ग्रीस के साथ भारत का संबंध सिकंदर महान के दिनों से है. सिकंदर और पोरस की लड़ाई इतिहास में ही दर्ज नहीं है, इस रिश्ते ने दोनों इलाकों को भी सदा के लिए जोड़ दिया.
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एक करोड़ से कुछ ज्यादा आबादी वाला देश ग्रीस यूं तो यूरोप की कुल आबादी का सिर्फ दो प्रतिशत से कुछ ज्यादा है लेकिन पिछले सालों में आर्थिक मुश्किलों की वजह से वह यूरोप के सबसे अहम मुद्दों में शामिल रहा है. ग्रीस के आर्थिक संकट और 2015 के शरणार्थी संकट ने आज के यूरोप को बहुत हद तक परिभाषित किया है. इन दो मुद्दों के न होने पर आज कई मुद्दों पर विभाजित दिख रहे यूरोप का स्वरूप कुछ और होता.
ग्रीस की राजनीतिक व्यवस्था
यूरोप के दक्षिण पश्चिम सीमा पर स्थित ग्रीस भारत की ही तरह लोकतांत्रिक गणतंत्र है जहां सरकार का मुखिया संसद में बहुमत का नेता प्रधानमंत्री होता है. प्रधानमंत्री के पास देश की कार्यपालिका के ज्यादातर अधिकार हैं. राज्य प्रमुख राष्ट्रपति होता है जो मुख्य रूप से देश का प्रतिनिधित्व करता है. ग्रीस में औपचारिक रूप से मतदान अनिवार्य है लेकिन इसकी हकीकत में जांच नहीं की जाती.
संसद में 300 सीटें हैं. चुनाव 59 चुनाव क्षेत्रों में होता है. 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार है. उनका रजिस्ट्रेशन अपने आप होता है. संसद की 250 सीटों का बंटवारा आनुपातिक पद्धति से होता है. सबसे बड़ी पार्टी को 50 सीटें बोनस में मिलती हैं ताकि बहुमत बनाने में आसानी हो. इस साल अक्टूबर में होने वाले संसदीय चुनावों से मतदान की उम्र घटाकर 17 वर्ष की जा रही है.
यूरोपीय संघ में ग्रीस
यूरोपीय संसद में ग्रीस 21 सदस्य भेजता है. वह 1981 से यूरोपीय संघ का सदस्य है और 2000 से शेंगेन का और 2001 से यूरो जोन का सदस्य है. ग्रीस पुराने यूरोपीय संघ के गरीब देशों में शामिल है. जबकि आयरलैंड, नीदरलैंड और ऑस्ट्रिया जैसे देशों की प्रति व्यक्ति आय यूरोप की औसत आय के करीब 130 प्रतिशत है. ग्रीस की प्रति व्यक्ति आय 73 प्रतिशत है.
ग्रीस का आर्थिक क्षेत्र में सबसे बड़ा हिस्सा थोक और खुदरा कारोबार तथा पर्यटन का है. दूसरे नंबर पर सार्वजनिक प्रशासन है और तीसरे स्थान पर जमीन और मकान की खरीदफरोख्त हैं. ग्रीस से होने वाले निर्यात का 56 प्रतिशत यूरोपीय संघ के दूसरे देशों को जाता है जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा 11 प्रतिशत के साथ इटली का है. ग्रीस द्वारा विदेशों से खरीदे जाने वाले माल का भी 55 हिस्सा यूरोपीय संघ के देशों से ही आता है.
ग्रीस के कर्ज संकट की कहानी
ग्रीस के कर्ज संकट की कहानी
ग्रीस की चरमराई अर्थव्यवस्था और मोटे कर्ज ने उसे हाशिए पर ला खड़ा किया था. अब जाकर ग्रीस बेल आउट पैकेज से आजाद हुआ है और नया सवेरा होने की उम्मीद की जा रही है.
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ग्रीस के आर्थिक संकट की शुरुआत
2009 में ग्रीस के तत्कालीन प्रधानमंत्री जॉर्ज पापान्द्रेउ ने जब बताया कि बजट का घाटा 12 फीसदी हो गया है तो तहलका मच गया. बाद में यह आंकड़ा 15 फीसदी तक पहुंचा. इसके बाद क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने ग्रीस की साख को कम ग्रेड दिए जिससे आर्थिक सहायता मिलना और कम हो गया.
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टैक्स बढ़ाए जाने का विरोध
2010 में यूरोपीय संघ और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष बेल आउट पैकेज देने को राजी हुए. लेकिन इसके बाद ही बजट घाटे को कम करने के लिए कड़े कदम उठाए गए जिसे ग्रीसवासियों ने पसंद नहीं किया. सार्वजनिक क्षेत्र के खर्चों में कटौती और टैक्स बढ़ाए जाने से लोगों में नाराजगी दिखी. 2011 में जनविरोध व्यापक स्तर पर फैला और कई वर्षों तक जारी रहा.
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बेल आउट पैकेज बना चुनावी मुद्दा
2012 में बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी के बाद ग्रीसवासियों ने ऐसे दलों को वोट दिया जो बेल आउट पैकेज का विरोध कर रही थीं. नतीजा पहले चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला. दूसरी बार हुए चुनाव में सेंटर-राइट पार्टी न्यू डेमोक्रेसी को वोट मिले जो ईयू और आईएमएफ के बेल आउट पैकेज के समर्थन में थी.
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बेल आउट पैकेज को नकारा
2015 में ग्रीसवासियों ने वामपंथी सिरिजा पार्टी को वोट दिया जिसके बाद यूरोपीय संघ से ठन गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री अलेक्सिस सिप्रास ने जनमत संग्रह कराने का फैसला किया जिसमें लोगों से बेल आउट पैकेज के मिलने या न मिलने पर वोटिंग कराई गई. 61 फीसदी लोगों ने बेल आउट पैकेज को खारिज कर दिया.
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फिर मिला नया बेल आउट
बेल आउट पर हुए जनमत संग्रह के बाद यूरोपीय संघ के नियमों को जनता ने खारिज कर दिया. तत्कालीन वित्त मंत्री यानिस वारूफाकिस की कुर्सी छिनी और उसके बाद सिप्रास सरकार ने नए सिरे से समझौतों पर दस्तखत किए. इससे ग्रीस ने खुद को यूरोजोन से बाहर निकलने से बचा लिया और 80.6 करोड़ यूरो का नया बेल आउट प्रोग्राम शुरू हुआ.
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कर्ज चुकाने की ओर बढ़े
2015 में बने नए बेल आउट प्रोग्राम के तहत ग्रीस ने नए आर्थिक सुधारों को अपनाया जिसके बाद निजीकरण की शुरुआत हुई. दो वर्षों बाद आईएमएफ ने ब्रसेल्स को बेल आउट प्रोग्राम में कुछ ढिलाई बरतने को कहा. सिप्राम सरकार ने टैक्स और पेंशन योजनाओं का विस्तार शुरू किया जिससे ग्रीस अपने कर्जों को चुका सके.
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खत्म हुआ कर्ज का दौर
आखिरकार अगस्त 2018 में ग्रीस बेल आउट प्रोग्राम से आजाद हो गया. यूरोपीय संघ के अधिकारियों ने इसे नए अध्याय की शुरुआत कहा और आगे भी ग्रीस के लिए और उसके साथ काम करते रहने का आश्वासन दिया. लेकिन बेरोजगारी दर और गरीबी को देखते हुए ग्रीस के भविष्य पर सवालिया निशान भी लगा हुआ है.
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ग्रीस के राजनीतिक दल
वामपंथी मोर्चा सिरीजा ग्रीस की प्रमुख पार्टी है जिसके नेतृत्व में इस समय देश की सरकार चल रही है. संसद में उसके 145 सदस्य हैं और पार्टी के नेता अलेक्सिस सिप्रास देश के प्रधानमंत्री हैं. दूसरे नंबर पर लिबरल कंजरवेटिव न्यू डेमोक्रैसी पार्टी है जो पहले सरकार में रही है लेकिन इस समय विपक्ष में है. उसके संसद में 78 सदस्य हैं.
इसके अलावा ग्रीस की प्रमुख पार्टियों में सोशलिस्ट पासोक पार्टी, ग्रीन पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी और अल्ट्रा राष्ट्रवादी गोल्डन डाउन पार्टी है. कभी सत्ता में रही मध्यमार्गी पासोक पार्टी ने जनाता का भरोसा खो दिया है और इस समय मध्य वाम मोर्चा का नेतृत्व कर रही है.
भारत और ग्रीस
अलेक्जैंडर या सिकंदर महान के भारत आने तक ग्रीस के लोग भारत का मतलब सिंधु नदी के इलाके को मानते थे. बाद में पूरा उत्तर भारत इसमें शामिल हो गया. भारत के लोग ग्रीक लोगों को यवन कहते थे और भारतीयों और यवनों के संबंध पर बहुत सारी कथा कहानियां मौजूद हैं. पाणिनी ने यवनों का जिक्र किया है, तो चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी उनकी चर्चा है. मेगास्थनीज ने अपनी किताब इंडिका में भारत के बारे में लिखा था.
आधुनिक काल में भारत के आजाद होने के तीन साल बाद दोनों देशों ने 1950 में कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों देश निकट सहयोग करते रहे हैं. 1985 में दोनों देशों ने परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए साझा पहल की थी. भारत और ग्रीस का पारस्परिक कारोबार करीब 50 करोड़ डॉलर का है.
एक नाम के इलाके दो देशों में और उनमें से एक का आजाद होना, विवाद की जड़ में है. ग्रीस और मेसेडोनिया दोनों ही के लिए नाम का विवाद राष्ट्रीय सम्मान से जुड़ा है. मेसेडोनिया के मतदाता नाम बदलने पर संशय में हैं.
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मेसेडोनिया गणतंत्र
सालों से ग्रीस और पूर्व युगोस्लाव रिपब्लिक ऑफ मेसेडोनिया नाम पर झगड़ते रहे हैं. जब युगोस्लाविया टूटा को उसके मेसेडोनिया प्रांत ने खुद को रिपब्लिक ऑफ मेसेडोनिया के नाम से आजाद घोषित कर दिया. ग्रीस ने इसका विरोध किया क्योंकि उसे उत्तरी प्रांत का नाम भी मेसेडोनिया है.
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योजनाओं को धक्का
अगर मतदाताओं ने मेसेडोनिया का नाम बदलकर उत्तरी मेसेडोनिया करने के प्रस्ताव की पुष्टि कर दी होती तो देश के नाटो और यूरोपीय संघ में शामिल होने का रास्ता साफ हो जाता. ग्रीस का एक इलाका भी मेसेडोनिया है और वह मेसेडोनिया गणतंत्र के ईयू और नाटो सदस्यता का विरोध कर रहा है.
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जातीय झगड़े
सालों से मेसेडोनिया में जातीय विवाद का माहौल है जहां आबादी का बड़ा हिस्सा अल्बानिया और तुर्क मूल के अल्पसंख्यकों का है. नाम के बदलाव के साथ ग्रीस के साथ लंबे समय से चले आ रहे विवाद का अंत हो जाता. लेकिन मतदाताओं को आकर्षित करने में हुई विफलता के कारण ये मौका गंवा दिया गया.
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किसका अतीत
मेसेडोनिया की पिछली सरकार ने राजधानी स्कोप्ये में मुख्य चौराहे को सजाने में इतिहास को महत्व दिया है. उसका दावा था कि मेसेडोनिया के लोग विजय पताका लहराते हुए भारत तक जाने वाले सिकंदर महान वंशज हैं. ग्रीस ने अपने पड़ोसी पर ग्रीस का इतिहास और पहचान चुराने का आरोप लगाया.
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दोनों हिस्सों में रोष
विवाद खत्म करने के लिए नाम में बदलाव का प्रस्ताव है. लेकिन इस प्रस्ताव ने दोनों ही देशों के लोगों में रोष पैदा किया है. मेसेडोनिया के राष्ट्रवादी इसे देश की अस्मिता पर हमला बता रहे हैं. जनमत संग्रह में अत्यंत कम भागीदारी ने समस्या का अंत नहीं होने दिया.
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मेसेडोनिया हमारा नाम
विवाद पर हुए प्रदर्शनों का नेतृत्व मेसेडोनिया और ग्रीस दोनों में ही वहां के धुर दक्षिणपंथी संगठनों ने किया है. मेसेडोनिया के धुर दक्षिणपंथी संगठन MHRMI ने ग्रीस की सीमा पर स्थित शहर गेवगेलिजा की सड़कों पर नाम का दावा करते हुए बड़े बड़े बिलबोर्ड लगाए.
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अतीत का महिमामंडन
मेसेडोनिया का नया संग्रहालय, स्कोप्ये 2014 का हिस्सा था जिसका मकसद राजधानी के ऐतिहासिक चरित्र पर जोर देना है. निकोला ग्रुएव्स्की की पॉपुलिस्ट सरकार ने स्कोप्ये 2014 के तहत राजधानी स्कोप्ये के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों ऐतिहासिक दिखने वाली इमारतें बनाई.
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संयुक्त प्रदर्शन
मेसेडोनिया विवाद को सुलझाने के लिए हुई वार्ताओं के पहले, उसके दौरान और उसके बाद ग्रीस में भी व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. आम तौर पर उनका नेतृत्व धुर दक्षिणपंथी पार्टियों ने किया, लेकिन विरोध में कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के लोग भी शामिल रहे.
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भड़का आक्रोश
मेसेडोनिया में जनमत संग्रह के लिए हुए मतदान के कुछ हफ्ते पहले 8 सितंबर को धुर दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों की ग्रीस शहर थेसालोनिकी में पुलिस के साथ झड़प हुई. वे ग्रीस सरकार और मेसेडोनिया की सरकार के बीच हुए समझौते का विरोध कर रहे थे.