यूरोप में बस का सफर कितना सुरक्षित है?
१८ अप्रैल २०१९गुरुवार को हुए हादसे की बात सुन कर अगर आपके मन में भी बस यात्रा को लेकर डर पैदा हो गया है तो हम आपसे कहना चाहेंगे कि इतना ज्यादा डरने की भी जरूरत नहीं, कम से कम आंकड़े तो यही कहते हैं. बस दुर्घटना की खबरें मीडिया में खूब दिखाई देती हैं लेकिन अगर कार हादसों में होने वाली मौत से इनकी तुलना करें तो बस हादसे में बहुत कम लोगों की जान जाती है.
जर्मनी के संघीय सांख्यिकी विभाग के मुताबिक 2017 में हुए ज्यादातर बस हादसे सार्वजनिक सेवा की बसों के हुए. पूरे देश में हुए 5,926 बस हादसों में 4,052 हादसे सार्वजनिक परिवहन की बसों में हुए. टूर ऑपरेटरों की 229 बसें हादसे का शिकार हुईं. इन हजारों दुर्घटनाओं में 22 लोगों की मौत हुई.
2015 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन यानी डब्ल्यूएचओ ने खबर दी कि यूरोप की सड़कों पर अलग अलग हादसों में कुल 84,500 लोग मारे गए. इनमें से 20,000 हजार हादसों में बसें शामिल थीं जिनमें 30,000 लोग घायल हुए और 150 लोगों की मौत हुई. यूरोप में सड़क सुरक्षा के नियम बेहद सख्त हैं लेकिन उनसे छेड़छाड़ या फिर उनका दुरुपयोग हो सकता है अगर बस ड्राइवर या फिर ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर लापरवाही करे. 2015 एक इसी तरह की यूरोपीय रिसर्च से पता चला कि बसों से होने वाले सड़क हादसों में मौत लगभग शून्य फीसदी है. यूरोप में बसों की सुरक्षा से जुड़े कुछ प्रमुख नियम:
1. सीट बेल्ट
2005 से टूरिस्ट बसों के ड्राइवर और यात्रियों के लिए सीट बेल्ट पहनना अनिवार्य कर दिया गया. इसके साथ ही यूरोपीय संघ में छोटे बच्चों के लिए खासतौर के सीट बेल्ट पहनना भी जरूरी किया गया. हालांकि अब यह ड्राइवर पर है कि वह इस नियम का पालन कराए या नहीं. हालांकि सीट बेल्ट के फायदे को लेकर भी बहुत से लोग पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं. स्विट्जरलैंड में 2012 में हुए एक बस हादसे में 28 लोगों की जान गई जिनमें 22 बच्चे थे. जांच अधिकारियों इस नतीजे पर पहुंचे थे कि सीट बेल्ट से बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ. स्विट्जरलैंड में बस की सीसीटीवी फुटेज ने दिखाया कि बच्चों ने सीट बेल्ट पहनने में नियम का पालन किया था.
2. कितना काम करेगा ड्राइवर
सड़क हादसों की एक प्रमुख वजह ड्राइवर की थकान भी होती है. इससे निबटने के लिए यूरोपीय संघ में कड़े नियम बनाए गए हैं मसलन एक कमर्शियल ड्राइवर कितने घंटे काम कर सकता है. एक ड्राइवर को हफ्ते में अधिकतम 56 घंटे ही गाड़ी चलाने की अनुमति है. उसमें से भी एक दिन में 9 घंटे से ज्यादा नहीं. 4.5 घंटे की ड्राइविंग के बाद ड्राइवर को अनिवार्य रूप से कम से कम 45 मिनट का ब्रेक लेना होता है. जहां तक सीट बेल्ट का मसला है तो आलोचकों का कहना है उसमें लापरवाही और छेड़छाड़ होती है.
3. टैकोग्राफ
ड्राइवरों की थकान से निबटने के लिए सभी कमर्शियल बसों में डिजिटल टैकोग्राफ लगाना 1 मई 2006 से अनिवार्य कर दिया गया. यह सिस्टम बस के गियर बॉक्स पर लगा होता है. यह यंत्र बस की गतिविधियों को दर्ज करता है. मसलन दूरी, गति और ड्राइविंग का समय इसके साथ ही ड्राइवर के आराम का समय.
4. एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम
2009 से यूरोपीय संघ की सभी बसों में दो एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम लगे होते हैं. एक है लेन डिपार्चर वार्निंग सिस्टम (एलडीडब्ल्यूएस) और दूसरा ऑटोनोमस इमरजेंसी ब्रेकिंग सिस्टम (एइबीएस). एइबीएस खुले रास्तों पर आमने सामने की टक्कर का जोखिम कम करते हैं. एलडीडब्ल्यूएस ड्राइवर को बस के लेन से बाहर जाने की जानकारी देता है तब जबकि उसी दिशा में इंडिकेटर का संकेत ना दिया गया हो.
यूरोपीय संघ में इन नियमों का पालन नहीं करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है. यूरोप में होने वाले बस हादसों में एक बात सामान्य है कि इनमें से ज्यादातर में रात का सफर शामिल है भले ही वह पूरी यात्रा के कुछ हिस्से के लिए हो. शायद दिन में ही सफर करने का विकल्प चुन कर आप अपने लिए सुरक्षा बढ़ा सकते हैं. तमाम सुरक्षा उपायों के बाद भी दुर्भाग्यपूर्ण हादसे तो फिर भी होंगे ही.
एलिजाबेथ शूमाखर