दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान ने लड़ाई से तौबा कर ली, लेकिन उत्तर कोरिया के बढ़ते खतरे के चलते अब जापान अपनी सेना को मजबूत करने जा रहा है.
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जापान की सरकार ने रक्षा बजट में रिकॉर्ड इजाफे के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. एक अप्रैल 2018 से जापान अपनी रक्षा पर 45.76 अरब डॉलर खर्च करेगा. यह लगातार छठा साल है जब जापान ने रक्षा बजट बढ़ाया है. 137 अरब येन के रक्षा बजट से अमेरिकी हथियार और रॉकेट खरीदे जाएंगे. अब तक जापान की ज्यादातर मिसाइलें 300 किलोमीटर की रेंज वाली थीं. अमेरिकी मिसाइलें उत्तर कोरिया तक मार कर सकेंगी.
डिफेंस बजट: रूस से आगे भारत
रक्षा कार्यक्रमों का विश्लेषण करने वाले संस्थान आईएचएस जेन के मुताबिक 2016 में भारत रक्षा खर्च के मामले में रूस और सऊदी अरब को पछाड़कर नंबर 4 पर आ गया है. 2018 में सबसे ज्यादा रक्षा बजट किन देशों का होगा, एक अनुमान:
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अमेरिका, 625.1 अरब डॉलर
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चीन, 201.5 अरब डॉलर
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भारत, 56.5 अरब डॉलर
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ब्रिटेन, 54.4 अरब डॉलर
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सऊदी अरब, 47.6 अरब डॉलर
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फ्रांस, 45.1 अरब डॉलर
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रूस, 41.1 अरब डॉलर
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जापान, 41 अरब डॉलर
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जर्मनी, 37.9 अरब डॉलर
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दक्षिण कोरिया, 35.6 अरब डॉलर
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रक्षा बजट में लॉन्ग रेंज इंटरसेप्टर खरीदने का भी प्रस्ताव है. यह बैलेस्टिक मिसाइल को हवा में भी ध्वस्त करने वाला सिस्टम है. जापान के रक्षा मंत्री इंतेसुनोरी ओनोडेरा ने कैबिनेट मीटिंग के बाद कहा, "यह बहुत जरूरी है कि हम अत्याधुनिक और सबसे सक्षम उपकरणों के जरिये अपनी सुरक्षा बढ़ाएं." 2.2 अरब येन खर्च कर टोक्यो मीडियम रेंज मिसाइलें भी खरीदेगा.
उत्तर कोरिया हाल के समय में जापान के ऊपर नए किस्म की कई इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइलें टेस्ट कर चुका है. जापान के इकोनोमिक जोन वाले समंदर में गिरने से पहले ये मिसाइलें 4,000 किलोमीटर की ऊंचाई तक गईं. इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइलों के अलावा उत्तर कोरिया हाइड्रोजन बम भी टेस्ट कर चुका है.
1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद जापान ने युद्ध से तौबा कर ली थी. लेकिन उत्तर कोरिया के बढ़ते खतरे और इलाके में चीन के फैलते दबदबे के चलते टोक्यो को अपनी सेना मजबूत करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप चाहते हैं कि टोक्यो और वॉशिंगटन साझा उपक्रम के जरिये मिलकर हथियार विकसित करें.
ये आईसीबीएम क्या है?
परमाणु हथियारों से लैस एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जा कर मार करने वाली आईसीबीएम बनाने पर सबसे पहले नाजी जर्मनी में काम शुरू हुआ था.
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तबाही का सामान
इंटरकंटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल या आईसीबीएम का मतलब है ऐसी नियंत्रित मिसाइल जो कम से कम 5500 किलोमीटर की दूरी तक जा कर मार कर सके. यानी ऐसी मिसाइल जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जा कर तबाही मचा सके.
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एक मिसाइल कई हथियार कई निशाने
ये मिसाइलें पहले तो सिर्फ परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थीं लेकिन फिर इन्हें पारंपरिक और रासायनिक हथियार ले जाने के काबिल भी बनाया गया. मौजूदा दौर की आधुनिक आईसीबीएम का मतलब है ऐसी मिसाइल जो कई हथियार एक साथ ले कर जा सके. साथ ही मिसाइल हर हथियार को अलग निशाने पर गिराने में सक्षम हो.
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निशना छोटा हो या बड़ा
शुरुआती आईसीबीएम निशाना लगाने के हिसाब से ज्यादा सटीक नहीं थे इसलिए उन्हें बड़े ठिकानों पर हमला करने के लिए तैयार किया गया था जैसे कि पूरे शहर या फिर ऐसी ही किसी जगह को निशाना बनाना हो. दूसरी और तीसरी पी़ढ़ी के आईसीबीएम में सटीक निशाना लगाने की काबिलियत आ गयी और उन्हें छोटे छोटे ठिकानों पर हमला करने के लिए भी तैयार किया जाने लगा.
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वेर्हनर फॉन ब्राउन
दुनिया में पहली बार आईसीबीएम नाजी जर्मनी ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका को निशाना बनाने के लिए तैयार की. वेर्हनर फॉन ब्राउन ने इसे बनाया था. विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ब्राउन अमेरिका चले गए और वहां की सेना के लिए मिसाइल कार्यक्रम के विकास में जुट गए, खासतौर से आईएसीबीएम के.
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अमेरिका और रूस ने की पहल
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मन डिजाइन के आधार पर ही अमेरिका और सोवियत संघ आईसीबीएम के निर्माण में जुट गए. रूस का पहला लक्ष्य ऐसे आईसीबीएम तैयार करना था जो यूरोपीय देशों तक मार कर सके.
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पहली कामयाबी रूस को मिली
रूस ने 15 मई 1957 को पहली बार आईसीबीएम का परीक्षण किया लेकिन महज 400 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद ही रॉकेट गिर गया. इसके कुछ ही महीनों बाद अगस्त 1957 में आईसीबीएम ने सफलतापूर्वक 6000 किलोमीटर की दूरी तय की. दो साल बाद ही रूस ने हमला करने में सक्षम पहला आईसीबीएम तैनात कर दिया.
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अमेरिका ने भी कोशिशें तेज की
अमेरिका रॉकेट की तकनीक में सोवियत संघ से काफी पीछे था और उस वक्त हुए कुछ अंतरराष्ट्रीय समझौतों ने भी दोनों देशों के आईसीबीएम कार्यक्रम में बाधा डाली. उस दौर में दोनों देशों का ध्यान एंटी बैलिस्टिक मिसाल तंत्र बनाने पर भी रहा. इन सबके बाद भी 1980 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने आईसीबीएम कार्यक्रम की नींव रखी.
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चीन ने भी बनाया आईसीबीएम
शीत युद्ध के दौरान रूस से मनमुटाव के बाद चीन भी इस होड़ में शामिल हो गया और 1975 में उसने अपना पहला आईसीबीएम तैयार कर लिया. इसकी तैनाती होते होते 1981 का साल आ गया और 1990 तक उसने कम से कम 20 आईसीबीएम तैयार कर लिये थे.
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भारत भी आईसीबीएम की दौड़ में
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों के पास लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें मौजूद हैं. इनमें से रूस, अमेरिका और चीन के पास आईसीबीएम भी है. भारत ने 2012 में 5000 हजार किलोमीटर तक मार करने वाली अग्नि 5 मिसाइल का परीक्षण कर आईसीबीएम क्लब में शामिल होने का दावा किया है.
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इस्राएल और उत्तर कोरिया
इस्राएल ने जेरिको 3 मिसाइल तंत्र तैयार किया है जिसे 2008 से सेवा में शामिल कर लिया गया. इसे भी आईसीबीएम का दर्जा दिया जाता है. उत्तर कोरिया भी अब अपने पास आईसीबीएम होने का दावा कर रहा है.