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राख की ढेर पर बैठा चीन

७ अक्टूबर २०१०

20 वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी देश औद्योगिक क्रांति को गले लगा रहे थे. तब चार्ल्स डिकेंस सहित कई लेखकों ने फैक्ट्रियों में काम कर रहे लोगों के विनाश की बात कही. आज भी मुद्दे वही हैं बस जगह बदल गई है.

तस्वीर: AP

चीन की 70 प्रतिशत ऊर्जा कोयले से आती है. जहां दुनिया भर में कार्बन डायॉक्साइड उत्सर्जन की बात चल रही है, वहीं ऊर्जा के लिए चीन कोयले पर निर्भर है. यहां बिजली बनाने के लिए पावर प्लांट से निकलती कोयले की राख आसपास रहने वाले लोगों के लिए सिरदर्द बन गई है.

मंगोलिया के पास उत्तर चीन में गांव चीफेंग कहती हैं,"स्लेटी रंग की राख से ढके घरों के छत और खेत पहले कभी रंगबिरंगे और खुशहाल दिखते होंगे. हवा का हर झोंका अपने साथ राख में सनी धूल लाता है जो पौधों के पत्तों, पेड़ों के तनों, जानवरों और खेतों को राख की एक और परत से ढक देता है."

कोयले से चलने वाले बिजलीघरतस्वीर: AP

ऐसी ही शिकायत फलों के खेत में काम कर रही हान शुहोंग की भी है,"जब हवा बहती है तो हालत बुरी हो जाती है. आप बाहर नहीं रह सकते क्योंकि धूल में आंखें खुलती नहीं हैं.चारों तरफ धूल ही धूल..आपका पूरा शरीर धूल से भर जाता है."

गांव के पास कोयले की राख के लिए कचरे का एक मैदान है. वहीं से धूल आती है. उसके पास ही एक पावर प्लांट है. फैक्ट्री से निकलते धुएं के जमने से आसपास राख के छोटे टीले बन जाते हैं. ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के साथ अब फैक्ट्रियों से निकलती राख की मात्रा औद्योगिक मलबे में सबसे ज्यादा है.

पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस के मुताबिक पिछले आठ सालों में लगभग हर हफ्ते कोयला इस्तेमाल करने वाला एक नया प्लांट बन रहा है. और हर साल चीन में 30 अरब टन से ज़्यादा कूड़ा पैदा होता है. ग्रीनपीस के यांग आइलून कहते हैं,"चीन में हर साल शहरों में जितना कूड़ा पैदा होता है, राख की मात्रा इससे दुगुनी है. दूसरी तरह से कहें तो इतनी राख से आप हर दो मिनट एक स्विमिंग पूल को भर सकते हैं या दिन में एक बार आप बीजिंग ओलंपिक के लिए बनाए गए स्विमिंग स्टेडियम को भर सकते हैं."

कोयला बनता खतरातस्वीर: AP

उत्तर चीन में राख जैसे बंजर ज़मीन को खा जाती है और सूखे इलाके में पानी के सीमित श्रोतों को गंदा कर देती है. राख जहरीली भी है. इसमें लेड, कैडमियम और आर्सेनिक जैसे जहरीले धातु होते हैं. यह ज़मीन से फिर पानी को गंदा करते हैं और खाने में भी आ जाते हैं.

चीन में ग्रीनपीस ने 14 पावर प्लांटों का निरीक्षण किया. और किसी एक जगह पर भी राख को ठीक तरह से साफ नहीं किया गया. राख की कई छोटी पहाड़ियां कई बार घरों के पास थीं और लोग इनसे 500 मीटर दूर भी नहीं रहते थे.

विकास इस दाम पर? ज़रूरी नहीं है. देखा जाए तो राख का 60 प्रतिशत दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे ईंटें बनाई जा सकती हैं या फिर सड़कों में इसे लगाया जा सकता है. हालांकि ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं को वहां ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दिया. यांग के मुताबिक,"दोबारा इस्तेमाल करने वाले आंकड़ें सही नहीं है. सरकार के मुताबिक हर साल कम से कम 60 प्रतिशत राख को रीसाइकल होना चाहिए लेकिन हमें लगता है कि वास्तव में 30 प्रतिशत को भी रीसाइकल नहीं किया जाता."

लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना अलग है. चीन में सरकारी आंकड़ों से भी सच्चाई का पता नहीं चल पाता. और सबसे ज्यादा परेशानी कानूनों को लागू करने में है. स्थानीय अधिकारी कानून का पालन न करने पर जुर्माने की मांग कर सकते हैं. ऐसा होता भी है, लेकिन इसके बाद भी राख वहीं की वहीं रह जाती है.

चीफेंग गांव में हुआन यूलान गाय के बछड़े को दफ्ना रही है. कई लोग इस बीच सवाल उठा रहे हैं, कि क्या कुछ दिनों में गांव की भी यही हालत होगी? हुआन पूछती हैं,"जब हम पानी लाते हैं, तो राख की एक परत ऊपर तैरती रहती है. अगर तुम पानी उबालोगे, तो राख की परत बर्तन के निचले हिस्से से चिपक जाएगी. हमारी गाएं परेशान हैं... उनके बछड़े अकसर मरे हुए पैदा होते हैं, पानी या फिर घास की वजह से."

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकार को हर हालत में कानून के पालन को सुरक्षित करना होगा और खतरनाक राख से लोगों का पीछा छुड़ाना होगा.

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः एन रंजन

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