यूक्रेन ने मनाई 75 साल पहले हुए हत्याकांड की याद
२९ सितम्बर २०१६यहूदियों के नरसंहार की योजना पहले से ही तैयार थी, लेकिन कब्जावरों ने उसके लिए एक बहाना भी खोजा. 19 सितंबर 1941 को जर्मन सेना वेयरमाख्त ने सोवियत संघ के यूक्रेन गणतंत्र की राजधानी कीव में प्रवेश किया. कुछ ही दिन पहले उन्हें तब भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था जब बारूदी सुरंग बिछे घरों में रिमोट से धमाका किया गया था. 29 और 30 सितंबर को जर्मन सैनिकों ने कीव के यहूदियों को शहर के बाहर बाबिन जार घाटी में इकट्ठा किया और 33,771 यहूदियों की हत्या कर दी.
75 साल बाद स्वतंत्र यूक्रेन एक स्मृति सभा के साथ उस मानवीय त्रासदी को याद की, जिसमें यहूदियों को मिटाने का इरादा कर चुकी सरकार के सैनिकों ने कब्जे वाले इलाके में शहर के सारे यहूदियों की जान ले ली. इसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति पेत्रो पोरोशेंको के अलावा जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक भी भाग लिया. राष्ट्रपति गाउक ने अपने भाषण में कहा कि अतीत के अपराधों को भुलाया नहीं जाना चाहिए.
शहर में पोस्टर चिपका कर घोषणा की गई थी, "कीव शहर और आसपास के सभी यहूदियों को सोमवार, 29 सितंबर 1941 को 8 बजे तक इकट्ठा होना है." उन्हें अपने कागजात, पैसे और कपड़े साथ लाने को कहा गया. आदेश नहीं मानने वालों को गोली मारने की धमकी दी गई. कीव की करीब सवा दो लाख यहूदी आबादी में से सिर्फ 50,000 बचे थे. मर्द सोवियत सेना में सेवा दे रहे थे और बहुत से शहर छोड़कर भाग गए थे. बाकी बचे बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे आज के मेट्रो स्टेशन लुक्यानिव्का के निकट मैदान में इकट्ठा हुए.
स्थानीय सुरक्षा गार्डों की निगरानी में उन्हें पैदल चलाकर शहर के बाहर स्थित बाबिन जार ले जाया गया जहां उनसे सामान इकट्ठा कवाया गया और नंगा होने को कहा गया. फिर दस दस के ग्रुप में उन्हें तंग घाटी में ले जाया गया जहां मशीनगन के साथ नाजी सेना के तीन जत्थे थे. एसएस कमांडो के कुर्ट वैर्नर ने बाद में न्यूरेमबर्ग मुकदमे में गवाही में कहा था, "पीछे से आने वाले यहूदियों को पहले मारे गए यहूदियों की लाशों पर लेटना पड़ता था और पीछे खड़े सैनिक उन्हें गोली मार देते थे." मध्य अक्टूबर तक करीब 50,000 लोगों को मार डाला गया. बाद में सेना ने घाटी के किनारों को बम से उड़ा दिया ताकि विशाल कब्रगाह के निशानों को मिटाया जा सके.
बाबिन जार में कब्जे के दौरान करीब 200,000 लोगों को मार डाला गया. मारे गए लोगों में यहूदियों के अलावा रोमा, युद्धबंदी, मनोरोगी, प्रतिरोध संघर्षकर्ता और यूक्रेनी राष्ट्रवादी शामिल थे. स्टालिनग्राद की लड़ाई में जर्मन सेना की हार के बाद सोवियत सेना की वापसी की संभावना को देखते हुए एसएस कमांडर पाउल ब्लोबेल कीव वापस लौटा और 300 बंदियों की मदद से उसने लाशों को बाहर निकलवाया और पेट्रोल डूबी लकड़ियों के साथ जलवा दिया. नाजी बर्बरता का अंत 6 नवंबर 1943 में हुआ जब भारी नुकसान के बाद सोवियत सेना ने कीव को मुक्त करवाया.
सोवियत संघ के जमाने में इस नरसंहार की याद नहीं मनाई जाती थी. समय के साथ मौत की घाटी शहर का हिस्सा बन गई और जहां लोगों की हत्या की गई थी, वह जगह पार्क मे तब्दील हो गई. सोवियत तानाशाह स्टालिन की मौत के बाद 1961 में येवदेनी येवटुशेंको की कविता बाबी जार के प्रकाशन के बाद नरसंहार पर बहस शुरू हुई. लेकिन 1976 में मारे गए सोवियत नागरिकों का स्मारक तो बना लेकिन यह मानने से इंकार कर दिया कि मृतकों का बड़ा ग्रुप यहूदियों का था. यह स्थिति सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में बदली जब नरसंहार की 50वीं वर्षगांठ मनाई गई. वहां मेनोरा के रूप में एक स्मारक बनाया गया. रोमा जैसे दूसरे ग्रुपों के लिए भी स्मारक बने.
कीव के नरसंहार की 75वीं वर्षगांठ मनाने की शहर ने लंबे समय से तैयारी की है. स्मारक स्थल का जीर्णोद्धार किया गया है और 10 लाख यूरो खर्च कर पार्क और रास्ते बनाए गए हैं. कीव के मेयर विताली क्लिच्को कहते हैं, "हमें याद रखना चाहिए कि यहां क्या हुआ था ताकि अतीत की गलती फिर से न दोहराई जाए."
एमजे/आरपी (डीपीए)