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यूरोप में सालाना 33 हजार जानें लेता है ये बैक्टीरिया

६ नवम्बर २०१८

अस्पतालों में डॉक्टर हर संभव कोशिश कर मरीज को बचाने की कोशिश करते हैं. लेकिन अब उनके सामने सिर्फ मरीज की बीमारी ही नहीं बल्कि अस्पतालों में मौजूद बैक्टीरिया से निपटना भी एक चुनौती बन गया है.

Neues Bakterium entdeckt MCR-1 Antibiotikaresistenz
तस्वीर: Imago/Science Photo Library

ये ऐसे बैक्टीरिया हैं जिन पर दवाइयों का कोई असर नहीं होता. यूरोपीयन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (ईसीडीसी) के आंकड़ों के मुताबिक यूरोपीय संघ के देशों में हर साल तकरीबन 33 हजार लोग एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट बैक्टीरिया की चपेट में आने से मारे जाते हैं. इस बैक्टीरिया को सुपरबग भी कहा जाता है. ये सुपरबग सबसे असरदार एंटीबायोटिक दवाइयों का सामना करने में सक्षम होते हैं, खासकर ऐसी दवाइयां जिनका इस्तेमाल आखिरी उपचार के रूप में मरीज पर किया जाता है.

साइंस पत्रिका लैंसेट में छपी एक स्टडी के मुताबिक सुपरबग का असर एचआईवी, फ्लू, टीवी जैसी बीमारियों के संयुक्त प्रभाव जितना घातक है. रिसर्चरों के मुताबिक, "एंटीबायोटिक के खिलाफ अपनी प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर चुके ये बैक्टीरिया आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए खतरा हैं." 2007 में इस बैक्टीरिया के चलते तकरीबन 25 हजार मौतें हुईं थीं. नवजात और बुजुर्ग व्यक्तियों को इस बैक्टरिया से अधिक खतरा है. यह भी देखा गया है कि 75 फीसदी मामलों में इंफेक्शन अस्पताल और क्लीनिक से मरीजों तक पहुंचता है. यूरोपीय देशों के भीतर भी यह अंतर बना हुआ है. 

यूरोपीय संघ में हाल

ईसीडीसी ने अपनी इस स्टडी में 2015 का डाटा इस्तेमाल किया था. डाटा के मुताबिक यूरोपीय संघ और यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र (ईईए) में आने वाले देशों के भीतर इस प्रतिरोधी क्षमता वाले बैक्टीरिया के चलते पांच प्रकार के इंफेक्शन नजर आए. इसने ग्रीस और इटली को सबसे अधिक प्रभावित किया. वहीं उत्तरी यूरोपीय देशों में इंफेक्शन का असर कम दिखा.

स्वास्थ्य विशेषज्ञ काफी समय से इस बैक्टीरिया से होने वाले खतरों की चेतावनी दे रहे हैं. ईसीडीसी ने कहा, "एंटीबायोटिक दवाइयों का प्रभावी न होना मुश्किल भरा होता है. कई मामलों में तो उपचार करना असंभव हो जाता है."

रिसर्चरों ने अपनी इस स्टडी में कहा है कि इस गंभीर स्वास्थ्य चुनौती से निपटने के लिए यूरोपीय संघ में और वैश्विक स्तर पर आपसी समन्वय की आवश्यकता होगी. साथ ही हर देश को अपनी जरूरत के मुताबिक बचाव और रोकथाम वाली नीतियों की जरूरत होगी.

 

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