अपनी जिंदगी के तजुर्बों को हम यादों का नाम देते हैं. इसमें सिर्फ तस्वीरें ही नहीं जज्बात भी हमारे दिमाग में स्टोर होते रहते हैं. अगर यादें न हों तो जीवन मायने खो बैठेगा, जानिए कैसा होगा तब वर्तमान.
विज्ञापन
यादों को सहेजने का यह सिलसिला इंसान की जिंदगी में तीन साल की उम्र से शुरू हो जाता है. और यह दूसरे लोगों के साथ से जुड़ी होती है. इनकी मदद से इंसान अपने बारे में राय बनाता है, उसे पता होता है कि वह कहां से आया है, कौन है और क्या चीज उसे दूसरों से अलग करती है. यदि हम अपना अतीत भूल जाएं तो वे क्षण भी खत्म हो जाएंगे जो हमें पहचान देते हैं. सबीने 20 साल की थी जब उसके साथ ऐसा हुआ. एक दिन सुबह वह जब उठी तो उसे कुछ याद नहीं था.
पुराने दिनों की तस्वीरों को देख कर सबीने सोचती है कि शायद कुछ याद आ जाए. "बचपन की कोई याद बाकी नहीं है. अब जब मैं तस्वीरें देखती हूं तो अपने मन से कोई कहानी गढ़ लेती हूं, लेकिन पुराने दिनों की कोई सक्रिय याद मेरे मन में नहीं है." वैसे सबीने अपने जीवन में बहुत तरह की चीजें कर सकती है. चाहे साइकिल की सवारी हो, मन से गुणा भाग करना हो या कुछ और. हालांकि उसे पता है कि वह कब पैदा हुई, लेकिन उसकी आत्मकथा वाली स्मृति गायब हो गई है. सबीने बताती है, "वो तस्वीरें जैसे खाली हैं, वहां कोई भावनाएं नहीं हैं... तस्वीरों के साथ भावनाएं मेल ही नहीं खातीं." आखिर सबीने के साथ हुआ क्या? क्या उसके बचपन की यादें सचमुच पूरी तरह खत्म हो गई है?
तेज करें दिमाग
02:59
दुनिया भर के वैज्ञानिक भूलने की बीमारी की तह में जाने की कोशिश में लगे हैं ताकि वे इंसानी याददाश्त को बेहतर तरीके से समझ सकें. श्मीडर क्लीनिक न्यूरोलॉजी का अंतरराष्ट्रीय कंपीटेंस सेंटर है. यहां एमनीशिया के न्यूरोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल असर का इलाज किया जाता है. यहां न्यूरोलॉजिस्ट एमनीशिया की न्यूरो-बायोलॉजिकल कमजोरियों का पता करते हैं. एमआरआई स्कैनर में सबीने को भावनाओं से भरी तस्वीरें दिखाई जाती हैं. स्वस्थ लोग उस पर संयमित प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे. सबीने की प्रतिक्रिया कुछ और है. भावनाओं के लिए जिम्मेदार उसके मतिष्क का हिस्सा बहुत कम सक्रिय है. हर तस्वीर डरने वाली प्रतिक्रिया देती है.
10 खेल जो करते हैं दिमाग तेज
आप जानते ही हैं शतरंज 'दिमाग वालों' का खेल है. चलिए ऐसे ही और दस खेलों के बारे में जानें जो करते हैं दिमाग को दुरूस्त.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warnecke
शतरंज: खेलों का बादशाह
तीसरी से लेकर छठी शताब्दी के बीच हिंदुस्तान में विकसित हुए इस खेल को नवाबों का खेल माना जाता रहा है. शतरंज की बिसात काले और सफेद 64 छोटे छोटे वर्गों में बिछती है. 16-16 मोहरों के साथ इस खेल को दो लोग आपस में खेलते हैं. हर एक का मकसद होता है दूसरे के बादशाह को 'शह और मात' देना. मतलब मोहरों का ऐसा जाल बिछाना कि बादशाह कहीं हिल ही न सके.
तस्वीर: MEHR
गो: एशियाई खेल
'गो' नाम का खेल चीन की पैदाइश है. लेकिन ये अधिकतर विकसित हुआ कोरिया और जापान में. इसे काले और सफेद पत्थरों के साथ एक तख्ती में खेला जाता है जिसमें 19-19 खड़ी और तिरछी रेखाएं बिछी रहती हैं. जहां ये रेखाएं एक दूसरे को काटती हैं पत्थर वहीं रखे जाते हैं. मकसद होता है अधिकतर तख्ती में अपने रंग के पत्थरों से कब्जा करना.
तस्वीर: Imago/Xinhua
शोगी : जापानी शतरंज
ये शतरंज की ही तरह का एक जापानी खेल है जिसे नौ हिस्सों में बटी एक तख्ती में खेला जाता है. कुछ लोग इसे बड़ी तख्ती में खेलते हैं और कुछ छोटी में. शोगी और शतरंज में एक खास अंतर है. शोगी में शतरंज की तरह मोहरों का बटवारा नहीं किया गया है, दोनों ही खिलाड़ी किसी भी मोहरे का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन दोनों ही खेलों में मकसद एक ही है 'शह और मात'.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. Sasahara
चेकर्स : कूदो और कब्जा करो
चेकर्स का बोर्ड भी शतरंज की ही तरह होता है लेकिन नियमों में भारी अंतर है. यहां खिलाड़ी अपने मोहरों को केवल काले खानों में तिरछे ही बढ़ा सकते हैं. और बार में सिर्फ एक खाना. सामने विरोधी का मोहरा आ जाए तो कूद कर उस पर कब्जा करना होता है. जीतता वो है जो सबसे पहले विरोधी के सारे मोहरों पर कब्जा कर लेता है. चेकर्स को जर्मन में 'डेम' भी कहा जाता है जिसका मतलब है 'महिला'.
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Bouys
नाइन मेन्स मॉरिस : 'मिल' का खेल
इसके बोर्ड में एक दूसरे में पिरोए हुए घटते आकार के तीन वर्ग बने होते हैं. खेल में दो खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं हर एक के पास नौ गोटियां होती हैं. इसमें तीन गोटियों को एक पंक्ति में लगाना होता है. इसे 'मिल' कहते हैं, इससे आप अपने विरोधी की गोटी हटा सकते हैं. जीतता वह है जो ऐसा करते हुए विरोधी के पास बस दो गोटियां बचने दे और अपनी तीन 'मिल' बना ले.
तस्वीर: Imago/Schöning
टिक टैक टो : गोल या चौकोर?
ये सबसे आसान खेल है. क्योंकि आपको बस एक पेंसिल चाहिए और एक कागज का टुकड़ा. टिक टैक टो की शुरूआत 12वीं शताब्दी में हुई. इसे दो लोग खेलते हैं. तस्वीर में दिखाए गए तरीके से कागज में दो सीधी और खड़ी रेखाएं खींच लेते हैं. इससे बने 9 खानों में एक खिलाड़ी X बनाता है दूसरा O. जो सपसे पहले सीधे, तिरक्षे या खड़े खानों को भर लेता है जीत उसी की होती है.
तस्वीर: imago/J. Tack
'कनेक्ट फोर' : खड़ा बोर्ड
है तो यह खेल भी बोर्ड गेम ही लेकिन इसमें बोर्ड खड़ा होता है. ''कनेक्ट फोर'' नाम का ये खेल 1974 में बनाया गया. इसमें भी दो ही खिलाड़ी खेलते हैं. जो भी पहले अपने रंग की चार गोटियों को सीधे, आड़े या तिरछे तरीके से कतार में लगा लेता है वो जीत जाता है. ये भी टिक टैक टो की तरह ही है लेकिन इसमें 9 के बजाय 42 खाने होते हैं.
तस्वीर: imago/blickwinkel
'सिविलाइजेशन' : बोर्ड से स्क्रीन तक
'सिविलाइजेशन' यानि 'सभ्यता' नाम का ये खेल 1980 में एक बोर्ड गेम के बतौर शुरू हुआ. ये थोड़ा सा जटिल है. इस खेल में सभ्यता को प्राचीन युग की कठिनाइयों को पार करते हुए लौह युग तक पहुंचाना होता है. इस खेल को सात लोग साथ खेल सकते हैं और एक गेम 10 घंटों तक भी खिंच सकता है. इस खेल ने 1991 में एक कंप्यूटर गेम का रूप लिया और दुनियाभर में मशहूर हुआ.
तस्वीर: 2007 Free Software Foundation, Inc.
ऐनो : लोगों और संसाधनों का गेम
ऐनो के लिए काफी कुछ चाहिए. इसकी शुरुआत 1998 में हुई. इस खेल में खिलाड़ी को दूर दराज द्वीप ढूंढ कर उस पर लोगों को बसाना और उनकी जरूरतों को पूरा करना होता है. खिलाड़ी एक दूसरे के साथ व्यापार या एक दूसरे के इलाके पर हमला भी कर सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/O. Stratmann
'स्टारक्राफ्ट' : उम्दा टाइम पास
हो सकता है कि किसी को ये अजीब लगे लेकिन दक्षिण कोरिया में यह टाइम पास करने का राष्ट्रीय तरीका है. इसकी शुरूआत 1998 में हुई और ये कंप्यूटर के कुछ सबसे मशहूर गेम्स में रहा है. खिलाड़ी एक बेस बनाते हैं, संसाधन जुटाते हैं और विरोधियों से लड़ने के लिए सैनिकों का इंतजाम करते हैं. इससे जुड़े ऑनलाइन टूर्नामेंट दक्षिण कोरिया में काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Warnecke
10 तस्वीरें1 | 10
डॉक्टरों के लिए इसका मतलब है कि दिमाग में सूचना की प्रोसेसिंग ठीक से नहीं हो रही है. इसकी एक वजह बचपन में लगा कोई सदमा और उसका अनुभव हो सकता है. न्यूरोलॉजिस्ट प्रो. रोगर श्मिट कहते हैं, "याददाश्त में इस तरह की बाधा का किस तरह इलाज हो, यह हमारे शोध का विषय है. एक तरीका है सदमे का इलाज कर यादों का दरवाजा फिर से खोलना. अवरोध को खत्म करना. जहां ये काम नहीं करता मरीज को उनकी जिंदगी की कहानी फिर से सिखाई जाती है."
सबीने कई सालों से अपनी खोई याददाश्त वापस पाने की कोशिश कर रही है. उसे बार बार अपने बचपन का सामना करना पड़ता है. उसे उम्मीद है कि उसके अनुभव दिमाग की तस्वीर से हमेशा के लिए नहीं मिटे हैं, कहीं किसी कोने में बंद पड़े हैं, जिस पर दिमाग ने पट्टी लगा रखी है, खतरे से सावधान. जब वह दरवाजा खुलेगा तो उसे सब याद आ जाएगा. सबीने को उस दिन का इंतजार है.
एमजे/एसएफ
पढ़ाई में ऐसे लगेगा मन
दुनिया भर में छात्रों पर पढ़ाई का दबाव हमेशा रहा है. लेकिन कई बार किताब खोलने के बावजूद उनके लिए मन एकाग्र करना मुश्किल होता है. दिमाग को सतर्क रखने के लिए ये तरीके अपनाए जा सकते हैं.
तस्वीर: Colourbox
खड़ा होना
कुछ देर बैठने के बाद शरीर सुस्ताने लगता है. इसका असर दिमाग पर पड़ता है. अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक लेक्चर के दौरान बीच बीच में खड़े होने वाले छात्र ज्यादा एकाग्र थे.
तस्वीर: Imago/Jochen Tack
जिम्मेदारी
बाकी कामों की तरह ही पढ़ाई की भी जिम्मेदारी लें. अक्सर छात्र दूसरे कामों में स्वयं की जिम्मेदारी तय कर लेते हैं, लेकिन पढ़ाई के मामले में वो ऐसा नहीं करते. जिम्मेदारी से उत्तरदायित्व का भाव आता है.
तस्वीर: BlueOrange Studio/Fotolia
पोषण से भरी खुराक
शोधकर्ताओं के मुताबिक दिमाग के अच्छे विकास के लिए विटामिन और खनिज बहुत जरूरी हैं. साथ ही पानी पीना भी बहुत जरूरी है. कई देशों में सेब को छात्रों के लिए बढ़िया फल माना जाता है.
तस्वीर: Colourbox/6PA/MAXPPP
ये जरूर खाएं
अगर आप मस्तिष्क को बढ़िया रखना चाहते हैं तो अखरोट, बादाम, सब्जियां, टमाटर और फल जरूर खाएं. मछली और चाय भी एकाग्रता के लिए बढ़िया बताए जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
फास्ट फूड से दूरी
आज कल की भागदौ़ड़ भरी जिंदगी में युवा फास्ट फूड की अच्छी खासी खुराक लेते हैं और उसके पीछे कोल्ड ड्रिंक गटक लेते हैं. इससे पेट तो भरता है कि लेकिन दिमाग और शरीर के लिए जरूरी पोषण नहीं मिलता.
तस्वीर: Fotolia/Silverego
जरा आराम दें
फेसबुक या वॉट्सऐप पर बहुत ज्यादा समय बिताने के बजाए संगीत सुनना, दोस्तों से आमने सामने बात करना और टहलना ज्यादा बढ़िया और स्वस्थ विकल्प हैं. इस दौरान दिमाग को आराम मिलता है.
तस्वीर: colourbox
कसरत
वैज्ञानिकों के मुताबिक शारीरिक श्रम या व्यायाम भी दिमाग को हल्का करने के मदद करता है. शोधों के मुताबिक 10 मिनट से ज्यादा शारीरिक श्रम करने पर कई ऐसे हार्मोन निकलते हैं जो फैसला लेने की प्रक्रिया में मदद करते हैं.