विदेशी विरोधी संगठन पेगीडा की स्थापना का एक साल पूरा होने पर ड्रेसडेन में जिस तरह का प्रदर्शन हुआ, वह चिंता में डालता है, कहना है डॉयचे वेले के क्रिस्टोफ श्ट्राक का.
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पेगीडा यानि पेट्रिऑटिक यूरोपीयंस अगेंस्ट इस्लामाइजेशन ऑफ दि वेस्ट की स्थापना हुए एक साल हो गया है. इस मौके पर संगठन की शुरुआत करने वालों ने ड्रेसडेन के थिएटर प्लेस पर रैली निकाली. करीब 15 या 20 हजार लोग इस प्रदर्शन में हिस्सा लेने पहुंचे. मोर्चा संभाल रहे थे लोकप्रिय दक्षिणपंथी पेगीडा संस्थापक लुत्स बाखमन. जर्मनी के लिए ये अंधकार में डूबे हुए तीन घंटे थे.
इस शाम का पहला नारा था "मैर्केल मुस वेग" यानि मैर्केल को जाना होगा. यह नारा प्रदर्शन के आधिकारिक रूप से शुरू होने से पहले ही सुनाई देने लगा था. इस प्रदर्शन के दौरान सबसे बड़ा आकर्षण रहे आकिफ पिरिंची जो कि तुर्क मूल के जर्मन लेखक हैं और जिन्हें लुत्स बाखमन ने खास तौर से बुलाया था. और यहां हमें यह बताना होगा कि उनकी टिप्पणियां बेहद भद्दी, अश्लील और घृणित थीं. उनके शब्दों में शरणार्थी "आक्रामक" लोग हैं जिनके लिए जगह नहीं है क्योंकि "यातना शिविर बंद हो चुके हैं."
इतना ही नहीं, उन्होंने मुस्लिम समुदाय के एक प्रवक्ता पर वार करते हुए कहा, "जर्मन संस्कृति के बारे में वह उतना ही जानते हैं, जितना कि एक मूर्ख (गाली देते हुए) परफ्यूम बनाने के बारे में." उनकी कल्पना इतनी दूर निकल गयी कि वे बताने लगे कि किस तरह से ये विदेशी पूरे जर्मनी पर कब्जा कर लेंगे, खास तौर से महिलाओं पर, "वे उन पर हमले करेंगे और उन्हें इस्लामी रस से भर देंगे." इस शाम की सबसे लंबी स्पीच पिरिंची की थी और यह गालियों से भरी हुई थी. बाखमन तो पहले ही बता चुके थे कि उन्हें पिरिंची पर कितना नाज है.
और हां, थिएटर प्लेस पर केवल उग्रदक्षिणपंथी ही नहीं मौजूद थे. वहां लोग अपने बच्चों के साथ भी आए थे, वहां बूढ़े बुजुर्ग भी थे. लेकिन नहीं, पिरिंची के भाषण के दौरान एक बार भी उनमें से किसी ने जोर ने नहीं कहा कि अब बस करो. यहां जो भी कोई खड़ा था, वह जर्मनी में कोई बदलाव नहीं चाहता. वह तो अपनी ही एक अलग दुनिया में रहता है. और वह दुनिया, वह देश, मेरा जर्मनी नहीं है.
पेगीडा: जर्मन समाज की उथल पुथल
जर्मनी में अक्टूबर 2014 से चले आ रहे पेगीडा के नियमित विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े इस्लामीकरण विरोधी अभियान की पहचान बन गए हैं. लाखों शरणार्थी भी निशाने पर हैं. 'पेगीडा' के उभार से जुड़े हैं जर्मनी के कई सामाजिक मुद्दे.
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5 जनवरी 2015 यानि नए साल के पहले ही सोमवार की शुरुआत जर्मनी के कई शहरों में विरोध प्रदर्शनों के साथ हुई. जर्मनी के कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे इस्लाम विरोधी प्रदर्शन दिखाते है कि बड़ी संख्या में आप्रवासियों के मुद्दे पर देश बंटा हुआ है. आप्रवासन का समर्थन करने वाले लोग अनेकता में एकता की भावना को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग के गठन की मांग कर रहे हैं.
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जर्मनी के पूर्व में स्थित ड्रेसडेन शहर में हर हफ्ते रैलियां निकाली जा रही हैं. 22 दिसंबर 2014 की रैली में तो 17 हजार से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. पेगीडा रैलियों का विरोध करने वाले कई गुट हैं. दिसंबर में पेगीडा ने अपना घोषणापत्र जारी कर "आपराधिक किस्म के शरणार्थियों और आप्रवासियों को बिल्कुल बर्दाश्त ना किए जाने" की मांग की.
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जर्मनी के पूर्व में स्थित ड्रेसडेन शहर में हर हफ्ते रैलियां निकाली जा रही हैं. 22 दिसंबर 2014 की रैली में तो 17 हजार से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. पेगीडा रैलियों का विरोध करने वाले कई गुट हैं. दिसंबर में पेगीडा ने अपना घोषणापत्र जारी कर "आपराधिक किस्म के शरणार्थियों और आप्रवासियों को बिल्कुल बर्दाश्त ना किए जाने" की मांग की.
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'पश्चिम के इस्लामीकरण के खिलाफ यूरोप के राष्ट्रवादी' यानि पेगीडा के समर्थकों का मानना है कि इस्लामीकरण से ईसाई धर्म की संस्कृति और परंपराओं को खतरा है. वहीं हाल ही में उभरा यूरोप विरोधी दल 'अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' (एएफडी) खुद को जर्मन समाज के सच्चे प्रतिनिधियों के तौर पर पेश कर रहा है.
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जर्मनी में आम लोगों के बीच इस मत को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है कि रिफ्यूजी आबादी की मदद करने में खर्च होने वाले धन के कारण जर्मन नागरिकों की पेंशन कम हो जाएगी और गरीबी फैलेगी.
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हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी की सोशल साइंटिस्ट नाइका फोरुटान ने हाल ही के एक सर्वे का हवाला देते हुए बताया कि आधे से ज्यादा जर्मन अपने पड़ोस में मस्जिद बनाए जाने के खिलाफ हैं. वहीं 40 फीसदी का मानना है कि केवल जर्मन माता-पिता के बच्चों को ही जर्मन माना जाना चाहिए. वे बताती हैं कि जो लोग विदेशियों और प्रवासियों के बिल्कुल संपर्क में नहीं हैं वे उनका ज्यादा विरोध करते हैं.
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जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने नए साल के अपने संदेश में देश के नागरिकों से शरणार्थियों की मदद का आह्वान किया. उन्होंने जनता से शरणार्थियों और इस्लामीकरण का विरोध करने वाली पेगीडा रैलियों का विरोध करने की अपील की. केवल 2014 में ही जर्मनी में दो लाख से ज्यादा शरणार्थी अर्जियां आईं.