कई सालों तक 31 वर्षीया लेन अपनी दो पहचानों के साथ जूझती रही. लेन कहती है, "जन्म तो मैंने पुरुष के रूप में लिया था लेकिन अंदर से मैं स्वयं को एक महिला महसूस करती थी." दोहरी जिंदगी जीना इनके लिए किसी यातना से कम नहीं.
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चीन ने अब तक अपनी बांहे ट्रांसजेंडर्स के लिए पूरी तरह से नहीं खोली हैं. लेन एक ट्रांसजेंडर है. अपने अनुभव साझा करते हुए कहती है कि कई सालों तक वह दुनिया के सामने माचो पुरुष की जिंदगी जीती रही. लेकिन 2015 में अपने इस पहचान संकट से निराश होकर उसने जेंडर रिअसाइंटमेंट सर्जरी करा ली. लेन कहती है कि लंबी निराशा के बाद आज वह अपना सपना जी रही है.
उठती आवाजें
सालों तक दबे-छुपे रहे ट्रांसजेंडर अब यहां अपने हकों के लिए आवाजें उठा रहे हैं. इन लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एडवोकेसी ग्रुप बढ़ रहे हैं. वहीं डॉक्टर्स भी लिंग-परिवर्तन सर्जरियों में बढ़ोतरी की बात कह रहे हैं. सर्जन झाओ येदे बताते हैं, "आज से दो दशक पहले तक मैं सालाना 20-30 ऑपरेशन करता था. लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़कर 200 तक हो गया है. अब जवान मरीज अधिक आ रहे हैं. पहले हमारे पास 26, 27, 30 साल के लोग आते थे, लेकिन 20 साल के जवान लोग ही हमारे पास आ जाते हैं." चीन में ट्रांसजेंडरिज्म को लेकर लंबे समय से एक विरोधाभास रहा है.
अब कुछ ट्रांसजेंडर छोटे-मोटे सेलिब्रिटी भी बन गए हैं. चीनी संस्कृति में धार्मिक कट्टरताएं कम देखने को मिलती हैं जिसकी वजह से इन पर अत्याचार तो कम होता है लेकिन समस्याएं कम नहीं. लेकिन यहां रहने वाले ट्रांसजेंडर ऐसा नहीं मानते. वे कहते हैं कि उन्हें गलत समझा जाता है जिसके चलते उन्हें रिश्तेदारों-नातेदारों के दुर्व्यवहार और भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
ट्रांसजेंडर्स के लिए पाक में बदल रहा है माहौल...
पेशावर में चल रही इस बर्थडे पार्टी में नाचते-गाते मेहमानों को देखकर लग सकता है कि यह कोई आम पार्टी है. लेकिन दरवाजे पर हथियारों से लैस पुलिस तैनात भी है इससे समझा जा सकता है कि यह कोई साधारण पार्टी नहीं है.
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जश्न में चूर
तस्वीरों में नजर आ रहे ये लोग ट्रांसजेंडर हैं जो अब तक दूसरों के शादी-ब्याहों में तो नाचते नजर आते हैं लेकिन ये अपना कोई जश्न नहीं मना सकते थे.
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पहला मौका
ट्रांसएक्शन पाकिस्तान कैंपेन से जुड़ी फरजाना बताती हैं कि पिछले दस सालों में यह पहला मौका होगा जब ये लोग खुलेआम ऐसा कोई कार्यक्रम कर रहे हैं.
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पांच लाख लोग
ट्रांसएक्शन पाकिस्तान के मुताबिक करीब 19 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में करीब पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं.
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कड़े नियम
ट्रांसजेंडर पार्टियों को अकसर प्रशासन अनुमति नहीं देता और पुलिस इन पार्टियों पर छापे भी मार देती है.
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नरम होता रुख
पिछले साल एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता को गोलियों से भून दिया गया था और पेशावर अस्पताल ने उसके इलाज से भी इनकार कर दिया था. उसके बाद ट्रांसजेंडर्स को लेकर रुख में नरमी आई है.
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मिली छूट
रविवार को हुई पार्टी के लिए कोई लिखित अनुमति नहीं ली गई थी इसलिए इस पर प्रतिबंध भी नहीं लगाया गया. यहां तक कि पुलिस ने सुरक्षा भी मुहैया कराई.
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40वां जन्मदिन
यह पार्टी शकीला के 40वें जन्मदिन के मौके पर रखी गई थी. मेहमानों ने शकीला को इस मौके पर तोहफे में पैसे और सामान दिया ताकि उम्र के इस पड़ाव पर वह कोई काम शुरू कर सकें.
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ट्रांसजेंडरों की स्थिति
चीन में कितने ट्रांसजेंडर हैं उसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब 80 लाख ट्रांसजेंडर हैं. बीजिंग स्थित एक गैरलाभकारी संस्था के आंकड़े बताते हैं कि चीन में रहने वाले 62 फीसदी ट्रांसजेंडर अवसाद से पीड़ित हैं. वहीं आधे से अधिक लोग आत्महत्या करने के बारे में सोचते हैं तो वहीं करीब 13 फीसदी आत्महत्या करने की कोशिश भी कर चुके हैं.
यूनएनडीपी की 2017 की रिपोर्ट कहती है कि चीन के एलजीबीटी समुदाय में सबसे ज्यादा समस्याएं, भेदभाव और दुर्व्यवहार ट्रांसजेंडरों को झेलना पड़ता है. अधिकतर मामलों में यह दुर्व्यवहार घरों, दफ्तरों और आसपास की जगह पर होता है. चीन में ट्रांसजेंडरों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ के सहसंस्थापक झुओ कहते हैं कि कई मामलों में प्रशासन इनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार को दुर्व्यवहार मानने से ही इनकार कर देता है.
उन्होंने बताया, "कुछ मामलों में मां-बाप अपने बच्चों को जान से मार देने के तैयार होते हैं."
मदद की जरूरत
इस एनजीओ के मुताबिक आज ट्रांसजेंडर्स को मदद की अधिक जरूरत है क्योंकि इनमें से काफी सारे नाबालिग हैं. सर्जरी के बाद, चीन के ये ट्रांसजेंडर सरकारी पहचानपत्रों में अपना लिंग तो बदल सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद डिप्लोमा और अकादमिक रिकॉर्ड्स में बदलाव कराने में उन्हें काफी परेशानी होती है.
कईयों को काम ढूंढने में भी मुश्किलें आती हैं. ट्रांसजेंडरों का कहना है कि अगर उन्हें कानूनी सुरक्षा दी जाए तो उनके लिए स्थिति बेहतर होगी.
समलैंगिकता की आजादी वाले इस्लामी देश
कई इस्लामी देश ऐसे भी हैं जहां समलैंगिकता अपराध नहीं है. हालांकि कानूनी दर्जा मिलने के बावजूद भेदभाव इनके हिस्से में आ ही जाता है...
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तुर्की
1858 में ओटोमन खिलाफत ने समान सेक्स संबंधों को मान्यता दी थी. तुर्की आज भी उसपर कायम है. यहां समलैंगिकों और ट्रांसजेंडरों के अधिकारों को मान्यता दी जाती है. हालांकि संविधान से रक्षा ना मिलने के कारण इनके साथ भेदभाव आम है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/H. O. Sandal
माली
माली उन चुनिंदा अफ्रीकी देशों में से है जहां एलजीबीटी संबंधों को कानूनी दर्जा प्राप्त है. हालांकि यहां के संविधान में सामाजिक स्थलों पर यौन संबंध पर मनाही है. लेकिन माली में भी एलजीबीटी समुदाय के साथ बड़े स्तर पर असामनता का व्यवहार किया जाता है.
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जॉर्डन
एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों की रक्षा की दिशा में जॉर्डन का संविधान सबसे प्रगतिशील माना जाता है. 1951 में समान सेक्स संबंधों के कानूनी होने के बाद सरकार ने समलैंगिकों और ट्रांसजेंडरों के सम्मान के लिए होने वाली हत्याओं के खिलाफ भी सख्त कानून बनाए.
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इंडोनेशिया
1945 का कानून साफ तौर पर यौन संबंध पर पाबंदी नहीं लगाता. इंडोनेशिया में एशिया की सबसे पुरानी एलजीबीटी संस्था है जो कि 1980 से सक्रिय है. भेदभाव के बावजूद यहां का समलैंगिक समुदाय अपने अधिकारों के लिए लड़नें में पीछे नहीं रहता.
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अलबेनिया
हालांकि अलबेनिया मुस्लिम देश है, इसे दक्षिणपूर्वी यूरोप में एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए अहम माना जाता है. इस गरीब बालकान देश में समलैंगिकों और ट्रांसजेंडरों को असमानता से बचाने के लिए भी कई अहम कानून हैं.
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बहरैन
इस खाड़ी देश में समान सेक्स के बीच संबंध को 1976 में मान्यता मिली. हालांकि अभी भी बहरैन में क्रॉस ड्रेसिंग यानि लड़कों का लड़कियों की तरह कपड़े पहनना मना है.
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फलीस्तीन
गाजा पट्टी में समान सेक्स के बीच संबंध आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित हैं. लेकिन ऐसा पश्चिमी छोर पर नहीं है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि यहां समलैंगिकों के अधिकारों की रक्षा की जाती है. फलीस्तीन में एलजीबीटी पर पाबंदी हमास से नहीं इंगलैंड से आई थी जब यह इलाका ब्रिटिश कॉलोनी हुआ करता था.