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यूरोप में रोजाना एक यूरो में स्वस्थ भोजन

२४ नवम्बर २०१०

एलेस सेरिन दुनिया में सादे जीवन के लिए जागरुकता फैलाना चाहते हैं. वह लोगों को बताना चाहते हैं कि एक तरफ दुनिया में भुखमरी है और दूसरी तरफ पश्चिम में जरूरत से ज्यादा खाना खाया जाता है. इसके लिए उन्होंने तरकीब निकाली है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

दुनिया के लिए मध्य यूरोप वैसे ही है जैसे दिल्ली के लिए सरोजनी नगर या लखनऊ के लिए इंदिरा नगर या फिर पटना के लिए कंकड़बाग कॉलनी. ऐसे पॉश इलाके में कोई रहे और सिर्फ एक यूरो यानी करीब 60 रुपये रोजाना पर उसे बढ़िया और स्वस्थ खाना मिले, बात सामान्य तो नहीं लगती. लेकिन स्लोवेनिया के एक फार्माकोलोजिस्ट ने ऐसा संभव कर दिया है. और यह फार्माकोलोजिस्ट अपने किए पर इतना फख्र महसूस करते हैं कि उन्होंने पूरी दुनिया से उनके उदाहरण पर अमल करने की अपील की है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

सेरिन की तरकीब है, अपना खाना खुद उगाया जाए. वह बताते हैं, "मैं पिछले दो महीने से अपने रोज के खाने पर औसतन 1.01 यूरो खर्च कर रहा हूं. मैं अपने बाग में उगाए सेब खाता हूं. हमारे यहां बीन्स सलाद और मिर्च के अलावा कई सब्जियां भी हैं."

48 साल के सेरिन का यह प्रयोग इसी हफ्ते खत्म हो रहा है. इस दौरान उन्होंने सबसे बड़ा सबक यह सीखा कि भोजन की कीमत को कई गुना कम करके स्वस्थ खाना खाना संभव है.

सेरिन कहते हैं, "पश्चिम में उपभोक्तावाद बहुत ज्यादा है. खासतौर पर अगर हम खुद की गैरविकसित देशों से तुलना करें तो यह बात और ज्यादा समझ में आती है. मैं इसे बदलना चाहता हूं. मैं दिखाना चाहता हूं कि कितना काफी है."

तस्वीर: DPA

सेरिन हैरत जताते हैं कि एक तरफ पश्चिमी दुनिया में कैलोरी गिनी जा रही हैं ताकि उन्हें कम किया जा सके और दूसरी तरफ ऐसी दुनिया है जहां कैलोरी इसलिए गिनी जाती हैं ताकि उन्हें बढ़ाया जा सके. सेरिन खुद पानी, हर्बल चाय और दूध पीते हैं. दूध वह पास ही एक के फार्म से खरीदते हैं. लेकिन ग्रीन टी और चीज से बचते हैं. हालांकि उन्हें इनकी याद आती है लेकिन ये दोनों चीजें खाने की कीमत बढ़ा देती हैं.

सेरिन ने पिछले दो महीने में चार किलो वजन कम किया है. इसकी मुख्य वजह उनका हेल्दी लाइफ स्टाइल है. इसमें रोजाना साइकलिंग और हफ्ते में तीन दिन दौड़ भी शामिल है. उनका प्रयोग भले ही खत्म हो रहा हो लेकिन सेरिन कहते हैं कि वह अपने इस लाइफ स्टाइल को जारी रखेंगे. उन्हें उम्मीद है कि दूसरे भी उनके रास्ते पर चलेंगे.

सेरिन के मुताबिक आंकड़े कहते हैं कि विकसित देशों में एक परिवार गैरविकसित देशों के परिवार के मुकाबले 400 गुना ज्यादा पैसा खाने पर खर्च करता है. अगर पूरी दुनिया उतना ही खाना खाए जितना पश्चिमी परिवार खाते हैं तो हमें धरती पर छह गुना ज्यादा अन्न पैदा करना होगा. सेरिन कहते हैं, "इस वैश्विक संकट से समझ में आता है कि दुनिया इसी तरह चलती नहीं रह सकती. हम आतंकवाद जैसी समस्याएं भी इसीलिए झेल रहे हैं क्योंकि दुनिया का एक बड़ा हिस्सा हमारे लालच की वजह से हमें पसंद नहीं करता."

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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