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राजनीति के नए मोड़ : रुख़ बदलते ओबामा

१५ दिसम्बर २०१०

चुनावों के बाद कमजोर पड़े अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा एक ओर विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी से समझौते की ओर बढ़ रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हें अपनी ही डेमोक्रैटिक पार्टी से आलोचना झेलनी पड़ रही है.

तस्वीर: AP

अमेरिकी राजनीति में परिवर्तन का नारा देने वाले बराक ओबामा आज एक ऐसे नए मुकाम पर आ खड़े हुए हैं, जो काफी पुराने दोराहों की याद ताजा करने लगा है. विडंबना यह है कि डैमोक्रैटिक राजनीति के धुर वामपंथ के अलमबरदार समझे जाने वाले ओबामा की तुलना रिपब्लिकन क्रांति के जनक माने जाने वाले राष्ट्रपति रॉनल्ड रेगन से की जाने लगी है.

सन अस्सी के दशक में रेगन को काफी कुछ ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था, जिसमें इस समय ओबामा अपने को पा रहे हैं. तब कांग्रेस में डैमोक्रैटों का बहुमत था और देश का काम आगे बढ़ाने के उद्देश्य से रेगन ने विरोधी पार्टी के साथ मिलकर काम करने के लिए सुलह और सहकार का हाथ बढ़ाया था. दिलचस्प बात यह है कि रेगन के सामने भी तब बड़ा घरेलू मुद्दा करों का था और इस समय ओबामा के व्हाइट हाउस को भी करों की ही समस्या से उलझना पड़ रहा है.

डेमोक्रैटों में रेगन की रूढ़िवादी आर्थिक नीतियों को पसंद नहीं किया जाता था. लेकिन अपने मनोहर व्यक्तित्व और डैमोक्रैटों के साथ मिलकर काम करने की निष्ठा के बल पर रेगन 1986 में टैक्स-संहिता में सुधार अंजाम देने में सफल हुए थे.

ठीक रेगन की ही तरह ओबामा ने अपने विरोधी रिपब्लिकनों के आगे सहकार की पेशकश की है. इस बार मुद्दा पिछली यानी बुश सरकार की कर कटौतियों की अवधि आगे बढ़ाने का है. इस वर्ष कांग्रेस में रिपब्लिकनों की भारी बहुमत से जीत के बाद ओबामा अपना यह वचन पूरा नहीं कर पा रहे हैं कि वह उन कर कटौतियों को केवल उन्हीं लोगों के लिए जारी रखेंगे, जिनकी आमदनी दो लाख पचास हजार डॉलर सालाना से कम है. रिपब्लिकन यह कर कटौतियां सभी के लिए लागू रखना चाहते हैं. उनकी दलील है कि बड़ी संख्या में रोजगारदाता 250,000 डॉलर से ऊपर के आयवर्ग में हैं और उन्हें करों में छूट देने से रोजगार बचेंगे या बढ़ेंगे. ओबामा ने कुछ अन्य कर लागू करने पर रिपब्लिकनों की सहमति के एवज में, उनसे बुश द्वारा लागू की गई इस छूट को दो वर्षों तक सभी के लिए जारी रखने का समझौता किया है.

अनेक डेमोक्रैट इसे ओबामा की कमजोरी मान कर उनकी आलोचना कर रहे हैं. इस तरह, ओबामा के सामने सवाल रिपब्लिकनों को राजी करने का ही नहीं, डैमोक्रैटों को मनाने का भी है. इस कोशिश में ओबामा को पूर्व राष्ट्रपति क्लिंटन का सहारा लेना पड़ा है. बीते सप्ताह इस विषय पर व्हाइट हाउस के प्रेसकक्ष में पत्रकारों के सवालों के जवाब देने के लिए क्लिंटन भी उनके साथ खड़े थे. यही नहीं, कुछ समय बाद ओबामा यह जिम्मेदारी अकेले क्लिंटन के हाथों सौंपकर स्वयं वहां से चले गए.

विडंबना है कि एक ओर ओबामा की तुलना रेगन से की जा रही है, जिनकी नीतियों के वह कट्टर विरोधी हैं. दूसरी ओर उन्हें उस व्यक्ति से, क्लिंटन से सहायता मांगनी पड़ी है, जिनके साथ 2008 के चुनाव के दौरान उनका खासा मनमुटाव हो गया था. तब बिल क्लिंटन की पत्नी, आज की विदेशमंत्री हिलरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद के लिए ओबामा की प्रतिस्पर्धी थीं.

कल के कट्टर विरोधी आज के परम मित्र? कौन सोच सकता था कि ओबामा की कभी रेगन से भी तुलना की जाएगी? या फिर यह कि रेगन की ही तरह कुशल कम्यूनिकेटर यानी संप्रेषक कहलाने वाले ओबामा को अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए अपने पूर्व विरोधी क्लिंटन का सहारा लेना पड़ेगा?

राजनीति भी क्या-क्या रंग दिखाती है!

रिपोर्ट: गुलशन मधुर, वाशिंगटन

संपादन: महेश झा

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