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युवा सपनों को पूरा करने की चुनौती

२३ जनवरी २०११

भारत से हर साल हजारों छात्र विदेश में पढ़ाई का ख्वाब बुनते हैं. सवाल उठता है कि क्या दुनिया भर में ग्लोबल पावर के रूप में उभरता भारत अपने युवाओं के सपनों को पूरा करने का काबिल अभी नहीं बना है.

क्यों विदेशों का रुख करते हैं छात्रतस्वीर: picture-alliance / dpa

हर बड़ी कामयाबी की बुनियाद अकसर एक छोटा सा सपना होता है. जब धीरे धीरे सपनों का विस्तार होता है तो उन्हें साकार करने के लिए लंबी उड़ानों की जरूरत होती है. बेहतर करियर और फिर बेहतर जिंदगी की इस उड़ान का एक बड़ा पहलू विदेश में पढ़ाई रहा है. किसी को उसकी काबलियत से मौका मिलता है तो कोई एजेंटों को पैसे देकर जुगाड़ भिड़ाता है.

दिमाग की बादशाहत

बीसवीं सदी में ब्रिटेन के महान नेता विंस्टन चर्चिल ने कहा था, "भविष्य का साम्राज्य मस्तिष्क का साम्राज्य होगा." भारतीय युवाओं पर यह बात बिल्कुल सही बैठती है. अब बात अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा ही हो या फिर सिलिकॉन वैली की मशूहर कंपनियों की, भारतीयों के तेज दिमाग का लोहा सब मानते हैं. तो फिर क्या वजह है कि भारत की इन प्रतिभाओं को अपने ही देश में संवारा नहीं जाता. एमटैक की पढ़ाई पूरी करने वाले शिवेंदु पराशर कहते हैं कि भारत में रिसर्च के लिए पर्याप्त अवसर नहीं हैं. इसीलिए भारत के छात्र विदेशों का रुख करते हैं.

उम्मीदों को पंख कौन देगातस्वीर: AP

अभी शिवेंदु एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाते हैं और फाइबर ऑप्टिक्स में पीएचडी करना चाहते हैं, जिसके लिए भारत में कोई खास व्यवस्था नहीं है. भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधारों पर लंबी चौड़ी बातें होती हैं लेकिन नतीजा वही ढाक तीन पात रहा है. इस दिशा में बुनियादी कदम तो उठाए गए हैं, लेकिन अभी काफी कुछ होना बाकी है. बैंक ऑफ इंडिया में मैनेजर के पद पर काम कर रहे युवा राजीव पांडे कहते हैं, "भारत में मौके तो बढ़े हैं लेकिन उसी हिसाब से युवा लोगों की आबादी भी बढ़ी है. हमारे यहां बुनियादी और प्राथमिक शिक्षा का दायरा बढ़ा है लेकिन स्नातक के बाद शिक्षा की गुणवत्ता में अब भी बहुत सुधारों की जरूरत है."

ग्लोबल पावर भारत

वहीं तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि दुनिया की अकेली महाशक्ति अमेरिका भी अपनी आर्थिक सेहत को दुरुस्त करने के भारत की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है. पिछले साल भारत दौरे पर पहुंचे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पूरे समय अमेरिकियों की नौकरियों की चिंता ही लगी रही. उन्होंने भारत को एक ग्लोबल पावर भी कहा.

ऐसे में युवा यूनिवर्सिटी प्रोफेसर अशोक शर्मा मानते हैं कि विदेश में पढ़ाई को लेकर छात्रों में दीवानापन कुछ कम हुआ है. वह कहते हैं, "भारत का आर्थिक विकास दुनिया भर के लिए भरोसे की बड़ी वजह है. मुझे लगता है कि विदेश जाने का चलन दो तीन साल में काफी कम हुआ है. हाल ही में चंडीगढ़ में ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त ने प्रेस कांफ्रेस कर कहा कि उनके देश में जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 70 प्रतिशत तक कम हो गई है."

बढ़ती युवा आबादी, बढ़ती चुनौतियां भीतस्वीर: AP

हालांकि ऑस्ट्रेलिया जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में आई कमी की वजह को वहां भारतीयों पर होने वाले हमलों को भी कहा जा सकता है. लेकिन भारतीय कंपनियों के बढ़ते रुतबे और वहां दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियों की मौजूदगी भी युवाओं को बेहतर करियर के मौके मुहैया करा रही हैं.

सरकार भी युवाओं के दम पर बेहतर कल से सपने देख रही है. अशोक शर्मा बताते हैं, "मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कहना है कि भारत को अगले दस साल में 30 करोड़ प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत होगी जिसे भारत पूरा नहीं कर पा रहा है. इसलिए मुझे लगता है कि भारत में लोगों की ज्यादा जरूरत है."

बड़े बदलावों की दरकार

शिक्षा में आमूल चूल सुधारों के बिना दक्ष युवाओं को तैयार नहीं किया जा सकता और इसलिए सबसे पहले देश के मानव संसाधन मंत्रालय को ही खाका तैयार करना होगा. वरना विदेश में पढ़ाई और फिर काबिल लोगों के वहीं बस जाने के चलन को रोकना जरा टेढ़ी खीर साबित होगा. राजीव कहते हैं, "भारतीय छात्रों को विदेश में एक अलग ही माहौल मिलता है. वहां क्वॉलिटी रिसर्च होती है. ऐसे बहुत से दस्तावेज मिलते हैं. काफी कुछ करने को मिलता है. भारत में तो ऐसे मौके हैं ही नहीं. जब एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ को कुछ करने को नहीं मिलता तो वह पटना में आईआईटी कोचिंग सेंटर सुपर 30 चलाता है."

भारत की युवा शक्ति की दुनिया में चर्चा हैतस्वीर: AP

यह बात तो सही है कि बिहार में गरीब छात्रों को आईटीटी जैसे नामी संस्थान में दाखिले के लिए काबिल बनाना आसान काम नहीं है. लेकिन यह काम आनंद कुमार ने बखूबी कर दिखाया और अब विदेशों में भी लोग उन्हें जानते हैं. शिवेंदु कहते हैं, "हमारे लोग ही बाहर जाकर नई चीज तैयार कर देते हैं. तो हम यहां उनका उपयोग क्यों नहीं कर सकते. सरकार तो पैसा खर्च कर रही है और फायदा भी हो रहा है. लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है."

भारत ने दुनिया की नजरों में आर्थिक तौर पर बहुत तरक्की की है. लेकिन आम लोग शिक्षा और दूसरी बुनियादी सुविधाओं के लिए अब भी तरसते हैं. इसके लिए राजीव देश की लाल फीताशाही और सत्तातंत्र में भाईभतीजा वाद को ही जिम्मेदार बताते हैं. वह कहते हैं, "गिने चुने बैठे बिठाए लोग हैं. उनके बाद उनके बच्चे राजनेता बन रहे हैं और अपने तरीके से चीजों को चला रहे हैं. भ्रष्टाचार है. सही चीजें कम हैं और गलत ज्यादा है. आप यह भी कह सकते हैं कि शायद अभी हमारा लोकतंत्र परिपक्व नहीं हुआ है.

तो कह सकते हैं कि भारत को अपने युवाओं से सपनो को साकार करने के काबिल बनने में अभी कुछ और वक्त लगेगा.

रिपोर्टः अशोक कुमार

संपादनः एस गौड़

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