राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने की लिव-इन को बैन करने की मांग
५ सितम्बर २०१९
अपने तर्कों के लिए विवाद में रहने वाले राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस अब राज्य मानवाधिकार आयोग के प्रमुख हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद वह लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं.
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राजस्थान मानवाधिकार आयोग के मुताबिक लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं को गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकारों की बलि देनी पड़ती है. यही तर्क देते हुए आयोग ने राज्य सरकार से लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ कानून बनाने की मांग की है. आयोग का कहना है कि कानून के जरिए समाज में गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार महिलाओं के लिए सुरक्षित हो सकेगा.
राजस्थान के ह्यूमन राइट्स कमीशन के प्रमुख रिटायर्ड जस्टिस महेश शर्मा हैं. आयोग के एक और सदस्य जस्टिस प्रकाश तांतिया के साथ मिलकर शर्मा ने राज्य के मुख्य सचिव और अतिरिक्त सचिव को पत्र लिखकर कानून बनाने की मांग की है. खत की प्रतिलिपि केंद्र सरकार को भी भेजी गई और उससे भी मांग की गई है कि वह इस दिशा में कदम बढ़ाए.
आयोग का दावा है कि उसने इस मुद्दे पर कई पक्षों से सुझाव भी मांगे. सुझाव भेजने वालों में पुलिस और सिविल सोसाइटी के लोगों को भी शामिल किया गया. आयोग ने पूछा कि क्या लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए कोई कानून बनना चाहिए.
आयोग का कहना है कि शादी के बिना किसी पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने मूलभूत अधिकारों को पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर सकती है. ऐसे में राज्य सरकार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे शादी के दायरे के बाहर ऐसे सहजीवन के प्रति जागरुकता अभियान चलाएं. आयोग का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वे तुरंत कदम उठाएं और एक कानून बनाकर लिव-इन रिलेशनशिप पर प्रतिबंध लगाएं.
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनन और अप्रत्यक्ष रूप से संविधान के मौलिक अधिकारों के तहत मान्यता है. भारतीय सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में कह चुका है कि वयस्क जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं. सर्वोच्च अदालत लिव-इन रिलेशनशिप को घरेलू हिंसा के कानून के दायरे में भी ला चुकी है. मई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में भी महिलाओं को घरेलू हिंसा एक्ट 2005 के तहत सुरक्षा मिलती है.
यह पहला मौका नहीं है जब जस्टिस शर्मा विवादों में हैं. भारत के प्रमुख न्यूज मीडिया एनडीटीवी के मुताबिक तीन साल पहले भी राजस्थान हाई कोर्ट से रिटायर होते समय शर्मा ने बेहद अवैज्ञानिक और बोशिदा बयान दिया था. शर्मा ने कहा, "मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है. वह मोरनी के साथ कभी सेक्स नहीं करता है. मोरनी मोर का आंसू निगलकर गर्भ धारण करती है."
भारत में महिलाओं के लिए ऐसे कई कानून हैं जो उन्हें सामाजिक सुरक्षा और सम्मान से जीने के लिए सुविधा देते हैं. देखें ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार...
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पिता की संपत्ति का अधिकार
भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है. अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लड़की को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा. यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा.
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पति की संपत्ति से जुड़े हक
शादी के बाद पति की संपत्ति में तो महिला का मालिकाना हक नहीं होता लेकिन वैवाहिक विवादों की स्थिति में पति की हैसियत के हिसाब से महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए. पति की मौत के बाद या तो उसकी वसीयत के मुताबिक या फिर वसीयत ना होने की स्थिति में भी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है. शर्त यह है कि पति केवल अपनी खुद की अर्जित की हुई संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, पुश्तैनी जायदाद की नहीं.
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पति-पत्नी में ना बने तो
अगर पति-पत्नी साथ ना रहना चाहें तो पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सकती है. घरेलू हिंसा कानून के तहत भी गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है. अगर नौबत तलाक तक पहुंच जाए तब हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा 24 के तहत मुआवजा राशि तय होती है, जो कि पति के वेतन और उसकी अर्जित संपत्ति के आधार पर तय की जाती है.
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अपनी संपत्ति से जुड़े निर्णय
कोई भी महिला अपने हिस्से में आई पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित की गई संपत्ति का जो चाहे कर सकती है. अगर महिला उसे बेचना चाहे या उसे किसी और के नाम करना चाहे तो इसमें कोई और दखल नहीं दे सकता. महिला चाहे तो उस संपत्ति से अपने बच्चो को बेदखल भी कर सकती है.
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घरेलू हिंसा से सुरक्षा
महिलाओं को अपने पिता या फिर पति के घर सुरक्षित रखने के लिए घरेलू हिंसा कानून है. आम तौर पर केवल पति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून के दायरे में महिला का कोई भी घरेलू संबंधी आ सकता है. घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताड़ना.
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क्या है घरेलू हिंसा
केवल मारपीट ही नहीं फिर मानसिक या आर्थिक प्रताड़ना भी घरेलू हिंसा के बराबर है. ताने मारना, गाली-गलौज करना या फिर किसी और तरह से महिला को भावनात्मक ठेस पहुंचाना अपराध है. किसी महिला को घर से निकाला जाना, उसका वेतन छीन लेना या फिर नौकरी से संबंधित दस्तावेज अपने कब्जे में ले लेना भी प्रताड़ना है, जिसके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला बनता है. लिव इन संबंधों में भी यह लागू होता है.
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पुलिस से जुड़े अधिकार
एक महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है. महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती. बिना वारंट के गिरफ्तार की जा रही महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होता है और उसे जमानत संबंधी उसके अधिकारों के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. साथ ही गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को तुरंत सूचित करना पुलिस की ही जिम्मेदारी है.
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मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो महिलाओं के लिए कानूनी मदद निःशुल्क है. वह अदालत से सरकारी खर्चे पर वकील करने का अनुरोध कर सकती है. यह केवल गरीब ही नहीं बल्कि किसी भी आर्थिक स्थिति की महिला के लिए है. पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता समिति से संपर्क करती है, जो कि महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देने की व्यवस्था करती है.