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यूएन में पाकिस्तान की बड़ी जीत

२२ अक्टूबर २०११

पाकिस्तान के लिए यह बड़ी जीत है. पिछले कई सालों में सुरक्षा परिषद की अस्थायी सीट के लिए इतना तगड़ा मुकाबला नहीं हुआ. और पाकिस्तान इस मुकाबले से विजेता बनकर शान से निकला.

तस्वीर: dapd

पाकिस्तान, मोरक्को, ग्वाटेमाला और टोगो ने 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद के लिए दो साल की अस्थायी सदस्यता हासिल कर ली है. पूर्वी यूरोप की सीट के लिए नौ दौर में वोटिंग हुई. लेकिन अजरबैजान और स्लोवेनिया में से कोई भी जीत के लिए जरूरी दो तिहाई बहुमत हासिल नहीं कर पाया.

तस्वीर: un

भारत पाक साथ साथ

नए चुने गए देश बोस्निया, ब्राजील, गैबन, लेबनान और नाइजीरिया की जगह एक जनवरी से अपनी अपनी सीट संभाल लेंगे. अब सुरक्षा परिषद में भारत और पाकिस्तान एक साथ होंगे. भारत एक जनवरी 2010 से सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बना. 1947 से अब तक तीन जंग लड़ चुके इन परमाणु शक्ति संपन्न देशों का सुरक्षा परिषद में आमने सामने होना भी तनाव भी पैदा कर सकता है. हालांकि पाकिस्तान ने कह दिया है कि वह भारत और अमेरिका के साथ तनाव दूर करने की ही कोशिश करेगा. अमेरिका ने भी उसे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दे रखी है. बल्कि जानकारों को तो उम्मीद है कि सीरिया और ईरान के मुद्दे पर पाकिस्तान अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ भारत, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका का साथ देगा.

भारत में कूटनीतिज्ञों ने उम्मीद जताई कि उसे सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान का सहयोग मिलेगा. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के दूत अब्दुल्लाह हुसैन हारून ने भी किसी तरह के तनाव की बात को खारिज कर दिया. हारून ने कहा, "पाकिस्तान कमजोरों का साथ देगा. उम्मीद है कि हम सभी सदस्यों खासकर भारत के साथ मिलकर काम करेंगे." हारून ने कहा कि भारतीय दूत हरदीप सिंह चांदपुरी के साथ उनके अच्छे रिश्ते हैं और दोनों देशों के बीच बातचीत को बढ़ाने में ये रिश्ते काम आए हैं.

तस्वीर: picture alliance/dpa

पाकिस्तानी दूत ने माना कि हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों को लेकर अमेरिका के साथ कुछ मतभेद हैं. उन्होंने कहा, "हमारा अपना नजरिया है. और सबसे अच्छा तो यही होगा कि हम आमने सामने बैठें और बात करें. मुझे नहीं लगता कि किसी तरह के विवाद से किसी भी पक्ष को कुछ हासिल होगा."

पूर्वी यूरोप की सीट पर पंगा

पाकिस्तान ने एशिया पैसिफिक की सीट जीती है. उसे 129 वोट मिले. अगर एक वोट भी कम मिलता तो पाकिस्तान को सदस्यता न मिल पाती. उसका मुकाबला किरगिस्तान से था जिसे 55 वोट मिले.

मोरक्को के लिए भी मुकाबला कांटे का हुआ. वह अफ्रीकी संघ का सदस्य नहीं है इसलिए संघ के देशों का साथ उसे नहीं मिला. संघ ने मॉरितानिया और टोगो का साथ दिया. बदले में मोरक्को को फ्रांस का बड़ा मजबूत साथ मिला. फ्रांस ने उसके पक्ष में अभियान भी चलाया. 151 वोट के साथ मिली जीत के बाद मोरक्को के विदेश मंत्री तैयब फासी फिहरी ने कहा कि उनका देश इस भारी समर्थन से गौरवान्वित है. उन्होंने कहा, "सिर्फ इस आधार पर मोरक्को को इस मुकाबले से बाहर करने के लिए हर तरह की कोशिश की गई कि हम एक खास संगठन के सदस्य नहीं है. इसके बावजूद हम जीत गए."

अफ्रीका की दूसरी सीट टोगो को मिली. तीसरे दौर की वोटिंग के बाद उसे 131 मत मिले. ग्वाटेमाला को बिना किसी मुकाबले के सीट मिली. हालांकि इस वोटिंग में दो देशों ने हिस्सा नहीं लिया. पूर्वी यूरोप की सीट के लिए अब सोमवार को वोटिंग होगी.

रिपोर्टः एएफपी/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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