राजस्थान में विवादित अध्यादेश की लड़ाई पहुंची हाईकोर्ट
२३ अक्टूबर २०१७
राजस्थान में अधिकारियों के खिलाफ शिकायत और कार्रवाई के लिए इजाजत से जुड़े अध्यादेश को अब वरिष्ठ वकील ए के जैन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है. याचिकाकर्ता ने इस अध्यादेश की वैधता पर सवाल उठाये हैं.
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इस अध्यादेश के अनुसार राज्य में नौकरशाहों व न्यायाधीशों की जांच से पूर्व सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य होगा. इसके दायरे में सेवारत और पूर्व नौकरशाह दोनों शामिल हैं. इस अध्यादेश के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करने वाले ए के जैन ने इसे अपराध करने का लाइसेंस करार दिया है और इसे सरकार का मनमाना और दुर्भावनापूर्ण कदम कहा है.
विपक्षी दल कांग्रेस के कड़े विरोध के बीच, सरकार ने इस आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन) विधेयक को विधानसभा में सोमवार को पेश किया, लेकिन यह पारित नहीं हो सका और तमाम हो-हल्ले के बीच सदन की कार्रवाई एक दिन के लिए स्थगित कर दी गयी. इसके पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राजस्थान सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "हम 2017 में रह रहे हैं ना कि 1817 में." गांधी ने ट्वीट कर कहा, "पूरी विनम्रता से मैं कहना चाहता हूं कि हम 21वीं सदी में हैं."
राज्य का यह अध्यादेश, आपराधिक दंड संहिता(सीआरपीसी) 1973, में संशोधन करता है. अध्यादेश के तहत मीडिया को जांच की अनुमति मिलने तक किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ रिपोर्ट प्रकाशित करने या किसी मामले में नाम लेने से रोका गया है. विरोधियों के कड़े रुख के बीच रविवार को राज्य सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस अध्यादेश में भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने का कोई प्रावधान नहीं है.
राजस्थान सरकार के इस अध्यादेश पर एडिटर गिल्ड ने भी गहरी चिंता व्यक्त की है. गिल्ड ने कहा, "यह जाहिर तौर पर न्यायपालिका और नौकरशाही को झूठी एफआईआर के खिलाफ रक्षा देने के लिए लागू किया गया लेकिन असल में यह मीडिया को परेशान करने, सरकारी कर्मचारियों के गलत कामों को छिपाने और संविधान में दी गयी प्रेस की आजादी में बाधा डालने का घातक हथियार है." एडिटर गिल्ड की मांग है कि राजस्थान सरकार इस अध्यादेश को वापस ले और इसे कानून न बनने दें.
भारतीय संविधान के अनुसार, राज्य सरकारें राज्य सूची और समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर अध्यादेश ला सकती है.
भारत के सबसे विवादित कानून
भारत में कुछ कानून मधुमक्खी का छत्ता बन चुके हैं. उन पर बात करना बवाल खड़ा कर देता है. ऐसे कौन से कानून हैं जिन पर खूब विवाद होता है.
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धारा 375, सेक्शन 2
धारा 375 रेप की परिभाषा देती है लेकिन इसमें एक अपवाद बताया गया है. पति-पत्नी के बीच यौन संबंधों को किसी भी सूरत में रेप नहीं माना जाएगा, अगर पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है. यानी पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती कर सकता है. इस पर कोर्ट में केस चल रहा है.
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धारा 370
भारतीय संविधान की धारा 370 के मुताबिक जम्मू और कश्मीर राज्य को बाकी राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार दिए गए हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत कई दक्षिणपंथी संगठन और विचारक इस कानून का विरोध करते हैं और इसे खत्म करने की मांग करते हैं.
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सैन्य बल विशेषाधिकार कानून
अंग्रेजी में AFSPA के नाम से मशहूर यह कानून अशांत इलाकों में सेना को विशेष अधिकार देता है. सेना किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, कहीं भी छापे मार सकती है. लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसका बहुत बेजा इस्तेमाल होता है.
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धारा 499
संविधान की धारा 499 के अनुसार किसी व्यक्ति, व्यापार, उत्पाद, समूह, सरकार, धर्म या राष्ट्र की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाने वाला असत्य कथन मानहानि कहलाता है. राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और सुब्रमण्यन स्वामी ने तो सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि इस कानून को खत्म किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, नहीं.
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धारा 498-ए
इस कानून के मुताबिक पत्नी पर क्रूरता करता हुआ पति या पति का रिश्तेदार यानी ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो कि किसी महिला का पति या पति का संबंधी हो, यदि महिला के साथ क्रूरता करता है तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है. इस कानून का विरोध करने वालों का कहना है कि महिलाएं कई बार इसका इस्तेमाल बेजा तरीके से करती हैं.
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भूमि अधिग्रहण कानून
मोटे मोटे शब्दों में कहें तो यह कानून सरकार को किसानों से जमीन लेने का अधिकार देता है. 1894 में बनाए गए इस कानून में 2014 में कुछ सुधार हुए थे. लेकिन सरकार का जमीन लेने का अधिकार बना हुआ है. किसानों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोग इस कानून में और बदलाव चाहते हैं.