छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गांव जहां पर युवा 25 वर्ष की आयु में ही लाठी लेकर चलने को मजबूर हो जाते हैं और 40 साल की उम्र आते ही बूढ़े होने लग जाते हैं. आखिर क्यों?
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'रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून..' रहीम की ये पंक्ति पानी की महत्ता को दर्शाती हैं कि पानी नहीं रहेगा तो कुछ भी नहीं रहेगा, लेकिन जब पानी अमृत के बजाय जहर बन जाए तो पूरा जीवन अपंगता की ओर बढ़ चलता है. यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है.
बीजापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 60 किमी दूर भोपालपटनम में स्थित छत्तीसगढ़ का एक ऐसा गांव जहां पर युवा 25 वर्ष की आयु में ही लाठी लेकर चलने को मजबूर हो जाते हैं और 40 साल के पड़ाव में प्रकृति के नियम के विपरीत बूढ़े होने लग जाते हैं.
साफ पानी कहां बचा है
साफ पानी अब कहां बचा है?
नदियां, तालाब और समंदर तो पहले ही दूषित हो चुके थे. अब भूजल भी विषैला हो रहा है. दुनिया के लाखों शहर पेयजल के लिए भूजल पर ही निर्भर हैं.
तस्वीर: Reuters/P. Waydande
भूजल में कीटनाशक
बर्लिन के इंस्टीट्यूट फॉर प्रोडक्ट क्वालिटी के मुताबिक खेतों में छिड़के जाने वाले कीटनाशक भूजल तक पहुंच चुके हैं. कीटनाशकों में मौजूद कुछ रसायन कैंसर और ऑटोइम्यून बीमारियां फैला सकते हैं.
तस्वीर: Philippe Huguen/AFP/Getty Images
बेहद ताकतवर बैक्टीरिया
कई तरह की दवाओं को झेलने में सक्षम बैक्टीरिया हॉस्पिटलों और बूचड़खानों के सीवेज के जरिए नदियों और तालाबों तक पहुंच चुके हैं. जर्मनी जैसे विकसित देश में मौजूद सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी पानी से इन कीटाणुओं को अलग नहीं कर सकते. एंटीबायोटिक के कम से कम इस्तेमाल से ही कुछ राहत मिल सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Karmann
माइक्रोप्लास्टिक की भरमार
सड़कों पर टायरों के घिसने और बिखरे प्लास्टिक के टूटने से पानी में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक घुल रहा है. दुनिया में अब ऐसी बहुत कम जगहें बची हैं जहां माइक्रोप्लास्टिक न घुला हो. समंदरों में तो माइक्रोप्लास्टिक इस कदर है कि समुद्री जीव प्लास्टिक खाकर मारे जा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Oregon State University
पानी के पाइपों में भारी धातुएं
भारत समेत कई देशों में पानी की सप्लाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पाइप सीसे के बने होते हैं. अन्य देशों में भी पाइपों में सीसे, तांबे, लोहे और कैडमियम जैसी धातुएं इस्तेमाल की जाती है. वक्त के साथ साथ ये धातुएं गलती हैं और पानी में घुलती चली जाती हैं.
निढाल पड़ते ट्रीटमेंट प्लांट
पानी से ताकतवर कीटाणुओं को अलग करने के लिए नए किस्म के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट विकसित करने होंगे. मौजूदा ट्रीटमेंट प्लांट पानी में घुले अतिसूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक और नैनो प्लास्टिक को भी अलग नहीं कर पाते हैं.
तस्वीर: Stadtentwässerung Braunschweig GmbH
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यहां 40 फीसदी लोग उम्र से पहले ही या तो लाठी के सहारे चलने लगते हैं या तो बूढ़े हो जाते हैं. इसकी वजह कोई शारीरिक दोष नहीं, बल्कि यहां के भूगर्भ में ठहरा पानी है, जो इनके लिए अमृत नहीं, बल्कि जहर साबित हो रहा है.
यहां के हैंडपंपों और कुओं से निकलने वाले पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण पूरा का पूरा गांव समय से पहले ही अपंगता के साथ-साथ लगातार मौत की ओर बढ़ रहा है. शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं होने के कारण मजबूरन आज भी यहां के लोग फलोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं.
इसके बावजूद शासन-प्रशासन मौत की ओर बढ़ रहे इस गांव और ग्रामीणों की ना तो सुध ले रहा है ना ही इस खतरनाक हालात से बचने के लिए कोई कार्ययोजना तैयार करता नजर आ रहा है. इस गांव में आठ वर्ष के उम्र से लेकर 40 वर्ष तक का हर तीसरे व्यक्ति में कुबड़पन, दांतों में सड़न, पीलापन और बुढ़ापा नजर आता है.
प्रशासन ने यहां तक सड़क तो बना दी, लेकिन विडंबना देखिए कि सड़क बनाने वाले प्रशासन की नजर इन पीड़ितों पर अब तक नहीं पड़ पाई. यहां के सेवानिवृत्त शिक्षक तामड़ी नागैया, जनप्रतिनिधि नीलम गणपत और फलोराइड युक्त पानी से पीड़ित तामड़ी गोपाल का कहना है कि गांव में पांच नलकूप और चार कुएं हैं और इन सभी में फलोराइड युक्त पानी निकलता है. लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने सभी नलकूपों को सील कर दिया था लेकिन गांव के लोग अब भी दो नलकूपों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
उनका कहना है कि हर व्यक्ति शहर से खरीदकर पानी नहीं ला सकता है, इसलिए यही पानी पीने में इस्तेमाल होता है. यही नहीं, बल्कि गर्मी के दिनों में कुछ लोग तीन किमी दूर इंद्रावती नदी से पानी लाकर उबालकर पीते हैं.
पानी में ऐसे घुल रहा है जहर
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इनमें से तामड़ी नागैया का कहना है कि यह समस्या पिछले तीस सालों से ज्यादा बढ़ी है, क्योंकि तीस साल पहले तक यहां के लोग कुएं का पानी पीने के लिए इस्तेमाल करते थे, लेकिन जब से नलकूपों का खनन किया गया तब से यह समस्या विराट रूप लेने लगा और अब स्थिति ऐसी है कि गांव की 40 फीसदी आबादी 25 वर्ष की उम्र में लाठी के सहारे चलने, कुबड़पन को ढोने और 40 वर्ष की अवस्था में ही बूढ़े होकर जीवन जीने को मजबूर है. यहां पर लगभग 60 फीसदी लोगों के दांत पीले होकर सड़ने लगे हैं.
बताया जा रहा है कि यह पूरा गांव भूगर्भ में स्थित चट्टान पर बसा हुआ है और यही वजह है कि पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक है और इस भूगर्भ से निकलने वाला पानी यहां के ग्रामीणों के लिए जहर बना हुआ है.
दुनिया के चार सबसे प्यासे देश
दुनिया के सबसे प्यासे चार देश ये हैं
दुनिया की आधी आबादी पानी की किल्लत झेल रही है. जलवायु परिवर्तन और तेजी से बढ़ती आबादी को देखते हुए आने वाले सालों में समस्या और विकट हो सकती है. लेकिन सबसे ज्यादा पानी की किल्लत से जूझने वाले देश कौन से हैं, जानिए.
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नाइजर
अफ्रीकी देश नाइजर की आबादी लगभग दो करोड़ है जिसमें से आधे लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है. वहां हर 10 लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति के पास शौचालय की ठीक ठाक सुविधा है. नाइजर में दुनिया की सबसे ऊंची प्रजनन दर है जहां प्रति महिला सात बच्चों का औसत है. वहां हर साल डायरिया की वजह से 12 हजार से ज्यादा बच्चे मारे जाते हैं.
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पाकिस्तान
पाकिस्तान की दस प्रतिशत आबादी के पास पीने का पर्याप्त साफ पानी नहीं है. देश की आबादी 2.4 प्रतिशत सालाना की रफ्तार से बढ़ रही है. प्रति व्यक्ति पानी की मात्रा वहां दशकों से लगातार घट रही है. 1947 में बंटवारे के वक्त पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति पांच हजार क्यूबिक मीटर पानी था जो अब घट कर एक हजार क्यूबिक मीटर रह गया है.
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सोमालिया
सोमालिया में पानी के मौजूदा संकट की सबसे बड़ी वजह वहां सालों से पड़ रहा सूखा है. इससे खेती और खाद्य उत्पादन पर सीधा असर पड़ा है. देश की सिर्फ 45 प्रतिशत आबादी की पीने के पानी के सुरक्षित स्रोतों तक पहुंच है. इससे वहां गंदे पानी से होने वाली बीमारियों खास कर हैजा फैलने का खतरा पैदा हो गया है.
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सूडान
सूडान की आबादी 4.3 करोड़ है और वहां घरेलू इस्तेमाल का सिर्फ दो प्रतिशत पानी ही उपलब्ध है. सूडान का ज्यादातर पानी इथोपिया से आता है और उसकी उलब्धता सिर्फ जलवायु परिवर्तन से नहीं, बल्कि जल प्रबंधन को लेकर इथोपिया की सरकार के फैसलों से भी निर्धारित होती है.
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सूखता पानी
पौलेंड के काटोवित्से में जलवायु सम्मेलन के दौरान जल संकट एक बड़ी चिंता का विषय है. दुनिया की तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और खेती में पानी की बढ़ती मांग के कारण जल आपूर्ति के स्रोतों पर बहुत दबाव है. पर्यावरण कार्यकर्ता तुरंत जल संकट से निपटने के लिए उपायों पर जोर देते हैं.
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जानकार बताते हैं कि वन पार्ट पर मिलियन यानि पीपीएम तक फलोराइड की मौजूदगी इस्तेमाल करने लायक है, जबकि पीपीएम को मार्जिनल सेफ माना गया है. डेढ़ पीएम से अधिक फलोराइड की मौजूदगी को खतरनाक माना गया है और गेर्रागुड़ा में डेढ़ से दो पीपीएम तक इसकी मौजूदगी का पता चला है और लोगों पर इसका खतरनाक असर साफ नजर आ रहा है.
इस समस्या से निजात पाने के लिए एक साल पहले पीएचई विभाग ने इस गांव में एक ओवरहेड टैंक का निर्माण कर गांव के हर मकान तक पाइप लाइन विस्तार के साथ नल कनेक्शन भी दे रखा है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते आज तक पाइप लाइन के सहारे घरों में मौजूद नल कनेक्शनों में शुद्ध पेयजल की सप्लाई करने में प्रशासन और विभाग विफल रहे हैं.
इसके चलते गांव के संपन्न लोग किसी तरह भोपालपटनम स्थित वाटर प्लांट से शुद्ध पेयजल खरीदकर पीने में उपयोग तो कर लेते हैं, लेकिन गरीब तबके के लोग अब भी फलोराइड युक्त पानी पीकर जवानी में ही बुढ़ापे को समय से पहले पाने को मजबूर हैं.
ग्लोबल वॉर्मिंग: कुंए तक सूख गए
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इस मामले में सीएमएचओ डॉ. बीआर पुजारी का कहना है कि ग्रामीणों की शिकायत के बाद गांव में कैम्प लगाकर लोगों का इलाज किया गया था और कुछ लोगों को बीजापुर भी बुलाया गया था. चूंकि इस गांव के पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण हड्डियों में टेड़ापन, कुबड़पन और दांतों में पीलेपन के साथ सड़न की समस्या आती है, जिसका इलाज सिर्फ शुद्ध पेयजल से ही हो पाएगा. शिकायत के बाद गांव के अधिकांश हैंडपंपों को सील करवा दिया गया था.
फलोराइड समस्या के निदान के लिए पीएचई की ओर से निर्मित वाटर ओवरहेड टैंक से पेयजल आपूर्ति ना होने की बात पर कार्यपालन अभियंता जगदीश कुमार का कहना है कि विभाग की ओर से टैंक के निर्माण बाद पंचायत को हैंडओवर किया जा चुका है. पेयजल आपूर्ति शुरू करने की जिम्मेदारी अब पंचायत की है, फिर भी अगर पानी की सप्लाई नहीं की जा रही है तो विभाग इसे अवश्य संज्ञान में लेगा.
कुशल चोपड़ा/आईएएनएस
इन वजहों से सूख रहा है भूजल
मानव निर्मित घटनाएं प्राकृतिक संसाधनों को चौपट कर रही हैं. पेड़ पौधे मिट रहे हैं, नदियां, तालाब, पोखर आदि विलुप्त हो रहे हैं और भूजल सूख रहा है. जानिए किस किस वजह से भूजल पर असर पड़ता है.
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कोल्ड ड्रिंक
भारत में पानी को कोल्ड ड्रिंक के प्लांट जहां जहां भी लगे, वहां भूजल पर असर पड़ा. बड़ी कंपनियां देश में नियमों के अभाव का फायदा उठा रही हैं.
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फैक्ट्रियां
केवल कोल्ड ड्रिंक ही नहीं, अन्य फैक्ट्रियों का भी भूजल पर बुरा असर पड़ता है. अथाह औद्योगिकीकरण भूजल के गिरते स्तर के लिए जिम्मेदार है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Khudoteply
खनन
बेहिसाब खनन और खुदाई भी भूजल पर असर डाल रही है. इंसान अपने लालच ले चलते लगातार प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर रहा है.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
शहरीकरण
शहरी इलाकों में अंधाधुंध निर्माण भी भूजल पर असर डाल रहा है. इमारतों के निर्माण के लिए भी पानी की जरूरत है और उनमें रहने वालों के लिए भी.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कृषि
सिर्फ शहर ही नहीं बढ़ रहे हैं, बल्कि खेती की जमीन कम भी हो रही है. गावों में खेती की जमीन पर अब पक्के घर और बाजार बनने लगे हैं, जिससे जमीन की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma
आबादी
शहरों में आबादी का अत्यधिक दबाव जिसका असर अपार्टमेंटों और कॉलोनियों के रूप में नजर आता है. मोटर लगा कर जमीन के नीचे से जबरन पानी खींचा जाता है लेकिन इसके परिणाम के बारे में कोई नहीं सोचता.
तस्वीर: dapd
प्राकृतिक आपदा
सूखा और अनियंत्रित बाढ़ दोनों ही भूजल पर असर करते हैं. जमीन के पास पानी को सोखने की एक क्षमता होती है. इसके बाद वह बेकार होने लगती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam
जंगलों की आग
मोटे तौर पर इसे भी प्राकृतिक आपदा माना जा सकता है लेकिन कहीं ना कहीं जंगलों की आग के लिए इंसान जिम्मेदार होता है. इस तरह की आग के बाद जमीन को सामान्य होने में सालों लग जाते हैं.
तस्वीर: Imago/Xinhua/Indian Ministry of Defence
नदियों का जलस्तर
इसमें कमी या बदलाव से आसपास के इलाकों में भूजल पर असर पड़ता है. साल 2025 तक भारत पानी की कमी की चपेट में होगा.