जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी ने कोविड-19 महामारी के टीके के ट्रायल को रोक दिया है. कंपनी इस संभावना की जांच कर रही है कि ट्रायल में हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति को हुई रहस्मयी बीमारी का कहीं टीके के साथ कोई संबंध तो नहीं है.
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इसकी जानकारी सबसे पहले स्वास्थ समाचारों की वेबसाइट एसटीएटी ने दी. कंपनी ने एक बयान में यह भी कहा कि बीमारियां, हादसे और दूसरी तथाकथित प्रतिकूल घटनाएं किसी भी क्लीनिकल अध्ययन का और विशेष रूप से बड़े अध्ययनों का एक अपेक्षित हिस्सा हैं. कंपनी ने बयान में कहा कि इसके बावजूद उसके चिकित्सक और सुरक्षा की निगरानी करने वाला एक पैनल बीमारी का कारण जानने की कोशिश करेगा.
कंपनी ने उस व्यक्ति की निजता का हवाला देते हुए बीमारी के बारे में और कोई जानकारी देने से मना कर दिया. टीके का ट्रायल काफी आगे के चरण तक पहुंच चुका था. इस तरह के बड़े ट्रायलों में अस्थायी रूप से बाधा आना तुलनात्मक रूप से आम बात है. अक्सर इस तरह की जानकारी सार्वजनिक की भी नहीं जाती, लेकिन महामारी की गंभीरता को देखते हुए इस तरह की समस्याओं का महत्व बढ़ गया है.
टीकों पर काम कर रही कंपनियों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वो परीक्षण के दौरान होने वाली किसी भी गंभीर या अनपेक्षित प्रतिक्रिया की जांच पड़ताल करेंगे. इस तरह के टेस्ट लाखों लोगों पर किए जाते हैं, ऐसे में कुछ मेडिकल समस्याओं का सामने आना एक संयोग है. बल्कि जॉनसन एंड जॉनसन ने बताया कि सबसे पहले वो यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि व्यक्ति को टीका दिया गया था या प्लेसिबो.
यह दूसरी बार है जब कोरोना वायरस महामारी के टीके के किसी ट्रायल को रोकना पड़ा है. अमेरिका में ऐसे कई ट्रायल आखिरी चरण तक पहुंच गए हैं. एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा बनाए जा रहे टीके के आखिरी चरण के परीक्षण अमेरिका में अभी भी रुके हुए हैं. अधिकारी इस बात का मूल्यांकन करने की कोशिश कर रहे हैं कि टीके के ट्रायल में कहीं किसी बीमारी का खतरा तो नहीं है.
इस ट्रायल को एक महिला के गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो जाने के बाद रोक दिया था. कंपनी अमेरिका के बाहर दूसरी जगहों पर टेस्ट फिर से शुरू कर चुकी है. जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी उम्मीद कर रही है कि वो अपने टीके के ट्रायल के लिए 60,000 उम्मीदवारों को ले पाएगी.
लोगों की नजरें इस वक्त कोरोना वैक्सीन के ट्रायल पर टिकी हुईं हैं. कई देशों में इस वक्त कोरोना की वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है. रूस, अमेरिका, चीन और भारत में तेजी से काम हो रहा है. जानिए कहां-कहां वैक्सीन पर काम चल रहा है.
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वैक्सीन पर नजर
भारत में केंद्र सरकार हर एक व्यक्ति को कोरोना की वैक्सीन लगाने की तैयारी में जुटी हुई है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन के मुताबिक जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य है. इसके लिए वैक्सीन की 40-50 करोड़ डोज हासिल करने की योजना है.
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भारत में वैक्सीन की रेस
इस वक्त भारत में दो वैक्सीन पर काम चल रहा है. दोनों ही वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के दूसरे चरण में हैं. एक वैक्सीन को हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक बना रही है और दूसरी वैक्सीन पर जाइडस कैडिला काम कर रही है. अगर ट्रायल सही तरीके से चलता है तो अगले साल तक भारत में यह वैक्सीन उपलब्ध होगी.
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अमेरिका में वैक्सीन कब
चुनाव के प्रचार के दौरान डॉनल्ड ट्रंप कह चुके हैं कि नवंबर तक अमेरिका में वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी. हाल ही में उन्होंने कहा था कि अगले साल अप्रैल तक देश की पूरी आबादी के लिए पर्याप्त टीका उपलब्ध होगा. इस बीच अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्ना के टीके के फेज 1 के नतीजे सकारात्मक आए हैं. कंपनी अमेरिकी सरकार के साथ मिलकर टीका बना रही है.
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एस्ट्राजेनेका से उम्मीद ज्यादा !
एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी मिलकर कोरोना वायरस के टीके पर काम कर रही है. लेकिन पिछले दिनों ट्रायल में शामिल एक व्यक्ति बीमार हो गया था जिसके बाद परीक्षण को रोक दिया गया था. एक हफ्ते तक ट्रायल रोकने के बाद उसे दोबारा शुरू कर दिया गया था.
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जर्मन कंपनी का टीका
जर्मनी की बायोएनटेक ने न्यूयॉर्क स्थित फाइजर के साथ टीका बनाने को लेकर करार किया है. कंपनी एक ऐसी वैक्सीन पर काम कर रही है जिसमें दो खुराक दी जाएगी. कंपनियों ने कहा है कि अगर ट्रायल सफल रहा तो अक्टूबर के आखिरी तक सरकार से मंजूरी ली जा सकती है. कंपनी का कहना है कि अगर वैक्सीन सफल होती है तो अगले साल के अंत तक 1.3 अरब टीके तैयार हो जाएंगे.
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चीन की वैक्सीन कहां पहुंची
चीन के वुहान से ही कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला और इसके बाद देश दावा करता आ रहा है कि वह भी तेज गति से कोरोना वायरस के टीके पर काम कर रहा है. चीन में सिनोवेक बायोटेक और सिनोफार्म की वैक्सीन पर तीसरे फेज का ट्रायल चल रहा है.
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रूस की स्पुतनिक-5 वैक्सीन
11 अगस्त को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एलान कर सबको चौंका दिया कि रूस कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन बनाने वाला पहला देश बन गया है. वैक्सीन को स्पुतनिक-5 नाम दिया गया और तीसरे चरण के ट्रायल के बिना ही इसे मंजूरी मिल गई. विशेषज्ञों ने ऐसे कदम की आलोचना भी की.