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रवींद्रनाथ टेगोर के 'चार अध्याय' पर फिल्म

१३ जून २०११

रवींद्रनाथ टेगोर के उपन्यास 'चार अध्याय' पर बांग्ला में फिल्म बनने जा रही है. फिल्म आज के समय में नक्सलवाद की समस्या और उस से जूझ रहे युवा को दर्शाएगी. टैगोर की 150वीं सालगिराह पर रिलीज होगी फिल्म.

Rabindranath Tagore.jpg Der indische Dichter, Philosoph und Maler Rabindranath Tagore in einer undatierten Aufnahme. 1913 erhielt der Inder Tagore - als erster Autor außerhalb Europas - den Nobelpreis für Literatur. Nun bietet die Sammlung «Das goldene Boot», herausgegeben vom Tagore-Kenner und Übersetzer Martin Kämpchen, deutschen Lesern die Gelegenheit, den bengalischen Dichterfürsten wieder- und auch neu zu entdecken. Neu deshalb, weil viele der Gedichte, Lieder, Erzählungen, Dramen und Essays frisch übersetzt wurden, und zwar ausschließlich aus dem Original. Außerdem enthält der Band Tagores Gespräche mit Einstein - und eine sehr lesenswerte biografische Skizze Kämpchens über Tagore (1861-1941). (zu Korr: "Schillernder Tropfen im Meer der Poesie: Tagore-Buch bietet Überblick" vom 07.11.2005) +++(c) dpa - Bildfunk+++
तस्वीर: picture-alliance/dpa

फिल्म का निर्देशन बपादित्या बंधोपाध्याय करेंगे. उनका कहना है कि वह टैगोर के उपन्यास को एक नए रूप में पेश करेंगे. जहां टैगोर का उपन्यास 1930 के दशक के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में है, वहीं बंधोपाध्याय की फिल्म आज की नक्सलवाद की समस्या को उठाएगी. बंधोपाध्याय ने कहा, "मैं 2006 से चार अध्याय को पर्दे पर उतारने के बारे में सोच रहा हूं."

इससे पहले भी एक बार चार अध्याय पर फिल्म बन चुकी है. कुमार शाहनी के निर्देशन में यह फिल्म हिंदी में बनी थी. लेकिन बंधोपाध्याय ने कहा कि उनकी फिल्म अलग होगी. वह कहते हैं, "मेरी फिल्म में एक अलग अनुवाद होगा. एक पाठक और फिल्म निर्माता के नाते इस उपन्यास की कहानी लंबे समय से मुझे अपनी ओर खींच रही है." चूंकि 'चार अध्याय' नाम से पहले ही बांग्ला में एक फिल्म बन चुकी है, इसलिए बंधोपाध्याय अपनी फिल्म को अंग्रेजी अनुवाद यानी 'फोर चैप्टर्स' नाम देने के बारे में सोच रहे हैं.

तस्वीर: tagoreweb.in

बंधोपाध्याय ने सम्प्रदान, सिल्पंतर, कंतातर और 'काल' जैसी फिल्मों में समाज की समस्यायों को दर्शाया है. इन फिल्मों को कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सवों में भी दिखाया गया, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर ये कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाईं. बंदोपाध्याय कहते हैं, "मेरे ख्याल से मेरी सभी फिल्मों को डिस्ट्रीब्यूशन के स्तर पर बहुत नुकसान हुआ है. पिछले करीब दो सालों में बांग्ला फिल्मों को लेकर दर्शकों का रवैया भी बदला है. पिछले कुछ समय में नए निर्देशकों के आने से हिंदी फिल्मों का एक नया रूप सामने आया है और बांग्ला फिल्में भी इससे अछूती नहीं हैं. हाल के समय में युवा निर्देशकों की बनाई कुछ बांग्ला फिल्मों की सफलता इस बात को दिखाती है."

रिपोर्ट: पीटीआई/ईशा भाटिया

संपादन: ए कुमार

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