सचिन पायलट को विधान सभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित करने के नोटिस को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती पर सुनवाई होनी है. एक केंद्रीय मंत्री और एक विधायक के बीच विधायकों को खरीदने पर हो रही बातचीत का ऑडियो लीक हो चुका है.
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राजस्थान में चल रहे सत्ता के खेल पर पर्दा गिरता हुआ नजर नहीं आ रहा है. पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके साथी विधायकों को विधान सभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित करने के नोटिस भेजे जाने पर पायलट खेमे ने नोटिस को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दे दी है. चुनौती पर सुनवाई शुक्रवार 17 जुलाई को होगी, लेकिन जानकारों का कहना है कि पायलट खेमे ने जो वकील चुने हैं उससे यह साफ हो गया है कि उनकी बगावत के पीछे बीजेपी का हाथ जरूर है.
पायलट खेमे के वकीलों की टीम का नेतृत्व मुकुल रोहतगी कर रहे हैं जो कि जून 2017 तक भारत के अटॉर्नी जनरल थे. उनका साथ हरीश साल्वे देंगे जो 1999 से 2002 के बीच एनडीए सरकार के कार्यकाल में भारत के सॉलिसिटर जनरल थे. राजस्थान सरकार और विधान सभा अध्यक्ष का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी करेंगे जो कांग्रेस के सांसद भी हैं.
लेकिन अदालत के बाहर खेल अभी भी चल रहा है. गुरूवार को मीडिया में आई खबरों में दो नेताओं के बीच राजस्थान में विधायकों को खरीदने के संबंध में फोन पर हो रही बातचीत का ऑडियो लीक होने की जानकारी दी गई. सोशल मीडिया पर ये ऑडियो वायरल हो चुके हैं और जानकारों का कहना है कि इनमें एक तरफ एक केंद्रीय मंत्री हैं और दूसरी तरफ पायलट खेमे के एक विधायक. केंद्रीय मंत्री विधायक से 8-9 दिनों तक होटल में रहने को कह रहे हैं जिसके बाद सरकार गिर जाएगी और उन्हें सीधे 'पेमेंट' मिल जाएगी.
माना जा रहा है कि यह ऑडियो राजस्थान सरकार की जांच एजेंसियों के पास से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इशारे पर अनाधिकारिक रूप से लीक कराई गई हैं. गहलोत कई बार कह चुके हैं कि उनके पास बीजेपी से कांग्रेस के विधायकों को खरीदने के प्रस्ताव के प्रमाण हैं. ऑडियो लीक होने के बाद जयपुर में व्यापारी संजय जैन को हिरासत में ले लिया गया है. जैन का नाम बीजेपी की तरफ से विधायकों तक पैसे पहुंचाने वाले के रूप में ऑडियो में लिया गया है.
इसी बीच, इन ऑडियो का संज्ञान लेते हुए कांग्रेस पार्टी ने दो विधायकों भंवर लाल शर्मा और विश्वेन्द्र सिंह को पार्टी से निलंबित कर दिया है. इसी के साथ पार्टी ने मांग की है कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के खिलाफ राजस्थान सरकार को गिराने की साजिश करने के लिए जांच हो और हवाले के जरिये पैसों के लेन-देन की इस पूरी प्रणाली की भी जांच हो.
कांग्रेस द्वारा मांग करने के बाद राजस्थान में शेखावत के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी गई है. दो विधायकों के पार्टी से निलंबित किए जाने पर पायलट खेमे को धक्का लगा है. कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पायलट खेमे में वैसे भी अब सिर्फ सात विधायक बचे हैं, बाकी सब वापस जयपुर लौट चुके हैं और पार्टी से सुलह करने के इच्छुक हैं.
शिवसेना पहले समान विचारधारा वाली भाजपा के साथ थी. अब महाराष्ट्र में एकदम विपरीत विचारधारा वाली कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन और शिवसेना के बीच सरकार को लेकर बात चल रही है. जानिए कब-कब विपरीत विचारधारा वाले दलों ने किया गठबंधन.
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आरजेडी-जेडीयू -कांग्रेस
लालू यादव और नीतीश कुमार एक साथ छात्र आंदोलनों से निकले थे. लेकिन जल्दी ही वो राजनीति में कट्टर विरोधी हो गए. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में ये दोनों विरोधी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े. दोनों नेता कांग्रेस के खिलाफ हुए छात्र आंदोलनों के ही अगुआ थे. 2015 में इस गठबंधन ने सरकार बनाई जो ज्यादा दिन ना चल सकी और गठबंधन टूट गया.
तस्वीर: UNI
बीजेपी-टीएमसी
आज की राजनीति में टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी बीजेपी की मुखर विरोधी हैं. लेकिन ममता पहले बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. 1997 में कांग्रेस से अलग होकर टीएमसी बनाने के बाद 1999 में उन्होंने भाजपा से गठबंधन किया. ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री भी रहीं. 2006 में उन्होंने एनडीए गठबंधन छोड़ दिया.
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बीजेपी-पीडीपी
जम्मू कश्मीर की पार्टी पीडीपी और बीजेपी के बीच 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद गठबंधन हुआ. पीडीपी को कश्मीर को ज्यादा अधिकार की वकालत करती है जबकि बीजेपी इसके खिलाफ है. तीन साल तक यह गठबंधन चला जो 2018 में खत्म हो गया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बाद में इसे बेमेल गठबंधन कहा था.
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आरजेडी-कांग्रेस
लालू यादव जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के सक्रिय चेहरों में से एक थे. उनका पूरा आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ था. लेकिन अब लालू की पार्टी आरजेडी कांग्रेस की सबसे करीबी पार्टियों में से है. 1997 में लालू ने जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी आरजेडी बनाई. लेकिन 2004 में लालू गठबंधन में शामिल हो गए. 2009 में ये गठबंधन टूट गया. लेकिन 2014 के बाद से दोनों पार्टियां साथी बने हुए हैं.
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कांग्रेस-डीएमके
तमिलनाडू की पार्टी डीएमके की राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के विरोध से ही हुई. डीएमके नेता अन्नादुरई ने तमिलनाडू से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. कांग्रेस राजीव गांधी की हत्या में डीएमके नेता करुणानिधि की भूमिका पर सवाल उठी थी. 2004 में डीएमके केंद्र में कांग्रेस सरकार का हिस्सा बनी. यह गठबंधन 2013 तक चला. 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर ये पार्टियां साथ आ गईं.
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एनसीपी-कांग्रेस
जब सोनिया गांधी पहली बार कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने उनके विदेशी मूल का मुद्दे उठाया और कांग्रेस से अलग हो कर एनसीपी बना ली थी. 2004 से 2014 तक एनसीपी ने केंद्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार में गठबंधन बनाए रखा. 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन टूट गया लेकिन चुनाव के बाद ये पार्टियां फिर साथ आ गईं.
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बीजेपी-एलजेपी
राम विलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता है. वो राजनीति में आने के बाद अधिकतर सरकारों में मंत्री रहे हैं. 2002 में गुजरात दंगों को रोकने में नरेंद्र मोदी के नाकाम रहने का आरोप लगाकर उन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा था. 2014 में उन्होंने नरेंद्र मोदी की बीजेपी से गठबंधन किया और 2014 से वो मोदी सरकार में मंत्री हैं.
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एसपी-बीएसपी
मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने 90 के दशक में गठबंधन सरकार बनाई थी. लेकिन 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद इन दोनों पार्टियों में दुश्मनी हो गई. 2019 के लोकसभा चुनावों में ये दुश्मनी खत्म हुई और दोनों पार्टियों ने साथ चुनाव लड़ा. हालांकि चुनाव के तुरंत बाद यह गठबंधन टूट गया.
तस्वीर: Ians
कांग्रेस-लेफ्ट
भारत की आजादी के बाद कांग्रेस सत्ता में रही और समाजवादी और लेफ्ट पार्टियों का विपक्ष रहा. लेफ्ट पार्टियों ने पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनाई थी. लेकिन 2004 में कांग्रेस और लेफ्ट ने केंद्र में सरकार के लिए गठबंधन किया. 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भी दोनों पार्टियां गठबंधन में चुनाव लड़ीं. हालांकि केरल में दोनों पार्टियां एक दूसरे की विरोधी हैं.
तस्वीर: UNI
आम आदमी पार्टी-कांग्रेस
आम आदमी पार्टी का जन्म ही कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचारों के आरोपों का विरोध करके हुआ था. हालांकि 2013 में जब आम आदमी पार्टी दिल्ली में बहुमत नहीं पा सकी तो कांग्रेस ने उसे बाहर से समर्थन दिया. हालांकि यह सरकार 49 दिन ही चल सकी. 2019 के लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस से गठबंधन की इच्छा जताई थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
तस्वीर: Reuters/India's Presidential Palace
एसपी-कांग्रेस
समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव की राजनीति कांग्रेस विरोध पर शुरू हुई थी. लेकिन उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है. 2008 में विश्वास मत प्रस्ताव के दौरान सपा के समर्थन से ही कांग्रेस सरकार बची थी. 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ी थीं.