1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

युगांडा में एशियाई लोगों के घावों पर मरहम

प्रिया एसेलबोर्न२३ अप्रैल २००९

30 साल पहले अप्रैल 1979 में युगांडा के तानाशाह ईदी आमीन को भागकर देश छोडना पड़ा था. कहते हैं कि अपने शासन में उन्होंने लाखों लोगों की बर्बर हत्या कराई. उन्होंने एशियाई मूल के करीब 90 हज़ार लोगों को भागने पर मजबूर किया.

युगांडा छोड़कर जाना पड़ा था एशियाई लोगों कोतस्वीर: AP

युगांडा को कभी पर्ल ऑफ़ अफ्रीका यानी अफ़्रीका के मोती के नाम से जाना जाता था, लेकिन 8 साल के अपने शासन में आमीन ने देश के टुकड़े टुकड़े कर दिये. इनमें ज़्यादातर भारतीय लोग थे. तीन महीने का वक़्त, दो सूटकेस और 50 पाउंड, यही उन लोगों का अस्तित्व रह गया था. आमीन के शासन के खात्मे के बाद कई लोग अपने जन्म स्थान युगांडा वापस गए और ख़ासकर पिछले 10 वर्षों में युगांडा में दक्षिण एशियाई लोगों की संख्या एक बार फिर बढ़ रही है. लेकिन तीस साल से भी ज़्यादा पुराने घाव अब तक तरह भरे नहीं हैं.

'क्रूर' शासक ईदी आमीनतस्वीर: AP

युंगाडा के बॉक्सिंग चैंपियन रहे तानाशाह ईदी आमीन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अफ़्रीका और ख़ासकर उनका अपना देश युगांडा अफ़्रीकियों का ही होना चाहिए. आज भी जब 77 साल के उद्योगपति महिन्द्र मेहता इस बात को याद करते हैं वह भावुक हो जाते हैं. मेहता कहते हैं,

" जब मैंने 1952 में पिताजी का कारोबार संभाला तो मेरी उम्र 19 साल थी. वह 13 साल की उम्र में पोरबंदर से यूगांडा आए थे. मैं उन पहले नागरिकों में से एक था जिन्हें स्वतंत्रता के बाद युगांडा की नागरिकता मिली थी और फिर मैं सांसद भी बना. खासकर औद्योगिकीरण में मैंने देश के लिए बहुत कुछ किया."

लेकिन 1972 में आमीन का आदेश आया कि सभी एशियाई मूल के लोगों को देश छोड़ना है.

"इस आदेश के बाद मेरी एक नई ज़िंदगी शुरू हुई. मुझे वह सब कुछ छोड़ना पड़ा जो मेरा अपना था. और मुझे यूगांडा को भूलना पड़ा, जो इतने वर्षों तक मेरा घर था."

फिर महिन्दर मेहता कनाडा में बसे, अपनी पत्नी और अपने दोनों बच्चों के साथ. लेकिन वह वहां खुश नहीं रह पाए. "मुझे कनाडा में रहना अच्छा नहीं लगा. संस्कृति अलग थी. खैर, मै तो अफ़्रीकन ही था."

क्या युगांडा को प्यार करने के लिए आपका रंग काला ही होना चाहिए है, मेहता पूछते हैं. जब आमीन को 1979 में सत्ता और देश, दोनों ही छोड़ने पड़े तो मेहता तुरंत युगांडा वापस आए. आज मेहता की मल्टी नैशनल कंपनियों में 15 हजार लोग नौकरी करते हैं और उनके कारोबारी साम्राज्य की क़ीमत 35 करोड़ डॉलर है.

अफ़्रीकी समुदाय से ज़्यादा घुलना मिलना नहींतस्वीर: DW

विडंबना यह है कि औद्योगिकीरण को वजह बताकर ही आमीन ने भारतीय मूल के लोगों को देश से बाहर निकालने के अपने आदेश को जायज ठहराया क्योंकि युगांडा एक कृषि आधारित देश है. आमीन ने कहा कि भारतीय मतलबी हैं, सिर्फ़ अपने फायदे के बारे में सोचते हैं, किसी भी तरह पैसा कमाना चाहते हैं. भारतीय मूल के लोग 19 वीं सदी के अंत में ब्रिटिशों के साथ युगांडा यानी पूर्वी अफ्रीका आए थे. यह इलाका भी उस वक्त दुनिया के कई हिस्सों में फैले ब्रिटिश राज का हिस्सा था. भारतीयों ने युंगाडा में रेलवे तंत्र बनाने में जबरदस्त योगदान दिया.

कुछ समय बाद उन्होने चीनी, कॉफी और चाय उगाने में अपनी किस्मत आज़माई और उसके बाद फिर मैन्युफैक्चरिंग में. वे देश में नई तकनीक लाए, लोगों को प्रशिक्षण और काम दिया. धीरे धीरे वे समाज का अमीर तबका बन गए. लेकिन आमीन का कहना था उन्होने यूगांडा और उसके लोगों का शोषण करना शुरू कर दिया. 4 अगस्त 1972 को आमीन ने भारतीय मूल के लोगों को देश छोड़ने का आदेश दिया. लेकिन युगांडा के वर्तमान राष्ट्रपति योवेरी कागुता मुसेवनी ने जब 1986 में सत्ता संभाली तो उनको लगा कि वर्षों से चले आ रहे गृहयुद्ध के बाद अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने में भारतीय और दूसरे दक्षिन एशियाई लोग मदद कर सकते हैं. और मुसेवनी ने उन्हें युगांडा वापस आने का निमंत्रण दिया.

वैसे राष्ट्रपति मुसेवनी के निमंत्रण के बाद भी ज्यादा भारतीय वापस नहीं आए. वे डरे हुए थे और वह फिर से एकदम शुरुआत से जिंदगी नहीं शुरू करना चाहते थे. इसलिए युगांडा में 90 प्रतिशत भारतीय पहली पीढ़ी के लोग हैं. उनका भी वही ख्वाब है जो सब का है. अपने और अपने परिवार के लिए एक अच्छी जिंदगी सुरक्षित. यूगांडा की राजघानी कम्पाला के माकारेरे-विश्वविद्यालय में समाजशास्त्री पीटर अटेचेरेज़ा बताते हैं.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

अगर हम मेल मिलाप की बात करते हैं तब दूसरे की इज़्ज़त करना बहुत ही महत्वपूर्ण है. किसी को यह नहीं कहना चाहिए, ठीक है मेल मिलाप अच्छी चीज़ है लेकिन मैं ही तुमसे बड़ा आदमी हूं. वैसे अलग संस्कृति के लोग तभी एक दूसरे के साथ मिलना शुरू करते हैं, जब शादी का मामला होता हैं. इस बीच यूगांडा के लोगों के लिए किसी अमेरिकी या किसी यूरोपीय लड़की से शादी करना कोई बड़ी बात नहीं रह गई है, लेकिन एक भारतीय मूल की लड़की से शादी करना उनके लिए नामुमकिन है, क्योंकि दोनों समुदाय में सामाजिक ढांचे से लेकर सब कुछ अलग है.

आज यूगांडा में करीब 15 हज़ार भारतीय, 2 हज़ार पाकिस्तानी और सैंकड़ों बांग्लादेशी, नेपाली और श्रीलंका से आए लोग रहते हैं. देखा जाए तो यह आमीन के समय युगांडा में रहने वाली दक्षिण एशियाई मूल की आबादी का सिर्फ़ एक चौथाई है. वैसे हर जगह मंदिर हैं, गुरुद्वारे है, मस्जिदें हैं, जहां खासकर रविवार को समुदाय के लोग मिलते हैं, मिलकर खाना खाते हैं. साथ ही बैंक ऑफ बड़ौदा, बाटा और अन्य दूसरे भारतीय ब्रांड भी यहां आपको दिखते हैं.

वैसे भारतीय समुदाय भी अलग अलग गुटों में बंटा हुआ है. जैसे गुजराती, बंगाली, पंजाबी या दक्षिण भारतीय सब अपने लोगों तक ही सीमित रहते हैं. साथ ही यह बातें भी मायने रखती हैं कि आप कौनसे शहर से आए हैं, या फिर पैसेवाले हैं या नहीं. दिलचस्प बात यह है कि पहले जो भारतीय युगांडा में बसे थे वह उसे अपना देश और घर मानते थे, भाषा भी जानते थे, लेकिन आज की पीढी के लिए युगांडा एक ऐसा देश है जहां कुछ साल ही रहना है और फिर भारत या कहीं और चले जाना है. इसलिए भी यूगांडा के लोग भारतीय मूल के लोगों के साथ ज्यादा घुलमिल नहीं पाते हैं.

तस्वीर: DW

कौशिक शाह 20 साल से कम्पाला से क़रीब 80 किलोमीटर दूर जिंजा शहर में रह रहे हैं. वे एक छोटी सी दुकान चलाते हैं जहां लकड़ी, रंग, नैल, स्क्रू यानी घर बनाने का सामान मिल सकता है. कौशिक शाह को आस पास के लोग म्से बुलाते हैं, यानी बुज़ुर्ग.

बहुत से भारतीय युंगाडा को अपना घर नहीं मानते हैं. जो भी यहां रहता है उसे यहां के नियम कानूनों का पालन करना चाहिए. एक दूसरी समस्या यह है कि कुछ भारतीय अच्छी तरह पढ़े लिखे नहीं है. और वह दूसरे भारतीयों के यहां सफाई वगैरह का काम करते हैं. वह अमेरिका में बसने का ख्वाब देखते हैं. और युंगाडा को वहां जाने का रास्ता भर मानते हैं.

लेकिन कितनी बार अमेरिका जाने का ख्वाब पूरा नहीं होता है. कभी पैसे की कमी या कभी प्रतिभा की. क्योंकि हर भारतीय सफल बिजनेस नहीं चला सकता है. लेकिन ऐसे लोग भारत भी वापस नहीं जा सकते हैं क्योंकि उनके घरवाले उनका मज़ाक उडाएंगा. और ऐसे में शुरू होता है एक कुचक्र.

परमिन्दर सिंह काटोंगोले राष्ट्रपति मुसेवेनी की पार्टी के राष्ट्रीय उप कोषाध्यक्ष हैं. 100 साल पहले उनका परिवार जालंधर से युगांडा आया था. परमिन्दर का कहना है कि उनके जैसे लोगों को दोनों समाजों के बीच पुल का काम करना चाहिए.

"सब कुछ एक दूसरे को ठीक से समझाने वाली बात है. मै हमेशा यूगांडा के लोगों को उनकी अपनी भाषा में कहता हूं कि जब भगवान ने मुझे बनाया तब उन्होने मुझे भट्ठी से कुछ जल्दी सही निकाला इसलिए मै काला नहीं बना, सिर्फ सांवला ही रह गया."

निमिशा माधवनी युगांडा में भारत और उसके पड़ोसी देशों के लिए हाई कमिशनर हैं. उनका मानना है कि दोनों समुदाय को एक दूसरे को समझने के लिए वक्त देना चाहिए और प्रयास करने चाहिए.

हम एक दूसरे से कितना सीख सकते हैं. युगांडा में मेल मिलाप हो रहा है. हर एक का फायदा होता है जब दूसरी संस्कृति के बारे में जानकारी बढ़ती है, खाने के बारे में, म्यूज़िक, डांस, हर क्षेत्र में.

निमिशा का कहना है कि आमीन इतिहास है और इतिहास अब यूगांडा में दोहराया नहीं जाएगा. लेकिन उनका यह भी मानना है कि इतिहास को समझना बहुत ज़रूरी है ताकि एक बेहतर भविष्य बन सके.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें