यूरोप में दिन की रोशनी का इस्तेमाल करने के लिए साल में दो बार घड़ी का समय बदला जाता है. अब यूरोपीय संघ अगले साल से इसे खत्म करने जा रहा है. लेकिन सदस्य देशों के बीच मतभेद सामने आए हैं.
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यूरोप में शायद ही कोई मुद्दा हो जिस पर सदस्य देशों के बीच गंभीर मतभेद न हों. मुश्किल में पड़े साथी की वित्तीय मदद और साझे टैक्स से लेकर शरणार्थियों के सवाल पर असहमति है लेकिन यूरोपीय संघ को उम्मीद है कि समय के सवाल पर आखिरकार संघ के देश सहमति दिखाएंगे.
समय का सवाल
दिन की रोशनी को बचाने का सुझाव ब्रिटेन में जन्मे खगोलशास्त्री जॉर्ज हडसन ने 1895 में दिया था. इसके तहत वसंत में घड़ी की सुइयां एक घंटे आगे कर दी जाती हैं जिसका मतलब है कि शाम को सूरज ज्यादा देर तक चमकता है. इसके लिए सुबह में एक घंटे की कुर्बानी जरूर देनी पड़ती है. शरद में इसे फिर से एडजस्ट कर दिया जाता है.
समय में इस बदलाव को लागू करने वालों में सबसे पहले जर्मन और एस्ट्रो हंगेरियन साम्राज्य थे जिन्होंने 30 अप्रैल 1916 से घड़ियां बदलने की शुरुआत की. उसके बाद इसे समय समय पर दूसरे कुछ देश भी लागू करते रहे हैं लेकिन एशिया और अफ्रीका के देशों में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता.
दुनिया के अजीबोगरीब टाइमजोन
समय कभी नहीं रुकता और अपनी रफ्तार से चलता रहता है. लेकिन दुनिया के अलग अलग हिस्से अलग अलग टाइमजोन में रहते हैं. वैसे कुछ देश समय समय पर अपनी घड़ियों को आगे पीछे करते रहते हैं.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने 1949 में सत्ता संभालने के बाद देश में चल रहे अलग अलग टाइमजोनों को खत्म करके पूरे देश में एक टाइमजोन लागू किया. इसे अब बीजिंग टाइम कहते हैं जो ग्रीनविच मानक समय (जीएमटी) से आठ घंटा आगे है. इसका मतलब है कि देश के धुर पश्चिमी प्रांत शिनचियांग के लोगों को बहुत सवेरे उठना पड़ता है.
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रात के उल्लू
स्पेन के तानाशाह फ्रांसिस्को फ्रांको दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तटस्थ रहे. लेकिन 1940 में जर्मन तानाशाह हिटलर के साथ एकजुटता दिखाते हुए उन्होंने जीएमटी की जगह सेंट्रल यूरोपियन समय को अपना लिया. इसीलिए स्पेन में सूरज जरा देर से ही उगता और छिपता है. और उसी के मुताबिक लोगों की जिंदगी चलती है.
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अतीत से छुटकारा
उत्तर कोरिया ने 2015 में अपनी घड़ियों को आधा घंटा पीछे कर लिया. सरकार ने इसके लिए दलील दी कि वह जापानी औपनिवेशिक पहचानों से पिंड छुड़ाना चाहती है. कोरियाई प्रायद्वीप पर 1910 से 1945 तक जापानी शासन के दौरान एक ही टाइम जोन था.
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घड़ियां फिर आगे की
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन जब हाल में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मिले तो दीवार पर लटकी घड़ियों में प्योंगयांग और सियोल का अलग अलग समय देखकर व्यथित हुए. इसके बाद उत्तर कोरिया ने फिर अपनी घड़ियां बदली और अब फिर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में एक ही समय है.
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हिम्मत अलग होने की
समय के मामले में नेपाल को भी थोड़ा अलग कहा जा सकता है. उसने अपने पड़ोसी भारत से 15 मिनट आगे का समय चुना. इस तरह नेपाल का समय जीएमटी से 5.45 घंटा आगे है. इसके पीछे भी भारत से अलग दिखने की कोशिश थी. हालांकि नेपाल बहुत सी चीजों के लिए भारत पर निर्भर है.
वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने 2016 में देश की घड़ियों को 30 मिनट आगे करने को कहा. इस तरह उनसे पहले राष्ट्रपति शावेज ने 2007 में जो समय बदला, उसे मादुरो ने पलट दिया. 2007 में यह सोच कर समय बदल गया था कि सूरज की रोशनी ज्यादा देर तक रहने से बिजली की खपत कम होगी.
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लंबी छलांग
समय में सबसे बड़ा बदलाव प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश समोआ ने किया. 2011 में उसने अपनी घड़ियों को पूरे 24 घंटे आगे कर दिया. पहले वहां का समय सिडनी से 21 घंटे पीछे था, जिसे 2011 में सिडनी से तीन घंटा आगे कर दिया गया. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ संबंध बेहतर करने के लिए यह फैसला किया गया.
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डेलाइट सेविंग टाइम
जर्मनी समेत दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में साल में दो बार घड़ियों का समय बदल जाता है. गर्मियों में सूरज की रोशनी का इस्तेमाल करने के लिए घड़ियों का समय एक घंटा आगे कर दिया जाता है जबकि सर्दियों में एक घंटा पीछे. इसे डेलाइट सेविंग टाइम कहते हैं.
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भारत
पूरे भारत में साल भर एक ही समय चलता है. हालांकि पूर्वोत्तर इलाकों के लिए कई बार अलग टाइमजोन की मांग उठती है, क्योंकि वहां पर देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले काफी पहले सूरज उग जाता है. हालांकि कभी इस मांग को गंभीरता से नहीं लिया गया.
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आलोचना के मुद्दे
रोशनी बचाने के इस सिस्टम की आलोचना की मुख्य वजह यह रही है कि इससे समय का हिसाब गड़बड़ाता है और खासकर यात्रा, बिलिंग, रिकॉर्ड कीपिंग और मेडिकल उपकरणों के रखरखाव में समस्या आती है. वैसे पिछले दिनों सबसे बड़ी आलोचना इस बात पर हो रही है कि इससे नींद के चक्र में खलल पड़ती है, जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है.
इसके पक्ष में सबसे बड़ी दलील एक व्यवस्थित सिस्टम की जरूरत रही है. औद्योगिक देशों में रोजमर्रा का काम समय के हिसाब से होता है. चाहे दफ्तरों में काम करना हो, स्कूलों की दिनचर्या हो या ट्रांसपोर्ट, सारा कुछ सारे समय एक ही समय पर होता है. इसके उलट गावों में दिनचर्या सूरज की रोशनी के हिसाब से चलती है और सीजन के हिसाब से बदलती रहती है.
फायदे नुकसान
साल में दो बार समय बदलने का मुद्दा सालों से बहस के केंद्र में रहा है. इसके फायदे नुकसान पर भी विस्तार से चर्चा होती रही है. सबसे बड़ा मुद्दा रोशनी के स्तेमाल का रहा है जिसका मतलब बिजली की बचत भी है. लेकिन जैसे जैसे लोगों की गतिविधियां बढ़ी हैं और बाजार के विस्तार के साथ कारोबार बढ़ा है बिजली की खपत भी बढ़ी है. इसलिए समर टाइम में बिजली की कोई खास बचत नहीं होती.
स्वास्थ्य के लिए इसके पायदे भी हैं और नुकसान भी. समय बदलने के साथ नींद की आदतें बदलनी पड़ती हैं. गर्मियों में एक घंटा पहले सोना और एक घंटा पहले उठना होता है. करीब 10 प्रतिशत लोगों पर इसका असर हार्ड अटैक के रूप में सामने आता है. दूसरी और शरीर को मिलने वाली धूप का समय बढ़ जाता है जिसका असर विटामिन डी पर पड़ता है.
स्मार्टफोन और स्मार्ट घड़ियों की दुनिया
बार्सिलोना में आयोजित मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस में एक से बढ़ कर एक स्मार्टफोन, स्मार्ट घड़ियां और अन्य तकनीक से लैस गैजेट दिखाए गए.
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दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग के इस फोन को लेकर सभी उत्साहित दिखे. अप्रैल में सैमसंग गैलेक्सी एस6 के दो वर्जन बाजार में आ रहे हैं. गैलेक्सी एस सिक्स एज (बायां) का डिस्प्ले ग्लास किनारों तक है. इस फोन का लोगों को बेसब्री से इंतजार है.
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मौसम से लेकर दिल तक, हर बात का हिसाब रखने वाली घड़ी. अब तक ये घड़ियां फिटनेस मॉनीटर करने के लिए मशहूर थीं, लेकिन एलजी की इस घड़ी से अब फोन भी किया जा सकेगा. स्मार्टवॉच में अपना एक सिमकार्ड होगा. सुनने के लिए वैकल्पिक वायरलेस हेडसेट का भी इस्तेमाल किया जा सकेगा.
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चीनी कंपनी ह्वावै भी पूरी तैयारी के साथ बार्सिलोना आई. ह्वावै की पहली स्मार्टवॉच में हार्ट मॉनीटर, बैरोमीटर और मोशन सेंसर हैं. इसमें जमा होने वाला डाटा सेहत पर नजर रखने में मदद करेगा. घड़ी की मेमोरी 512 एमबी है. चार जीबी संगीत और अन्य डाटा के लिए.
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फिटनेस बैंड बी2 काले, सिल्वर और शैंपेन गोल्ड रंग में उपलब्ध हैं. डिस्प्ले टच सेंसिटिव है. आपने कितनी दूरी तय की या कितनी कैलोरी खर्च की, बैंड हर बात का हिसाब रखेगा. ह्वावै का यह बैंड एक बार चार्ज करने पर पांच दिन तक चल सकता है.
तस्वीर: AFP/Getty Images/J. Lago
ताइवान की कंपनी एचटीसी ने भी फिटनेस बैंड प्रदर्शनी में लगाया. जीपीएस और अन्य सेंसरों की मदद से यह पहनने वाले की खेलकूद संबंधी गतिविधियों पर नजर रखेगा और डिस्प्ले में दिखाता रहेगा. एचटीसी ने साथ में 3डी चश्मा भी पेश किया है.
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एक्यूमुलस9 को गले में पेंडेंट की तरह पहना जा सकता है. तस्वीरें लेने के अलावा इससे वीडिया भी बनाया जा सकता है. लाइव लॉगिंग मोड में हर कुछ मिनट में यह अपने आप तस्वीरें लेता रहेगा.
तस्वीर: Reuters/G. Nacarino
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ईयू का फैसला
यूरोपीय संघ के एक सर्वे में लोगों ने भारी बहुमत ने वसंत में समय बदलने की प्रथा को खत्म करने की मांग की. ऑनलाइन सर्वे में करीब 46 लाख लोगों ने भाग लिया. सर्वे के नतीजों पर विचार करने के बाद ईयू ने अक्तूबर 2019 से समय बदलने की प्रथा बंद करने का फैसला लिया है. लेकिन अप्रैल 2019 तक यूरोपीय देशों को यह फैसला करना होगा कि वे समर टाइम चाहते हैं या विंटर टाइम. सदस्य देशों के बीच मतभेदों को देखते हुए अव्यवस्था फैलने की आशंका जताई जा रही है.
यूरोपीय संघ पूरे इलाके के लिए एक समय निर्धारित नहीं कर सकता. वह मौजूदा कानूनों में ढील देकर सदस्य देशों को यह फैसला लेने की आजादी दे सकता है. अब तक ऐसा लगता है कि पुर्तगाल, साइप्रस और पोलैंड जैसे देश समर टाइम को पूरे साल जारी रखना चाहते हैं जबकि फिनलैंड, डेनमार्क और नीदरलैंड्स के लोग सारा साल विंटर टाइम चाहते हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल बदलाव चाहती हैं लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया है कि जर्मनी विंटर टाइम चाहता है या समर टाइम.
चुनावी मुद्दा
अगर यूरोपीय संघ के देश अगले साल अप्रैल तक एक समय पर सहमत नहीं होते हैं तो अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है. सदस्य देशों को अगले छह महीने में राष्ट्रीय सहमति हासिल करनी होगी. उसके आधार पर अंतरराष्ट्रीय सहमति बनानी होगी. लेकिन अगले साल ही यूरोपीय संसद के चुनाव होने वाले हैं और इस बात के पूरे आसार हैं कि ये मुद्दा चुनावी मुद्दा बन सकता है.
सर्वे में करीब 46 लाख लोगों ने हिस्सा लिया है जिनमें 30 लाख लोग जर्मनी के थे. भागीदारों में सबसे ज्यादा जर्मनी, ऑस्ट्रिया और लक्जमबर्ग के थे जहां चार, तीन और दो प्रतिशत भागीदारी रही. बाकी देशों से सर्वे में भागीदारी एक प्रतिशत से कम रही है. ये सवाल भी उठ रहा है कि नागरिकों का एक छोटा सा हिस्सा बदलाव चाहता है. ऐसे में संभव है कि यूरोपीय संघ का अगला चुनाव समय बदलने के मुद्दे पर लड़ा जाए. नया कानून लाने के लिए यूरोपीय आयोग के साथ साथ सांसदों को भी इसका समर्थन करना होगा.
चहचहाती कुकू घड़ियां
दीवार पर टंगी एक छोटी सी टिक टिक करती लकड़ी की झोपड़ी. हर घंटे पर इसकी एक छोटी सी खिड़की खुलती है, और उसमें से चिड़िया बाहर आकर समय बताती है. जर्मनी की मशहूर घड़ियां यहां की संस्कृति को दर्शाती हैं.
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ढांचा पुराना, रूप नया
जर्मन कलाकार श्टेफान श्ट्रुम्बेल ने पारंपरिक घड़ी को नियॉन पॉप रूप दिया है. इसके लिए उनकी तारीफ तो हुई ही, पर साथ ही उन्हें काफी नफरत भरे मेल भी आए. इसके बावजूद 2011 में श्ट्रुम्बेल पहले जर्मन कलाकार थे जिन्होंने कुकू घड़ी को न्यूयॉर्क टाइम्स मैगजीन के कवर फोटो के लिए डिजाइन किया.
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दुनिया की सबसे बड़ी
वैसे तो दुनिया की सबसे बड़ी कुकू घड़ी के लिए ट्राइबर्ग जाना जाता है, लेकिन असली घड़ी पड़ोसी शहर शोनाख में बनी हुई है. इसे बनाने वाले योसेफ डोल्ड मानते हैं कि यह थोड़ी छोटी हो सकती है, लेकिन उन्होंने यह घड़ी तीन साल में हाथ से बनाई है.
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समय बताने वाले खिलौने
'कुकुक्सउहर मोनामोर' नाम की एक प्रदर्शनी जर्मनी के फुर्टवांगेन क्लॉक म्यूजियम में लगाई गई है. तीन नवंबर तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में कुकू घड़ी से जुड़ी सारी चीजें हैं. यह संग्रहालय 1852 में खुला था और यह जर्मनी में घड़ियों के सबसे बड़े संग्रहालयों में एक है.
तस्वीर: Deutsches Uhrenmuseum Furtwangen
कुकू बीयर
मार्टिन लूथर और काथरीना फॉन बोरा से होते हुए 14वीं पीढ़ी में पारिवारिक बीयर की रेसिपी लुडविग जेर्ब्स (बाएं) के हाथ में आई. 2012 में मृत्यु से पहले तक वह बीयर प्रोसेसिंग देखती थीं. और उन्होंने एक बीयर का नाम अपनी पसंदीदा चिड़िया कुकू के नाम पर कुकूक्स बीयर रखा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
खतरे में कुकू
जिस चिड़िया के नाम से ये घड़ियां बनी हैं, वह खतरे में है. अफ्रीका में सर्दियां गुजारने के बाद ये पंछी दूसरी चिड़ियाओं के घोसले में अंडा देने यूरोप आती हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण अंडों के सेने और चूजे निकलने का समय कम हो गया है. इसलिए कुकू (कोयल) जब लौट कर आती है, तो घोंसले उन्हें कम ही मिलते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
फैशन
यह कोई ताजा फैशन नहीं है. यह ड्रेस 1917 में लियोन जेसेल के ओपेरा ब्लैक फॉरेस्ट गर्ल के लिए डिजाइन की गई थी. इसमें मारिएल एन कीटेल ने कुकू घड़ी की भूमिका निभाई थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ताप से
फ्राइबुर्ग यूनिवर्सिटी के इंजीनियर फ्रांत्स रिषर्ट ने शरीर की गर्मी से चलने वाली कुकू घड़ी बनाई है. यह उन्होंने शंघाई में होने वाले वर्ल्ड्स फेयर के लिए तैयार की थी. जब घड़ी हाथ में ली जाती है तो अंदर लगा थर्मो जनरेटर हाथ की गर्मी को ऊर्जा में बदल देता है, जिससे कुकू चहचहाती है.
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उड़ता समय
बाडेन के स्टेट म्यूजियम में लगी डिजाइन+इमोशन नाम की प्रदर्शनी में लगी यह घड़ी पारंपरिक घड़ियों से बिलकुल अलग है. यहां दिखाए गई 200 घड़ियों में से यह डिजाइन मिषाएल सान्स का था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
ब्लैक फॉरेस्ट
जर्मनी के दक्षिणी इलाके ब्लैक फॉरेस्ट का केक और कुकू घड़ियां खूब मशहूर हैं. 18वीं सदी के मध्य में इस इलाके में खूब इस तरह की घड़ियां बननी शुरू हुईं और ये दिन ब दिन खूब मशहूर हुईं.
तस्वीर: Fotolia/PRILL Mediendesign
एकदम पारंपरिक
सामान्य तौर पर दक्षिणी जर्मनी के लकड़ी से बने घर इस घड़ी का ढांचा होते हैं. बारीक काम और सुंदर कारीगरी इसकी खासियत होती है. ब्लैक फॉरेस्ट में बनाई जाने वाली ये घड़ियां अक्सर अमेरिकी ग्राहक खरीदते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
घड़ी ही नहीं
ये घड़ी इतनी मशहूर है कि लोग कार्निवाल में कुकू घड़ी बन कर भी पहुंच जाते हैं. ऐसी ही एक तस्वीर आप यहां देख सकते हैं. पर्यटकों को भी यह घड़ी बहुत लुभाती है.