राजनीति में भी, जो बदलते नहीं वे उजड़ जाते हैं
२४ मई २०१९नई दिल्ली के पंडित दीन दयाल उपाध्याय मार्ग में बीजेपी का हेड ऑफिस है. ऊंची और विशाल नई इमारत. ग्राउंड फ्लोर पर प्रवक्ताओं के लिए दर्जनों केबिन बने हैं. ऊपरी मंजिलें पार्टी के पदाधिकारियों के लिए हैं. एक मंजिल पर राज्य प्रभारियों के लिए चैंबर बने हैं. उसके ऊपर पार्टी सचिवों और महासचिवों के कैबिन हैं.
दूसरे प्रदेशों से आने वाले नेताओं के रात में रुकने के लिए कमरे हैं. मीटिंग हॉल हैं, पढ़ने लिखने और रिसर्च करने के लिए तकनीक से लैस विशेष कमरे हैं. बाहर दर्जनों गाड़ियों के लिए पार्किंग की जगह है.
2019 के लोकसभा चुनावों के जब नतीजे आने से ठीक एक रात पहले मुख्यालय में टीवी मीडिया के लिए टेंट के भीतर 36 अस्थायी कक्ष बनाए गए. सबके सामने एलसीडी टीवी था, जिस पर अगली सुबह से पल के नतीजे सामने आ रहे थे. बीजेपी ने अपने कम से कम 12 प्रवक्ता टीवी चैनलों के लिए तैनात कर रखे थे. वे बदल बदल कर टीवी चैनलों में
जारी चर्चा पर हिस्सा लेते रहे. मत गणना के दिन प्रवक्ताओं का काम सुबह 8 बजे से लेकर रात को 10 बजे तक चला.
अब चलते हैं कांग्रेस के मुख्यालय में. पता, 24 अकबर रोड, नई दिल्ली. पार्टी का मुख्यालय कम से कम 40 साल पुरानी इस इमारत में है. यहां सिर्फ कांग्रेस के बड़े नेता ही गाड़ी से भीतर जा सकते हैं. बाहर पार्किंग पर प्रतिबंध है. गाड़ी कहीं दूर खड़ी कर काग्रेंस के डेढ़ दो मंजिला मुख्यालय में जाना पड़ता है. प्रवक्ताओं के लिए दो तीन कमरे हैं. एक ब्रीफिंग हॉल है. आधुनिक भारत की राजनीति तय करने वाली इमारत, ऐतिहासिक संग्रहालय ज्यादा लगती है. कांग्रेस नया मुख्यालय बना रही है. इमारत को नवंबर 2018 में तैयार होना था लेकिन पैसे की कमी के चलते काम अभी तक पूरा नहीं हुआ. इससे भी बुरा हाल वामपंथी पार्टियों के मुख्यालयों का है.
बीजेपी के मुख्यालय में जहां देश भर के पदाधिकारी अपने इलाकों की जानकारी लेकर समय समय पर आते हैं. वहीं कांग्रेस में यह काम पार्टी गांधी परिवार के इर्द गिर्द रहने वाले चुनिंदा लोग करते हैं. वही शीर्ष नेतृत्व की आंख, नाक और कान हैं. उन्हें देश और राजनीतिक माहौल जैसा दिखाई देता है, वैसा ही आला कमान को भी दिखने लगता है.
इंटरनेट, सोशल मीडिया और खुद के वीडियो प्रोडक्शन में बीजेपी, कांग्रेस और बाकी दलों से मीलों आगे है. खुद नरेंद्र मोदी नई तकनीक का इस्तेमाल करने में सबसे आगे रहते हैं. वह सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं. वहीं दिल्ली से कांग्रेस चलाने वाले नेता ज्यादातर वक्त सिर्फ सोशल मीडिया पर ही सक्रिय रहते हैं.
उनकी राजनीति ट्वीट से शुरू और प्रेस कॉन्फ्रेंस पर खत्म हो जाती है. देश का चप्पा चप्पा छानने की आदत कांग्रेस के आला नेता भूल चुके हैं. 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कांग्रेस का खाता ना खुल पाना भी इसका सबूत है.
बीजेपी में पार्टी के नेताओं और संघ के अधिकारियों की समय समय पर बैठक होती है. खुद पार्टी के भीतर कामकाज का हिसाब मांगा जाता है. पार्टी में निर्देश बिना भटके ऊपर से नीचे तक पहुंचते हैं. कांग्रेस इस मोर्चे पर भी मात खाती रही है. 2019 के चुनावों में पूरा विपक्ष "मोदी हटाओ" का नारा दे रहा था, लेकिन "क्यों" पूछने पर सटीक जवाब किसी के पास नहीं था.
क्षेत्रीय दल या बीएसपी जैसी पार्टियां जातिगत समीकरणों पर उम्मीद लगाए बैठे थे. कई दल गठबंधन को खेवनहार मान रहे थे. नरेंद्र मोदी ने जातियों के जाल को राष्ट्रवाद से काट दिया.
इसमें कोई शक नहीं कि बीजेपी चुनाव की तैयारियों के लिहाज से समय से आगे चल रही है. उसके पास नरेंद्र मोदी जैसे नेता हैं. पार्टी राजनीति में पेशेवर रवैया ला चुकी है. कामकाज का यह तरीका कॉरपोरेट कल्चर जैसा दिखता है, लेकिन इसके साथ ही पार्टी के नेता जानते हैं देश की सच्चाई क्या है, वे हकीकत और हालात के समानान्तर चल रहे हैं और कामयाबी पा रहे हैं.
बाकी पार्टियों के पास न विकास का मुद्दा या मॉडल है, न पेशेवर अंदाज. जनता की नब्ज टटोलने की आदत भी अब कुंद पड़ती जा रही है. कद्दावर नेताओं के नाम पर अन्य दलों के पास पार्टी सुप्रीमो ही हैं. करिश्माई नेता तैयार करने वाला सिस्टम और उसे आगे बढ़ाने वाला ढांचा कहीं नहीं हैं. 2019 के नतीजे इन्हीं लापरवाहियों को निचोड़ हैं.
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