एयर इंडिया में खरीद की अभिरूचि के लिए 17 मार्च तक की समयसीमा जारी की गई है. इससे पहले भी एयर इंडिया के 76 फीसदी हिस्से को बेचने की एक नाकाम कोशिश की जा चुकी है.
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भारत की केंद्र सरकार ने कर्ज में डूबी एयर इंडिया कंपनी में अपनी 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के लिए आरंभिक सूचना जारी कर दी है. सरकार की ओर से जारी दस्तावेज के मुताबिक "रणनीतिक विनिवेश" के तहत एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस के भी 100 फीसदी और संयुक्त उद्यम एआईएसएटीएस का 50 फीसदी हिस्सा बेचेगी.
इसके अलावा प्रबंधन नियंत्रण का अधिकार भी सफल बोली लगाने वाले के हाथ चला जाएगा. हालांकि 2018 में भी सरकार ने एयर इंडिया के विनिवेश की कोशिश की थी लेकिन तब ये कोशिश पूरी तरह से नाकाम रही थी क्योंकि एक भी बोली लगाने वाला सामने नहीं आया था.
कर्ज में डूबा एयर इंडिया
एयर इंडिया पर करीब 58,000 करोड़ का कर्ज है और वह घाटे में चल रही है. एयर इंडिया के पास कर्मचारियों के वेतन और ईंधन खरीदने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं है. पिछले दिनों अधिकारियों ने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर कोई खरीदार नहीं मिलता तो एयर इंडिया को बंद करना पड़ेगा.
सरकार ने जो बोली दस्तावेज जारी किया है उसके मुताबिक अन्य देनदारियों के साथ संभावित खरीदार को 3.26 अरब डॉलर का कर्ज भी ग्रहण करना पड़ेगा. इससे पहले सरकार ने 2018 में एयर इंडिया में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव लेकर आई थी, लेकिन इस सौदे के लिए कोई तैयार नहीं हुआ. अब भारत सरकार ने कुल 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया है.
टाटा समूह, सिंगापुर एयरलाइंस और इंडिगो ने साथ मिलकर अधिग्रहण को लेकर कोशिश की थी लेकिन बाद में वे इससे बाहर हो गए. 1932 में एयर इंडिया की स्थापना हुई थी. बाद में इसे महाराजा कहा जाने लगा और समय के साथ आसमान में इसका वर्चस्व भी बढ़ा लेकिन अनदेखी ने इसे फटेहाल बना दिया. साल दर साल कंपनी का घाटा बढ़ता गया और अब उसकी यह नौबत आ गई है. पिछले साल अगस्त में सरकारी तेल कंपनियों ने एयर इंडिया को ईंधन की सप्लाई रोक दी थी, कारण था समय पर भुगतान नहीं होना. जेट एयरवेज के डूबने के बाद से ही देश का एविएशन सेक्टर मंदी में डूबा हुआ है.
एए/आरपी (एएफपी)
भविष्य की उड़ान
ईंधन लगातार महंगा होता जा रहा है. अगर हम आने वाले दिनों में उड़ना चाहते हैं तो ऐसे विमान बनाए जाने की जरूरत है, जहां ईंधन कम लगे. एविएशन डिजाइनर भविष्य के विमानन की रूपरेखा बना रहे हैं.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
ग्रीन एविएशन
दुनिया भर में सीओ2 उत्सर्जन का तीन फीसदी उड़ानों से होता है. यूरोपीय आयोग के लिए यह बहुत ज्यादा है. 2050 तक वह इसमें 25 फीसदी की कमी करना चाहता है. नए एविएशन प्रोजेक्ट से यह संभव होगा. तस्वीर में बाउहाउस लुफ्टफार्ट का डिजाइन. एक विमान जो बिजली से चलता है.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
बर्फीले इंजिन
विमान सिर्फ ताकतवर इंजिनों से ही उड़ सकता है. इन इंजिनों को माइनस 190 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर दिया जाता है. बिजली ले जाने वाले केबलों और वायरों में इलेक्ट्रिकल रेसिस्टेंस बिलकुल खत्म हो जाता है. अब इंजीनियर सिर्फ बैटरी को हल्का बनाने की कोशिश में लगे हैं.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
आकार अहम
सही आकार ही ईंधन बचाने में मदद कर सकता है. यह तस्वीर जर्मन एरोस्पेस सेंटर के प्लेन की है, जिसमें कैबिन और पंखों को एक कर दिया गया है. इस "ब्लेंडेड विंग बॉडी" से प्रतिरोध कम होता है और कैबिन भी विंग्स का हिस्सा बन जाता है.
तस्वीर: DLR
जेट इंजिन की बजाए प्रोपेलर
खुले रोटर आधुनिक जेट इंजिन की बजाए अधिक क्षमता वाले हैं. जर्मन एविएशन सेंटर का शोध बताता है कि इस नए तरीके से 20 फीसदी तक ईंधन बचाया जा सकता है. रोटर का व्यास पांच मीटर तक हो सकता है.
तस्वीर: DLR
अच्छा लेकिन शोर करने वाला
वैसे तो खुले रोटर प्लेन के पीछे के हिस्से में लगाए जा सकता हैं. इनकी क्षमता तो अच्छी होगी लेकिन ये आज के प्लेन की तुलना में थोड़े धीमे होंगे. दो घंटे की उड़ान 15 मिनट लंबी हो सकती है. एक मुश्किल यह भी है कि रोटर बहुत आवाज करते हैं.
तस्वीर: DLR
केवल क्षमता
यहां देखा जा सकता है कि क्षमता बढ़ाने के लिए नए विमान का डिजाइन कैसा होगा. लंबे पंख, पतली बॉडी और बिजली का इंजिन. सोलर इम्पल्स नाम का यह प्लेन बैर्टांड पिकार्ड और आंद्रे बोर्शबर्ग ने बनाया है. लेकिन यह सिर्फ 70 किलोमीटर प्रति घंटा ही चल सकता है और मालवाहन के काम नहीं आ सकता.
तस्वीर: Reuters
फोल्ड होने वाले पंख
लंबे और पतले पंख एरोडायनमिक्स के लिए अच्छे होते हैं और ईंधन बचाने में मदद करते हैं. सोलर प्लेन के पंख जंबो जेट से पांच मीटर ही छोटे हैं. अधिकतर एयरपोर्टों पर ऐसे गेट नहीं हैं, जहां इतने बड़े पंख वाले विमान लगाए जा सकें. तो हल है, मुड़ने वाले पंख.
तस्वीर: Bauhaus-Luftfahrt e.V.
तेज तर्रार
जिन्हें बहुत जल्दी है, उनके लिए जर्मन एविएशन सेंटर का स्पेसलाइनर एक अच्छा विकल्प है. यह एक गोल सा, हाइपरसॉनिक पंखों वाला यात्री विमान है, जिसमें रॉकेट का इंजिन लगा है. 2050 तक यह यूरोप से ऑस्ट्रेलिया 90 मिनट में पहुंचा सकेगा.
तस्वीर: DLR
बायप्लेन की ओर
लुफ्थांसा के बॉक्सविंग प्लेन में बड़े खुले प्रॉपेलर हैं और खूब लंबे और पतले पंख हैं. इस बायप्लेन के पंख तीर की तरह हैं, लेकिन इनकी लंबाई सामान्य हवाई अड्डों के लिए भी ठीक है.