यमन में जारी मानवीय संकट का प्रतीक बनी एक बच्ची अमल हुसैन ने सात साल की उम्र में दम तोड़ दिया है. अमल के परिवार का कहना है कि गुरुवार को एक रिफ्यूजी कैंप में उसने आखिरी सांस ली.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
विज्ञापन
पिछले हफ्ते ही न्यूयॉर्क टाइम्स में इस बच्ची की तस्वीर छपी जिसमें उसकी पसलियों को गिना जा सकता था. फोटोग्राफर टेलर हिक्स की ली हुई यह तस्वीर छपने के बाद अमल यमन में जारी मानवीय संकट का एक प्रतीक बन गई.
उसकी मां मरियम अली ने गुरुवार को न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया कि उनकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं रही. उन्होंने कहा, "मेरा दिल टूट गया है. अमल हमेशा मुस्कराती रहती थी. अब मैं अपने दूसरे बच्चों के लिए चिंतित हूं."
उधर पुलित्जर पुरस्कार जीतने वाले हिक्स ने पिछले दिनों 'द टेकअवे' नाम के एक रेडियो स्टेशन को बताया कि अमल का फोटो लेना कितना 'मुश्किल लेकिन महत्वपूर्ण' था. वह बताते हैं, "असल में उसे देख कर पता चलता है कि यमन में कुपोषण और भुखमरी से स्थिति कितनी त्रासदीपूर्ण और और बुरी है."
यमन में लड़ाई, कहां जाएं कैंसर के मरीज
यमन में तीन साल से सऊदी सैन्य गठबंधन और ईरान समर्थित हूथी बागियों के बीच लड़ाई चल रही है. अस्पताल भी बमबारी से महफूज नहीं हैं. ऐसे में, कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों को हर गुजरता दिन मौत के करीब ले जा रहा है.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
बेबस बाप
खालिद इस्माइल अपनी बेटी रजिया का दायां हाथ चूम रहे हैं. 17 साल की कैंसर पीड़ित रजिया का बायां हाथ काट दिया गया है. वह कहते हैं, "जंग से हमारी जिंदगी तबाह हो गई. हम विदेश जा नहीं सकते और इसीलिए मेरी बेटी का ठीक से इलाज नहीं हो पाया."
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
कोई मदद नहीं
पिछले दो साल से यमन के नेशनल ओंकोलॉजी सेंटर को कोई सरकारी आर्थिक मदद नहीं मिली है. कैंसर के मरीजों का इलाज करने के लिए बना यह सेंटर अब विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और दानदाताओं की मदद से चल रहा है.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
सिर्फ बच्चों के लिए
कैंसर सेंटर में बिस्तरों की संख्या बहुत ही कम है और जो हैं उन्हें सिर्फ बच्चों को दिया जाता है. इस सेंटर में हर महीने सिर्फ छह सौ नए मरीज दाखिल किए जाते हैं. इतने मरीजों के इलाज के लिए इस सेंटर के पास पिछले साल सिर्फ दस लाख डॉलर थे.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
वेटिंग रूम में ही थेरेपी
वयस्क मरीजों की थेरेपी इस सेंटर के वेटिंग रूम में बेंचों पर ही कर दी जाती है. लड़ाई से पहले इस सेंटर को 1.5 करोड़ डॉलर सालाना दिए जाते थे और देश के दूसरे अस्पतालों में भी दवाएं यहीं से जाती थीं, लेकिन अब हालात बहुत बदल गए हैं.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
दवाओं की कमी
सेंटर में एक कैंसर पीड़ित अपने इलाज के इंतजार में है, लेकिन यमन में दवाओं की कमी है. सऊदी गठबंधन ने हवाई और जलमार्गों की निगरानी सख्त कर दी है, ताकि विद्रोहियों को हथियार न पहुंचाए जा सकें. लेकिन इससे दवाओं की सप्लाई भी प्रभावित हुई है.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
डॉक्टरों की किल्लत
साल के अली हजाम मुंह के कैंसर से पीड़ित हैं. एक राहत संस्था इनके जैसे मरीजों को रहने की जगह देती है. यमन के अस्पतालों में सिर्फ बिस्तरों की कमी ही नहीं है, बल्कि डॉक्टर भी बहुत कम हैं. ऊपर से गरीब लोगों के इलाज का खर्च उठाना भी बहुत मुश्किल होता है.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
मानवीय त्रासदी
14 साल की आमना मोहसिन कैंसर पीड़ितों को रहने के लिए दिए गए एक मकान में खड़ी है. यमन में लाखों लोग भूख और बीमारियों से जूझ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि यह लड़ाई अब तक 50 हजार से ज्यादा लोगों को निगल गई है.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
7 तस्वीरें1 | 7
यमन अरब दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है. लगभग चार साल से वह सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन और यमनी हूथी बागियों की लड़ाई में पिस रहा है और इसकी सबसे ज्यादा मार आम लोगों पर पड़ रही है.
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र के मानवीय सहायता प्रमुख मार्क लोवकॉक ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बताया कि युद्ध से तबाह यह देश बड़े सूखे की चपेट में आने के कगार पर खड़ा है, जिससे 1.4 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं, जो पूरे देश की आबादी का लगभग 50 फीसदी हिस्सा है. लोवकॉक ने कहा कि यमन में इतने बड़े सूखे का संकट मंडरा रहा है जितना किसी ने सोचा भी नहीं होगा.
यमन की स्थिति के बारे में संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या फंड ने कहा है कि "खाने की कमी, विस्थापन, पोषण की कमी, बीमारियां फैलने और स्वस्थ्य सेवाएं ध्वस्त होने" से 11 लाख मांएं कुपोषण का शिकार हैं. उसका कहना है कि अगर हालात ऐसे ही खराब रहे तो लगभग 20 लाख मांओं पर मौत का खतरा मंडरा रहा है.
एके/आईबी (डीपीए)
सऊदी अरब-ईरान के बीच पिसता यमन
अरब दुनिया में शुमार यमन की गिनती दुनिया के गरीब देशों में होती है. साल 2011 के बाद से देश में राजनीतिक खींचतान जारी है. हालात बिगड़े और साल 2015 से यहां गृहयुद्ध शुरू हो गया है. एक नजर इस युद्ध की वजहों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
कब हुई शुरुआत
देश के आंतरिक मसलों से शुरू हुआ यह युद्ध आज कई मुल्कों के बीच की लड़ाई बन गया है. साल 2011 में अरब वसंत की लहर जब यमन पहुंची तो साल 1978 से यमन की सत्ता पर काबिज अली अबदुल्लाह सालेह को हटाने की आवाज उठने लगी. उस वक्त हुए सत्ता परिवर्तन में राष्ट्रपति की कुर्सी अबेदरब्बो मंसूर हादी को मिल गई और तब से वही देश के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Hani Mohammed
नई सरकार की नाकामी
नए राष्ट्रपति हादी को सत्ता मिलने से पूर्व राष्ट्रपति सालेह का वफादार खेमा नाराज हो गया. हादी सरकार के सामने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, खाद्य संकट जैसी बुनियादी समस्याएं भी थीं. साथ ही अल कायदा जैसे आंतकी गुटों से निपटना भी उसके लिए एक चुनौती था. कुल मिलाकर स्थिरता की उम्मीद से जिस नई सरकार का गठन किया गया था वह असल काम करने में नाकाम रही.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo//H.Mohammed
कहां से लगी चिंगारी
नई सरकार की इस प्रशासनिक नाकामी का फायदा उठाते हुए हूथी विद्रोहियों ने देश के उत्तरी प्रांत सदा और उसके आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया. हूथी विद्रोही यमन के अल्पसंख्यक शिया जैदी मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं. साल 2000 के दौरान इन हूथी विद्रोहियों ने उस वक्त राष्ट्रपति रहे सालेह की फौज के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी लेकिन ये संघर्ष उत्तरी यमन के सूबे सदा तक ही सीमित रहे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
दुश्मन-दुश्मन हुए साथ
अब तक हूथी विद्रोही, सालेह को अपना दुश्मन मानते थे. लेकिन हादी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सालेह खेमे ने हूथी विद्रोहियों से हाथ मिला लिया. दुश्मनों की इस दोस्ती का असर हुआ और साल 2014 में हूथी विद्रोही और सालेह की फौज ने मिलकर यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण स्थापित कर लिया. इसके बाद यमन के दूसरे सबसे बड़े शहर अदन को लक्ष्य बनाया गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Al-Obeidi
शिया-सुन्नी युद्ध
शिया मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वाले हूथी विद्रोहियों के बढ़ते प्रभाव के चलते साल 2015 में सऊदी अरब, यमन के इस गृहयुद्ध में हादी सरकार को समर्थन देने लगा. सऊदी अरब, ईरान पर हूथियों का साथ देने का आरोप लगाता है. ईरान और सऊदी अरब के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. सऊदी अरब कहता है कि ईरान, अरब जगत पर अपना असर बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Mohammed
सऊदी अरब के साथ
सऊदी अरब का साथ सुन्नी बहुल कतर, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र, जोर्डन जैसे देश सीधे-सीधे दे रहे हैं. इसके अलावा सेनेगल, मोरक्को, सूडान भी इसके साथ हैं. अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों से सऊदी अरब को हथियार और अन्य सहायता भी मिलती है. वहीं दूसरी तरफ ईरान हूथी विद्रोहियों का साथ देने से इनकार करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पूर्व राष्ट्रपति की हत्या
हूथी विद्रोहियों का साथ देने वाले यमन के पूर्व राष्ट्रपति सालेह ने साल 2017 में हूथियों का तीन साल पुराना साथ छोड़ने की घोषणा की थी. साथ ही कहा था कि वह सऊदी अरब और विद्रोहियों के बीच वार्ता के पक्ष में हैं. सालेह के इस प्रस्ताव को सऊदी अरब ने भी सकारात्मक ढंग से लिया था. लेकिन हूथी विद्रोहियों ने सालेह पर धोखे का आरोप लगाते हुए उनकी हत्या कर दी थी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Huwais
अलगाववादियों की भूमिका
इन सब के बीच यहां अलगाववादियों की भी भूमिका बहुत अहम है. साल 1990 में दक्षिणी और उत्तरी यमन को मिलाकर यमन राष्ट्र का गठन किया गया था. लेकिन अब भी दक्षिण यमन के क्षेत्र में अलगाववादी भावना शांत नहीं हुईं हैं. अलगाववादी पहले हूथी विद्रोहियों के खिलाफ सरकार का समर्थन करते थे. लेकिन अब ये गुट सरकार पर भ्रष्टाचार और भेदभाव का आरोप लगाते हैं जिसके बाद तनाव बढ़ा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Arhab
आतंकी संगठनों की सक्रियता
आतंकी गुट अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े चरमपंथी संगठन भी दोनों पक्षों पर हमला करते रहते हैं. साल 2015 से शुरू हुए इस गृहयुद्ध में अब तक आठ हजार से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 42 हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यमन में दो करोड़ से भी अधिक लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है. देश के इस आंतरिक संकट ने मानवीय त्रासदी का रूप ले लिया है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
आज के हालात
देश की मौजूदा सरकार फिलहाल अदन को अपना ठिकाना बनाए हुए है. लेकिन अदन की सरकारी इमारतों पर अलगाववादियों का कब्जा है. वहीं राजधानी सना में हूथी विद्रोहियों का कब्जा है. जमीनी स्तर पर यमन में हालात बहुत खराब है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों मुताबिक देश में महामारी शुरू होने के बाद से हैजे के चलते अब तक दो हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं.