यह छिपने का शायद बेहतरीन तरीका नहीं हो सकता लेकिन शार्क की कुछ प्रजातियां सागर के तल पर चमकदार हरे रंग की दिखने लगती हैं जो उनकी तरह की दूसरी शार्कों को नजर आता है.
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वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने उस मॉलिक्यूल का पता लगा लिया है जिसकी वजह से यह समुद्री शिकारी जैविक तौर रूप से प्रदीप्त होता है और मुमकिन है कि यह सूक्ष्म जीवों के संक्रमण से जूझने में भी मदद करता हो. यह रिसर्च रिपोर्ट आईसाइंस जर्नल में छपी है.
न्यूयॉर्क के सिटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और रिसर्च के सह लेखर डेविड ग्रुबर का कहना है, "यह दूसरे समुद्री जैविक प्रदीप्त से बिल्कुल अलग है. यह प्रोटीन से अलग एक छोटा मॉलिक्यूल है और यह दिखाता है कि नीले समुद्र के भीतर जीवों में नीले रंग को अवशोषित करने और उसे दूसरे रंग में बदलने की अलग क्षमता स्वतंत्र रूप से विकसित हो रही है."
रिसर्च स्वेल शार्क और चेन कैटशार्क पर केंद्रित थी. इन जीवों के बारे में ग्रुबर ने सैन डिएगो के तटों पर स्कूबा डाइव के दौरान अध्ययन किया था. उनका कहना है कि ये दोनों टीवी पर दिखने वाले व्हाइट या टाइगर शार्क की तुलना में ज्यादा शर्मीले हैं. ग्रुबर ने बताया, "ये एक मीटर लंबे होते हैं और समंदर की तली पर लेटे रहते हैं, यह बहुत शर्मीले हैं और अच्छे तैराक नहीं हैं." ये शार्क समुद्र में 30 मीटर या उससे ज्यादा की गहराई में ही रहते हैं जहां स्पेक्ट्रम के सिर्फ नीले रंग सिरा व्याप्त होता है, अगर आपको शार्क काट ले और खून निकलने लगे तो यह काली स्याही जैसा दिखेगा.
ग्रुबर और येल यूनिवर्सिटी में उनके साथी रहे जेसन क्रॉफर्ड ने देखा की शार्क की त्वचा में दो रंग हैं, एक हल्का और दूसरा गहरा. हल्के रंग वाली त्वचा में मौजूद रसायनों में प्रदीप्ति वाले मॉलिक्यूल की खोज के बाद उन्हें पता चला कि शार्क नीली रोशनी ग्रहण कर हरा रंग बाहर भेजती है. शार्क की आंखें की खास रचना उन्हें नीले हरे रंग के फलक के लिए संवेदनशील बनाती है.
ग्रुबर ने डाइव के दौरान देखा कि शार्क समूह में रहती हैं, एक समूह में दो से 10 शार्क हैं, इसका मतलब है कि वो सामाजिक हैं. इसमें एक ख्याल आया कि क्या वो इन रंगों के जरिए अलग अलग लिंगों में फर्क करती हैं या फिर किसी अलग शार्क की पहचान तय करती हैं. इन शार्को में ऐसे मेटाबोलाइट मिले जो शार्क के लिए सूक्ष्म जीवों से सुरक्षा में मददगार हो सकते हैं. मेटाबोलाइट उपापचय (मेटाबॉलिज्म) के लिए जरूरी पदार्थ को कहते हैं.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
लोग शार्क और बिच्छू से बहुत डरते हैं और उन्हें सबसे खतरनाक जीव-जंतुओं की सूची में रखते हैं. लेकिन अगर उनके शिकार बने लोगों की संख्या देखें, तो पता चलेगा कि उनसे बहुत कम खतरा है. जानिए, कौन हैं विश्व के सबसे खतरनाक जीव.
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11. शार्क और भेड़िये
इन दोनों जानवरों के कारण हर साल दुनिया भर में महज दस लोगों की जान जाती है. इसमें कोई शक नहीं है कि भेड़िये और शार्क की कुछ प्रजातियां आपकी जान भी ले सकती हैं. लेकिन वास्तव में बहुत कम लोग ही इनका शिकार बनते हैं. आपकी जान को इनसे ज्यादा खतरा तो घर पर रखे टोस्टर से हो सकता है.
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10. शेर और हाथी
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 100. जंगल का राजा शेर आपको अपना शिकार बना ले, यह कल्पना के परे नहीं है. लेकिन अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि एक हाथी द्वारा आपके मारे जाने की भी उतनी ही संभावना है. हाथी, जो कि भूमि पर रहने वाला सबसे बड़ा जानवर है, काफी आक्रामक और खतरनाक हो सकता है.
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9. दरियाई घोड़ा
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 500. दरियाई घोड़े शाकाहारी होते हैं. लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि वे खतरनाक नहीं होते. वे काफी आक्रामक होते हैं और अपने इलाके में किसी को प्रवेश करता देख उसको मारने से पीछे नहीं रहते.
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8. मगरमच्छ
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 1,000. मगरमच्छ जितने डरावने दिखते हैं, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक भी होते हैं. वे मांसाहारी होते हैं और कभी-कभी तो खुद से बड़े जीवों का भी शिकार करते हैं जैसे कि छोटे दरियाई घोड़े और जंगली भैंस. खारे पानी के मगरमच्छ तो शार्क को भी अपना शिकार बना लेते हैं.
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7. टेपवर्म
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 2,000. टेपवर्म परजीवी होते हैं जो कि व्हेल, चूहे और मनुष्य जैसे रीढ़धारी जीव-जंतुओं की पाचन नलियों में रहते हैं. वे आम तौर पर दूषित भोजन के माध्यम से अंडे या लार्वा के रूप में शरीर में प्रवेश करते हैं. इनके संक्रमण से शार्क की तुलना में 200 गुना ज्यादा मौतें होती हैं.
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6. एस्केरिस राउंडवर्म
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 2,500. एस्केरिस भी टेपवर्म जैसे ही परजीवी होते हैं और ठीक उन्हीं की तरह हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. लेकिन ये सिर्फ पाचन इलाकों तक सीमित नहीं रहते. दुनिया भर में लगभग एक अरब लोग एस्कारियासिस से प्रभावित हैं.
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5. घोंघा, असैसिन बग, सीसी मक्खी
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 10,000. इन मौतों के जिम्मेदार दरअसल ये जीव खुद नहीं होते, बल्कि इनमें पनाह लेने वाले परजीवी हैं. स्किस्टोसोमियासिस दूषित पानी पीने में रहने वाले घोंघे से फैलता है. वहीं चगास रोग और नींद की बीमारी असैसिन बग और सीसी मक्खी जैसे कीड़ों के काटने से.
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4. कुत्ता
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 25,000. रेबीज एक वायरल संक्रमण है जो कई जानवरों से फैल सकता है. मनुष्यों में यह ज्यादातर कुत्तों के काटने से फैलता है. रेबीज के लक्षण महीनों तक दिखाई नहीं देते लेकिन जब वे दिखाई पड़ते हैं, तो बीमारी लगभग जानलेवा हो चुकी होती है.
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3. सांप
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 50,000. सांपों की सभी प्रजातियां घातक नहीं होतीं. कुछ सांप तो जहरीले भी नहीं होते. पर फिर भी ऐसे काफी खतरनाक सांप हैं जो इन सरीसृपों को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हत्यारा बनाने के लिए काफी हैं. इसलिए सांपों से दूरी बनाए रखें.
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2. इंसान
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 4,75,000. जी हां, हम भी इस खतरनाक सूची में शामिल हैं. आखिर इंसान एक-दूसरे की जान लेने के कितने ही अविश्वसनीय तरीके ढूंढ लेता है.
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1. मच्छर
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 7,25,000. मच्छरों द्वारा फैलने वाला मलेरिया अकेले सलाना छह लाख लोगों की जान लेता है. डेंगू बुखार, येलो फीवर और इंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारियां भी मच्छरों से फैलती हैं.
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क्रॉफर्ड का कहना है कि समुद्री जीवों की जैविक प्रदीप्ति को समझ कर एक दिन मेडिकल इमेजिंग की दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल की जा सकती है. दूसरी तरफ ग्रुबर मानते हैं कि हाल के वर्षों में शार्कों के बारे में हुई बड़ी खोजों से पता चलता है कि करीब 40 करोड़ साल से मौजूद इस समुद्री जीव के बारे में हम अब भी कितना कम जानते हैं.