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राख के ढेर से उठ कर खड़ा हो रहा है काबुल

२७ नवम्बर २०१९

बारुद के धमाकों से राख हुआ काबुल एक बार फिर उसी राख से उठ रहा है. कई दशक चली जंग और मलबे के पहाड़ों को हटा कर शहर की पुरानी संस्कृति दोबारा जिंदा हो रही है.

Afghanistan - Land und Leute
तस्वीर: picture alliance / landov

यह कोई मामूली काम नहीं है. पुराने शहर के इलाके को जब संवारने का काम शुरू हुआ तो पता चला कि बहुत से स्थानीय लोग अपने घर का मुख्य दरवाजा दूसरी मंजिल पर ले गए थे. वजह ये थी कि घर के सामने मलबे का अंबार लगा था.

करीब एक दशक के बाद मुराद खानी जिले में दर्जनों मिट्टी और लकड़ी के अहाते वाले घरों को फिर से खड़ा किया गया है. यहां की संकरी गलियों में लोगों की भीड़ उमड़ने लगी है. कभी यही गलियां खाने पीने और दूसरे सामानों का बाजार हुआ करता था.  

सुरक्षा चौकियों से भरे शहर में नई-पुरानी मस्जिदें, हमाम और बागों में जिंदगी लौटने लगी है. स्थानीय लोगों के साथ ही बाहर से भी लोग आ रहे हैं. सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्बन स्टडीज के प्रोफेसर पीएट्रो कालोगेरो कहते हैं, "सांस्कृतिक विरासत को बचाना जरूरी है और यह काबुल को एक बेजान, कांच और लोहे का शहर बनाने से ज्यादा अहम है. ऐतिहासिक इमारतें और सांस्कृतिक विरासत राजनीतिक कोशिशों का एक जरूरी हिस्सा हैं ताकि अफगान लोगों का यकीन हासिल हो सके."

तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry

1980 के दशक में सोवियत कब्जे से लेकर अंदरूनी झगड़ों और तालिबान के शासन ने अफगानिस्तान के बहुमूल्य कला, कलाकृतियों और वास्तु का ज्यादातर हिस्सा मिटा दिया. 2001 में तालिबान सरकार की सत्ता से विदाई के बाद स्मारकों और ऐतिहासिक इलाकों को फिर से खड़ा करने की कोशिश शुरू हुई हालांकि तब भी इसे बहुत ज्यादा महत्व नहीं दिया गया क्योंकि उस वक्त शहर को सड़कों और सीवर लाइन की ज्यादा जरूरत थी.

ऐसे में गैरलाभकारी संस्था आगा खां ट्रस्ट फॉर कल्चर और ब्रेटिन का तुरकोज माउंटेन फाउंडेशन इस कमी को पूरा करने के लिए सामने आया. आगा खां ट्रस्ट के जनरल मैनेजर लुईस मॉनरियल का कहना है, "जीर्णोद्धार ने स्थानीय समुदायों को एक गर्व की अनुभूति दी है." उन्हें ना सिर्फ इमारतों के जीर्णोद्धार बल्कि घर बनाने, नौकरी पैदा करने और पर्यटन को बढ़ावा देने का भी श्रेय जाता है.

तस्वीर: Reuters/R. Chandran

जंग से नुकसान

दूसरे विश्वयु्द्ध में बम धमाकों का शिकार बने इंग्लिश कथीड्रल सिटी ऑफ कोवेंट्री को बमों से ध्वस्त करने से ले कर 2015 में पल्माइरा की तबाही तक हर जंग ने संस्कृति का शिकार किया है. अफगानिस्तान में इस्लामी चरमपंथियों ने बामियान में बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं को ध्वस्त कर दिया. इसके अलावा तीसरी सदी की बहुत सी छोटी छोटी कलाकृतियों को भी मिटा दिया.

काबुल के नेशनल म्यूजियम में अमेरिका समर्थित एक प्रोजेक्ट के जरिए बौद्ध कलाकृतियों के हजारों टुकड़ों को जोड़ कर मूर्तियां बनाई जा रही हैं. करीब 50 लाख लोगों के शहर पुराने काबुल में ज्यादातर लोग अनियोजित और अनौपचारिक बस्तियों में रहते हैं. इन बस्तियों को बेहतर बनाने के लिए भी कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं.

तस्वीर: Karimi/DW

काबुल के मेयर अहमद जकी सरफराज कहते हैं, "सरकार के पास ध्वस्त विरासतों के जीर्णोद्धार के लिए संसाधन की कमी है इसलिए हम गैरलाभकारी और दूसरे संगठनों को अफगान विरासत के संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं."

2002 में आगा खां ट्रस्ट ने कई इमारतों, स्मारकों, पार्कों और सार्वजनिक जगहों को संवारने के लिए एक करार पर दस्तखत किया था. तब से लेकर ट्रस्ट ने कई योजनाओं को अंजाम दिया है. उसने दर्जनों घर, इमारतें और हमाम बनवाए हैं, इसके अलावा सड़कों, नालियों और पानी की सप्लाई को बेहतर किया है. इसके साथ ही उन्होंने दर्जनों स्थानीय लोगों को संरक्षण के काम में प्रशिक्षित किया है. बड़ी संख्या में लोगों को कालीन बुनने, लकड़ी के काम, टाइल बनाने और कांच बनाने का काम भी सिखाया है.

मुराद खानी 18वीं सदी में बसा इलाका है जो काबुल नदी के उत्तर में है. यहां तुरकोज माउंटेन फाउंडेशन ने 50 से ज्यादा घर बनाए और अफगान लोगों की ट्रेनिंग के लिए एक इंस्टीट्यूट खोला है. यहां ट्रेनिंग के दौरान बनाई गई चीजें कई अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों को बेची जाती हैं. यहां जगह जगह मस्जिदों के बाहर लोग बैठे गपशप करते नजर आते हैं. दुकानों में ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है. बहुत से व्यापारी जो यहां से चले गए थे उनमें कई वापस लौट आए हैं. यहां व्यापार चल निकला है.

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)

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