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यूरोप जानता था अमेरिका का सच

१२ जून २०१३

आप इस वक्त इंटरनेट में क्या पढ़ रहे हैं, यह सिर्फ आप को ही नहीं, अमेरिका को भी पता है. पूरी दुनिया अमेरिका की इंटरनेट जासूसी के बारे में जान कर सकते में आ गयी, लेकिन यूरोप को तो यह पहले से ही पता था.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिका के इंटरनेट जासूसी प्रोग्राम 'प्रिज्म' की इन दिनों यूरोप में काफी निंदा हो रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि एडवर्ड स्नोडन के खुलासे से पहले यूरोप अंधेरे में था. बल्कि सच्चाई तो यह है कि 2011 से यूरोप को इस बात की जानकारी थी कि अमेरिका इंटरनेट में जासूसी कर रहा है.

2012 की रिपोर्ट

जर्मन ब्लॉगर बेंजामिन बेर्गेमन का इस बारे में कहना है, "स्नोडन ने प्रिज्म के बारे में जो खुलासा किया है, इसे (इंटरनेट सुरक्षा से) जुड़े लोग तो बहुत पहले से ही इसके बारे में जानते थे". डॉयचे वेले से बातचीत में बेर्गेमन ने कहा कि यूरोपीय संसद की 2012 की एक रिपोर्ट भी इस ओर संकेत करती है कि "अमेरिकी अधिकारी 2008 से ही इंटरनेट में सूचना पर नजर रख रहे थे. इसमें तो अब कोई हैरानी की बात नहीं है".

एडवर्ड स्नोडन ने अमेरिका के इंटरनेट जासूसी प्रोग्राम 'प्रिज्म' का खुलासा किया.तस्वीर: Reuters/Ewen MacAskill/The Guardian/Handout

2012 में आई रिपोर्ट पर अदालत में भी बहस हुई. रिपोर्ट बनाने वालों का आरोप था कि यूरोप में इंटरनेट सुरक्षा को ले कर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा. यहां तक की 2011 के मध्य से पहले तक तो ना यूरोपीय आयोग, ना ही यूरोपीय संसद और ना ही इंटरनेट के कानून बनाने वालों को 'फिसा' (एफआईएएसएए) के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी. फिसा यानी अमेरिका का फॉरेन इंटेलिजेंस सरविलेंस अमेंडमेंट एक्ट इस बीच तीन साल से सक्रिय था. रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गयी कि अमेरिका इंटरनेट क्लाउड में रखी गयी पूरी जानकारी पर नजर रख सकता है और यह गैर अमेरिकी लोगों पर भी लागू हो रहा है.

रूस और चीन पर ध्यान

साइबर एक्सपर्ट जूलियन ज्योंदेबोस इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं. उनका कहना है कि इंटरनेट सुरक्षा को ले कर यूरोप ने अपने साधनों को बस एक ही दिशा में खर्च कर दिया, "ईयू का ध्यान इसी पर केंद्रित रहा कि ईयू में रहने वाले लोग किस तरह से नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं". यानी यूरोप में हैकरों पर चर्चा होती रही, इंटरनेट में गलत पहचान बताने वालों पर ध्यान दिया गया और इंटरनेट कंपनियों पर हमेशा नजर रखी गयी.

फेसबुक और गूगल की सारी जानकारी अमेरिका में जमा है.तस्वीर: picture-alliance/dpa

ज्योंदेबोस बताते हैं कि राजनैतिक तौर पर भी देखा जाए तो शक के घेरे में हमेशा रूस और चीन ही रहे, यूरोप ने कभी अमेरिका को संदेह भरी नजरों से नहीं देखा. हालांकि 9/11 के बाद से अमेरिका में इंटरनेट को ले कर बदले कानूनों पर यूरोप में भी चर्चा हुई थी. ज्योंदेबोस के अनुसार अमेरिका के साथ यूरोप के रिश्ते अहम हैं, इसलिए यूरोप को अमेरिका के खिलाफ कोई कदम लेने से पहले सोचना होगा.

फेसबुक और गूगल की सारी जानकारी अमेरिका में जमा है. ब्लॉगर बेंजामिन बेर्गेमन कहते हैं, "आप कह सकते हैं कि भला अमेरिका को मुझमें क्या रुचि होगी? लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि यूरोप में भी अधिकारी आपका पीछा करते हैं. अमेरिका और यूरोप दोनों मिल कर आपकी जानकारी एक दूसरे से बांट सकते हैं."

चरम पर डर

यूरोप में लोग निजता के हनन पर अदालत में जा सकते हैं, लेकिन अमेरिका में ऐसा कोई कानून नहीं है. अब यूरोप के लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि यदि वे शिकायत करें भी तो उसकी सुनवाई कहां होगी. बेर्गेमन का कहना है कि यदि इतने बड़े खुलासे के बाद भी अधिकारियों की आंखें नहीं खुली हैं तो ऐसा किसी भी तरह नहीं किया जा सकता. ज्योंदेबोस भी इस से सहमत हैं. उनका मानना है कि इंटरनेट सुरक्षा और अमेरिका की जासूसी को यूरोप में कम आंका गया, "हम जानते थे कि सूचनाएं जमा की जा सकती हैं, पर हमने यह नहीं सोचा था कि ऐसा हो ही जाएगा".

अमेरिका की दलील है कि वह दुनिया को सुरक्षित बनाने के लिए ऐसा कर रह है. ज्योंदेबोस कहते हैं, "सुरक्षा जरिया होना चाहिए, उद्देश्य नहीं". बेर्गेमन कहते हैं कि प्रिज्म के खुलासे ने एक चीज साफ कर दी है, "आतंकवाद का डर और उस से बचने के लिए उपाय, जो किए गए हैं, अब चरम पर पहुंच गए हैं".

रिपोर्ट: नीना हासे/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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