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"यूरोप जीने का अधिकार नहीं दे रहा"

१३ दिसम्बर २०१४

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भूमध्यसागर जान बचा कर भागने का दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता है. शरणार्थी संगठन प्रो एसाइल के कार्ल कॉप का कहना है कि विश्व समुदाय शरणार्थियों को बचाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/Ettore Ferrari

डॉयचे वेलेः संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (यूएनएचसीआर) की नई रिपोर्ट में समुद्री मार्ग से भागने वाले लोगों की रिकॉर्ड संख्या की ओर ध्यान दिलाया गया है, सिर्फ 2014 में 348,000 लोग. इनमें से दो लाख लोगों ने भूमध्यसागर से होकर यूरोप पहुंचने की कोशिश की. इस नाटकीय घटनाक्रम के पीछे मामला क्या है?

कार्ल कॉपः इन दो लाख लोगों में से ज्यादातर लोग सही मायनों में शरणार्थी हैं, वे सीरिया, इरीट्रिया, सोमालिया और अफगानिस्तान जैसे मुल्कों से भागे हैं. सीरिया का शरणार्थी संकट अब चौथे साल में है. इरीट्रिया में लोग तानाशाही की वजह से भाग रहे हैं और अफगानिस्तान अभी तक शांत नहीं हो पाया है. यूरोप के आस पास कई संकट चल रहे हैं. सीरिया के संकट को ही ले लीजिए, जिससे पूरा देश भागने को विवश है और वहां के लोगों के पास भागने के बहुत रास्ते भी नहीं है. आस पास के देशों में जरूरत से ज्यादा लोग पहुंच गए हैं और वे अब यूरोप की देखा देखी अपनी सीमाएं बंद कर रहे हैं. लेबनान और तुर्की ऐसा कर रहे हैं और कई बार जॉर्डन भी. इराक भी किसी को शरण नहीं दे रहा है क्योंकि वहां आईएस के आतंक की वजह से एक नया संकट खड़ा हो गया है. जमीन के रास्ते भागने का उपाय नहीं है. समस्या ज्यादा बढ़ रही है क्योंकि यूरोप और पश्चिम पूरा भाइचारा नहीं दिखा रहे है.

प्रो एसाइल के कार्ल कॉपतस्वीर: Pro Asyl Deutschland

पश्चिमी देश फौरी तौर पर क्या कर सकते हैं कि स्थिति बदल सके?

इन लोगों को खतरनाक रास्ता अपनाना पड़ता है क्योंकि यूरोप पहुंचने या दूसरे सुरक्षित इलाकों में जाने का कोई कानूनी उपाय नहीं. यूरोप ने यूरोपीय सीमा सुरक्षा बल फ्रॉन्टेक्स और आधुनिक तकनीक की मदद से तुर्की और ग्रीस और तुर्की और बुल्गारिया की सीमा बंद कर दी है. बाड़े और दीवारें बना दी गई हैं. यह यूरोप की शरणार्थी नीति है. यही वजह है कि ये हताश लोग समुद्र का बेहद खतरनाक रास्ता चुन रहे हैं.

हमें प्रभावित पड़ोसी मुल्कों को राहत देनी होगी और इन लोगों को यूरोप और पश्चिम में स्थायी तौर पर रहने की संभावना देनी होगी. यह काम मानवीय आधार पर वीजा देकर या यूएनएचसीआर के पुनर्वास कार्यक्रम के जरिए किया जा सकता है. जर्मनी में भी हमें शरणार्थियों के कोटे की संख्या बढ़ानी होगी. यूरोप सुरक्षा और आश्रय के अधिकार का सम्मान नहीं कर रहा है. नहीं तो वह मिलजुलकर बड़े स्तर पर सक्रिय शरणार्थी नीति चलाता. ये लोग साफ साफ नजर आते हैं और उनका रजिस्ट्रेशन भी हुआ है. उन्हें वहां से निकालना और यूरोप में मानवीय आश्रय देना आसान है.

उनके देशों में इन लोगों की जान सुरक्षित नहीं है. लेकिन ये भी साफ नहीं है कि वे यूरोप तक की यात्रा में जिंदा बच पाएंगे. ऐसे में ये लोग इतनी बड़ी जोखिम क्यों उठा लेते हैं?

इसके पीछे डर और मायूसी है. सिर्फ युवा ही नहीं, बल्कि साहसी मर्द और औरतें भी नावों पर होते हैं. उनका पूरा परिवार होता है, कई छोटे बच्चे होते हैं, गर्भवती महिलाएं होती हैं. वे इस उम्मीद में बोट पर सवार होते हैं कि वे भी दूसरी तरफ पहुंचने वाले लोगों में शामिल होंगे.

जान बचाने के चक्कर में जान गंवाते लोगतस्वीर: picture-alliance/dpa/Italian Navy/Handout

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त अंटोनियो गुटेरिश ने चेतावनी दी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपने दरवाजे बंद कर रहा है और समुद्र में बचाव कार्य को नजरअंदाज कर रहा है.

सिर्फ यूरोप ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया भी शरणार्थियों से बचने की कोशिश कर रहा है. वहां सामुद्रिक बचाव का काम करने की कोई तत्परता भी नहीं दिखती है. फिलहाल हमारे पास यूरोप में भी समुद्र में मुश्किल में पड़े लोगों को बचाने की कोई सुविधा नहीं है. इस समय यह काम सिर्फ निजी जहाजों के द्वारा किया जा रहा है.

लांपेडूजा के निकट हुए भयानक हादसे के बाद यूरोपीय संघ ने इटली को उसके भूमध्यसागरीय कार्यक्रम मारे नॉस्ट्रुम में मदद की थी. अब वह कार्यक्रम खत्म हो गया है और उसकी जगह विवादास्पद ऑपरेशन त्रितोन आ गया है, जो समुद्र में बेहतर बचावकार्य की गारंटी देगा, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने इसकी काफी आलोचना की है.

ऑपरेशन त्रितोन के पास मारे नोस्ट्रुम के मुकाबले एक तिहाई कम धन, बहुत कम जहाज, उपकरण और बचाव कार्य करने वाले लोग हैं. दुख की बात है कि भूमध्यसागर में हमारे सामने ऐसी विशाल कब्रगाह है, जो दिन ब दिन बड़ी होती जा रही है. राजनीतिक हलका लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. यूरोप शरणार्थी संकट पर हाथ पर हाथ धरे बैठा है जीवन के अधिकार का सम्मान नहीं कर रहा. नहीं तो वह समुद्र में साझा बचाव कार्य के लिए धन उपलब्ध कराता. शरणार्थियों का आना खराब मौसम में भी जारी रहेगा. लोग आते रहेंगे, चाहे जैसे भी हो. यूरोप को फैसला करना है कि क्या लोग यहां पहुंच सकते हैं. अब तक यूरोप ने "ना" ही कहा है.

इंटरव्यूः जाबरीना पाब्स्ट

(कार्ल कॉप शरणार्थी राहत संस्था प्रो एसाइल यूरोप के क्षेत्रीय प्रतिनिधि हैं और शरणार्थी मामलों की यूरोपीय समिति की कार्यकारिणी में सदस्य हैं.)

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