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यह है दुनिया का सबसे छोटा हेडमास्टर

२६ जून २०११

मन में लगन हो तो कोई काम असंभव नहीं. इसी बात को साबित किया है पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में रहने वाले 18 वर्षीय छात्र बाबर अली ने, जो पिछले नौ साल से गरीब बच्चों के लिए स्कूल चला रहे हैं.

Babar Ali, the youngest head master has around 800 students in his school in west Bengal, India. photos sent by our correspondet Prabhakar Mani Tewari from Kolkata, India with his story on a 18 years old man who is running his own school since the age of 9. The correspondent gives DW every right to publish these photos.
बाबर ने इसी साल 12वीं पास की हैतस्वीर: DW

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में स्थित आनंद शिक्षा निकेतन को महज एक स्कूल कहने से इसकी खासियत का पता नहीं चलता. इस स्कूल के हेडमास्टर बाबर अली भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया में शायद इतनी कम उम्र के पहले हेडमास्टर हैं. उनकी उम्र महज 18 साल है.

गरीब परिवार से संबंध रखने वाले बाबर चाहते था कि इस पिछड़े इलाके के बच्चे गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से अनपढ़ न रहें. इसीलिए नौ साल पहले उन्होंने गांव में घर के पास बने एक खंडहरनुमा शेड में यह स्कूल खोला था. अब इस स्कूल में छात्रों की तादाद बढ़ कर आठ सौ तक पहुंच गई है. स्कूल में बाबर के अलावा नौ और शिक्षक हैं. वह सब बाबर के सहपाठी या मित्र हैं. पढ़ाने के एवज में किसी को कोई पैसा नहीं मिलता. छात्रों से कोई फीस भी नहीं ली जाती.

लगभग आठ सौ बच्चे बाबर के स्कूल में पढ़ते हैंतस्वीर: DW

विवेकानंद से प्रेरित

बाबर अली खुद अपने और इस स्कूल के बारे में बताते हैं, "नौ साल की उम्र में जब मैं पांचवीं में पढ़ता था तो देखा कि गांव के ज्यादातर बच्चे स्कूल जाने की बजाय इधर-उधर घूमते रहते हैं. फिर मैंने स्कूल से लौट कर आठ छात्रों को लेकर खेल खेल में ही यह स्कूल खोला. मैं चाहता था कि वह लोग भी पढ़ना-लिखना सीखें."

बाबर गंगापुर गांव में अपने तीन भाई-बहनों और माता-पिता के साथ रहते हैं. अब तक इस किशोर हेडमास्टर का हर दिन सुबह सात बजे शुरू होता था. वह पांच किमी पैदल चलकर बेल्डांगाके कासिम बाजार स्थित राज गोविंद सुंदरी विद्यापीठ में जाते थे. बाबर ने इसी साल बारहवीं की परीक्षा पास की है. स्कूल से लौटने के बाद वह छात्र की जगह हेडमास्टर की भूमिका में आ जाते हैं. उसके स्कूल की कक्षाएं दोपहर बाद शुरू होती हैं.

दोपहर बाद लगता है बाबर का स्कूल क्योंकि सुबह को वह खुद अपने स्कूल में पढ़ने जाते हैंतस्वीर: DW

बाबर की मां सायरा कहती हैं, "बाबर ने जब यह स्कूल शुरू किया तो कई लोग उसके पीछे पड़ गए. लोग उसका विरोध करते थे. लेकिन वह नहीं माना. मैंने उससे कहा कि पहले खुद किसी लायक बन जाओ. उसके बाद दूसरों की मदद करना. लेकिन उसने कहा कि मां तुमने स्वामी विवेकानंद को नहीं पढ़ा है. दूसरों से इतना बैरभाव क्यों रखना है?"

पिता का सपना

बाबर के पिता को अपने बेटे के इस काम पर गर्व है. उन्होंने बाबर को आईपीएस बनाने का सपना पाल रखा है. वह कहते हैं, "मैंने बाबर को बचपन से ही आईपीएस बनाने का सपना देखा है. अब बड़ा होकर वह खुद आईएएस बनना चाहता है. वह स्कूल चला कर बढ़िया काम कर रहा है. मैंने उससे कहा कि एक क्यों पूरे देश में जितने चाहों स्कूल खोलो. लेकिन मेरा सपना जरूर पूरा करना."

बाबर के इस स्कूल को अब तक के सफर में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. पक्का मकान नहीं होने से बरसात के दिनों में काफी दिक्कत होती है. इसके अलावा पंखे की सुविधा नहीं होने की वजह से गर्मी के दिनों में अक्सर पेड़ों की छांव तले ही कक्षाएं चलती हैं. बाबर बताते हैं, "अब इस स्कूल में आठवीं तक की पढ़ाई होती है. कई सौ छात्र-छात्राएं यहां हैं. लेकिन हमें प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए आगे बढ़ना पड़ रहा है."

बाबर अली सभी गरीब बच्चों तक शिक्षा की रोशनी फैलाना चाहते हैंतस्वीर: DW

स्कूल ने अब तक सैकड़ों बच्चों को साक्षर बनाया है. बाबर ने अपने स्कूल में मिड डे मील योजना भी शुरू की है. इस स्कूल की राह में अब भी तमाम दिक्कतें हैं. आठवीं कक्षा तक पढ़ाने वाले इस स्कूल के पास अपना कोई भवन नहीं है. सरकार से भी उसे कोई खास सहायता नहीं मिली है. बावजूद बाबर और उनके सहयोगियों के जोश में कोई कमी नहीं आई है. वह चाहते हैं कि इलाके में कोई बच्चा निरक्षर नहीं रहे.

रिपोर्टः प्रभाकर, मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल

संपादनः ए कुमार

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