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समाज के डर से बाल विवाह

२० अगस्त २०१४

अपनी 15 साल की बेटी की शादी 40 साल के आदमी से करके हरियाणा की बसंती रानी बेहद खुश हैं. अपने फैसले के बारे में दलील देते हुए वह कहती हैं, "अगर इसके साथ कुछ ऐसा वैसा हो जाता तो कौन इससे शादी करता."

तस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी यूनिसेफ के मुताबिक दुनिया भर में तीन में से एक बाल विवाह भारत में होता है. बसंती रानी मानती हैं जिस तरह बलात्कार और यौन शोषण के मामले बढ़ रहे हैं, लड़की की शादी कर देना ही समझदारी है.

लड़कियों को लेकर भारतीय समाज में असुरक्षा की भावना कच्ची उम्र में शादी की बहुत बड़ी वजह है. संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कड़े कानून के होने के बावजूद कम उम्र में लड़कियों की शादी के मामलों में भारत दुनिया में छठे नंबर पर है. इस समय 20 से 49 साल की आयु वर्ग की 27 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 15 साल से कम उम्र में कर दी गई थी.

सुरक्षा की चिंता

यूनिसेफ के साथ काम करने वाली संस्था दसरा की रिसर्च असोसिएट सोनवी ए खन्ना मानती हैं, "समाज पर हावी पितृसत्ता के कारण यह समस्या अभी भी बनी हुई है, जिसमें लड़की की जिंदगी का इकलौता मकसद शादी और बच्चे पैदा करना समझा जाता है." उन्होंने माना कि भारत के गांव और शहरों में बढ़ रहे लड़कियों के खिलाफ हिंसा के मामलों से परिवारों में लड़कियों की सुरक्षा के लिए डर बैठा हुआ है. वे जल्द से जल्द उन्हें पति के सुपुर्द कर देना चाहते हैं.

तस्वीर: AP

भारत के राष्ट्रीय अपराध लेखा विभाग के मुताबिक 2013 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 309,546 मामले दर्ज हुए जबकि 2012 में यह संख्या 244,270 थी. ये अपराध किसी भी तरह के हो सकते हैं, सड़क पर छेड़छाड़, बलात्कार, तस्करी या फिर मारपीट. 2013 के दौरान दिल्ली में 1,441, मुंबई में 391 और बैंगलोर में 80 बलात्कार के मामले सामने आए. यहां तक कई बार दहेज की मांग पूरी न होने पर लड़की को मौत के हवाले कर दिया जाता है या उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है.

कहां हैं जड़ें

जानकारों का कहना है कि कम उम्र में शादी से रोकने के लिए कानून का सहारा लेकर लोगों की सोच नहीं बदली जा सकती. बाल विवाह और कम उम्र में गर्भधारण के बारे में दसरा की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी शादियों के ज्यादातर मामले गरीब तबके में पाए जाते हैं. शिक्षा की कमी, खराब लिंग अनुपात और औरतों को दबाकर रखने की सोच, ये सभी बाल विवाह के लिए जिम्मेदार हैं.

अगर यह परंपरा यूं ही चलती रही तो 2005 से 2010 के बीच पैदा हुई लड़कियों में से 2.8 करोड़ अगले 15 साल में बाल विवाह की भेट चढ़ जाएंगी. खन्ना ने बताया कि इस समस्या की जड़ें प्रशासनिक तंत्र से भी होकर गुजरती हैं, "कानून के रखवाले ही भ्रष्ट हैं, पुलिस वाले जो खुद बाल विवाह को रोकने के लिए संवेदनशील नहीं हैं."

जान को खतरा

कम उम्र में शादी के लड़कियों को कई नुकसान भी उठाने पड़ते हैं. कच्ची उम्र में गर्भधारण के लिए शरीर पूरी तरह तैयार नहीं होता. मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा भी रहता है. भारत में पैदा होने वाले हर 24 में से एक बच्चे की मौत पैदा होने के एक साल के एक साल के अंदर हो जाती है. कम उम्र में मां बनने से मां और बच्चों दोनों में कुपोषण के मामले सामने आना स्वभाविक है.

बाल विवाह को समाज से मिटाने में लगे कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनके सामने सबसे बड़ी समस्या रूढ़िवादी विचारधारा, गरीबी और कम उम्र में शादी के नुकसान के बारे में जानकारी की कमी है. यह धारणा भी आम है कि शादी कर देना लड़की की आर्थिक हालत और उसकी सुरक्षा की जमानत है.

एसएफ/एएम (आईपीएस)

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