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समाजएशिया

यहां भिखारियों का है अपना बैंक

मनीष कुमार, पटना
२४ सितम्बर २०२१

बिहार में मुजफ्फरपुर के भिखारियों ने सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया है, जो बैंक की तरह काम करता है. इनके जमा धन पर ब्याज भी मिलता है और जरूरत पड़ने ये ऋण भी लेते हैं. इस पहल में उन्हें बिहार सरकार का साथ मिला है.

Indien Muzaffarpur Selbsthilfegruppe
तस्वीर: Manish Kumar

आमतौर पर धारणा यही रही है कि भीख मां कर जीवन बिताने वाले लोगों को भविष्य की चिंता नहीं होती. उनके लिए वर्तमान का गुजारा ही काफी कठिन होता है. हालांकि हकीकत में ऐसा है नहीं. आम लोगों की तरह उन्हें भी अपने बेहतर व सुरक्षित भविष्य की चिंता होती है. उनकी इस चिंता का ही नतीजा मुजफ्फरपुर के इस बैंक के रूप में सामने आया है. छोटी रकम के सहारे जिंदगी बदलने की इन भिखारियों की कोशिश रंग भी लाने लगी है. कई ने भिक्षाटन छोड़ अब अपना रोजगार शुरू कर दिया है.

समाज कल्याण विभाग ने पिछले साल अक्टूबर, 2020 में भिखारियों का लक्ष्मी नाम से एक समूह बनाया. एक-एक करके इससे 13 भिखारी जुड़े. उन्हें भिक्षावृत्ति की रकम से बचत के लिए प्रेरित किया गया. आज विभिन्न नामों से बनाए गए ऐसे और चार समूह हैं. ये सभी अलग-अलग इलाकों में हैं. शहर के अखाड़ाघाट में लक्ष्मी समूह है तो सिकंदरपुर में तुलसी नामक समूह है. इसी तरह मोतीपुर कुष्ठ ग्राम में प्रेमशिला तो शेखपुर ढाब में गायत्री और मां दुर्गा समूह है. इन समूहों के सदस्यों की कुल संख्या 175 है. इनमें अधिकतर महिलाएं हैं.

साप्ताहिक बैठक में हिसाब किताब
इन समूहों में करीब साठ हजार की राशि जमा है. हरेक समूह में अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष चुने गए हैं. हफ्ते में एक दिन अमूमन रविवार को समूह के सदस्यों की बैठक तय जगह पर होती है और इसी दिन रकम की जमा व निकासी का काम होता है. बैठक की पूरी कार्यवाही एक रजिस्टर पर लिखी जाती है. कम से कम बीस रुपये जमा किए जा सकते हैं. पैसा एक बक्से में रहता है जो बैठक के दिन खुलता है. इसकी चाबियां अध्यक्ष, सचिव व कोषाध्यक्ष के पास रहती है.

हर हफ्ते होती है बैंक के सदस्यों की बैठक.तस्वीर: Manish Kumar

जमा की गई राशि पर सदस्यों को ब्याज भी मिलता है. साप्ताहिक बैठक के दिन ही जमा, ब्याज तथा ऋण के तौर पर दी गई राशि का हिसाब-किताब होता है. कोषाध्यक्ष इसकी जानकारी सदस्यों को देता है. पैसों का लेखा-जोखा रखने के लिए एक रजिस्टर बनाया गया है. हिसाब के लिए पढ़े-लिखे युवाओं की मदद ली जाती है. आउटरीच वर्कर (ओआरडब्ल्यू) नितेंद्र मिश्रा बताते हैं, "हरेक दिन का शेड्यूल तय है. उसी के अनुसार वहां पहुंचकर रजिस्टर मेंटेन करते हैं तथा लेन-देन की जानकारी समूह के सदस्यों को देते हैं.''
 

एक प्रतिशत ब्याज पर कर्ज
जिस सदस्य को कर्ज लेना होता है, वह बैठक में अपनी जरूरत बताता है. इसके लिए बाकायदा एक प्रक्रिया का पालन किया जाता है. एक सदस्य को गवाह बनाकर एक प्रतिशत ब्याज की दर पर ऋण दे दिया जाता है, जिसे तीन महीने के अंदर चुकता करना होता है. कर्ज लेने वाले सदस्य के अंगूठे का निशान रजिस्टर पर लिया जाता है. कर्ज की अधिकतम राशि दो हजार रुपये है, हालांकि विशेष परिस्थिति में सदस्यों की अनुमति से इसे बढ़ाया भी जाता है.

लक्ष्मी समूह से जुड़ी रजनी देवी ने पांच हजार रुपये का ऋण लेकर अपनी बिटिया की शादी की. पति के दिव्यांग होने के कारण वह बहुत परेशान थी. रजनी कहती है, ‘‘जरूरत के समय मदद मिल गई. बेटी की शादी हो गई.'' नितेंद्र मिश्रा बताते हैं, ‘‘जैसे किसी ने पांच हजार का लोन लिया और उसमें कुछ रकम चुकाया तो शेष राशि पर ही उन्हें ब्याज देना पड़ता है.''
 

स्वरोजगार की ओर बढ़े कदम
भिखारियों की कोशिश देख राज्य सरकार ने भी उन्हें स्वावलंबी बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है. सरकार इन्हें दस हजार रुपये की आर्थिक मदद दे रही है. जिसमें पांच हजार की राशि बतौर सब्सिडी दी जाती है. इसी योजना के तहत मिली राशि से प्रमिला और संजू भीख मांगने की बजाए अब ठेले पर सामान बेच रहीं हैं तो मुन्नी देवी अंडे की दुकान से अच्छा पैसा कमा रही है. मुन्नी कहती है, ‘‘सोचा नहीं था कि ऐसा होगा. अब तो जिंदगी ही बदल गई है. अच्छा कमा रही हूं.'' रीना ने भी सब्जी की दुकान खोल ली है. ललिता देवी भी कॉस्मेटिक सामान फेरी लगा कर बेच रही हैं.

रीना देवी अब सब्जी बेचती हैं.तस्वीर: Manish Kumar

समाज कल्याण विभाग के समन्वयक एनके मिश्रा कहते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री भिक्षा निवारण योजना के तहत इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए जीविका की तर्ज पर इन भिखारियों का समूह बनाया गया है. ये अपनी जमा राशि को गाढ़े वक्त में इस्तेमाल कर सकते हैं और वहीं दूसरी तरफ इन्हें आर्थिक सहायता दी जा रही है जिससे वे अपना रोजगार शुरू कर रहे हैं.'' मुजफ्फरपुर के सामाजिक सुरक्षा कोषांग के सहायक निदेशक ब्रज भूषण कुमार ने कहा, ‘‘इनके समूह बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं. इनकी मदद की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. स्वरोजगार के लिए दी जाने वाली राशि से ये लोग अगरबत्ती, मोमबत्ती, दरी, कारपेट व थैला जैसे उत्पाद बनाएंगे. इसे बनाने की उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी और इसके साथ ही इन उत्पादों की बिक्री की भी व्यवस्था की जाएगी. इसके लिए अब तक 575 भिखारियों को चिन्हित किया गया है.''

केंद्र सरकार भी लाएगी "स्माइल"
भिखारियों के पुनर्वास के लिए कई स्तर पर प्रयास किए गए हैं. लेकिन, अब सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने सपोर्ट फॉर मार्जिनलाइज्ड इंडिविजुल्स फॉर लाइवलीहुड एंड इंटरप्राइज (स्माइल) स्कीम के नए चरण के तहत पूरी तरह से इनके पुनर्वास के लिए इन्हें पढ़ाई तथा स्किल ट्रेनिंग देने का फैसला किया है.

दस साल तक इनके रहने, खाने-पीने, स्वास्थ्य, पढ़ाई तथा स्किल ट्रेनिंग का पूरा खर्च सरकार वहन करेगी. मंत्रालय के मुताबिक अगले पांच साल में इस योजना पर करीब दो सौ करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. देश के दस बड़े शहरों यथा मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बेंगलुरु, दिल्ली, अहमदाबाद, इंदौर, लखनऊ, नागपुर तथा पटना में इस स्कीम को लागू किया जाएगा.
 जाहिर है, बैंक की तर्ज पर सेल्फ हेल्प ग्रुप के संचालन से इन भिखारियों की आर्थिक स्थिति में बदलाव तो आएगा ही, ये समाज की मुख्यधारा से भी जुड़ सकेंगे.

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