यूरोप पहुंचने की कठिनाइयों से जूझ रहे शरणार्थी अब यूरोपीय यूनियन के बाहर गरीब देशों में भी शरण तलाश रहे हैं. इब्राहिम इशाक और फहीम मुदेई ऐसे ही शरणार्थी हैं जो यूरोप के देशों के बजाय सर्बिया में शरण पाना चाहते हैं.
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इब्राहिम इशाक ने सर्बिया के बारे में सिर्फ एक बार उस समय सुना था जब 2010 वर्ल्ड कप के दौरान सर्बिया की फुटबॉल टीम ने उनके देश घाना की टीम के खिलाफ मैच खेला था. सर्बिया पेनाल्टी में हुए फैसले के बाद मैच हार गया था. इसके बाद इशाक फिर से किसी दूसरे महाद्वीप में बसे इस अंजान देश के बारे में सब कुछ भूल गए.
अब 6 साल बाद इशाक इस अंजान देश सर्बिया को अपना नया घर बनाना चाहते हैं. इशाक एक खुशहाल जिंदगी की तलाश में दक्षिणी अफ्रीका में बसे अपने घर को तीन साल पहले ही छोड़ आए हैं. ये तलाश आखिर में उन्हें बाल्कान देश में ले आई जो कि यूरोप में पैदा हुए शरणार्थी संकट का सबसे बड़ा केंद्र है.
लाखों शरणार्थियों ने पश्चिमी यूरोप पहुंचने की उम्मीद में जिस रास्ते को चुना है, सर्बिया भी इसी माइग्रेंट कोरिडोर में पड़ता है. अधिकतर शरण तलाश रहे लोग तुरंत ही जर्मनी, ऑस्ट्रिया, और स्वीडन जैसे अमीर देशों की ओर रूख कर रहे हैं. लेकिन इशाक उन आप्रवासियों में से हैं जिन्होंने अपनी किस्मत यूरोपीय संघ से बाहर सर्बिया जैसे औसतन गरीब देश में आजमाने का रास्ता चुना है.
19 साल के इशाक मुस्कुराते हुए कहते हैं, ''सर्बिया क्या है ये मुझे कभी नहीं मालूम था. मुझे ये भी नहीं मालूम था कि सर्बिया कहां है.'' वे कहते हैं, ''लेकिन यहां के लोगों का बर्ताव मेरे लिए अच्छा है. मैं यहीं रहना चाहता हूं और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करना चाहता हूं. देखिए आगे क्या होता है.''
बर्लिनाले में शरणार्थी
बर्लिनाले के आयोजन में समसामयिक सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाए जाने का चलन हमेशा से रहा है. "खुशी का हक" के मोटो वाले बर्लिनाले के 66वें संस्करण में फिल्मों से लेकर कला प्रदर्शनियों तक में शरणार्थी संकट छाया रहा.
तस्वीर: DW/R. Rai
'फायर एट सी'
बर्लिनाले का सबसे बड़ा पुरस्कार गोल्डन बियर जीतने वाली इतावली फिल्मकार जानफ्रांको रौसी की यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म "फुओकुओमारे" इटली के लांपेदूजा द्वीप पर फंसे लोगों और उनकी मुश्किलों का सच्चा लेखाजोखा है. अफ्रीका मध्यपूर्व से यूरोप पहुंचने की कोशिश करने वाले अनगिनत लोग यही रास्ता तय करते हैं.
तस्वीर: Berlinale
कला की शक्ति
बर्लिनाले के दौरान चीनी मूल के कलाकार और राजनीतिक एक्टिविस्ट आई वेईवेई ने ग्रीक द्वीप लास्बोस से लाए 14,000 इस्तेमाल किए हुए लाइफ जैकेटों से बनाया अपना आर्ट इंस्टॉलेशन बर्लिन कॉन्सर्ट हॉल में प्रदर्शित किया.
तस्वीर: DW/R. Rai
आई वेईवेई की समसामयिक कला
वेईवेई 66वें बर्लिनाले के चैरिटी इवेंट 'सिनेमा फॉर पीस' की जूरी के अध्यक्ष भी हैं. वे इस समय बर्लिन के आर्ट कॉलेज में गेस्ट प्रोफेसर हैं. साल 2011 में चीन में "आर्थिक अपराधों" के नाम पर गिरफ्तार कर हिरासत में रखे गए और बाद में छोड़ दिए गए.
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लाइफ जैकेट और शरणार्थी जीवन
अपनी आर्ट इंस्टॉलेशन बनाने के लिए वेईवेई ने जिन लाइफ जैकेटों का इस्तेमाल किया, मानव तस्कर इन्हें जरूरतमंदों को बेहद ऊंचे दामों पर बेचते हैं. लेकिन यह समुद्र में डूबने की स्थिति में किसी काम के नहीं साबित होते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S.Balaskas
उकसाऊ या मार्मिक?
बीते दिनों वेईवेई ने भारतीय पत्रिका इंडिया टुडे के लिए सीरियाई बच्चे आयलान कुर्दी की ही तरह लेसबोस के समुद्र तट पर लेट कर अपनी तस्वीर ली थी. इसे कुछ ने शरणार्थी संकट की मार्मिक तस्वीर तो कुछ ने केवल चर्चा में बने रहने की कोशिश बताया.
इस साल केवल बर्लिन में ही करीब 80 हजार रेफ्यूजी पहुंचे हैं. जर्मन राजधानी में आयोजित होने वाले फिल्म महोत्सव में शरणार्थियों के स्वागत का संदेश जोर शोर से दिया जाना बहुत मायने रखता है. जर्मनी की राजनीति में शरणार्थी संकट का मुद्दा निर्णायक साबित हो रहा है.
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मेक फूड, नॉट वॉर
सीरियाई शरणार्थी मातिनी और इतावली शेफ रोबेर्तो पेत्सा के खाने का अनूठा मेल यही संदेश दे रहा है. अंतरराष्ट्रीय पाक कला को फूड स्ट्रीट पर आम जनता के बीच लाकर भी शरणार्थियों के जीवन के कुछ दूसरे पहलुओं जैसे रोजगार की संभावना पर रोशनी डालने की कोशिश.
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मनोरंजन ही नहीं मदद भी
बर्लिनाले के विभिन्न आयोजन स्थलों में खास काउंटर और डोनेशन बॉक्स भी रखे गए हैं. इसका मकसद शरणार्थियों के लिए सहायता राशि जमा करना है.
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चांसलर के साथ पावर कपल क्लूनी
बर्लिनाले में शामिल हुए हॉलीवुड अभिनेता जॉर्ज क्लूनी और उनकी पत्नी एवं प्रख्यात मानवाधिकार अधिवक्ता अमाल क्लूनी जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल से मिले. चांसलर से मिलकर उन्होंने ऐतिहासिक यूरोपीय शरणार्थी संकट से निबटने में हर संभव मदद का इरादा जताया.
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हालांकि इशाक की तरह के मामले बेहद कम हैं लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोपीय संघ के देश जैसे-जैसे शरणार्थियों के प्रवेश के नियमों को सख्त बनाएंगे तो इस तरह के मामलों में भी काफी बढ़ोत्तरी हो सकती है. पहले ही सैकड़ों शरणार्थियों को सर्बिया से पहले मैसेडोनिया और फिर ग्रीस की ओर वापस भेजा जा चुका है. इनमें से कई गुस्साए हुए और निराश लोग तस्करों की मदद से वापस आने की कोशिश कर सकते हैं.
उत्तरी यूरोप ने पहले ही प्रवेश पर प्रतिबंध लगाते हुए हजारों फंसे हुए लोगों को बाल्कन में सीमा पर भटकने के लिए छोड़ दिया है. यहां से वो किसी तरह यूरोप में दाखिल होने की राह तलाश रहे हैं. शरण तलाश रहे लोगों को मुफ्त में कानूनी मदद कर रहे असाइलम प्रोटेक्शन सेंटर के रेडोस ड्जूरोविक कहते हैं कि विकल्पों के सीमित होते जाने के चलते प्रवासी वापस जाने के बजाय बाल्कान में रहना ही ज्यादा पसंद करेंगे. वे कहते हैं, ''वे लोग जिन्हें ये लगता है कि उन्हें पश्चिम में शरण नहीं मिल पाएगी वे अक्सर सर्बिया की ओर रुख करते हैं.''
ड्जूरोविक कहते हैं, "2015 में बाल्कान देशों में आए 6 लाख आप्रवासियों के हिसाब से हर साल औसतन 150 में से 100 लोग सर्बिया में शरण के लिए औपचारिक तौर पर अनुरोध करते हैं." वे शरणार्थियों के लिए सर्बिया की लंबी और जटिल प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहते हैं, "यह लोगों को आकर्षित करने के बजाय दूर रखने के लिए बनाई गई है." 1990 में हुए युद्ध के बाद से सर्बिया अब भी भारी बेरोजगारी और अन्य समस्याओं से जूझ रहा है. ड्जूरोविक कहते हैं ''शरणार्थियों के लिहाज से सर्बिया में असल अर्थों में अभी शुरूआत ही हुई है. कुछ ही शरणार्थी अब तक इन सारी चुनौतियों को पार कर सके हैं.''
इस बीच सर्बिया की पुलिस का कहना है कि इस साल अब तक 24 शरणार्थियों के अनुरोध आ चुके हैं. और ये लगातार जारी है. इसी तरह के आंकड़े क्रोएशिया और स्लोवानिया से भी आ रहे हैं. लेकिन अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इन आंकड़ों के बढ़ने की उम्मीद नहीं थी.
इधर सर्बिया में शरण दिए जाने को लेकर किए गए अपने अनुरोध पर फैसले का इंतजार कर रहे इशाक अभी सर्बिया की राजधानी बेलग्रैड के बाहरी इलाके में एक खस्ताहाल शरणार्थी शिविर में रह रहे हैं. वक्त काटने के लिए वे दूसरे आप्रवासियों की मदद करते हैं और एक स्थानीय क्लब के साथ फुटबॉल खेलते हैं. उनके फुटबॉल खेलने के हुनर के लिए साथियों से उन्हें मैरेडोना का नया नाम मिला है.
यहां कैंप में इशाक ने बुनियादी सर्बियन भाषा सीख ली है और लोगों की मदद कर रहे हैं. वे लोकल सिलिब्रिटी बन गए हैं. वे कहते हैं, ''एक ऐसे देश में होना जिसके पास पैसा नहीं है इसका मतलब ये नहीं है कि आपकी जिंदगी अच्छी नहीं है. जिंदगी उन लोगों से बनती है जो आपके इर्द गिर्द हों.''
सोमालिया के फहीम मुदेई भी सर्बिया में शरणार्थी हैं. वे इशाक की बातों से पूरी तरह सहमत हैं. 8 महीने पहले उन्होंने यूरोपीय संघ की तरफ जाने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें बेहद बुरे मौसम में सीमा पर फंसने के साथ ही और भी कई सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. 20 साल के मुदेई भी लगभग इशाक के हमउम्र हैं. उन्होंने धीरे धीरे जिम जाकर या भाषा सीखकर अपनी जिंदगी की फिर से शुरूआत की है. वे कहते हैं ''अब ये बेहतर है, मैं सर्बिया में हूं.''
मुदेई को एक साल के लिए अस्थाई संरक्षण अवधि दी गई है. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वे यहीं रहने में कामयाब होंगे और यहां वे राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करेंगे. वे कहते हैं कि शायद एक दिन वे सोमालिया वापस जाएंगे या फिर कहीं और. सोमालिया में हिंसा में शामिल लोगों को मुदेई एक संदेश देना चाहते हैं, ''मैं कहना चाहता हूं कि बंदूकें छोड़ दो और उसकी जगह कलम पकड़ो.'' वे कहते हैं, ''मैं लोगों के खयालात बदल देना चाहता हूं. मैं अपने देश के लोंगों का हीरो बनना चाहता हूं.''
आरजे, एमजे / एपी
वर्ल्ड प्रेस फोटो अवॉर्ड 2016
शरणार्थी संकट 2015 में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाला विषय रहा. इसी से जुड़ी एक तस्वीर को किसी पत्रकार द्वारा ली गयी साल की बेहतरीन तस्वीर चुना गया है. देखिए इस साल और कौन कौन सी तस्वीरें चुनी गयीं.
तस्वीर: Christian Walgram/GEPA pictures
वॉरन रिचर्डसन, ऑस्ट्रेलिया
सर्बिया और हंगरी की सीमा पर ली गयी इस तस्वीर को इस साल का वर्ल्ड प्रेस फोटो अवॉर्ड दिया गया है. आधी रात में ली गयी इस तस्वीर के लिए रोशनी सिर्फ चांद की ही मौजूद थी. सीमा पुलिस का ध्यान इस ओर ना जाए, इसलिए फ्लैश का इस्तेमाल नहीं किया गया.
तस्वीर: Warren Richardson
मॉरीसियो लीमा, ब्राजील
सीरिया में ली गयी इस तस्वीर को समाचार श्रेणी में पहला पुरस्कार मिला है. तस्वीर में डॉक्टर इस्लामिक स्टेट के एक 16 साल के लड़ाके के जले हुए शरीर पर मरहम लगा रहा है. पीछे कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी के नेता अब्दुल्लाह ओएचेलान की तस्वीर टंगी है.
तस्वीर: Mauricio Lima/The New York Times
झांग ले, चीन
यह तस्वीर चीन के तिआनजिन शहर की है, जिस पर धूल की चादर बिछी हुई है. 10 दिसंबर 2015 को ली गई इस तस्वीर को आधुनिक समय के सबसे अहम मुद्दों की श्रेणी में पुरस्कार दिया गया है.
तस्वीर: Zhang Lei/Tianjin Daily
केविन फ्रेयर, कनाडा
यह तस्वीर भी चीन की ही है. शांशी शहर के करीब स्थित इस बिजलीघर में कोयले से बिजली बनती है. कोयले पर निर्भरता के कारण चीन दुनिया भर में होने वाले कार्बन डाय ऑक्साइड के कुल उत्सर्जन के एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है.
तस्वीर: Kevin Frayer/Getty Images
मैरी एफ कैलवर्ट, अमेरिका
यह तस्वीर 21 मार्च 2014 को ली गयी. इसे लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट की श्रेणी में चुना गया है. तस्वीर 21 साल की नताशा शुटे की है, जिन्हें अमेरिका की सेना की ओर से अपने ड्रिल सार्जेंट के यौन हमले की रिपोर्ट करने की हिम्मत के लिए पुरस्कार दिया गया.
तस्वीर: Mary F. Calvert
रोहन केली, ऑस्ट्रेलिया
सिडनी के बोंडी बीच की इस तस्वीर में एक बड़ा सा काला बादल देखा जा सकता है जो किसी सूनामी जैसा लगता है. इसी दौरान बीच पर मौजूद लोग शांति से लेटे हैं. इसे प्रकृति की श्रेणी में पहला पुरस्कार दिया गया है.
तस्वीर: Rohan Kelly/Daily Telegraph
माटिच जोरमन, स्लोवेनिया
शरणार्थियों से ही जुड़ी एक और तस्वीर को भी पुरस्कार मिला. 7 अक्टूबर 2015 को सर्बिया के एक शरणार्थी कैंप में यह तस्वीर ली गयी. रेनकोट पहने यह बच्ची शरणार्थियों के पंजीकरण की कतार में खड़ी है.
तस्वीर: Matic Zorman
क्रिस्टियान वालग्राम, ऑस्ट्रिया
15 फरवरी 2015 को यह तस्वीर अमेरिका में हो रही एफआईएस वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान ली गयी. चेक गणराज्य के ओंद्रे बांक स्की के दौरान अपना संतुलन खो बैठे और फिसल गए. इस तस्वीर को खेल श्रेणी में चुना गया.