अंगेला मैर्केल ने इस्लाम और मुसलमानों का हर आम संदेह से बचाव किया है लेकिन साथ ही कहा है, "धार्मिक आजादी और सहिष्णुता का मतलब यह नहीं है कि शरिया संविधान से ऊपर है." यदि मैर्केल जर्मनी की चांसलर न होकर सउदी अरब की ब्लॉगर होतीं तो उनका एक वाक्य उन्हें कड़ी सजा दिला सकता है. जैसे कि रइफ बदावी को मिला है. सउदी ब्लॉगर को उसके देश में दस साल की कैद के अलावा 1000 कोड़ों की सजा सुनाई गई है, कथित रूप से इस्लाम का अपमान करने के लिए.
कौन कर रहा है इस्लाम का अपमान
असल में यह सजा ही इस्लाम का अपमान है और उसकी छवि को नुकसान पहुंचा रही है. बदावी की गलती अपने विचार की अभिव्यक्ति थी जिसे पश्चिम में ही नहीं बल्कि बहुत से मुसलमानों के बीच भी समर्थन मिला है. बदावी ने अपने देश में राज्य और धर्म के बीच विभाजन न होने की शिकायत की थी. और उन्होंने इस्लाम को ईसाइयत, यहूदी और धार्मिक स्वतंत्रता के बराबर बताने की "जुर्रत" की.
जब रइफ बदावी को पिछले शुक्रवार 9 जनवरी को 50 कोड़े लगाए गए तो बहुत से पश्चिमी मीडिया में उसकी चर्चा भर हुई. सभी निगाहें पेरिस की ओर थीं, सभी आतंकवाद की निंदा कर रहे थे, अभिव्यक्ति की आजादी का बचाव कर रहे थे और बोल रहे थे मैं भी शार्ली हूं. किसी ने बदावी के लिए बड़ी रैली नहीं निकाली जबकि उन्होंने भी मारे गए कार्टूनिस्टों की ही तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल किया था. सिर्फ कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वामपंथियों ने कहा, मैं सिर्फ शार्ली ही नहीं हूं, मैं रइफ भी हूं. अरब देशों से भी ज्यादा एकजुटता नहीं दिखी है. हालांकि रइफ को कुछ समर्थन मिल रहा है लेकिन वहां भी ज्यादातर बुद्धिजीवी शार्ली एब्दॉ और मोहम्मद के कार्टून में व्यस्त हैं.
हालांकि रइफ बदावी को दी जा रही सजा का खुला और व्यापक विरोध की जरूरत है, पश्चिम में भी. बदावी किसी चरमपंथी आतंकी जेल में यातना नहीं दी जा रही है बल्कि पश्चिमी देशों के सहयोगी समझे जाने वाले देश में न्यायपालिका द्वारा. एक देश जहां कोड़ा लगाने के अलावा गले को कलम किया जाना भी सजा में शामिल हैं. एक ऐसा देश आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में पूरा सहयोगी हो सकता है, इसे पागलपन के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता. हमें भ्रष्ट सउदी राजपरिवार को नहीं, बल्कि रइफ बदावी जैसे कार्यकर्ताओं को समर्थन देना चाहिए.
इंटरनेट ने समाज को लोकतांत्रिक बनाने का काम किया है और ब्लॉगरों ने लोकतांत्रिक बहस को नई दिशा दी है. लेकिन आलोचना सरकारों को रास नहीं आ रही है और ब्लॉगरों को हर कहीं दमन का शिकार बनाया जा रहा है.
तस्वीर: DW/H. Kieselसउदी ब्लॉगर रइफ बदावी को इस्लाम के कथित अपमान के लिए सुनाई गई 1,000 कोड़ों की सजा जनता में शासन का डर बनाए रखने का एक क्रूर तरीका है. मई 2014 में सुनाई गई सजा को बरकरार रखते हुए सउदी कोर्ट ने बदावी को हर हफ्ते सार्वजनिक रूप से 50 कोड़े मारे जाने के अलावा 10 साल की जेल की सजा भी सुनाई है.
तस्वीर: privatपहली बार जनवरी 2015 में बदावी को जेद्दाह में सार्वजनिक रूप से 50 कोड़े मारे गए. इसके विरोध में नीदरलैंड्स के द हेग में प्रदर्शन हुए. दुनिया भर में सजा का विरोध हुआ. अब इस सजा के खिलाफ किसी कोर्ट में अपील करना संभव नहीं है. अब केवल सउदी किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज ही 31 साल के बदावी को क्षमादान दे सकते हैं.
तस्वीर: Beekman/AFP/Getty Imagesब्लॉगर रइफ बदावी 2012 से सउदी अरब में कैद हैं. उनकी वेबसाइट को बंद कर दिया गया है. बदावी पर धर्मनिरपेक्षता की तारीफ करने का आरोप है.
तस्वीर: Beekman/AFP/Getty Imagesबदावी की सजा के खिलाफ मॉन्ट्रियल में हुए प्रदर्शन में उनकी पत्नी इंसाफ हैदर ने भी भाग लिया. उन्होंने कोड़ों की सजा की तुलना मुस्लिम आतंकवादियों के हमलों से की.
तस्वीर: picture alliance/empicsबदावी अपने इंटरनेट पेज पर सउदी अरब में वहाबी इस्लाम का कड़ाई का पालन करवाने के लिए धार्मिक पुलिस की नियमित रूप से आलोचना करते थे. एमनेस्टी इंटरनेशनल सजा के खिलाफ अभियान चला रहा है.
तस्वीर: DW/A.-S. Philippiईरान के सोहैल अराबी को फेसबुक पर टिप्पणियों के लिए इमामों के अपमान का आरोप लगाकर सजा दी गई है. वे अभी भी जेल में हैं.
तस्वीर: Privatबांग्लादेश के रसेल परवेज ने भौतिकी की पढ़ाई कर देश में धार्मिक मान्यताओं को चुनौती देने की कोशिश की. ईशनिंदा के आरोप में उन्हें जेल की सजा मिली.
तस्वीर: Sharat Choudhuryमिस्र के प्रमुख ब्लॉगर अला अब्देल फतह पिछले साल एक मुकदमे के दौरान अदालत के पिंजड़े में. उन पर देश के विरोध प्रदर्शन कानून को तोड़ने के लिए मुकदमा चलाया गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Ravy Shakerब्लॉगरों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा बर्ताव सिर्फ इस्लामी देशों में ही नहीं होता. पुतिन विरोधी अलेक्सी नवाल्नी को भी सरकार की ताकत का दंश झेलना पड़ा है.
तस्वीर: Reuters/Tatyana Makeyeva