दक्षिणी इटली में लंबे कद और चौड़े कंधे वाला घाना मूल का बाह, एक टूटी खिड़की से बाहर झांक रहा है. बाहर मक्के के खेतों को लहरा रही बेहद सर्द हवा से उसके चेहरे पर उमड़ रही परेशानी को साफ पढ़ा जा सकता है.
इतालवी प्रायद्वीप के दक्षिण पूर्वी सिरे पर फैला पुलिआ का ग्रामीण इलाका जैतून के विशाल पेड़ों के साथ ही अंगूर और टमाटर के बागानों के लिए भी जाना जाता है. यह इलाका सूखे पत्थर की चट्टानों और समुद्रतट से घिरा हुआ है.
24 साल के बाह और उसी की तरह के लाखों देश विहीन प्रवासियों ने कभी नहीं सोचा होगा कि 21वीं सदी के आधुनिक यूरोप में गर्गानो की इन पहाड़ियों के भीतर एक बेहद बदसूरत, रहस्यमयी और हिंसक दुनिया भी बसी है.
गुलामों की तरह बर्ताव
इटली के मजदूर संगठनों द्वारा की गई एक जांच ने इस सच को उजागर किया है. जरूरतमंद प्रवासियों की एक पूरी फौज को गैरकानूनी ढंग से काम करने वाले गिरोहों ने ग्रामीण इलाकों में टमाटर की फसल तोड़ने के काम पर लगा रखा है. इन प्रवासियों के साथ गुलामों की तरह बर्ताव किया जाता है. इसमें अधिकतर उत्तरी अफ्रीकी और पूर्वी यूरोप से आए प्रवासी शामिल हैं.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकारों के हनन के लिए एक बार फिर कतर की आलोचना की है. फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी करने जा रहे कतर में विदेशी मजदूरों की दयनीय हालत है.
तस्वीर: picture-alliance/augenklick/firo Sportphotoअंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संघ (फीफा) ने विवादों के बावजूद कतर को 2022 के वर्ल्ड कप की मेजबानी सौंपी. मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि कतर में स्टेडियम और होटल आदि बनाने पहुंचे विदेशी मजदूरों की बुरी हालत है.
तस्वीर: picture-alliance/augenklick/firo Sportphotoएमनेस्टी इंटरनेशनल भी कतर पर विदेशी मजदूरों के शोषण का आरोप लगा चुका है. वे अमानवीय हालत में काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Gebertएमनेस्टी के मुताबिक वर्ल्ड कप के लिए निर्माण कार्य के दौरान अब तक कतर में सैकड़ों विदेशी मजदूरों की मौत हो चुकी है.
तस्वीर: picture-alliance/HJS-Sportfotosमानवाधिकार संगठनों के मुताबिक कतर ने विदेशी मजदूरों की हालत में सुधार का वादा किया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Foto: Amnesty Internationalवर्ल्ड कप के लिए व्यापक स्तर पर निर्माण कार्य चल रहा है. उनमें काम करने वाले विदेशी मजदूरों को इस तरह के कमरों में रखा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Foto: Amnesty Internationalस्पॉन्सर कानून के तहत मालिक की अनुमति के बाद ही विदेशी मजदूर नौकरी छोड़ या बदल सकते हैं. कई मालिक मजदूरों का पासपोर्ट रख लेते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B.v. Jutrczenkaब्रिटेन के "द गार्डियन" अखबार के मुताबिक कतर की कंपनियां खास तौर नेपाली मजदूरों का शोषण कर रही हैं. अखबार ने इसे "आधुनिक दौर की गुलामी" करार दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Foto: Amnesty Internationalअपना घर और देश छोड़कर पैसा कमाने कतर पहुंचे कई मजदूरों के मुताबिक उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि हालात ऐसे होंगे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamaniकई मजदूरों की निर्माण के दौरान हुए हादसों में मौत हो गई. कई असह्य गर्मी और बीमारियों से मारे गए.
तस्वीर: picture-alliance/Pressefoto Markus Ulmerकतर से किसी तरह बाहर निकले कुछ मजदूरों के मुताबिक उनका पासपोर्ट जमा रखा गया. उन्हें कई महीनों की तनख्वाह नहीं दी गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamaniकुछ मजदूरों के मुताबिक काम करने की जगह और रहने के लिए बनाए गए छोटे कमचलाऊ कमरों में पीने के पानी की भी किल्लत होती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamaniमजदूरों की एक बस्ती में कुछ ही टॉयलेट हैं, जिनकी साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Naamani
यूरोप के मौजूदा प्रवासी संकट के बाद से प्रवासी मजदूरों के शोषण के बारे में चिंताएं बढ़ी हैं. उसी दौरान यह बात सामने निकलकर आई है.
केरिग्नोला इलाके में बसी घाना बस्ती में अपने सैकड़ों साथियों के साथ रह रहे बाह कहते हैं, ''उन्होंने कहा वहां इटली में काम है. मैं यहां काम करने आया. अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने. पर यहां इटली में लोग जूझ रहे हैं. वे ढेर सारा काम करते हैं पर उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता. यहां ना पानी है, ना ऐसा कोई साफ इलाका जहां रहा जा सके. ना ही कोई शौचालय है.''
राजधानी बारी और फोगिआ शहर के बीच की तलहटी में फैली हुई बस्तियों में घाना, नाइजीरिया, और सहारा देशों के साथ ही इराक और सीरिया से आए प्रवासी युवाओं का झुंड रह रहा है.
शोषण के आसान शिकार
इनमें से कई प्रवासियों ने इटली के अधिकारियों के पास शरण के लिए प्रार्थनापत्र दाखिल किए हैं. लेकिन उन पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं होने के चलते इन लोगों के पास इटली में काम करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. ऐसे में ये लोग शोषण के आसान शिकार हो रहे हैं.
50 किलोमीटर दूर ऐसी ही सबसे बड़ी बस्ती 'इल घेटो रिग्नानो गार्गानीचे' है. यहां गत्ते और लकड़ी की बनी झोपड़ियां हैं. गर्मियों में टमाटर तोड़ने के मौसम में जब तापमान तकरीबन 40 डिग्री हो जाता है, हजारों मजदूर इन्हीं झोपड़ियों में रहने को मजबूर होते हैं. यहां ना ही पानी है और ना ही शौचालय की कोई व्यवस्था. और इन मजदूरों पर नजर बनाए रखने के लिए गिरोह के सदस्य तैनात रहते हैं जिन्हें कापोराली कहा जाता है.
इटली की अर्थव्यवस्था में कृषि को सबसे अधिक संगठित अपराध वाले क्षेत्र के बतौर जाना जाता है. खेतों से लेकर सुपरमार्केट के बीच की सप्लाई चेन में इसका असर हर जगह होता है और बेहद बड़ा टमाटर उद्योग भी इससे अछूता नहीं है.
शोषण की उपज लाल सोना
हर साल 12 जून को बाल श्रम विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन दुनिया भर में अब भी करीब 17 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. 1999 में विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) के सदस्य देशों ने एक संधि कर शपथ ली कि 18 साल के कम उम्र के बच्चों को मजदूर और यौनकर्मी नहीं बनने दिया जाएगा.
तस्वीर: imago/Michael Westermannदक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में बाल मजदूर. इस फैक्ट्री में तौलिये बनाए जाते हैं. मजदूरी करने वाला यह बच्चा करोड़ों बाल मजदूरों में एक है. आईएलओ के मुताबिक एशिया में ही 7.80 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. पांच से 17 साल की उम्र की युवा आबादी में से करीब 10 फीसदी से नियमित काम कराया जाता है.
तस्वीर: imago/imagebrokerपढ़ाई लिखाई या खेल कूद के बजाए ये बच्चे ईंट तैयार कर रहे हैं. भारत में मां-बाप की गरीबी कई बच्चों को मजदूरी में धकेल देती है. भारत के एक ईंट भट्टे में काम करने वाली इस बच्ची को हर दिन 10 घंटे काम करना पड़ता है, बदले में मिलते हैं 60 से 70 रुपये.
तस्वीर: imago/Eastnewsभारत की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1.26 करोड़ बाल मजदूर हैं. ये सड़कों पर समान बेचते हैं, सफाई करते हैं, या फिर होटलों, फैक्ट्रियों और खेतों में काम करते हैं. व्यस्क मजदूरों की तुलना में बाल मजदूर को एक तिहाई मजदूरी मिलती है.
तस्वीर: imago/imagebrokerआईएलओ की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं. कई रात भर काम करते हैं. कई बच्चों को श्रमिक अधिकार भी नहीं मिलते हैं. उनकी हालत गुलामों जैसी है.
तस्वीर: AFP/Getty Imagesबांग्लादेश में बाल मजदूरी काफी प्रचलित है. यूनिसेफ के मुताबिक देश में करीब 50 लाख बच्चे टेक्सटाइल उद्योग में मजदूरी कर रहे हैं. टेक्सटाइल उद्योग बांग्लादेश का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट सेक्टर है. यहां बनने वाले सस्ते कपड़े अमीर देशों की दुकानों में पहुंचते हैं.
तस्वीर: imago/Michael Westermannकंबोडिया में प्राइमरी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ 60 फीसदी है. स्कूल न जाने वाले ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम करते हैं. हजारों बच्चे ऐसे भी है जो सड़कों पर अकेले रहते है. राजधानी नोम पेन्ह की ये बच्ची सामान घर तक पहुंचाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaहालांकि दुनिया भर में सन 2000 के बाद बाल मजदूरों की संख्या गिरी है लेकिन एशिया के ज्यादातर देशों में हालात नहीं सुधरे हैं. बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और म्यांमार में अब भी ज्यादा पहल नहीं हो रही.
तस्वीर: AFP/Getty Images
कंपनियों, ट्रेड यूनियन और एनजीओ के साझी पहल पर बने एथिकल ट्रेडिंग इनिशिएटिव (ईटीआई) की ओर से जारी एक रिपोर्ट बताती है कि भारी तादात में मौसमी कामगार मजदूर बेहद गरीबी में पानी, शौचालय, रहने और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में जिंदगी बिता रहे हैं.
इस रिपोर्ट पर इटली के कृषि मंत्रालय का पक्ष जानने के लिए किए गए कई फोन कॉल्स का कोई जवाब नहीं मिला.
इटली दुनियाभर में प्रोसेस्ड टमाटर उत्पादों के उत्पादन में तीसरे पायदान पर है. 2014 में जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और रूस जैसे देशों को यहां से 50 लाख टन टमाटर उत्पाद निर्यात हुआ जिसकी कीमत तकरीबन 1.5 अरब यूरो है. लेकिन इटली के कृषि उद्योग का यह 'लाल सोना' प्रवासी मजदूरों के शोषण से उपजाया जा रहा है.
लूट का गणित
2011 में प्रवासी मजदूरों के शोषण के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले इवान सैग्नेट कहते हैं कि कापोराली एक दिन में हजारों यूरो कमा लेते हैं जबकि मजदूरों को 20 यूरो भी नहीं मिलते, ''वे मजदूरों को खाना और पानी लाने की इजाजत भी नहीं देते. वे मजदूरों को बस्ती से खेतों में आने जाने के लिए 5 यूरो हर रोज का किराया वसूलते हैं. वे वहां 3.50 यूरो में खाना बेचते हैं और 1.50 यूरो में पानी.''
सैग्नेट आगे बताते हैं, ''वे मजदूरों के पास से उनके सारे कागज अपने पास जब्त कर लेते हैं. इससे मजदूर भाग भी नहीं सकता और वे उसे एक तरह का गुलाम बना लेते हैं. वे उनसे बस्ती में रहने और यहां तक कि सूखी लकड़ी को इस्तेमाल करने का भी किराया वसूलते हैं.''
सैग्नेट इटली के ट्यूरिन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एक छात्रवृत्ति पर पढ़ने आए थे. अपनी एक परीक्षा के छूट जाने के चलते उनकी छात्रवृत्ति खत्म हो गई. इसके बाद उन्हें अपने लिए कमाई की व्यवस्था करनी पड़ी. इसी दौरान वे 2011 में लेसे शहर के पास नार्डो के टमाटर के खेतों में मजदूरी करने आए, तो उन्हें मजदूरों के इस शोषण का पता चला. वे बताते हैं कि मजदूरों को सुबह 3 बजे से शाम 6 बजे तक काम करना होता था और इस दौरान तापमान 40 डिग्री पार कर जाता था. 500 लोग महज 200 लोगों के लिए बने टैंटों में बिना स्वास्थ सुविधाओं के बसर कर रहे थे.
सैग्नेट का आंदोलन
सस्ते कारीगर, घंटों मेहनत और कम भत्ते के रास्ते गुजर कर आप तक पहुंचते हैं, आपके पसंदीदा ब्रांड वाले कपड़े. बांग्लादेश में हुई कई फैक्ट्री दुर्घटनाओं ने सारी दुनिया का ध्यान इन कारीगरों की तरफ खींचा था.
तस्वीर: DW/M. Mohseniज्यादातर कपड़ों की बनवाई विकासशील देशों के सस्ते कारीगरों के हाथों होती है. बड़ी कंपनियां अक्सर दक्षिण एशियाई और लातिन अमेरिकी देशों से कपड़ों का निर्माण करवाती हैं, जहां भत्ता कम देना पड़ता है. फिर माल सस्ता होने के आगे मजदूरों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा पर किसी का ध्यान कहां जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaऔद्योगिक उत्पादन की शुरुआत 18वीं सदी में औद्योगिक क्रांति के समय ब्रिटेन में हुई थी. लंदन और मैनचेस्टर के इलाकों में 1859 तक 100 से ज्यादा सूती मिलें आ चुकी थीं. बाल श्रम, घंटों काम और कम मजदूरी के अलावा मजदूरों की गिरती सेहत आम बात हो गई थी.
तस्वीर: gemeinfreiमजदूरों के साथ ज्यादती सिर्फ ब्रिटेन तक ही सीमित नहीं रही. 1911 में न्यूयॉर्क की एक कपड़ा फैक्ट्री में आग लगने से 146 मजदूर मारे गए. फैक्ट्री के निकास द्वार मालिकों ने बंद कर रखे थे. इस फैक्ट्री में काम करने वाली ज्यादातर युवा महिलाएं थीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaज्यादा से ज्यादा कारोबार की होड़ में देशों के बीच सस्ते उत्पादन की दौड़ शुरू हो गई. 1970 में निर्माण का ज्यादातर काम अमेरिका और एशिया से चीन और लातिन अमेरिका पहुंच गया. चीन में फिलहाल भत्ता दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले ज्यादा है जिसके चलते फैक्ट्री मालिकों ने चीन के पड़ोसी देशों की तरफ रुख किया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaदक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में सुमंगली की लड़कियों के लिए कपड़े के कारखाने में काम करना कोई नई बात नहीं. तमिल भाषा में सुमंगली का मतलब होता है वह वधू जो घर में समृद्धि लाती है. वहां करीब एक लाख बीस हजार लड़कियां इन कारखानों में चार साल की ट्रेनिंग के लिए भेजी जाती हैं जिसमें मिलने वाले पैसे उनके दहेज में काम आते हैं. उन्हें 12 घंटे काम करने के बदले करीब 50 रुपये मिलते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Godongकंबोडिया में तीन लाख से ज्यादा महिलाएं बदतर हालत में कपड़ा फैक्ट्रियों में काम कर रही हैं. वे महीने में 4000 रुपये कमाती हैं. कई मजदूरों ने भत्ता बढ़वाने के लिए विरोध प्रदर्शन किए तो उन पर गोली चला दी गई. इसमें कई लोगों की जान गई. बांग्लादेश में करीब 40 लाख लोगों का जीवन कपड़ा उद्योग पर निर्भर है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं.
तस्वीर: Reutersइन मजदूरों की दर्दनाक कहानी की तरफ दुनिया का ध्यान हाल में तब गया जब बांग्लादेश की एक कपड़ा फैक्ट्री के ढह जाने से 1100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. इस त्रासदी के बाद जर्मनी की किक और मेट्रो जैसी 80 बड़ी कंपनियों ने फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा के लिए करार किया.
तस्वीर: Reutersदुकानों के कांच में चमकते दमकते कपड़े देख कर तो हमें इनके बनने की कहानी का पता नहीं चलता. विकासशील और गरीब देशों में कम मजदूरी पर काम करवाने वाले देशों में जर्मनी सहित कई देश शामिल हैं.
तस्वीर: DW/M. Mohseni
जब खेतों के मालिक ने टमाटर तोड़ने का तरीका बदला तो मजदूरों के लिए काम करना और कठिन हो गया. लेकिन इसके लिए उनका पैसा नहीं बढ़ाया गया. इसके खिलाफ सैग्नेट ने बगावत कर दी और सारे मजदूर उनके नेतृत्व में हड़ताल पर चले गए.
इस हड़ताल ने इटली के मीडिया का ध्यान खींचा और पुलिआ में गैरकानूनी ढंग से हो रहे मजदूरों का शोषण करने वाले 16 गिरोहों के मुखिया गिरफ्तार किए गए. तब से इटली की संसद ने इसे अपराध घोषित कर दिया है लेकिन इसके बावजूद यह कारोबार जारी है. इसके खिलाफ अभियान चलाने वालों का कहना है कि पुलिस और प्रशासन इसमें कोई दखल नहीं देता.
सेग्नेट ने अपनी डिग्री पूरी करने के बाद दो किताबें लिखीं हैं और अब वे इटली के लेबर यूनियन के जनरल परिसंघ सीजीआईएल के साथ काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि इटली के उत्पादन तंत्र में सुधार के लिए लंबी लड़ाई की जरूरत है.
आरजे/आईबी (थॉम्सन रॉयटर्स फाउंडेशन)