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राजनीतिक ठहराव से जूझता अमेरिका

४ जून २०१३

अमेरिका परेशान है और संसद के सदस्य उन मुद्दों पर समझौता करने को राजी नहीं, जिनसे देश वापस पटरी पर लौटे. आधुनिक युग के सबसे पुराने लोकतंत्र के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है?

तस्वीर: picture-alliance/dpa

वॉशिंगटन में राजनीतिक प्रक्रियाओं को लागू करना आसान नहीं है. संसद में भरे लोगों के विचार एक दूसरे से अलग हैं और समझौता लगभग नामुमकिन सा दिख रहा है. स्वास्थ्य सेवा में सुधारों पर मचे बवाल की ही मिसाल लें, जिसे राष्ट्रपति बराक ओबामा बड़े जोरशोर से लाए. उनकी डेमोक्रैटिक पार्टी रुढ़िवादी रिपब्लिकन सांसदों के भारी विरोध के बावजूद इसे किसी तरह लागू कराने में कामयाब तो हो गई लेकिन इसके बाद शिक्षा या पर्यावरण में सुधारों को लागू कराने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची.

सभी नागरिकों के लिए एक बीमा लागू करने के अलावा संसद के सामने कर्ज के जंजाल से बचने का रास्ता खोजने की चुनौती सबसे बड़ी है. दिसंबर 2012 के आखिर में डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकन सांसद राजकोषीय संकट से बचने के लिए लंबे समय के बाद समझौते पर राजी हुए. कम से कम कुछ देर के लिए ही सही.

खेमेबाजी से अंतरराष्ट्रीय अभियान तक

आमतौर पर यहां हालत यह है कि दोनों में से कोई पक्ष एक इंच भी आगे बढ़ने को तैयार नहीं. डेमोक्रैट्स अर्थव्यवस्था को वापस रास्ते पर लाने के लिए भारी सब्सिडी के पक्ष में हैं तो प्रतिनिधि सभा में बहुमत में मौजूद रिपब्लिकन खर्च में कटौती के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहते हैं.

राजकोषीय घाटे पर समझौतातस्वीर: picture-alliance/chromorange

रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रूबियो ओबामा के विचारों पर आशंका जताते हुए उनके जरुरत से ज्यादा आगे चले जाने की बात कहते हैं, ''सरकार की भूमिका संविधान के जरिए सीमित की गई है और अगर वह उन सीमाओं की अनदेखी करती है तो अहम भूमिका नहीं निभा सकती.''

दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच सरकार की भूमिका को लेकर गहरी खींचतान है और असरदार अभियान चलाने वाले गुट इन विवादों को हवा दे रहे हैं. सामाजिक न्याय के लिए समर्पित और राजनीतिक आर्थिक ताकत का विरोध करने के लिए उठा ''ऑकुपाई वाल स्ट्रीट'' अभियान इनमें सबसे बड़ा है. यह न्यू यॉर्क के जुशोट्टी पार्क में एक शिविर के रूप में शुरू हुआ और बड़ी तेजी से अंतरराष्ट्रीय विरोध अभियान बन गया. न्यू यॉर्क की बैंकों वाली सड़क पर विरोध करने के आलावा इस अभियान ने सोशल मीडिया नेटवर्क का भी इस्तेमाल अपनी बात फैलाने के लिए किया. हालांकि यह अब बीते कल की बात है और अब यह अभियान सुर्खियों में नहीं रहा.

टी पार्टियों के बढ़ते दौर

धुर दक्षिणपंथियों के भी अपने अभियान गुट हैं. इनमें से सबसे मजबूत और अतिवादी है टी पार्टी अभियान जो 2009 में आर्थिक संकट के दौर में शुरू हुआ. यह प्रमुख रूप से रूढ़िवादी रिपब्लिकन नेताओं का समर्थन करता है और खुद को नागरिकों का अभियान मानता है. इस अभियान के लिए पैसे का बड़ा हिस्सा अरबपति भाइयों डेविड और चार्ल्स कॉख की तरफ से आता है, जिनके अपने आर्थिक हित हैं. इन हितों में टैक्स और सरकारी नियंत्रण को घटाना सबसे प्रमुख है.

ऑकुपाई वालस्ट्रीट आंदोलनतस्वीर: picture-alliance/dpa

दोनों पक्षों के विरोध में अलग अलग राजनीतिक विचार हैं लेकिन राष्ट्रपति बराक ओबामा उनमें समानता देखते हैं, ''वाम हो या दक्षिण दोनों ही मुझे लगता है कि लोगों को यह अहसास दिला रहे हैं कि सरकार उनसे अलग है.'' ओबामा ने यह बात साल 2011 के आखिर में एक इंटरव्यू के दौरान कही थी.

अलग अलग तरह के संघ और पर्यावरण संगठन राजनीतिक मुद्दों का इस्तेमाल कर अमेरिकी नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मानना है कि ये मुद्दों का झुकाव जरूरत से ज्यादा आर्थिक है. कोई सदी भर पहले देश में एक पर्यावरण गुट का गठन किया गया था, सियेरा क्लब जो अब पर्यावरणवादियों का सबसे बड़ा और पुराना गुट बन गया है. गुट का ज्यादातर काम जलवायु की नीतियों से जुड़ा है. हाल ही में इस गुट ने एक अभियान चला कर सरकार से कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन के निर्माण का काम रोकने को कहा. इसके जरिए मेक्सिको की खाड़ी से कनाडा तक तेल पहुंचाया जाना है.

पर्यावरण को बचाने के अलावा सियेरा क्लब के कार्यकर्ता एक मजबूत लोकतांत्रिक देश चाहते हैं जो सही फैसले करने में घबराए नहीं. सचमुच ऐसा ही होगा यह तो इस बात पर निर्भर करेगा कि जो कहा जा रहा है वो किया भी जाए.

रिपोर्टः माक्स सांडर/एनआर

संपादनः महेश झा

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