हिंसा को रोकना न सिर्फ देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अहम है, बल्कि इसके आर्थिक फायदे भी होते हैं. ऑस्ट्रेलियाई संस्था आईईपी के आंकड़ों मुताबिक हिंसा से 2017 के दौरान भारत को जीडीपी के 9 फीसदी के बराबर नुकसान हुआ है.
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भारत में विरोध प्रदर्शन के नाम पर होने वाली हिंसा और झड़प देश की अर्थव्यस्था को धीरे-धीरे कुरेद रही है. इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस (आईईपी) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि हिंसा से निपटने में भारत को तकरीबन 80 लाख करोड़ रुपये खर्च करने पड़े हैं. यह आकलन भारतीयों की क्रय शक्ति के आधार पर तय किया गया है. कुल मिलाकर यह नुकसान देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 9 फीसदी है और प्रति व्यक्ति के हिसाब से करीब 40 हजार रुपए (595.40 डॉलर) से अधिक है.
आईईपी ने 163 देशों के आंकड़ों का अध्ययन कर यह रिपोर्ट तैयार की है. इसमें भारत को 59वें पायदान पर रखा गया है. इस अध्ययन के मुताबिक हिंसा के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को 14.76 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ.
यह वैश्विक जीडीपी का 12.4 फीसदी है. जो प्रति व्यक्ति के आधार पर 1988 डॉलर बैठता है. इस आकलन में हिंसा से पड़े प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष प्रभावों समेत अन्य आर्थिक कारकों और उनके प्रभावों को भी शामिल किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया, "2017 के दौरान हिंसा का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पिछले दशक के किसी भी अन्य साल से अधिक रहा है."
प्रदर्शन के नाम पर अरबों की संपत्ति स्वाहा
भारत में विरोध प्रदर्शनों के दौरान सबसे पहले बसों, ट्रकों और कारों को आग लगायी जाती है, दुकानें लूटी या बंद करवायी जाती है. बच्चे स्कूल नहीं जा पाते और बीमार अस्पताल. आर्थिक नुकसान भी खूब होता है. नुकसान पर एक नजर.
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किसान आंदोलन: 1,500 करो़ड़
2017 में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसान आंदोलन हुआ. मध्य प्रदेश में आंदोलन बेकाबू हो गया. भारी हिंसा हुई. आंदोलन में पांच किसान मारे गए. इस दौरान 200 ट्रक और बसें, 28 सरकारी वाहन फूंक दिए गए. उपद्रवियों ने दर्जन भर से ज्यादा सरकारी इमारतों में आगजनी व तोड़ फोड़ की.
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गोरखा आंदोलन: 400 करोड़ से ज्यादा
जून 2017 में शुरू हुआ आंदोलन अब भी जारी है. चाय और पर्यटन पर दार्जिलिंग की स्थानीय अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है. अब तक चाय उद्योग को 400 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है.
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कश्मीर: 16,000 करोड़ से ज्यादा
जुलाई 2016 में शुरू हुए उग्र प्रदर्शनों के चलते जम्मू कश्मीर राज्य को 16,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ. पांच महीनों के अंदर हुए इस नुकसान का जिक्र खुद राज्य सरकार ने अपने इकोनॉमिक सर्वे में किया.
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जाट आंदोलन: 34,000 करोड़
2016 में हरियाणा में आरक्षण की मांग कर रहे जाटों ने आंदोलन किया. आंदोलन में भारी हिंसा हुई. पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के मुताबिक इस आंदोलन की वजह से 34,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. हिंसा में 30 लोग मारे गए.
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कावेरी विवाद: 25,000 करोड़
2016 में कावेरी जल विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक में उग्र प्रदर्शन हुए. एसोचैम के मुताबिक इन प्रदर्शनों के चलते 22,000 से 25,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. बेंगलुरु की छवि को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाग लगा.
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पाटीदार आंदोलन: 3,500 करोड़ से ज्यादा
2015 में पाटीदार आंदोलन ने गुजरात के कई जिलों में आम जनजीवन को अस्त व्यस्त कर दिया. इस दौरान सिर्फ अहमदाबाद शहर में ही 3,500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ.
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गुर्जर आंदोलन: 7,000 करोड़ से ज्यादा
सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जर समुदाय ने 2008, 2010 और 2015 में आंदोलन किया. एसोचैम के मुताबिक 2008 में आंदोलन के चलते 70 अरब रुपये का नुकसान हुआ. 2015 में आंदोलन में हिंसा नहीं हुई, लेकिन इसके चलते भारतीय रेलवे को 100 करो़ड़ से ज्यादा नुकसान हुआ.
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आजाद मैदान दंगे: 2.74 करोड़
2012 में म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लमानों के खिलाफ हो रही हिंसा का विरोध करने के लिए मुंबई के आजाद मैदान में प्रदर्शन हुआ. सिर्फ एक दिन की रैली में 40,000 लोग जमा हुए. कुछ ही देर बाद भीड़ हिंसा पर उतर आई और दंगा भड़क उठा. सिर्फ एक दिन में ही पौने तीन करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
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तेलंगाना आंदोलन: 10,000 करोड़ से ज्यादा
2011 में अलग तेलंगाना राज्य की मांग के लिए जारी आंदोलन उग्र हो गया. एसोचैम के मुताबिक 15 दिन के भीतर आंदोलन और बंद के चलते 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
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आईईपी ने भारत को अमेरिका समेत दुनिया के 50 सबसे अशांत देशों की सूची में रखा है. इसके अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्की, सऊदी अरब और रूस को भी सबसे अशांत कहा गया है. स्टडी के मुताबिक पिछले एक दशक में हिंसा से होने वाला आर्थिक नुकसान दो फीसदी तक बढ़ा है.
इसका एक बड़ा कारण चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों द्वारा आंतरिक सुरक्षा में किए जाने वाले बड़े खर्च को बताया गया है. वहीं 2012 के बाद हिंसा के चलते आर्थिक नुकसान 16 फीसदी तक बढ़ा है.
सबसे ज्यादा और कम
सीरिया के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में नुकसान का हिस्सा 68 फीसदी रहा है, जो सबसे खराब है. इसके बाद 63 प्रतिशत के साथ अफगानिस्तान और 51 प्रतिशत के साथ इराक का स्थान है. हिंसा ने जिस देश को सबसे कम नुकसान पहुंचाया है वह है स्विट्जरलैंड. इसके बाद इंडोनेशिया और बुरकिना फासो का नंबर आता है.
दुनिया भर में बढ़ रहा है तनाव
मध्यपूर्व और अफ्रीकी देशों में फैली हिंसा और तनाव का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है. ग्लोबल पीस इंडेक्स के ताजा आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 में दुनिया के किस मुल्क में अशांति रही तो किसे सुकून कायम करने में सफलता मिली.
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शांति बनाम तनाव
ऑस्ट्रेलिया के इंस्टीट्यूट एंड पीस (आईईपी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि साल 2017 में यूरोप दुनिया का सबसे शांत क्षेत्र रहा. वहीं मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देशों में तनाव और हिंसा में वृद्धि देखी गई. कुल मिलाकर अशांति हावी रही.
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वैश्विक शांति को खतरा
आईईपी के मुताबिक वैश्विक शांति में लगातार गिरावट नजर आ रही है. यह सतत है और पिछले एक दशक से चल रही है. रिपोर्ट में कहा गया है, "मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका के विवादों का असर दुनिया के अन्य हिस्सों में भी दिखा है. जो वैश्विक शांति के लिए खतरा है."
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ग्लोबल पीस इंडेक्स
आईईपी का ग्लोबल पीस इंडेक्स बताता है कि 2017 में 92 देशों ने शांति दर में गिरावट महसूस की. वहीं सिर्फ 71 देशों में स्थितियां सुधरीं. आईईपी प्रमुख स्टीव किलेलिया ने कहा कि यह ट्रेंड दुनिया में पिछले चार सालों से बना हुआ है.
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उत्तरी अफ्रीका अशांत
ग्लोबल पीस इंडेक्स के मुताबिक मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देश दुनिया के सबसे अशांत क्षेत्रों में रहे. इंडेक्स में सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिणी सूडान, इराक, सोमालिया जैसे देशों को सबसे निचले पायदानों पर रखा गया है.
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कुछ सुधार भी
रिपोर्ट मुताबिक सब-सहारा अफ्रीकी देशों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. लाइबेरिया, बुरुंडी, सेनेगल इंडेक्स में शामिल उन देशों में से हैं जिनकी स्थिति बेहतर हुई है. अफ्रीका का मुख्य क्षेत्र आम तौर से सब-सहारा कहलाता है. इसमें मुख्यत: उत्तर अफ्रीका के इस्लामी देश जैसे मिस्र, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, लीबिया शामिल नहीं हैं.
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यूरोप में सुकून
सुकून भरे देशों के टॉप 5 नामों में न्यूजीलैंड को छोड़कर सभी चार नाम यूरोपीय देशों के हैं. इसमें आइसलैंड, ऑस्ट्रिया, पुर्तगाल, डेनमार्क शामिल है. जर्मनी को इंडेक्स में 17वां स्थान मिला है.
तमाम थिंक टैंक, रिसर्च इंस्टीट्यूट, सरकारी कार्यालयों और यूनिवर्सिटियों से जुटाए गए डाटा के आधार पर आईईपी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हिंसा के आर्थिक नुकसान की भी चर्चा की. 2017 में युद्ध और हिंसा के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था पर 14,800 अरब डॉलर का बोझ पड़ा. कुल मिलाकर 2000 डॉलर प्रति व्यक्ति नुकसान.
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अर्थव्यवस्था में इजाफा
स्टडी कहती है कि अगर सीरिया, दक्षिणी सूडान और ईराक जैसे अशांत क्षेत्रों में भी आइसलैंड और न्यूजीलैंड जैसे देशों की तरह शांति स्थापित हो जाए तो यह उन देशों की अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति दो हजार डॉलर का इजाफा करेगी.
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कितना नुकसान
पिछले दस सालों में दुनियाभर में विवाद और तनाव बढ़ा है. पिछले एक दशक के दौरान युद्ध क्षेत्रों में होने वाली मौतों में 246 फीसदी की वृद्धि हुई. वहीं आतंकवाद के मामले में यह बढ़ोतरी तकरीबन 203 फीसदी की रही.
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क्या है पैमाना
ग्लोबल पीस इंडेक्स को 23 पैमानों पर नापा जाता है. इसमें समाज में सुरक्षा, मौजूदा विवाद, सैन्यीकरण आदि प्रमुख है. इसके साथ हत्याओं के आंकड़ें से लेकर किसी देश की जेल में बंद कैदियों, पुलिस अधिकारियों आदि का डाटा भी जुटाया जाता है.