यूएपीए के तहत लगे आरोप में नौ साल जेल में बिताने के बाद मोहम्मद इलियास और मोहम्मद इरफान को एक विशेष अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि दोनों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है.
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33 साल के मोहम्मद इरफान और 38 साल के मोहम्मद इलियास को महाराष्ट्र पुलिस के आतंक विरोधी दस्ते (एटीएस) ने अगस्त 2012 में गिरफ्तार किया था. उनके अलावा दो और लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पांचों के खिलाफ आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा से संबंध होने के आरोप लगाए गए थे. चूंकि मामला हथियार बरामद होने और राजनेताओं, पुलिस अफसरों और पत्रकारों की हत्या करने की योजना बनाने की एक साजिश का था, 2013 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने जांच अपने हाथों में ले ली थी.
लेकिन एनआईए भी मोहम्मद इलियास और मोहम्मद इरफान के खिलाफ ऐसे सबूत नहीं जुटा पाई जिनसे अदालत उन पर लगे आरोपों पर भरोसा कर सके. बरी होने के बाद दोनों नांदेड़ स्थित अपने अपने घर चले गए हैं, लेकिन इस मामले ने एक बार फिर गलत आरोपों में गिरफ्तार किए गए लोगों की समस्याओं पर चर्चा शुरू कर दी है. गिरफ्तार किए जाने से पहले, इलियास का नांदेड़ में ही फलों का व्यापार था और इरफान की इन्वर्टर की बैटरियों की एक दुकान थी.
दोनों ने इन नौ सालों में जमानत की कई अर्जियां डाली थीं जिनमें उन्होंने बार बार कहा था कि एटीएस और एनआईए दोनों को ही उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं मिला. इरफान को 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने जमानत पर रिहा करने के आदेश दे दिए थे लेकिन वो सिर्फ चार महीने जमानत पर जेल के बाहर रह पाए. एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट में उन्हें फिर से गिरफ्तार करने की अर्जी दी और अदालत ने अर्जी मंजूर कर ली.
क्या था मामला
महाराष्ट्र एटीएस ने दावा किया था कि उसके एक अफसर को जानकारी मिली थी कि 30 अगस्त 2012 को चार लोग हथियारों के साथ नांदेड़ की तरफ जा रहे थे. एटीएस की अलग अलग अलग टीमों ने छापे मारे और इरफान और इलियास के अलावा मोहम्मद मुजम्मिल और मोहम्मद सादिक को भी गिरफ्तार किया. बाद में मामले की और जांच करने के बाद एक और व्यक्ति मोहम्मद अकरम को भी गिरफ्तार किया गया.
एटीएस के दावों के मुताबिक सादिक और मुजम्मिल दोनों के पास से एक-एक रिवॉल्वर, कुछ गोलियां और कुछ कारतूस पाए गए. इरफान और इलियास के पास से कोई भी हथियार बरामद नहीं हुआ. बाद में और जांच करने के बाद एनआईए ने अकरम को लश्कर का सदस्य और पूरी योजना बनाने वाला व्यक्ति बताया. इरफान और इलियास को बरी करने के साथ साथ अदालत ने इन तीनों को दोषी पाया है और 10 साल जेल की सजा सुनाई है. जो नौ साल वो जेल में बिता चुके हैं, उन्हें उनकी सजा में से घटा दिया जाएगा.
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नौ सालों का हिसाब
नांदेड़ स्थित अपने अपने घर जाने से पहले इरफान ने एक अखबार के रिपोर्टर के साथ उनके खोए हुए नौ सालों का दुख साझा किया. इरफान ने कहा, "बस, नौ साल जो गए, सब हवा में." उनके 62 साल के पिता नांदेड़ जिला परिषद में ड्राइवर की नौकरी करते थे और उन्हें हर बार मामले की सुनवाई के लिए मुंबई जाना पड़ता था. इस साल की शुरुआत में उन्हें और इरफान की मां दोनों कोविड पॉजिटिव पाए गए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती भी कराना पड़ा था.
इलियास कहते हैं कि जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तब उनकी सबसे छोटी संतान की उम्र बस दो सप्ताह की थी और पिछले नौ सालों में वो अपनी पत्नी और अपने तीनों बच्चों से सिर्फ एक बार मिल पाए हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें जेल हो जाने के बाद उनका व्यापार बंद हो गया क्योंकि मकान मालिक ने उनके परिवार को वो जगह खाली कर देने को कह दिया. वो ऊंची अदालतों में अपनी जमानत के लिए भी नहीं लड़ पाए क्योंकि उनके पास केस लड़ने के पैसे नहीं थे.
यूएपीए आतंकवाद की रोकथाम के लिए बना एक विशेष कानून है, लेकिन जानकार कहते हैं कि पुलिस और अन्य एजेंसियां इसका बेहद लापरवाही से इस्तेमाल करती हैं और इसका नतीजा कई बेगुनाहों को भुगतना पड़ता है. सरकार द्वारा संसद में दिए गए ताजा आंकड़े बताते हैं कि 2016 से 2019 के बीच यूएपीए के तहत दर्ज किए गए सभी मामलों में से सिर्फ 2.2 प्रतिशत मामलों में अपराध सिद्ध हो पाया. इस अवधि में इसके तहत कुल 5,922 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से सिर्फ 132 लोगों का अपराध सिद्ध हो पाया.
बढ़ती जा रही है जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि देश की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई अभी चल ही रही है. जानिए और क्या बताते हैं ताजा आंकड़े.
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कितनी जेलें
2019 में देश में कुल 1,350 जेलें थीं, जिनमें सबसे ज्यादा (144) राजस्थान में थीं. दिल्ली में सबसे ज्यादा (14) केंद्रीय जेलें हैं. कम से कम छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी केंद्रीय जेल नहीं है.
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जेलों में भीड़
इतनी जेलें भी बंदियों की बढ़ती संख्या के लिए काफी नहीं हैं. ऑक्यूपेंसी दर 2018 में 117.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 118.5 प्रतिशत हो गई. सबसे ज्यादा ऊंची दर जिला जेलों (129.7 प्रतिशत) है. राज्यों में सबसे ऊंची दर दिल्ली में है (174.9 प्रतिशत).
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महिला जेलों का अभाव
'पूरे देश में सिर्फ 31 महिला जेलें हैं और वो भी सिर्फ 15 राज्यों/केंद्रीय शासित प्रदेशों में हैं. देश की सभी जेलों में कुल 4,78,600 कैदी हैं, जिनमें 19,913 महिलाएं हैं.
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कर्मचारियों का भी अभाव
2019 में जेल स्टाफ की स्वीकृत संख्या थी 87,599 लेकिन वास्तविक संख्या थी सिर्फ 60,787. सबसे बड़ा अभाव प्रोबेशन अधिकारी, कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि जैसे सुधार कर्मियों का था.
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कैदियों पर खर्च
2019 में देश में कैदियों पर कुल 2060.96 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कि जेलों के कुल खर्च का 34.59 प्रतिशत था. इसमें से 47.9 प्रतिशत (986.18 करोड़ रुपए) भोजन पर खर्च किए गए, 4.3 प्रतिशत (89.48 करोड़ रुपए) चिकित्सा संबंधी खर्च पर, 1.0 प्रतिशत (20.27 करोड़ रुपए) कल्याणकारी गतिविधियों पर, 1.1 प्रतिशत (22.56 करोड़ रुपए) कपड़ों पर और 1.2 प्रतिशत (24.20 करोड़ रुपए) शिक्षा और ट्रेनिंग पर किया गया.
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70 प्रतिशत कैदियों के मामले विचाराधीन
2019 में देश की सभी जेलों में अपराधी साबित हो चुके कैदियों की संख्या (1,44,125) ऐसे कैदियों की संख्या से ज्यादा थी जिनके खिलाफ मामले अभी अदालतों में विचाराधीन ही हैं (3,30,487). एक साल में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से लगभग आधे कैदी जिला जेलों में हैं और 36.7 प्रतिशत केंद्रीय जेलों में.
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न्याय के इंतजार में
विचाराधीन कैदियों में 74.08 प्रतिशत कैदी (2,44,841) एक साल तक की अवधि तक, 13.35 प्रतिशत कैदी (44,135) एक से दो साल की अवधि तक, 6.79 प्रतिशत (22,451) दो से तीन सालों तक, 4.25 प्रतिशत (14,049) तीन से पांच सालों तक और 1.52 प्रतिशत कैदी (5,011) पांच साल से भी ज्यादा अवधि से जेल में बंद थे.
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शिक्षा का स्तर
सभी कैदियों में 27.7 प्रतिशत (1,32,729) अशिक्षित थे, 41.6 प्रतिशत (1,98,872) दसवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे, 21.5 प्रतिशत (1,03,036) स्नातक के नीचे तक पढ़े थे, 6.3 प्रतिशत (30,201) स्नातक थे, 1.7 प्रतिशत 8,085 स्नातकोत्तर थे और 1.2% प्रतिशत (5,677) कैदियों के पास टेक्निकल डिप्लोमा/डिग्री थी.
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मृत्युदंड वाले कैदी
सभी कैदियों में कुल 400 कैदी ऐसे थे जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई थी. इनमें से 121 कैदियों को 2019 में मृत्युदंड सुनाया गया था. 77,158 कैदियों (53.54 प्रतिशत) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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जेल में मृत्यु
2018 में 1,845 कैदियों के मुकाबले 2019 में 1,775 कैदियों की जेल में मृत्यु हुई. इनमें से 1,544 कैदियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई. अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों की संख्या 10.74 प्रतिशत बढ़ कर 165 हो गई. इनमें से 116 कैदियों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई, 20 की मौत हादसों की वजह से हुई और 10 की दूसरे कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई. कुल 66 मामलों में मृत्यु का कारण पता नहीं चल पाया.
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पुनर्वास
2019 में कुल 1,827 कैदियों का पुनर्वास कराया गया और 2,008 कैदियों को रिहाई के बाद वित्तीय सहायता दी गई. कैदियों द्वारा कुल 846.04 करोड़ रुपए मूल्य के उत्पाद भी बनाए गए.