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यहां पेट भरने के लिए बंदरों से लड़ना पड़ता है

१७ नवम्बर २०१८

खाने पीने की चीजों के लिए अब तक इंसानों की आपस में ही लड़ाई होती थी, लेकिन अब धरती पर कुछ ऐसी जगहें भी हैं, जहां लोगों को अपना पेट भरने के लिए बंदरों से मुकाबला करना पड़ता है.

Vervet monkeys (Chlorocebus pygerythrus)
तस्वीर: picture-alliance/robertharding

ब्वाकाताहविहीरे बुहिकिरे तीन दशक पहले जब न्यारुबुंगो गांव में आए तो उन्हें उम्मीद थी कि उनका परिवार जमीन के बड़े टुकड़े पर ज्यादा फसल उगा सकेगा. सच्चाई यह है कि अब उन्हें खाना जुटाने के लिए बंदरों से मुकाबला करना पड़ रहा है.

यूगांडा के दक्षिण पश्चिमी मबारारा जिले में जिस तरह आदिम बंदरों को मारा जा रहा है, उसे देख कर बुहिकीरे हैरान रह गए. इस इलाके में इन बंदरों के साथ हानिकारक कीटों जैसा व्यवहार किया जा रहा है. वजह यह है कि भूरे बालों और काले चेहरे वाले ये आदिम बंदर यहां रहने वालों के परिवारों को भूखा रहने पर मजबूर कर रहे हैं. अब 68 साल के हो चुके बुहिकिरे कहते हैं, "वे हमारी आलू, केला और बीन्स की फसल के कटने का इंतजार नहीं करते." जब फसल तैयार होती है, तो बच्चों को स्कूल छोड़ कर अपने फसलों की रखवाली में जुटना पड़ता है.

जंगल के जानवर मारे जा रहे हैं और लोग उस उपजाऊ जमीन पर कब्जा करते जा रहे हैं, जो कभी आदिम जीवों का बसेरा हुआ करता था. इन जानवरों की संख्या तेजी से कम हो रही है. पिछले एक दशक में सरकार इन इलाकों के संरक्षण के लिए सामने आई है. सरकार की कोशिशों के बावजूद अजगर और बाज जैसे जीवों की संख्या कम हो गई लेकिन बंदरों की संख्या एक बार फिर बड़ी तेजी से बढ़ रही है. जलवायु परिवर्तन और इंसानों की अवैध गतिविधियों के कारण उनके खाने में कमी हो रही है, तो वो उन खेतों और बागों की ओर लौट आते हैं जो कभी उन्हीं के घरों को उजाड़ कर बनाए गए.

अनाधिकृत खेती और रेत की खुदाई ने समस्या और गंभीर बना दी है. जिन पेड़ों से बंदरों को खाना मिलता था, उन्हें साफ कर दिया गया है. बुहिकिरे बताते हैं कि न्याकागुरुका रवीजी के पास के तीन गांवों की स्थिति बेहद खराब है और उन्हें लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है. शाकाहारी बंदर सारी फसल खा जाते हैं. खेतों में किसी भी वक्त 20-25 बंदरों का झुंड आ धमकता है और फसलों के साथ साथ खेतों को भी सफाचट कर देता है. गांववालों को अपनी भूख मिटानी है तो इन बंदरों से लड़ना पड़ता है. डार्विन ने जो "सर्वोत्तम की उत्तरजीविता" का सिद्धांत दिया था, गांव वाले अब उसी को याद कर इस जंग में उतरते हैं.

बंदरों की आदिम प्रजाति जिसने किसानों का जीवन मुहाल कर दिया है. तस्वीर: Reuters/R. Sigheti

स्थानीय लोगों का कहना है कि बंदरों को जिन पेड़ों से फल मिलता था उन्हें गिरा कर चारकोल बना लिया गया है. बंदर ना तो घास खाते हैं, ना ही छोटे छोटे पौधे. ऐसे में उन्हें अपने भोजन के लिए इंसानों के भोजन में मुंह मारना पड़ता है.

जलवायु परिवर्तन की वजह से भी यहां काफी फर्क पड़ा है. लंबे समय से चले आ रहे सूखे ने पेड़ों से फल छीन लिए हैं. गर्म मौसम के कारण पेड़ों में फूल और कलियां नहीं लगतीं, तो फिर फल कहां से आएंगे.

किसानों ने बंदरों को रोकने के लिए खेतों में बिजूका खड़े किए हैं लेकिन इनसे बंदरों को नहीं रोका जा सकता. परेशान किसान अब उन्हें मार भगाने और जहर देने का तरीका अपना रहे हैं. सब कुछ करने के बाद भी आधी से ज्यादा फसल बंदर लूट ही लेते हैं. किसान चाहते हैं कि बंदरों को नेशनल पार्कों में ले जाया जाए लेकिन वहां पहले से ही बहुत सारे बंदर हैं.

कानूनी तौर पर यूगांडा वाइल्डलाइफ अथॉरिटी जंगली जीवों को संभालने के लिए जिम्मेदार है. कुछ जिलों में स्थानीय सरकारों ने इन पर नियंत्रण के छोटे मोटे उपाय किए हैं लेकिन इनका बहुत फायदा नहीं हुआ है. स्थानीय सरकारों के पास इतना फंड भी नहीं कि वो इसके लिए कुछ स्थायी उपाय कर सकें.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यूगांडा ने 1990 से 2017 के बीच अपनी 35 फीसदी गीली जमीन खो दी. देश में पानी की कमी, प्रदूषण, मिट्टी के कटाव, बाढ़ और जैव विविधता के खत्म होने का खतरा बढ़ता जा रहा है.

एनआर/आईबी (रॉयटर्स)

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