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राजनीति में अपराध कैसे रुकेगा?

मारिया जॉन सांचेज
२४ अगस्त २०१८

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि इस समय विधायकों और सांसदों की कुल संख्या के तिहाई से भी अधिक यानी 36 प्रतिशत के खिलाफ 3045 आपराधिक मामले चल रहे हैं.

Indien - Parlament in Neu Dehli
तस्वीर: picture-alliance/dpa

राजनीति के अपराधीकरण को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत बेहद चिंतित है लेकिन इस समस्या से कैसे निपटा जाए, इसके बारे में विभिन्न जजों की अलग-अलग राय है. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र और दो अन्य जजों का मानना है कि निर्वाचन आयोग स्वयं यह नियम जोड़ सकता है कि आपराधिक मामलों में लिप्त उम्मीदवार को पार्टी का चुनाव चिह्न नहीं दिया जाएगा लेकिन जस्टिस इंदु मल्होत्रा का विचार है कि इस प्रावधान के कारण उम्मीदवारों के खिलाफ अंधाधुंध फर्जी आरोप लगने शुरू हो सकते हैं. उधर केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले एटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल का कहना है कि न्यायपालिका अपने अधिकारक्षेत्र का अतिक्रमण कर रही है और कानून बनाने के संसद के अधिकार को अपने हाथ में ले रही है. प्रधान न्यायाधीश का कहना है कि संसद जब तक कानून बनाए, तब तक अदालत हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठ सकती.

तस्वीर: UNI

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि सामाजिक समस्या हो या राजनीतिक समस्या, उसका समाधान अदालतें नहीं कर सकतीं. कानून बनाकर संसद भी उसका समाधान नहीं कर सकती क्योंकि कानून पर अमल भी तभी हो सकता है जब उसे लागू करने वालों में इसके लिए अपेक्षित इच्छाशक्ति हो और क़ानून पर अमल करने के लिए अनुकूल माहौल भी तैयार किया जाए. संविधान में छुआछूत को गैरकानूनी घोषित किया गया है और सभी नागरिकों को सामान अधिकार दिए गए हैं लेकिन क्या आजादी के 71 साल बाद भी समाज से छुआछूत मिट सकी है और क्या जाति-भेद और जाति-श्रेष्ठता पर आधारित दलित उत्पीड़न समाप्त हो सका है? क्या महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबरी मिल सकी है और क्या अल्पसंख्यकों को भेदभाव से छुटकारा मिल सका है?

यही बात राजनीति में अपराधियों की भूमिका पर लागू होती है. इन मामले में सबसे पहली जिम्मेदारी राजनीतिक पार्टियों की है जो चुनाव घोषणापत्रों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का संकल्प व्यक्त करती हैं लेकिन चुनावों में भ्रष्ट उम्मीदवारों को टिकट देती हैं. जब तक कोई नेता दूसरी पार्टी में होता है, तब तक उसके भ्रष्टाचार पर बावेला मचाती हैं लेकिन उसे अपनी अपनी सदस्यता देने में जरा भी देर नहीं लगातीं और सदस्य बनाते ही उसके भ्रष्टाचार को भूल जाती हैं. यही हाल अन्य किस्म के अपराधों के मामले में है. ह्त्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों के मुकदमे बड़ी संख्या में विधायकों और सांसदों के खिलाफ चल रहे हैं. कानूनन जब तक वे अदालत में अंतिम रूप से दोषी नहीं ठहरा दिए जाते, तब उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता. इस समय लालू प्रसाद यादव ही एक ऐसे नेता हैं जो जेल काट रहे हैं और चुनाव नहीं लड़ सकते.

इस प्रवृत्ति को तभी रोका जा सकता है जब समूचा राजनीतिक वर्ग राजनीति में शुचिता को पुनर्स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प हो जाए. वरना गेंद संसद, निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट के पालों में ही घूमती रहेगी.

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