कोरोना महामारी के कारण यूरोपीय संघ और चीन का शिखर सम्मेलन भी वर्चुअल ही कराना पड़ रहा है. दोनों पक्ष भले ही एक मेज पर आमने सामने ना बैठें, लेकिन उन्हें मुश्किल सवालों का सामना करना ही पड़ेगा.
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फिलहाल जर्मनी छह महीने के लिए यूरोपीय संघ का अध्यक्ष है. यूरोपीय संघ और चीन का शिखर सम्मेलन इस अध्यक्षता के सबसे बड़े आयोजनों में से एक होना था. जर्मन शहर लाइपजिष में तीन दिन तक यह सम्मेलन होना था, जहां चीनी राष्ट्रपति पहली बार यूरोपीय संघ के सभी 27 राष्ट्रप्रमुखों से एक साथ मिलते. लेकिन कोरोना महामारी के कारण अब वर्चुअल सम्मेलन ही मुमकिन है और इसकी अवधि भी तीन दिन से घटाकर एक दिन कर दी गई है.
सोमवार को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए होने वाले इस सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी के साथ जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल, यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन मौजूद रहेंगी.
चीन से नाराजगी
हाल के समय में यूरोपीय संघ के भीतर चीन की छवि को ठेस लगी है. इसकी वजह चीन में अल्पसंख्यक उइगुर मुसमलानों के साथ बदसलूकी और हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं पर बल प्रयोग है जिसकी यूरोपीय संसद ने निंदा भी की. इसके अलावा कोरोना महामारी पर चीन के रवैये को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.
बर्लिन के एक थिंकटैंक मेरिक्स में यूरोपीय संघ और चीन के संबंधों पर शोध करने वाली लुकरेशिया पॉजरेट्टी ने डीडब्ल्यू को बताया कि जिस तरह से चीन की सरकार ने कोरोना महामारी को संभाला है, उसे लेकर भी विवाद हो सकता है. वह बताती है कि यूरोपीय संघ के बहुत से देश चीन की "मास्क डिप्लोमैसी" को अपनी छवि चमकाने की "एक शर्मनाक कोशिश के तौर पर देखते हैं." इसके तहत चीन ने यूरोपीय देशों को मेडिकल सामान की आपूर्ति की. वह कहती हैं कि नाराजगी इस बात को लेकर है कि चीन ने बहुत से मामलों में अपने निर्यात को मदद के तौर पर पेश किया.
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भारत से कितना डरते हैं चीनी
चीन के सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' के सर्वे से पता चला है कि चीनी लोगों को भारत की सैन्य या आर्थिक कार्रवाई से कितना डर लगता है. देखिए चीन के दस बड़े शहरों के लगभग 2,000 लोगों की सोच के आधार पर क्या सामने आया.
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क्या चीन पर आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा निर्भर है भारत?
सर्वे में शामिल लगभग आधे लोगों को लगता है कि भारत की चीन पर बहुत अधिक आर्थिक निर्भरता है. वहीं 27 फीसदी को लगता है कि ऐसा नहीं है.
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क्या भारतीय सेना चीन के लिए खतरा पैदा कर सकती है?
एक तिहाई से भी कम लोगों को लगता है कि भारतीय सेना चीन के लिए खतरा बन सकती है. वहीं 57 फीसदी से भी अधिक का मानना है कि कोई खतरा नहीं.
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क्या जरूरत से ज्यादा चीन-विरोधी भावनाएं फैली हैं?
लगभग 71 फीसदी चीनी लोगों का मानना है कि भारत में फिलहाल चीन को लेकर कुछ ज्यादा ही विरोध है. वहीं 15 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें यह ठीक लगता है.
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चीनी उत्पादों के बहिष्कार वाले अभियान को कैसे देखते हैं?
35 फीसदी से अधिक चीनी इस पर बहुत गुस्सा हुए. वहीं लगभग 30 फीसदी को लगा कि भारत इसे लेकर गंभीर नहीं है और इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool
चीन और भारत के संबंधों में सबसे बड़ी रुकावट क्या है?
30 फीसदी का मानना है कि ऐसा देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर है. वहीं लगभग एक चौथाई का मानना है कि भारत अमेरिका के असर में आकर ऐसा कर रहा है.
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अगर फिर से भारत के साथ सीमा विवाद छिड़े तो?
लगभग 90 फीसदी लोग आत्मरक्षा में चीनी सेना की भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते हैं. 7 फीसदी से भी कम लोग बलप्रयोग के खिलाफ हैं.
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भविष्य में किस तरफ जा सकते हैं चीन-भारत संबंध?
25 फीसदी को लगता है कि कभी अच्छे तो कभी बुरे दौर आएंगे. वहीं 25 फीसदी का मानना है कि लंबे समय में सुधार दिखेगा. 20 फीसदी को जल्दी सुधार की उम्मीद नहीं है.
तस्वीर: Reuters
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यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के अधिकारी चीन की आक्रामक विदेश नीति और घरेलू स्तर पर अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ती बंदिशों को देखते हुए उसके साथ संबंधों पर नए सिरे से विचार कर रहे हैं.
चीन से निपटने की यूरोपीय संघ की रणनीति पर 2019 में जो दस्तावेज जारी किया गया, उसके पहले पेज पर यूरोपीय आयोग ने चीन की पहचान जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में ना तो एक साझेदार के तौर पर की है और ना ही एक आर्थिक प्रतिद्वंद्वी के तौर पर, बल्कि उसे एक "व्यवस्थित प्रतिस्पर्धी" कहा गया है जो "शासन के वैकल्पिक मॉडलों को बढ़ावा देता है". संदेश साफ है कि चीन शासन की अपनी निरंकुश पद्धति को पूरी दुनिया में लागू करना चाहता है, जो यूरोपीय संघ की तर्ज वाले लोकतंत्र के विपरीत है.
निवेश में गतिरोध
यूरोपीय संघ और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को समान स्तर पर लाने के लिए ईयू-चीन व्यापक निवेश समझौते को एक अहम कदम माना गया था. लेकिन इस समझौते पर वार्ता छह साल से चल रही है. इस समझौते का मकसद बाजार तक ज्यादा पहुंच मुहैया कराना और एक पूरी तरह उचित प्रतिस्पर्धा वाला माहौल तैयार करना, निवेश में आने वाली बाधाओं को दूर करना, सरकारी कंपनियों की भूमिका को कम करना और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा देना है.
यूरोपीय संघ की कंपनियों के नजरिए से चीन को इस समझौते को मुमकिन बनाने के लिए बहुत सारे समझौते करने होंगे. चीन में यूरोपीयन यूनियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष योर्ग वुटके कहते हैं, "यूरोपीय पक्ष ने साफ कर दिया है कि चीन के आधा रास्ता चलने से कुछ नहीं होगा." वह कहते हैं कि चीनी कंपनियां पहले ही यूरोपीय संघ के खुले बाजार में काम कर रही हैं जहां पूरी तरह उचित प्रतिस्पर्धी माहौल है जबकि चीन में यूरोपीय कंपनियों के साथ ऐसा नहीं हो रहा है. वुटके कहते हैं कि चीन को इस गैप को पाटना होगा, हालांकि उन्हें इसकी उम्मीद कम ही है.
दिसंबर में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने जब ब्रसेल्स का दौरा किया तो उन्होंने कहा कि चीन 2020 के लिए यूरोपीय संघ को अपने राजनयिक एजेंडे में सबसे ऊपर रखेगा. उन्होंने व्यापक निवेश समझौते को भी सबसे अहम आर्थिक नीति परियोजना बताया. लेकिन इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं दिखती है.
1962 के बाद पहली बार भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है. पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक मारे गए. इसके पहले भी दोनों सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
लद्दाख (2020)
अप्रैल महीने से ही लद्दाख में चीन और भारतीय सेना की हलचल बढ़ गई थी. चीनी सेना की भारतीय क्षेत्र में हस्तक्षेप बढ़ने और गश्त बढ़ने के बाद भारत ने ऐतराज जताया और सैन्य स्तर पर भी बातचीत चल रही थी. लेकिन 15 जून को गलवान घाटी में जो हुआ शायद ही किसी ने इसके बारे में सोचा होगा. एलएसी पर खूनी संघर्ष के बाद 20 भारतीय सैनिक मारे गए और कुछ जख्मी हो गए.
तस्वीर: Reuters/PLANET LABS INC
डोकलाम (2017)
2017 की गर्मियों में चीन की सेना ने डोकलाम के पास सड़क निर्माण की कोशिश की. यह वह इलाका है जिसपर भूटान और चीन दावा पेश करता आया है. इसलिए भारतीय सेना ने विवादित क्षेत्र का हवाला देते हुए सड़क निर्माण का कार्य रुकवा दिया था. 28 अगस्त को दोनों देशों की सेना के पीछे हटने के बाद इस संकट का समाधान हुआ. यह गतिरोध 72 दिनों तक बना रहा.
अरुणाचल (1987)
जब भारत ने अरुणाचल प्रदेश को 1986 में राज्य का दर्जा दे दिया तब चीनी सरकार ने इसका विरोध किया. चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पार की और समदोरांग चू घाटी में दाखिल होने के बाद हेलीपैड निर्माण शुरू कर दिया. भारतीय सेना ने इसका विरोध किया. दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध शुरू हो गया.
तस्वीर: Prabhakar Mani
1975 का हमला
1967 के युद्ध के बाद एक बार फिर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं थी. 1975 में अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों पर चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया था. असम राइफल्स के जवान गश्त लगा रहे थे और उसी दौरान उन पर हमला हुआ. हमले में भारत के चार जवानों की मौत हो गई थी.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Wong
नाथु ला और चो ला (1967)
1967 में भारत और चीनी सैनिकों के बीच टकराव दो महीने तक चला. उस दौरान चीनी सैनिकों ने सिक्किम सीमा की तरफ से घुसपैठ कर दी थी. नाथु ला की हिंसक झड़प में 88 भारतीय सैनिकों की मौत हुई वहीं 300 से अधिक चीनी सेना के जवान मारे गए.
तस्वीर: Getty Images
1962 का युद्ध
1962 में चीन और भारत के बीच टकराव बढ़ते हुए युद्ध में तब्दील हो गया. 20 अक्टूबर से लेकर 21 नवंबर तक युद्ध चला और भारतीय सेना के करीब 1,383 जवानों की मौत हुई और चीनी सेना के 722 सैनिक मारे गए.