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राजनीति के बिल में बिलबिलाता बिल

३० दिसम्बर २०११

भ्रष्ट नेताओं और गंदी राजनीति में फंसा लोकपाल विधेयक एक बार फिर उस खोह में चला गया है, जहां से वह कम से कम आने वाले चुनावों तक तो नहीं निकल सकता. राज्यसभा ने इसे पास नहीं किया और अब इसकी फिक्सिंग के आरोप लग रहे हैं.

तस्वीर: AP

हो सकता है कि सभी पार्टियों ने चुनाव के डर से इस बिल को फिलहाल पास न कराने का कोई गुप्त समझौता कर रखा हो लेकिन राज्यसभा में लटकने के बाद सबसे ज्यादा किरकिरी भारत सरकार की हो रही है. गुरुवार आधी रात से विपक्ष ने कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की निंदा कर करके नाक में दम कर दिया है और शुक्रवार सुबह बची खुची भड़ास भारतीय मीडिया ने निकाल दी है.

फिक्सिंग के आरोप

लोकसभा में आसानी से पास होने वाला बिल जब राज्यसभा में पेश किया गया, तभी मालूम था कि सरकार के पास बहुमत नहीं है और इसे पास कराने के लिए उसे दूसरी पार्टियों का सहारा लेना होगा. लेकिन सदन में एकमत बनाने की जगह पार्टियां एक दूसरे से झगड़ती दिखीं और एक मौका तो ऐसा भी आया, जब लालू यादव की पार्टी के एक सांसद ने मंत्री से बिल की कॉपी छीन कर उसे फाड़ दिया. पूरा सदन हैरान रह गया. हालांकि राजनीतिक समीक्षक इस पूरे मामले को पहले से फिक्स बता रहे हैं. उनका कहना है कि सभी पार्टियों ने मिल कर ऐसा फैसला किया होगा क्योंकि कोई भी फरवरी में होने वाले चुनाव से पहले इस बिल को पास होते नहीं देखना चाहता था. इसका चुनावों पर खासा असर पड़ सकता था.

कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवीतस्वीर: World Economic Forum/Norbert Schiller

राज्यसभा में वोटिंग में सरकार की हार तय थी. ऊपर से यूपीए में शामिल छोटी पार्टियों ने बिल में कई संशोधन की मांग रख दी, जिससे मामला और उलझ गया. सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए मशहूर भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि इस मामले ने सरकार के चेहरे पर सड़ा हुआ अंडा फेंक दिया है. मेल टुडे ने हेडलाइन लगाई है, कोल्ड स्टोरेज में बिल.

तस्वीर: picture alliance/dpa

जब राज्यसभा में तमाशा हो रहा था, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वहीं मौजूद थे लेकिन उन्होंने कभी भी हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की. यूपीए में शामिल तृणमूल कांग्रेस अपनी ही सरकार से नाराज है. उसका कहना है कि संसद में जो कुछ भी हुआ, वह बेहद शर्मनाक था और पहले से तय था. राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली का दावा है कि सरकार अल्पमत में थी और डर कर भाग गई.

सरकार संकट में

संसद के बढ़े हुए सत्र में भी बिल के पास न हो पाने के साथ ही मनमोहन सिंह की सरकार के चेहरे पर एक और तमाचा लगा है. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार के सामने अब सफाई देने के लिए बहुत कुछ नहीं रह गया है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गाड़ी ऐसी असंतुलित हो चुकी है, जो कभी भी गिर सकती है और इस बात की कम ही संभावना दिख रही है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी.

तस्वीर: dapd

जहां तक लोकपाल बिल का सवाल है, लोकसभा से पास होने के बाद भी यह अधर में लटक गया है. संसद का शीतकालीन सत्र खत्म हो गया है और अब अगले साल बजट सत्र में ही इस पर कार्यवाही हो सकती है, जो फरवरी से पहले नहीं शुरू होने वाला है. भारत में पांच जगहों पर फरवरी में चुनाव होने हैं. कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने जनवरी में संसद का विशेष सत्र बुलाने की संभावना से इंकार किया है.

लोकपाल बिल के फंस जाने के साथ ही भारत का राजनीतिक साल एक बेहद खराब मोड़ के साथ पूरा हुआ. साल 2011 को भ्रष्टाचार के मामलों और केंद्रीय मंत्रियों के जेल जाने के अलावा सरकार के सिरदर्द बने अन्ना हजारे के लिए भी याद किया जाएगा. हजारे ने लगातार अनशन के बल भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला कि सरकार को लोकपाल बिल की तैयारी करनी पड़ी. यह बात और है कि आखिर में राजनीति के बल पर ही इस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

रिपोर्टः पीटीआई, एएफपी/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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