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यूएन में श्रीलंका के साथ चीन, भारत खिलाफ

२२ मार्च २०१२

संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च मानवाधिकार संस्था ने एक प्रस्ताव पास कर श्रीलंका से संदिग्ध युद्ध अपराधों की ठीक से जांच करने की अपील की है. घरेलू दबाव में भारत ने भी अमेरिका समर्थित प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया.

तस्वीर: dapd

मानवाधिकार परिषद ने बहुमत से पास प्रस्ताव में श्रीलंका से अपील की है कि वह तमिल विद्रोहियों के साथ 26 साल के संघर्ष के अंत में दोनों पक्षों द्वारा किए गए युद्ध अपराधों की जांच करे. प्रस्ताव में बिना मुकदमे के मौत की सजा देने, अपहरण और दूसरे अपराधों की जांच करने को कहा गया है. प्रस्ताव में सरकार से युद्ध अपराध करने वाले सरकारी सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है लेकिन अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग नहीं की गई है.

भारत का भी समर्थन

47 सदस्यों वाली परिषद में 24 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि 15 ने विरोध में मत दिया. 8 सदस्यों ने हिस्सा नहीं लिया. भारत ने श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव का समर्थन किया जबकि चीन और रूस ने श्रीलंका के पक्ष में मतदान किया. भारत पर प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए तमिल पार्टियों का जबरदस्त दबाव था. भारत पहले प्रस्ताव का समर्थन करने से कतरा रहा था लेकिन बाद में उसने मसौदे में दो संशोधनों के बाद समर्थन करने का फैसला किया. भारत ने बहस में हिस्सा नहीं लिया.

सरकार समर्थक प्रदर्शनतस्वीर: dapd

श्रीलंका और उसके सहयोगी देश इस प्रस्ताव का तगड़ा विरोध कर रहे थे. उनका कहना है कि यह उसके घरेलू मामलों में हस्तक्षेप है और यह देश में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद मेलमिलाप की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है. इसके विपरीत प्रस्ताव का समर्थन कर रहे अमेरिका और यूरोपीय संघ का कहना है कि संदिग्ध अपराधों की विश्वसनीय जांच न्याय और समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.

संयुक्त राष्ट्र के एक जांच दल ने कहा था कि इस बात के पक्के सबूत हैं कि सरकारी सेनाओं और विद्रोहियों दोनों ने ही खासकर विवाद के अंतिम दिनों में गंभीर अपराध किए जिन्हें युद्ध अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है. युद्ध के अंतिम दिनों में हजारों लोग मारे गए. आजाद तमिल देश के लिए लड़ रहा तमिल टाइगर्स आत्मघाती हमलों और बाल सैनिकों के इस्तेमाल के लिए जाना जाता है. लिट्टे के एक आत्मघाती हमले में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी मारे गए थे.

सेना पर बर्बरता के आरोप

जहां तक सरकारी पक्ष का सवाल है, मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि सेना ने युद्ध के अंतिम दिनों में उन इलाकों पर अंधाधुंध गोलीबारी की जहां आम लोग युद्ध से भागकर छिपे थे. उन्हें सहायता नहीं दी और पकड़े गए विद्रोहियों को बिना मुकदमे मौत के घाट उतार डाला. श्रीलंका ने हमेशा इन आरोपों से इनकार किया है कि उसने युद्ध के दौरान आम लोगों को निशाना बनाया. हालंकि उसने स्वाकीर किया है कि जब सेना उत्तर की ओर बढ़ रही थी तो कुछ लोग मारे गए.

युद्ध का स्मारकतस्वीर: Monika Nutz

युद्ध की खूनी समाप्ति के बावजूद सरकारी जीत को बहुत से लोग बहुसंख्यक सिंहलों और तमिलों के बीच रिश्तों को सुधारने का मौका समझा जा रहा है. तमिलों के साथ सिंहल नियंत्रित सरकारें सदियों से भेदभाव करती आ रही हैं.

मतदान से पहले प्रस्ताव का विरोध करते हुए श्रीलंका प्रतिनिधिमंडल के नेता महिंदा समरसिंहे ने कहा कि उनका देश विवाद की समाप्ति के बाद उसके नतीजों से निबटने में दूसरों के लिए रोल मॉडल रहा है. मानवाधिकार परिषद में प्रस्ताव लाने वाले अमेरिका पर गुस्सा उतारते हुए समरसिंहे ने कहा, "जो लोग कांच के घरों में रहते हैं उन्हें दूसरों पर पत्थर फेंकने से पहले संयम का परिचय देना चाहिए."

मानवाधिकार संगठनों और निर्वासन में रहने वाले तमिलों ने मानवाधिकार परिषद द्वारा श्रीलंका विरोधी प्रस्ताव का समर्थन किया है. श्रीलंका में सरकार समर्थक दलों का विरोध जारी रहा. उन्होंने सारे दिन प्रस्ताव के विरोध में रैलियां निकाली और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया.

रिपोर्ट:एपी, डीपीए/महेश झा

संपादन: ए जमाल

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