पिछले एक साल से प्रतिबंधों की आंच झेल रहे कतर ने अब अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत का दरवाजा खटखटाया है. कतर का कहना है कि यूएई उसके नागरिकों के साथ भेदभाव की नीति अपना रहा है.
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खाड़ी में बसा छोटा सा देश कतर पिछले एक साल से प्रतिबंधों की आंच झेल रहा है. लेकिन अब कतर ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) पर मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगाया है. कतर इस मामले में संयुक्त अरब अमीरात को अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) ले गया है. आंतकवाद को प्रोत्साहन देने का आरोप लगाते हुए जून 2017 में संयुक्त अरब अमीरात समेत सऊदी अरब, बहरीन, मिस्र ने कतर के खिलाफ प्रतिबंध लगाने साथ ही बॉयकॉट की घोषणा की थी. इसके बाद इन देशों ने कतर के साथ सभी तरह के राजनयिक संबंधों और परिवहन समझौते तोड़ लिए थे.
कतर आंतकवाद संबंधी सभी आरोपों को बेबुनियाद बताता रहा है. कतर का कहना है कि इन देशों का मकसद उसकी स्वायत्ता को छीनना है. आईसीजे में दायर अपनी याचिका में कतर ने कहा है कि संयुक्त अरब अमीरात उसके खिलाफ ऐसे प्रतिबंधों की अगुवाई कर रहा है. कतर सरकार ने जारी बयान में कहा, "इन प्रतिबंधों के चलते कतर के नागरिकों और यहां रहने वाले लोगों के मानवाधिकार प्रभावित हो रहे हैं." लेकिन यूएई ऐसा नहीं मानता. यूएई के विदेश मंत्री अनवर गर्गश ने अपने ट्वीट में कतर के ऐसे आरोपों को खारिज किया है. साथ ही इसे कतर का एक झूठ बताया है.
कौन हैं कतर के अमीर?
कतर के वर्तमान और देश के आठवें अमीर हैं शेख तमीम बिन हमद अल थानी. 2013 में अपने पिता के बाद सत्ता संभालने वाले शेख थानी ने केवल 33 साल की उम्र में गद्दी संभाली. आइए जानें कतर के अमीर के बारे में कुछ और बातें.
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सबसे युवा अमीर
कतर के इतिहास में सबसे कम उम्र में अमीर बनने वालों में शेख तमीम का नाम शामिल है. उनके पिता शेख हमद बिन खलीफा अल थानी ने दो दशकों तक शासन किया था.
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बड़े भाई हटे
सातवें अमीर शेख खलीफा अल थानी ने 2003 में ही अपने चौथे बेटे को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जब उनके बड़े बेटे खुद किनारे हट गये.
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ब्रिटिश शिक्षा
शेख तमीम ने ब्रिटेन में पढ़ाई की. यूके के शेरबॉर्न स्कूल, हैरो स्कूल और फिर रॉयल मिलिट्री एकेडमी से वे सन 1998 में ग्रेजुएट होकर निकले.
कतर नेशनल ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष, कतर की सेना के उप प्रमुख और 2022 के कतर फीफा विश्व कप की आयोजन समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं शेख तमीम. तस्वीर में फीफा अध्यक्ष सेप ब्लैटर के साथ शेख हमद.
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स्वागत हुआ
सऊदी अरब, यूएई जैसे देशों के शेखों ने 2013 में शेख तमीम को कतर की गद्दी संभालने के मौके पर बधाइयां भेजीं और अपने देशों के साथ भाईचारा बनाये रखने की उम्मीद जतायी.
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गद्दी का खेल
शेख तमीम के पिता और कतर के सातवें अमीर शेख हमद बड़े अनोखे तरीके से गद्दी पर बैठे. 1995 में जब उनके पिता और छठे अमीर विदेश गये थे, पीछे से उन्होंने खुद को नया अमीर घोषित कर दिया.
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अर्थव्यवस्था और अमीर
कतर में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं जो अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं. सन 1995 के 8 अरब डॉलर से बढ़कर कतर की अर्थव्यवस्था 2010 में 174 अरब डॉलर की हो गयी.
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अरब नीति और अमीर
शेख हमद के काल में कतर ने व्यावहारिक नीति अपनाते हुए कई देशों से संबंध बनाये. फलस्तीन के आंतरिक विभाजन जैसे कई क्षेत्रीय मुद्दों पर मध्यस्थ की भूमिका में रहा. सीरियाई विपक्ष का भी समर्थन किया.
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विदेश नीति और अमीर
कई दशकों से कतर के मिलिट्री बेस से युद्धक विमान उड़ाने वाले अमेरिका से शेख हमद ने करीबी संबंध विकसित किये. दूसरी तरफ कतर ने बाकी अरब देशों से अलग रुख रखते हुए ईरान से भी सौहार्दपूर्ण संबंध बनाये.
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अरब परिवार में झगड़ा
2014 में खाड़ी सहयोग परिषद में विवाद छिड़ा. सऊदी अरब, यूएई और बहरीन ने "आतंकी संगठन" मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करने के लिए शेख तमीम की आलोचना की. नाराज देशों ने कतर ने राजनयिक वापस लौटा दिये. कई महीनों बाद जाकर सुलह हुई.
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संबंधों पर भारी 2017
2017 की शुरुआत से ही नये विवाद भी शुरू हुए. कतर न्यूज एजेंसी पर हैकर्स का हमला हुआ और शेख तमीम के हवाले से अमेरिकी विदेश नीति की निंदा करते हुए कुछ बयान लीक कर दिये गये. इससे नाराज कई अरब देशों ने कतर से संबंध तोड़ लिए.
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कतर में भारतीय
कतर की 25 लाख की कुल आबादी में करीब 88 फीसदी लोग भारत, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों से पहुंचे प्रवासी कामगार ही हैं. यहां भारत के करीब 650,000 मजदूर काम करते हैं और कतर का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय हैं.
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कतर सरकार के मुताबिक यूएई उसके नागरिकों के साथ भेदभाव की नीति अपना रहा है. कतर के लोगों पर यूएई जाना प्रतिबंधित है, साथ ही वह यूएई से गुजर भी नहीं सकते. यूएई ने अपने नागरिकों को कतर छोड़ने के आदेश भी दे दिए हैं, साथ ही कतर के लिए एयरस्पेस और समुद्री बंदरगाह बंद कर दिए हैं.
कतर का तर्क है कि यूएई का ये कदम, "इंटरनेशनल कनवेंशन ऑन द ऐलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ रेसियल डिस्क्रीमेशन" (CERD) का हनन है. इस कनवेंशन के अंतर्गत किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता है. यूएई और कतर दोनों ही देशों ने इस कनवेंशन पर दस्तखत किए हैं. लेकिन सऊदी अरब, बहरीन और मिस्र इस कनवेंशन में शामिल नहीं है.
अपनी शिकायत में कतर ने यहा भी कहा कि यूएई उसके नागिरकों से अभिव्यक्ति का अधिकार छीन रहा है. इसी के तहत मीडिया कंपनी अल-जजीरा का स्थानीय दफ्तर भी यूएई ने बंद कर दिया है. कतर ने आईसीजे से अपील की है कि वह यूएई को सीईआरडी के नियम-कानूनों को मानने का आदेश दे. इसके अलावा कतर ने यूएई से हर्जाने के रूप में मुआवजे की भी मांग की है. लेकिन इसमें कितनी राशि शामिल है उसका कोई विवरण अब तक सामने नहीं आया है.
इन देशों पर अमेरिका ने लगा रखे हैं प्रतिबंध
अमेरिका ने इन देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. दरअसल ये प्रतिबंध सरकारों का अस्वीकृति जाहिर करने का तरीका है. बड़े मुल्क अपनी विदेश नीति में आर्थिक प्रतिबंधों को काफी तवज्जो देते हैं क्योंकि युद्ध महंगे होते हैं.
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उत्तर कोरिया
अमेरिका प्रतिबंधों का सबसे बुरा असर अगर किसी पर हुआ है तो वह है उत्तर कोरिया. उत्तर कोरिया और अमेरिका की तकरार के कारण 1950 के दशक में हुए कोरियाई युद्ध में छिपे हैं. उस दौरान अमेरिका ने दक्षिण कोरिया के लिए समर्थन दिया था.
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आइवरी कोस्ट
अमेरिकी सरकार ने अफ्रीकी मुल्क आइवरी कोस्ट पर मानवाधिकार हनन के चलते प्रतिबंध लगाए हैं. साल 1970 तक आइवरी कोस्ट की गिनती अफ्रीका की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में होती थी. लेकिन साल 1999 में देश में गृहयुद्ध हो गया. इसके बाद मानवाधिकार हनन के अनेकों मामले सामने आए.
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क्यूबा
अमेरिका और क्यूबा के बीच का मतभेद किसी से छिपे नहीं है. साल 1959 में क्यूबा का शासन फिदेल कास्त्रो ने संभाल लिया था. कास्त्रो के पहले जो सत्ता देश में थी वह अमेरिका को समर्थन करती थी. लेकिन कम्युनिस्ट कास्त्रो के सत्ता में आने के बाद अमेरिका ने क्यूबा पर प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन पड़ोसी होने के नाते मानवीय आधारों पर कुछ छूट मिली है.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की चर्चा आज भी होती है. 1978-1979 की ईरान क्रांति में पश्चिमी मुल्कों के साथ दोस्ती रखने वाले शाह की सत्ता छिन गई थी. इसके अलावा अन्य कई मसलों ने भी अमेरिका और ईरान के बीच खाई को गहरा दिया.
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म्यांमार
एशियाई मुल्क म्यामांर उन देशों से एक है जिस पर अमेरिका ने मानवीय आधारों के चलते प्रतिबंध लगा रखा है. इस पर प्रतिबंध लगाने के कारण राजनीतिक और मानवाधिकार से जुड़े हुए हैं.