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यादों के बिना कैसी जिंदगी

१६ मार्च २०१६

अपनी जिंदगी के तजुर्बों को हम यादों का नाम देते हैं. इसमें सिर्फ तस्वीरें ही नहीं जज्बात भी हमारे दिमाग में स्टोर होते रहते हैं. अगर यादें न हों तो जीवन मायने खो बैठेगा, जानिए कैसा होगा तब वर्तमान.

Alzheimer (Symbolbild)
तस्वीर: Colourbox

यादों को सहेजने का यह सिलसिला इंसान की जिंदगी में तीन साल की उम्र से शुरू हो जाता है. और यह दूसरे लोगों के साथ से जुड़ी होती है. इनकी मदद से इंसान अपने बारे में राय बनाता है, उसे पता होता है कि वह कहां से आया है, कौन है और क्या चीज उसे दूसरों से अलग करती है. यदि हम अपना अतीत भूल जाएं तो वे क्षण भी खत्म हो जाएंगे जो हमें पहचान देते हैं. सबीने 20 साल की थी जब उसके साथ ऐसा हुआ. एक दिन सुबह वह जब उठी तो उसे कुछ याद नहीं था.

पुराने दिनों की तस्वीरों को देख कर सबीने सोचती है कि शायद कुछ याद आ जाए. "बचपन की कोई याद बाकी नहीं है. अब जब मैं तस्वीरें देखती हूं तो अपने मन से कोई कहानी गढ़ लेती हूं, लेकिन पुराने दिनों की कोई सक्रिय याद मेरे मन में नहीं है." वैसे सबीने अपने जीवन में बहुत तरह की चीजें कर सकती है. चाहे साइकिल की सवारी हो, मन से गुणा भाग करना हो या कुछ और. हालांकि उसे पता है कि वह कब पैदा हुई, लेकिन उसकी आत्मकथा वाली स्मृति गायब हो गई है. सबीने बताती है, "वो तस्वीरें जैसे खाली हैं, वहां कोई भावनाएं नहीं हैं... तस्वीरों के साथ भावनाएं मेल ही नहीं खातीं." आखिर सबीने के साथ हुआ क्या? क्या उसके बचपन की यादें सचमुच पूरी तरह खत्म हो गई है?

तेज करें दिमाग

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दुनिया भर के वैज्ञानिक भूलने की बीमारी की तह में जाने की कोशिश में लगे हैं ताकि वे इंसानी याददाश्त को बेहतर तरीके से समझ सकें. श्मीडर क्लीनिक न्यूरोलॉजी का अंतरराष्ट्रीय कंपीटेंस सेंटर है. यहां एमनीशिया के न्यूरोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल असर का इलाज किया जाता है. यहां न्यूरोलॉजिस्ट एमनीशिया की न्यूरो-बायोलॉजिकल कमजोरियों का पता करते हैं. एमआरआई स्कैनर में सबीने को भावनाओं से भरी तस्वीरें दिखाई जाती हैं. स्वस्थ लोग उस पर संयमित प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे. सबीने की प्रतिक्रिया कुछ और है. भावनाओं के लिए जिम्मेदार उसके मतिष्क का हिस्सा बहुत कम सक्रिय है. हर तस्वीर डरने वाली प्रतिक्रिया देती है.

डॉक्टरों के लिए इसका मतलब है कि दिमाग में सूचना की प्रोसेसिंग ठीक से नहीं हो रही है. इसकी एक वजह बचपन में लगा कोई सदमा और उसका अनुभव हो सकता है. न्यूरोलॉजिस्ट प्रो. रोगर श्मिट कहते हैं, "याददाश्त में इस तरह की बाधा का किस तरह इलाज हो, यह हमारे शोध का विषय है. एक तरीका है सदमे का इलाज कर यादों का दरवाजा फिर से खोलना. अवरोध को खत्म करना. जहां ये काम नहीं करता मरीज को उनकी जिंदगी की कहानी फिर से सिखाई जाती है."

सबीने कई सालों से अपनी खोई याददाश्त वापस पाने की कोशिश कर रही है. उसे बार बार अपने बचपन का सामना करना पड़ता है. उसे उम्मीद है कि उसके अनुभव दिमाग की तस्वीर से हमेशा के लिए नहीं मिटे हैं, कहीं किसी कोने में बंद पड़े हैं, जिस पर दिमाग ने पट्टी लगा रखी है, खतरे से सावधान. जब वह दरवाजा खुलेगा तो उसे सब याद आ जाएगा. सबीने को उस दिन का इंतजार है.

एमजे/एसएफ

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