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समाज

यूपी में विरोध प्रदर्शनों के बाद गिरफ्तारियों, वसूली का दौर

समीरात्मज मिश्र
३१ दिसम्बर २०१९

उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ बीते हफ्तों से जारी विरोध प्रदर्शनों का दौर अब थमता जरूर दिख रहा है लेकिन अब कथित तौर पर हिंसक प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया पर राजनीति हो रही है.

Indien Proteste gegen Staatsbürgerschaftsgesetz
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. K. Singh

राज्य में हिंसक विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों को पकड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है तो दूसरी ओर आरोप ये लग रहे हैं कि कुछ खास लोगों को कार्रवाई के नाम पर जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है. विरोध प्रदर्शनों का सबसे ज्यादा असर लखनऊ, कानपुर, मेरठ, मऊ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर और संभल जिलों में रहा. विरोध प्रदर्शनों के दौरान सबसे ज्यादा मौतें भी इन्हीं शहरों में हुई हैं.

गत 19 और 20 दिसंबर को राज्य के कई हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन हुए थे जिनमें कम से कम बीस लोगों की जान चली गई, कई लोग घायल हैं और करोड़ों रुपये की सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ है. राज्य की योगी सरकार ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के अपराध में कुछ लोगों की पहचान करके नोटिस भेजा है और उनसे इस संपत्ति की भरपाई करने का फैसला किया है. हिंसा से प्रभावित आठ ज़िलों के डीएम ने भरपाई के लिए कुल 498 लोगों की पहचान की है और इसकी रिपोर्ट सरकार को भेज दी है.

सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, "हिंसा के दौरान हुए नुकसान की कीमत भी तय की गई है. पुलिस की जीप में आग लगाने पर 7.50 लाख रुपये वसूले जाएंगे. इसके अलवा अन्य सरकारी वाहनों, वायरलेस सेट, हूटर, लाउड स्पीकर तोड़ने पर प्रदर्शनकारियों को भरने के लिए जुर्माने की राशि तय की गई है. प्रदर्शन के दौरान पुलिस बैरिकेडिंग को तोड़ने पर 3.5 लाख रुपये भरने पड़ेंगे.”

लखनऊ में जिन्हें नोटिस जारी किया गया है उनमें ख़ासतौर से रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी, कांग्रेस नेता और अभिनेत्री सदफ़ जफ़र और रिहाई मंच के मोहम्मद शोएब शामिल हैं. ये तीनों लोग 19 दिसंबर को प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा को भड़काने के आरोप में गिरफ़्तार करके जेल भी भेजे जा चुके हैं.

उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिंसा में हुए नुकसान की भरपाई कथित तौर पर बलवाइयों से करने के निर्देश दिए थे, जिसके बाद से ही जिला प्रशासन ने ऐसे लोगों की पहचान करते हुए लिस्ट तैयार की और अब उन्हें नोटिस भेजकर एक हफ़्ते के भीतर जवाब देने को कहा है. यूपी पुलिस के आईजी कानून व्यवस्था प्रवीण कुमार ने बीबीसी को बताया, "अभी नोटिस भेजे गए हैं लेकिन यदि कोई इस दौरान अपनी बेगुनाही का सबूत देता है तो इस पर दोबारा भी विचार किया जा सकता है. पुलिस सिर्फ़ उन्हीं लोगों से नुकसान हुई सरकारी संपत्ति की भरपाई करेगी जो उसके लिए जिम्मेदार हैं या फिर जिन्होंने ऐसा किया होगा.”

पुलिस के मुताबिक, नोटिस का जवाब देने के बाद यदि कोई व्यक्ति खुद को निर्दोष साबित नहीं कर पाता है तो उसे एक तय राशि का भुगतान सरकार को हर्जाने के तौर पर करना होगा. ऐसा न करने वालों पर कानूनी कार्रवाई होगी, जिसमें जेल जाना भी शामिल है.

यूपी में पिछले दिनों हुई हिंसा को लेकर अब तक बारह सौ से ज्यादा लोगों की गिरफ़्तारी हुई है. पुलिस ने पांच हजार से ज्यादा लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की है. हिंसक प्रदर्शनों की एसआईटी से जांच कराने के भी निर्देश दिए गए हैं.

हालांकि प्रदर्शनों के दौरान हिंसा न फैले और अफवाहों को रोका जा सके इसके लिए सरकार ने पूरे राज्य में धारा 144 लगा रखी थी और कई दिनों तक इंटनेट सेवाएं भी बाधित रहीं लेकिन न तो प्रदर्शन रुक सके और न ही हिंसा. हिंसा में मारे गए ज्यादातर मौतें गोली लगने से हुई हैं लेकिन पुलिस ने अब तक एक-दो मामलों के अलावा यह स्वीकार ही नहीं किया है कि पुलिस ने गोली भी चलाई थी. प्रदर्शनों के दौरान और उसके बाद हो रही कार्रवाई के मामले में पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.

ऐसे भी आरोप लग रहे हैं कि तमाम ऐसे लोगों को भी नोटिस दे दिया गया है जिनका प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं था और जो उस दिन वहां थे भी नहीं. हालांकि इस बारे में राज्य के डीजीपी भी कह चुके हैं कि पूरी पड़ताल करके ही किसी को जेल भेजा जाएगा और जुर्माना वसूला जाएगा. बावजूद इसके कई गिरफ्तारियों पर सवाल उठ रहे हैं.

वहीं जिन प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें विभिन्न जिलों में पहचान के लिए चस्पा की गई हैं, वे कानून से बचने के लिए हुलिया बदल रहे हैं. कथित तौर पर वांछित लोगों की सूची में जिन युवाओं की तस्वीरें लगी हैं वे लखनऊ, कानपुर और मेरठ के स्थानीय सैलूनों पर दाढ़ी बनवा रहे हैं, बाल कटा रहे हैं और अपनी पहचान छिपाने की कोशिश में लगे हैं.

लखनऊ के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पुलिस ऐसे लोगों को पकड़ने के लिए सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों को सैलूनों पर तैनात कर रही है और सैलून मालिकों को भी इन पोस्टर्स की कॉपी सौंपी जा रही है ताकि उन्हें पहचाना जा सके. हालांकि ये सभी ऐसे नहीं हैं जो हिंसा में शामिल थे लेकिन कुछ लोग खुद से मिलते-जुलते चेहरों के कारण भी अपना हुलिया बदल रहे हैं.

कानपुर में पोस्टरों में अपनी तस्वीर देखकर दाढ़ी बनवाने वाले एक युवक ने इस बात को स्वीकार भी किया है. युवक का कहना है कि ऐसा उसने परिजनों और दोस्तों के कहने पर किया है, "मैं किसी भी पथराव या हिंसा में शामिल नहीं था. जब हिंसा शुरू हुई तो मैं सिर्फ यह देखने के लिए अपने घर से बाहर निकला कि क्या हो रहा है और अब मैं अपनी तस्वीर भगोड़े और दंगाइयों के रूप में देख रहा हूं. मैंने हुलिया बदलने का फैसला इसीलिए किया है क्योंकि मुझे पता है कि पुलिस मेरी बात को मानेगी नहीं.”

इस बीच, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सीएए और एनआरसी को लेकर अफवाह फैलाने वालों में डर पैदा करने वाली कार्रवाई की जाए. इससे पहले भी उनका एक बयान काफी चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने कहा था, "प्रदर्शन के दौरान हिंसा करने वालों और सरकारी संपत्ति का नुकसान करने वालों से बदला लिया जाएगा.”

पिछले कुछ हफ्तों में जुमे की नमाज के बाद यूपी के बीस से ज्यादा जिलों में हिंसा हुई थी. दोबारा ऐसी स्थितियां न उत्पन्न हों इसके लिए आशंका वाली तमाम जगहों पर पुलिस बल की तैनाती की गई है और अफवाह फैलाने वालों की धरपकड़ की जा रही है. जगह-जगह पुलिस फ्लैग मार्च भी कर रही है और मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों और धर्मगुरुओं से मिलकर शांति बनाए रखने की अपील कर रही है.

इस बीच, इस मामले में लगातार राजनीति भी गरमाती जा रही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जहां बिजनौर में हिंसा के दौरान मारे गए लोगों के घर मिलने गईं वहीं रविवार को वो लखनऊ में जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी और कांग्रेस नेता सदफ जाफर से मिलने गईं. इस दौरान, पुलिस ने उन्हें कथित तौर पर रोकने की कोशिश की तो वो एक स्कूटी पर बैठकर इन लोगों के घर गईं. इस मामले को लेकर काफी राजनीतिक बयानबाजी हो रही है.

समाजवादी पार्टी ने भी सरकार पर आरोप लगाया है कि वो जानबूझकर लोगों का उत्पीड़न कर रही है ताकि लोग डरकर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग न कर पाएं. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने आरोप लगाया है कि विपक्षी दल दंगाइयों और हिंसा करने वालों के समर्थन में खड़े हैं.

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