'वर्ल्ड वुमन 2020 रिपोर्ट' में महिलाओं के अधिकारों और नौकरी के बाजार में भागीदारी में प्रगति में भारी कमी पाई गई है. महामारी और लॉकडाउन ने महिलाओं के लिए हालात बदतर किए हैं.
विज्ञापन
मंगलवार, 20 अक्टूबर को जारी इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने महिला अधिकारों की सुस्त प्रगति पर दुख जताया है. साथ ही यूएन ने कोरोना वायरस महामारी और आर्थिक मंदी की वजह से महिला अधिकारों को हासिल करने की रफ्तार धीमी पड़ने की चेतावनी दी है. 'वर्ल्ड वुमन 2020 रिपोर्ट' में पाया गया कि दुनिया ने महिलाओं के अधिकारों और आर्थिक सशक्तीकरण के मामले में मामूली उपलब्धि हासिल की है और रोजगार और घरेलू हिंसा के खिलाफ जो उपाय 25 साल पहले रिपोर्ट में सुझाए गए थे उसके बाद से स्थिति में सुधार नहीं हुआ है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने एक बयान में कहा, "25 साल पहले बीजिंग घोषणापत्र और प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन के पारित होने के बाद से महिलाओं के लिए समान शक्तियों और समान अधिकारों की दिशा में प्रगति लक्ष्य से दूर ही रही है." आगे उन्होंने कहा, "कोई भी देश लैंगिक समानता हासिल नहीं कर पाया है और जो भी लाभ इस दिशा में हासिल हुए उसको कोविड-19 संकट खत्म कर सकता है."
खामियाजा भुगतती महिलाएं
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि जहां पुरुषों को कोविड-19 संबंधित समस्याओं से मरने का अधिक खतरा है, वहीं महिलाओं में संक्रमण होने की संभावना अधिक है-यही नहीं संक्रमण के खिलाफ बतौर फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में 70% महिला काम कर रही हैं. यूएन सामाजिक और लिंग सांख्यिकीविद् फ्रांसेस्का ग्रम के मुताबिक, "वे संक्रमित होने के अधिक जोखिम में हैं और निश्चित रूप से सभी की ओर से महामारी से लड़ने के लिए फ्रंटलाइन पर खड़ी हैं." रिपोर्ट कहती है लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के मामले में वृद्धि की संभावना है. डाटा पहले ही दिखा चुके हैं कि पिछले 12 महीनों में 18 फीसदी महिलाओं ने अपने पार्टनर से शारीरिक और यौन हिंसा का अनुभव किया.
रिपोर्ट साथ ही कहती है कि कोरोना महामारी के दौरान संभावना है कि महिलाएं अन्य तरह की हिंसा का सामना कर रही हों और इसका डाटा इकट्ठा किया जा रहा है. 15 साल का सर्वेक्षण डाटा रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा से बचने वाली बड़ी संख्या में महिलाएं कभी भी पुलिस, हेल्पलाइन या अन्य सेवा विभाग तक इसकी सूचना नहीं देती हैं.
रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया कि प्राथमिक और उच्च विद्यालय में जाने वाली लड़कियों और लड़कों की समान संख्या है और वैश्विक औसत के रूप में पुरुषों की तुलना में विश्वविद्यालय जाने वाली अधिक युवा महिलाएं हैं लेकिन आधे से कम महिलाओं को रोजगार मिल पा रहा है. रोजगार बाजार में महिलाओं और पुरुषों की भागीदारी 1995 के समान है. साल 1995 में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बीजिंग में हुए चौथे विश्व सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों ने जिन लक्ष्यों को हासिल करने का संकल्प लिया था, दुनिया अब भी उनसे दूर है.
यही नहीं शक्ति और निर्णय-निर्धारण के क्षेत्र में यह रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में दुनिया भर में प्रबंधकों की कुल संख्या का मात्र 28 फीसदी महिलाएं थीं, यह लगभग 1995 में आंकड़े के समान है.
भारत में लोग समय कैसे बिताते हैं इस विषय पर सरकार ने पहली बार एक सर्वेक्षण कराया है. सर्वे में यह साबित हो गया है कि शहर हो या गांव, महिलाएं आज भी हर जगह चारदीवारी के अंदर ही सीमित हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
कैसे बिताते हैं समय
सर्वेक्षण जनवरी से दिसंबर 2019 तक 5,947 गांवों और 3,998 शहरी इलाकों में कराया गया. इसमें 1,38,799 परिवारों ने भाग लिया, जिनमें छह साल से ज्यादा उम्र के 4,47,250 लोगों से सवाल पूछे गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
अपना ख्याल रखने में बिताते हैं ज्यादा वक्त
दिन के 24 घंटों में पुरुष और महिलाएं दोनों सबसे ज्यादा समय अपना ख्याल रखने में बिताते हैं. पुरुष उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त रोजगार और उससे जुड़ी गतिविधियों में बिताते हैं और महिलाएं उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त बिना किसी वेतन के घर के काम करने में बिताती हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
रोजगार में महिलाओं की भागीदारी कम
सर्वे में पूरे देश में सिर्फ 38.2 प्रतिशत लोगों को रोजगार में व्यस्त पाया गया. ग्रामीण इलाकों में यह दर 37.9 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 56.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 19.2 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर 38.9 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 59.8 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 16.7 प्रतिशत है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
उत्पादन में महिलाएं आगे
अपने इस्तेमाल के लिए सामान के उत्पादन में देश में सिर्फ 17.1 प्रतिशत लोग लगे हुए हैं. ग्रामीण इलाकों में यह दर 22 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 19.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 25 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर सिर्फ 5.8 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 3.4 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 8.3 प्रतिशत है.
तस्वीर: DW/Catherine Davison
घर के काम करने में पुरुष बहुत पीछे
बिना किसी वेतन के घर के काम करने में ग्रामीण इलाकों में पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 27.7 प्रतिशत है और महिलाओं की 82.1 प्रतिशत. शहरों में पुरुषों की भागीदारी है 22.6 प्रतिशत और महिलाओं की 79.2 प्रतिशत. ग्रामीण इलाकों में पुरुषों ने इन कामों में औसत एक घंटा 38 मिनट बिताए जब कि महिलाओं ने पांच घंटे एक मिनट. शहरी इलाकों में पुरुषों ने एक घंटा और 34 मिनट दिए जबकि महिलाओं ने चार घंटों से ज्यादा समय दिया.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/H. Bhatt
दूसरों की देख-भाल भी ज्यादा करती हैं महिलाएं
बिना किसी वेतन के दूसरों की देख-भाल करने में भी महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा आगे हैं. ग्रामीण इलाकों में यह सिर्फ 14.4 प्रतिशत पुरुष करते हैं जबकि महिलाओं का प्रतिशत 28.2 है. शहरी इलाकों में इसमें पुरुषों की भागीदारी 13.2 प्रतिशत है और महिलाओं की 26.3 प्रतिशत.
तस्वीर: Catherine Davison
पूजा-पाठ और लोगों से मिलने पर विशेष ध्यान
91.3 प्रतिशत भारतीय पूजा-पाठ, लोगों से मिलने और सामुदायिक गतिविधियों में शामिल होते हैं. इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में 90 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों दोनों की भागीदारी है. ग्रामीण इलाकों में इन पर पुरुष एक दिन में औसत दो घंटे और 31 मिनट और महिलाएं दो घंटे और 19 मिनट बिताती हैं. शहरी इलाकों में महिलाएं और पुरुष दोनों ही इन पर एक दिन में औसत दो घंटे और 18 मिनट बिताते हैं.