आम तौर पर एचआईवी संक्रमित लोग अपनी बीमारी को छिपा कर रखते है, लेकिन भरतपुर जिले के दो जोड़ों ने अपने एचआईवी स्टेटस को सार्वजानिक करते हुए अपने एचआईवी साथी के साथ विवाह कर मिसाल पेश की है.
विज्ञापन
भारत में आम तौर पर लोग एड्स रोग को चरित्र के साथ जोड़कर देखते हैं और रोगी के साथ बहुत भेदभाव होता है. यही कारण है कि एचआईवी संक्रमित लोग अपने बारे में दूसरे को खुलकर बताने से हिचकिचाते हैं और शादी हो जाने के बाद जब दूसरे जीवनसाथी को इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
लेकिन राजस्थान में भरतपुर नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी संस्था से जुड़े दो जोड़े किसी से कुछ नहीं छिपाना चाहते. वे एचआईवी के साथ कई बरसों से जी रहे हैं. नेटवर्क की 12वीं वर्षगांठ पर उनका विवाह समारोह हुआ जिसमें बड़ी संख्या में एचआईवी संक्रमित और प्रभावित लोगों ने भाग लिया.
भरतपुर की एड्स सोसायटी ने तय किया कि एचआईवी संक्रमितों का आपस में विवाह करा समाज को संदेश दिया जाए कि एड्स रोगी भी समाज का ही हिस्सा हैं और उन के पारस्परिक विवाह भी संभव है. यह संस्था पहले भी ऐसे 11 विवाह करा चुकी है और सभी जोड़ों के बच्चे हो चुके हैं जिन्हें एचआईवी संक्रमण नहीं है.
भरतपुर की एड्स सोसायटी ने तय तो कर लिया कि यह विवाह समारोह धूमधाम से होगा लेकिन संस्था की आर्थिक बदहाली और दोनों ही जोड़ों की वित्तीय स्थिति को देखते हुए यह काम आसान नहीं था.
ऐसे में, सोसाइटी ने विवाह समारोह और भावी दंपतियों को भेंट देने के लिए एक लिखित अपील जारी की जिस पर रोटरी क्लब जैसे कुछ सामाजिक संगठन आगे आए और एक विवाह समारोह, दो शादियों की मिसाल बन गया.
समारोह में मौजूद एचआईवी के साथ जी रहे लोग सरकार और सिस्टम से खासे नाराज नजर आए. बृजेश दुबे पिछले 18 साल से एड्स से लड़ रहे हैं और जाने माने एड्स एक्टिविस्ट है. वह एड्स के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह उग आई स्वयंसेवी संस्थाओं की आलोचना करते हैं.
उनका कहना था कि 'ग्लोबल फंड' नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था एड्स रोगियों के लिए काफी पैसा ऐसी संस्थाओं को दे रही है जो कभी ऑडिट ही नहीं कराती और एड्स रोगियों की बजाय अपनी सुख सुविधाओं पर ज्यादा खर्च करती हैं.
दुनिया एड्स के शिकंजे में
संयुक्त राष्ट्र की बाल संस्था यूनिसेफ का कहना है कि एड्स से लड़ाई के खिलाफ दुनिया में बहुत काम हुआ है. लेकिन इस बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंकने की मंजिल अभी बहुत दूर है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Safodien
जागरूकता की जरूरत
दुनिया भर में एक दिसंबर को वर्ल्ड एड्स दिवस के तौर पर मनाया जाता है. यह तस्वीर जर्मन शहर कोलोन की है जहां सुरक्षित यौन संबंधों को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए 12 मीटर ऊंचा कंडोम बनाया गया है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/O. Berg
करोड़ों प्रभावित
लंबे समय तक माना जाता रहा कि एयर कनाडा के एक फ्लाइट अटेंडेंट गायटान डुगास 1970 के दशक में एचआईवी वायरस को पश्चिमी दुनिया में लेकर गए. लेकिन बाद में जांच से पता चला कि इस वायरस को फैलाने के लिए वह जिम्मेदार नहीं थे. आज तक इस वायरस से 7.8 करोड़ लोग संक्रमित हैं. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस समय दुनिया में 3.7 करोड़ इससे पीड़ित हैं
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/CBS-TV
बच्चों पर सबसे ज्यादा मार
एड्स को लेकर काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएनएड्स का कहना है कि 2015 में 11 लाख लोग एड्स से मारे गए. इनमें से 1.1 लाख की उम्र 15 साल से कम थी. शुरू से लेकर अभी तक इस बीमारी से 3.5 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Bothma
एशिया और प्रशांत क्षेत्र में लड़ाई
एशिया में एचआईवी वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 50 लाख है. अब संक्रमण का फैलाव कम हुआ और 41 प्रतिशत लोगों का इलाज हो रहा है. भारत में एचआईवी पीड़ित 21 लाख लोग हैं जबकि चीन में ऐसे लोगों की संख्या 7.8 लाख बताई जाती है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Adhikary
अफ्रीका में एड्स
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में लगभग 1.9 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जी रहे हैं. पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में 65 लाख लोगों को यह बीमारी है. मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में ऐसे लोगों का आंकड़ा 2.3 लाख है.
तस्वीर: Reuters/S. Sibeko
औद्योगिक दुनिया में एड्स
एचआईवी से कोई महाद्वीप अछूता नहीं है. 2015 में पश्चिमी और मध्य यूरोप और उत्तरी अमेरिका में एचआईवी से संक्रमित लोगों की संख्या 24 लाख थी. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि पिछले साल एड्स के कारण इन क्षेत्रों में 22 हजार लोग मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/J. Sanz
दक्षिणी अमेरिका में एड्स
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दक्षिणी अमेरिका में लगभग 20 लाख लोग एड्स के साथ जी रहे हैं. इस बीमारी से वहां पिछले साल 50 हजार लोग मारे गए. 2010 से वहां एड्स से जुड़े मामलों में 18 प्रतिशत की कमी आई है और आधे से ज्यादा लोगों को इलाज की सुविधा प्राप्त है.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/N. Celaya
भारत में एड्स
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत में फिलहाल 21 लाख लाख लोग एड्स से पीड़ित हैं. बीते एक दशक में एड्स की चपेट में आने वाले नए मरीजों की तादाद में काफी कमी आई है. 2005 में जहां यह आंकड़ा 150000 था वहीं 2016 में इसकी तादाद घट कर 80 हजार रह गयी है.
तस्वीर: imago/UIG
कम हुई मौतें
एक अच्छी खबर है. 2005 के बाद से अब तक एड्स के कारण होने वाली सालाना मौतों में 45 फीसदी कमी आई है. 2005 में इस वायरस से 20 लाख लोग मारे गए थे.
तस्वीर: Getty Images/R.Jantilal
घर पर टेस्टिंग
यूरोपीय संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि संक्रमित हर सात लोगों में से एक को नहीं पता होता कि वह संक्रमित है. ऐसे में, ऐसी किट की वकालत की जा रही है जिससे कोई भी घर पर पता लगा सके कि वो संक्रमण का शिकार है या नहीं.
तस्वीर: Reuters/Str.
आखिरकार, टीका?
वैज्ञानिक एक ऐसे टीके के बारे में हो रहे प्रयोगों को लेकर उत्साहित हैं जो नए संक्रमण को रोक सकेगा. दक्षिण अफ्रीका में 5,400 लोगों पर इस टीके के ट्रायल हुए हैं. वैज्ञानिकों को 2020 तक इस रिसर्च के नतीजे मिलने की उम्मीद है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Safodien
11 तस्वीरें1 | 11
उनका कहना था कि सरकार को चाहिए कि वह तत्काल ऐसी संस्थाओं की सोशल आडिट करवाए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके. उन्होंने आरोप लगाया कि राजस्थान हाई कोर्ट ने भी इस बारे में जो जानकारी मांगी थी, वह भी सरकारी एजेंसियों ने आज तक उपलब्ध नहीं करवाई है.
उनका कहना था कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन 'नाको' के अनुसार भारत में हर साल 69 हजार से ज्यादा लोग एड्स के कारण मर जाते है जबकि एचआईवी संक्रमितों की कुल संख्या 21 लाख से ज्यादा है. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि अकेले राजस्थान में ही रोजाना पांच से आठ लोग एड्स के कारण मारे जाते हैं.
देश की संसद ने पिछले वर्ष ही एचआईवी/एड्स बिल पारित कर दिया था लेकिन बृजेश दुबे कहते हैं कि एक साल बीत जाने के बाद भी इस बारे में कोई नियम कायदे नहीं बनाए गए है जिससे आज तक यह बिल कानून की शक्ल नहीं ले पाया है.
भरतपुर नेटवर्क की सचिव कुसुम सोनी का कहना था कि विवाह के समय पुरुष अपना एचआईवी स्टेटस नहीं बताते हैं जिससे उनकी पत्नियां भी अनजाने में संक्रमण की चपेट में आ जाती हैं. इसके अलावा उन्होंने बताया कि एड्स के कारण होने वाली अकाल मौतों के कारण छोटी उम्र में विधवा हो रही महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. कुसुम का कहना था कि सामाजिक भेदभाव के कारण एचआईवी संक्रमित महिलाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
भरतपुर नेटवर्क के अध्यक्ष गजेंदर सिंह का कहना है कि भारत के विभिन्न राज्यों में एचआईवी संक्रमितों को दी जा रही सुविधाओं में बहुत अंतर है जबकि वायरस के साथ जीने वाले सभी समान हैं. उन्होंने कहा कि नए भर्ती किए जा रहे डॉक्टरों, स्वास्थ कर्मियों और नर्सों को एचआईवी के बारे में पर्याप्त ट्रेनिंग भी नहीं दी जा रही है जिस पर सरकार को त्वरित रूप से ध्यान देना चाहिए.
एचआईवी पीड़ितों से भेदभाव किया तो होगी जेल
एचआईवी पॉजिटिव मरीजों के साथ भेदभाव करना अब जुर्म होगा. भारत सरकार ने एचआईवी/एड्स अधिनियम, 2017 की अधिसूचना जारी कर दी है और 10 सितंबर से यह पूरे देश में लागू हो गया है. आइए जानते हैं, क्या है इस एक्ट में.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Pedersen
क्या है एचआईवी/एड्स अधिनियम?
ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस एंड एक्वायर्ड इम्यून डिफिसिएंसी सिंड्रोम (प्रिवेंशन एंड कंट्रोल) बिल, 2017 नाम का यह एक्ट एचआईवी पॉजिटिव समुदाय को कानूनी तौर पर मजबूत बनाने के लिए पास किया गया है. एक्ट के तहत इस समुदाय के लोगों को न्याय का अधिकार दिया जाएगा.
तस्वीर: Imago/Zumapress
नफरत करने पर होगी सजा
एचआईवी पीड़ित के साथ भेदभाव करना अपराध माना जाएगा. ऐसा करने वालों को तीन महीने से लेकर दो साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. एक्ट में एचआईवी पीड़ित नाबालिग को परिवार के साथ रहने का अधिकार दिया गया है. यह उसे भेदभाव और नफरत से बचाता है.
तस्वीर: AP
किन बातों को माना जाएगा भेदभाव?
बिल में एचआईवी पॉजिटिव समुदाय के खिलाफ भेदभाव को भी परिभाषित किया गया है. इसमें कहा गया है कि मरीजों को रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रॉपर्टी, किराये पर मकान जैसी सुविधाओं को देने से इनकार करना या किसी तरह का अन्याय करना भेदभाव माना जाएगा. इसके साथ ही किसी को नौकरी, शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधा देने से पहले एचआईवी टेस्ट करवाना भी भेदभाव होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh
एचआईवी पॉजिटिव शख्स पर नहीं डाल सकेंगे दबाव
किसी भी एचआईवी पॉजिटिव शख्स को उसकी मर्जी के बिना एचआईवी टेस्ट या किसी मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए मजबूर नहीं किया जा सकेगा. एक एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति तभी अपना स्टेटस उजागर करने पर मजबूर होगा, जब इसके लिए कोर्ट का ऑर्डर लिया जाएगा. हालांकि, लाइसेंस्ड ब्लड बैंक और मेडिकल रिसर्च के उद्देश्यों के लिए सहमति की जरूरत नहीं होगी, जब तक कि उस व्यक्ति के एचआईवी स्टेटस को सार्वजनिक न किया जाए.
तस्वीर: AP
सरकार शुरू करेगी कल्याणकारी योजनाएं
इस एक्ट के तहत मरीज को एंटी-रेट्रोवाइरल थेरेपी का न्यायिक अधिकार मिल जाता है. इसके तहत हर मरीज को एचआईवी प्रिवेंशन, टेस्टिंग, ट्रीटमेंट और काउंसलिंग सर्विसेज का अधिकार मिलेगा. कानून के मुताबिक, राज्य और केंद्र सरकार को यह जिम्मेदारी दी गई है कि मरीजों में इंफेक्शन रोकने और इलाज देने में मदद करे. सरकारों को मरीजों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने को भी कहा गया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
जांच के लिए लोकपाल की नियुक्ति
इस कानून के बाद राज्य सरकारों के लिए लोकपाल को नियुक्त करना अनिवार्य हो जाएगा. लोकपाल को यह सुनिश्चित करना होगा कि कानून के उल्लंघन के बाद आई शिकायतों की जांच की जाए. अगर कोई शख्स या संस्था लोकपाल के आदेशों को तय समय में नहीं मानती है तो उन पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लग सकता है. लगातार आदेश न मानने पर अतिरिक्त पांच हजार रुपये प्रतिदिन जुर्माना लग सकता है.
तस्वीर: AP
2014 में पहली बार पेश किया गया
इस बिल को पिछले साल 12 अप्रैल को लोक सभा से पास किया गया था. राज्य सभा ने भी 22 मार्च, 2017 को इसे मंजूरी दे दी थी. 2014 में इस बिल को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने सदन में पेश किया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Bo Bo
क्यों महत्वपूर्ण है यह बिल?
भारत में करीब 21.17 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हैं. 2015 में करीब 86 हजार नए एचआईवी पीड़ितों का पता चला. इसी साल करीब 68 हजार एचआईवी पीड़ितों की मौत हो गई. लगातार बढ़ रहे पीड़ितों की संख्या और भेदभाव की वजह से इस बिल को एचआईवी के खिलाफ लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.