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यूरोपीय संघ को पुरस्कार या चेतावनी

१० दिसम्बर २०१२

यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार देने पर अवॉर्ड समारोह से पहले आवाज उठने लगी है. विरोध यूरोपीय संघ के भीतर भी है क्योंकि हर कोई यह मानने को तैयार नहीं कि फैसला उचित है.

तस्वीर: Getty Images

भूमध्यसागर के पानी में हर रोज कोई न कोई तमाशा होता है. छोटी छोटी नावें उत्तरी अफ्रीका के शरणार्थियों को लेकर इतालवी द्वीप लाम्पेदूसा या स्पेन के तट पर पहुंचती हैं. बहुत से लोग तो रास्ते में ही मर जाते हैं. पश्चिमी यूरोप के टीवी समाचारों के लिए तो ऐसा लगता है कि डूबी नावों और मरे हुए लोगों की खबरें रोजमर्रा की बात हो गई हैं. इसके बावजूद हजारों लोग यूरोप आकर बेहतर जिंदगी बिताने के मायाजाल से मुक्त नहीं हो रहे. जब से अरब वसंत ने सिर उठाया है तब से तो शरणार्थियों की तादाद और बड़े पैमाने पर उमड़ रही है.

उत्तरी अफ्रीका के बदहवास शरणार्थी एक तरह से यूरोप का इम्तिहान ले रहे हैं जो अपनी खुली सीमाओं के लिए बड़ा विख्यात है. अवैध शरणार्थियों के मामले में अहम मसलों पर यूरोपीय संघ के सदस्य देश कई सालों से अब तक किसी सहमति पर नहीं पहुंच सके हैं. उन्हें सहायता देने या फिर वापस भेजने के मसले पर सदस्यों में भारी असहमति है. यही वजह है कि बहुत से लोग नहीं मानते कि यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार देना पूरी तरह से उचित है. एमनेस्टी इंटरनेशनल जर्मनी के महासचिव वोल्फगांग ग्रेंज भी असहमति रखने वालों में शामिल हैं. वो कहते हैं, "यूरोप की नीति भूमध्यसागर में हो रही लोगों की मौत के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अल्पसंख्यकों से भेदभाव

ग्रेंज मानते हैं कि बदलाव होना चाहिए और यूरोपीय संघ को अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से अपनाना चाहिए. डीडब्ल्य से बातचीत में उन्होंने गीस और तुर्की की सीमा पर हो रही ताजा गतिविधियों के बारे में बात की जहां इस वक्त काफी सख्ती है. उन्होंने कहा कि इसका नतीजा यह होगा कि अपने घर के हालात से तंग आकर शरण के लिए भाग रहे लोग भूमध्यसागर का रास्ता अपनाएंगे और जो जाहिर है कि खतरनाक और अनुचित है.

ग्रेंज ने समझाया, "जब वो भूमध्यसागर में पकड़ लिए जाएंगे तब उन्हें यूरोपीय संघ के कई देशों में शरण हासिल करने की प्रक्रिया से सैद्धांतिक रूप से गुजरना होगा लेकिन वास्तव में अकसर ऐसा होता नहीं है." ज्यादातर शरणार्थी 16-30 साल की उम्र के युवा हैं जो काम की तलाश में हैं. यही वजह है कि यूरोपीय संघ उन्हें शरणार्थी मानने की बजाय प्रवासी कामगार मानता है जो अपने देश में जंग या अभियोजन से जूझ रहे हैं. इस वजह से यूरोपीय संघ के कानूनों के मुताबिक उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाता है. ग्रेंज ने यूरोपीय संघ के भेदभाव को मिटाने वाले दिशा निर्देशों का मामला भी उठाया जो लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय कानून बनने की राह देख रहा है. यूरोपीय संघ ने इन दिशानिर्देशों को पेश कर बड़ा कदम तो उठा लिया लेकिन रोमा जिप्सियों और दूसरे अल्पसंख्यकों भेदभाव का सामना कर रहे हैं. इन लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, घर और नौकरियों के मामले में दूसरे नागरिकों की तरह मौके नहीं मिलते. यहां तक कि कई सदस्य देशों में इनके खिलाफ हिंसा के मामलों को भी ठीक से निबटाया नहीं जाता.

तस्वीर: Andreas Prost/dapd

विरोध का पत्र

विरोध में आवाज उठाने वालों में ग्रेंज अकेले नहीं हैं. तीन नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं ने भी खुल कर कहा है कि यूरोपीय संघ इसका हकदार नहीं है. आर्कबिशप डेसमंड टूटू, उत्तरी आयरलैंड के मैयरीड मेगायर और अर्जेंटीना के अडोल्फो पेरेज एस्कीवेल ने संयुक्त रूप से स्टॉहोम की नोबेल कमेटी को कुछ दिनों पहले इस बारे में विरोध का पत्र लिखा. उन्होने कहा है कि देशों का यह संघ उन मूल्यों की अवहेलना करता है जिन के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है.

यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रसेल्स में भी माहौल बहुत अच्छा नहीं है. यहां तक कि यूरोपीय संसद के सदस्य भी खुद को इस पुरस्कार से दूर ही रख रहे हैं. ग्रीन गुट से जुड़ी फ्रांसिस्का केलर ने इस बारे में ब्लॉग लिखा है, "जॉगिंग से लौटने के तुरंत बाद देखा कि संसद के अध्यक्ष मार्टिन शुल्ज ने प्रेस में बयान जारी किया है. मैंने थोड़ी देर के लिए सोचा कि कहीं आज 1 अप्रैल तो नहीं. आप मजाक तो नहीं कर रहे?" केलर ने इसे "ओबामा प्रभाव" कह कर इस पर चिंता जताई है. उनके मुताबिक यह पुरस्कार संभावित प्रदर्शन के लिए है जो भविष्य में होना है और जो यूरोपीय संघ शायद हासिल कर भी सकता है और नहीं भी.

तस्वीर: ska-keller.de

चेतावनी का संकेत

केलर ने इस मामले में कृषि से जुड़ी नीतियों की भी बात उठाई जो कुछ हद तक पर्यावरण और वातावरण में हो रहे बदलावों के लिए भी जिम्मेदार है. उन्होंने कहा, "आप सचमुच कह सकते हैं कि यूरोपीय संघ अपना नाम डूबो रहा है." इन सारी कमियों के बावजूद आलोचक इस बात पर सहमत हैं कि यूरोपीय संघ दो विश्वयुद्ध से तबाह हुए इस महादेश में शांति की गारंटी देने वाला है. हर कोई इस बात पर सहमत है कि बर्लिन की दीवार गिराने के बाद मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों को एक साथ लाना न सिर्फ ऐतिहासिक कामयाबी थी बल्कि इसने बहुत से देशों में मानवाधिकार की स्थिति को बेहतर करने में काफी मदद की.

यह सारी उपलब्धियां कई साल पहले की हैं. फिलहाल सारा ध्यान यूरो संकट का हल ढूंढने में हैं. आर्थिक करार, देशों को उबारने की कोशिश और इस तरह की गतिविधियों ने मानवाधिकार और पर्यावरण बचाने के कदमों को किनारे कर दिया है. यूरोपीय संघ की सांसद केलर यह उम्मीद जरूर करती हैं कि नोबेल शांति पुरस्कार शायद यूरोपीय संघ का ध्यान शायद इन जरूरी कामों की तरफ ले जाएगा. केलर ने कहा, "यह एक तरह से चेतावनी का संकेत है कि ईयू को आखिरकार मानवाधिकारों, आजादी और शांति के अधिकारों को बढ़ावा देना चाहिए."

रिपोर्टः राल्फ बोजेन/एनआर

संपादनः आभा एम

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