ़ने की आशंका पैदा हो गयी है.
हालांकि यूएई के करीब 90 हजार सैनिक उस गठबंधन में बने रहेंगे जिनका दक्षिणी हिस्से पर नियंत्रण है. ऐसे में उसका इलाके में असर बना रहेगा और साथ ही सऊदी अरब समर्थित सरकार के लिए खतरा भी.
क्रांति और विरोध से क्या मिला अरब दुनिया को
अरब दुनिया के देशों बीते आठ सालों में क्या कुछ नहीं झेला. ट्यूनीशिया की क्रांति ही देश में लोकतंत्र ला पाई, वहीं बाकियों को मिला युद्ध, बर्बादी और पहले से भी ज्यादा दमन. एक नजर.
तस्वीर: Getty Images/D. Souleiman
बहरीन
छोटे से शिया बहुल खाड़ी देश बहरीन में सुन्नी खलीफा वंश का राज चलता है. इन्हें अपने पड़ोसी शक्तिशाली सऊदी अरब का भी समर्थन है. 2011 से कई बार अशांति और असंतोष की खबरें आईं, जब प्रशासन ने राजनीतिक सुधारों की मांग करने वाले शिया समुदाय के प्रदर्शनों को कुचला. देश में शासन के विरोधियों का पक्ष लगातार बढ़ता गया और बदले में सैकड़ों विरोधियों को या तो प्रशासन ने जेल में डाल दिया है या नागरिकता छीन ली है.
तस्वीर: Reuters
सीरिया
आठ साल से हिंसा और युद्ध की चपेट में रहा सीरिया तबाह हो गया है. चार लाख लोग मारे गए जबकि 1.2 करोड़ लोग बेघर हो गए. शुरुआत 15 मार्च, 2011 को शांतिपूर्ण प्रदर्शन से हुई. जो आगे चलकर राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ हथियारबंध आंदोलन बना. 2012 से यहां युद्ध छिड़ा, जिसे बाहर से रूस, ईरान और लेबनान के शिया संगठन हिज्बुल्लाह का समर्थन मिला. एक बार फिर देश का दो-तिहाई इलाका सरकार के नियंत्रण में आ चुका है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Palacios
लीबिया
15 फरवरी 2011 को देश में 42 साल से राज कर रहे मोअम्मर गद्दाफी के खिलाफ विरोध फूटा. प्रदर्शनों को कुचलने में खूब हिंसा और दमन हुआ. असंतोष बढ़ कर हथियारबंद विद्रोह बना, जिसे नाटो की मदद मिली. 20 अक्टूबर को गद्दाफी पकड़ा गया और जान से मारा गया. अब देश में समांतर शासन है. राजधानी त्रिपोली में अंतरराष्ट्रीय-समर्थन वाली फयाज अल-सराज की सरकार तो वहीं पूर्व में सेना-समर्थित खलीफा हफ्तार की सरकार चलती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Messara
ट्यूनीशिया
2010 में पुलिस प्रताड़ना से तंग आकर रेड़ी लगाने वाले एक व्यक्ति ने खुद को जला कर जान दे दी. इस घटना ने देश में फैली गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं के ढेर में चिंगारी लगा दी. जनता के दबाव के चलते लंबे समय से राज कर रहे राष्ट्रपति को देश छोड़ भागना पड़ा और फिर देश में शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ. 2014 में देश ने नया संविधान स्वीकार किया जिसमें राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/C. Mahjoub
मिस्र
2011 में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ 18 दिनों तक चले सामूहिक विरोध प्रदर्शनों में 850 लोग मारे गए. तीस साल के राज के बाद पद छोड़ना पड़ा. जून 2012 में मोहम्मद मोर्सी जनता द्वारा चुने गए देश के पहले असैनिक प्रमुख बने. लेकिन अल-सीसी के नेतृत्व में सेना ने मोर्सी को पद से हटा दिया और मोर्सी समर्थकों को निशाना बनाया जाने लगा. दो बार से राष्ट्रपति रहे सीसी पर दमनकारी सरकार चलाने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. A. E. Ghany
यमन
तीन दशकों से सत्ता भोगने वाले अली अब्दुल्ला सालेह को कड़ा विरोध झेलने के बाद फरवरी 2012 को हटना पड़ा और उनके डिप्टी अब्दरब्बू मंसूर हादी ने पद संभाला. 2014 में हूथी विद्रोहियों ने हमले कर राजधानी सना समेत देश के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया. अगले एक साल में सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन ने वहां हूथियों का विजयरथ रोका. हिंसा में हजारों लोग मारे गए और करीब 1 करोड़ लोग भूखमरी की कगार पर हैं.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
अल्जीरिया
अल्जीरिया में 22 फरवरी, 2019 को अचानक से विरोध प्रदर्शनों की लहर सी उठी. सन 1999 से राज कर रहे अब्देलअजीज बूतेफ्लिका बीमार थे, फिर भी पांचवी बार उम्मीदवार बनना चाहते थे. दबाव के चलते 11 मार्च को बूतेफ्लिका ने अपना नामांकन तो वापस ले लिया लेकिन चुनावों की तारीख को भी स्थगित करवा दिया. विरोध जारी रहा तो 2 अप्रैल को बूतेफ्लिका ने इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: Reuters/R. Boudina
7 तस्वीरें1 | 7
सऊदी अरब ने सैनिकों की वापसी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन अलगाववादियों के खिलाफ ज्यादा सख्त रुख अपना लिया है. बुधवार की झड़पों के बाद सऊदी सैनिक और बख्तरबंद गाड़ियां राष्ट्रपति के महल के इर्दगिर्द जमा हो गई हैं ताकि हिंसा को रोका जा सके.
लंदन के थिंक टैंक चाथम हाउस में रिसर्चर फारेया अल मुस्लिमी का कहना है, "पिछले साल सऊदी अरब ने इस तरह का साफ और कड़ा रुख ट्रांजिशनल सदर्न काउंसिल की तरफ नहीं अपनाया था. इसके उलट पर्दे के पीछे रह कर स्थिति को शांत करने की कोशिश की थी. आप अगर अब सऊदी टीवी चैनलों की तरफ देखें तो वे ट्रांजिशनल काउंसिल के बारे में बिल्कुल हूथी विद्रोहियों जैसे ही बात कर रहे हैं."